RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"चावला साहब के बिजनेस का क्या होगा ?" - मैंने नया सवाल किया - "उसे जूही चलायेगी अब ?"
"नहीं ।”
"तो ?"
"बिजनेस तो खत्म हो जायेगा ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि मद्रास होटल में जिस जगह पर चावला मोटर्स का बिजनेस है, वह जगह लीज (पट्टे) की है जो कि उन्होंने कई साल पहले पचास साल की लीज पर किराये के नाम पर कौड़ियों के मोल हासिल की थी। लीज की एक शर्त । यह भी थी कि उनकी मौत की सूरत में वह लीज भंग मानी जायेगी और जगह के मालिक को उसका खाली कब्जा - हासिल करने का अधिकार होगा।"
"मालिक कौन है जगह का ?"
"कस्तूरचंद नाम का एक आदमी।"
"करता क्या है वो ?"
"प्रॉपर्टी डीलर है।"
"कहां ?"
“गोल मार्केट में ।"
"मद्रास होटल वाली वह जगह तो बहुत कीमती है।"
"आज कीमती है। पहले नहीं थी । इसीलिये वह जगह खाली कराने के लिये कस्तूरचंद कोई कोशिश उठा नहीं रख रहा था लेकिन लीज की लिखा-पढ़ी इतनी मजबूत है कि उसकी एक नहीं चलती थी" - वह एक क्षण ठिठका और बोला - "सिर्फ चावला साहब की मौत ही उस लीज को भंग कर सकती थी।"
ऐसे माहौल में तो दोनों में अनबन भी बहुत रही होगी !"
"अनबन क्या, दुश्मनी थी। चावला साहब तो खुन्दक में कभी-कभार उसके प्रापर्टी के धंधे में भी घोटाला कर देते थे
"वो कैसे ?"
"कस्तूरचन्द जब कोई बड़ा सौदा पटा रहा होता था तो वे ग्राहक का पता लगा लेते थे और उसे ऐसा भड़का देते थे कि वह सौदे से पीछे हट जाता था।"
"यह तो बड़ी गलत बात है।"
उसने लापरवाही से कंधे उचकाये ।
"चावला साहब के बिजनेस को फरोख्त करने का इन्तजाम भी आप ही करेंगे ?"
"हां । यह जिम्मेदारी भी मुझ पर ही है। तुम्हारी जानकारी के लिये उनके बिजनेस का एक खरीददार खुद कस्तूरचंद
भी है।"
"अच्छा !"
"हां । आज सुबह ही उसने मुझे फोन किया था इस बारे में।"
"यानी कि आज की तारीख में अपने मौजूदा ठिकाने पर चावला मोटर्स का बिजनेस तभी चल सकता है, जबकि
खरीददार कस्तूरचंद हो?" |
"हां । वरना चावला मोटर्स का तमाम तामझाम, टीन-टप्पर वहां से हटाया जाना पड़ेगा।"
"वसीयत के बारे में आपकी जूही से बात हुई ?"
“हुई।"
"और मिसेज चावला से ?"
"वो मैं अभी करूंगा।"
"आप मुझे वसीयत दिखा सकते हैं ?" " वह हिचकिचाया । फिर उसकी मुंडी अपने-आप ही इनकार में हिलने लगी।
"वकील साहब, अब यह क्या कोई राज रह गया है ? जो बात आप मुझे जुबानी वता चुके हैं, उसके दस्तावेज मुझे दिखाने में आपको क्या ऐतराज है ?"
"वसीयत देखकर तुम्हें क्या हासिल होगा ?"
"मेरे मन की मुराद पूरी होगी ।"
"क्या ?"
बचपन से ही दो मुराद थीं मेरे मन की । एक ताजमहल देखने की और दूसरी किसी रईस आदमी की वसीयत देखने की । और ताजमहल मैं पिछले हफ्ते देख आया हूं।"
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