RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
पहले दराज में मुझे कोई दिलचस्पी के काबिल चीज न मिली तो मैंने दूसरा, बीच का दराज खोला और उसका पोस्टमार्टम आरम्भ किया। "चावला साहब" - एकाएक मैंने पूछा - "अपनी रिवॉल्वर कहां रखा करते थे ?"
"इसी मेज के किसी दराज में।”
"कौन से दराज में ?"
"यह मुझे नहीं मालूम ।"
"यहां से रिवॉल्वर निकालते वक्त तो मालूम हो गया होगा ?"
"फिर आ गए एक आने वाली जगह पर । मिस्टर, इस मेज को हमेशा ताला लगा होता था और इसकी चाबी मेरे पति के पास, सिर्फ मेरे पति के पास, होती थी ।" मैं खामोश रहा । मैंने सबसे नीचे का दराज खोला।। उसमें से वह चीज बरामद हुई जिसकी निश्चित ही चौधरी को तलाश थी।
वह एक लाल जिल्द वाली, डायरी के आकार की, लैजर थी जिस पर जान पी एलैग्जैण्डर एण्टरप्राइसिज छपा हुआ था । उसका मुआयना करने पर मुझे लगा कि वह लैजर ही गैंगस्टर सम्राट की कम्पनी की थी। उस पर लिखा । हिसाब-खाता बहुत प्राइवेट था । तारीखों के साथ उसमें केवल आमदनी की प्रविष्टियां थी, खर्चे के कालम उसमें तमाम के तमाम खाली थे।" निश्चय ही वह एलैग्जैण्डर का कोई बहुत खुफिया हिसाब खाता था जो पता नहीं कैसे चावला के हाथ लग गया था
मैंने उसके कुछह पन्ने पलटे । एक स्थान पर एक प्रविष्टि के गिर्द मुझे एक लाल दायरा खिंचा दिखाई दिया। उसी दायरे में एक नाम था और एक रकम थी । नाम शैली भटनागर था और रकम बीस हजार रूपये की थी। मुझे उस लैजर में ब्लैकमेलिंग की बू आने लगी ।
और चावला शायद ब्लैकमेलर को ब्लैकमेल कर रहा था। मैंने लैजर अपने कोट की जेब में डाल ली। चौधरी बहुत गौर से मेरी हर हरकत का मुआयना कर रहा था।
"यह क्या है?" - कमला संदिग्ध भाव से बोली।
"कोई खास चीज नहीं ।" - मैं लापरवाही से बोला - "मामूली लैजर बुक है । मैं घर जाकर बारीकी से इसका मुआयना करूगा ।"
"लेकिन..."
"तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं ? इतनी मामूली चीज का भरोसा नहीं ?"
वह खामोश हो गई।
"तुम अपने के किसी भटनागर नाम के वाकिफकार को जानती हो ?"
"एक शैली भटनागर को मैं जानती हूं।"
"कौन है वो ?"
"पब्लिसिस्ट है । नगर की बहुत बड़ी एडवर्टाइजिंग एजेंसी का मालिक है । मूवी एन्ड फिल्म उसकी स्पेशलिटी है।"
"तुम कैसे जानती हो उसे ?"
"अपने पति की वजह से ही । वह यहां अक्सर होने वाली पार्टियों में जो लोग अक्सर आते थे, उनमें एक शैली, भटनागर भी था।"
"चावला साहब की अच्छी यारी थी उससे ?"
"हां । अच्छी यारी थी। दोनों घुड़दौड़ के शौकीन थे। एक घोड़ी में" - उसके स्वर में विष घुल गया - "खास तौर से उन दोनों की दिलचस्पी थी।"
"कोई खास घोड़ी है वो ?"
"हां । बहुत खास ।
” "कौन ?"
"जूही चावला ।"
"ओह !"
तभी कॉल बैल बजी ।
“पुलिस आई होगी" - मैं बोला - "जाकर दरवाजा खोलो।"
वह चली गई ।
मैंने अपने ताबूत की एक नई कील सुलगाई और सोचने लगा। अब मुझे गारंटी थी कि चौधरी वह लैजर बुक चुराने के लिए ही वहां भेजा गया था। इसका मतलब था कि एलेग्जैण्डर को मालूम था कि चावला मर चुका था। इतनी जल्दी इस बात की खबर उसे कैसे हो सकती थी ? तभी हो सकती थी जबकि उसने कत्ल खुद किया हो या करवाया हो। लेकिन कत्ल का ढंग एलेग्जैण्डर जैसे गैंगस्टर की फितरत से मेल नहीं खाता था । अगर चावला की लाश गोलियों से छिदी किसी गली में पड़ी पाई गई होती या उसका क्षत-विक्षत शरीर यमुना में से निकाला गया होता या वह हिट एंड रन का शिकार हुआ होता तो उसकी मौत में एलैग्जैण्डर का हाथ होना समझ में आ सकता था। हत्या यूं करना, कि वह मोटे तौर पर आत्महत्या लगे, एलेग्जेंडर की फितरत से मेल नहीं खाता था।
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