Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
03-24-2020, 09:08 AM,
#61
RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
मैंने उसे अपने पीछे खड़े थामस और चौधरी को इशारा करते देखा । मैंने मेज के साथ अपने दोनों पांव सटाये और जोर से अपने-आपको पीछे को धकेला । मैं कुर्सी समेत पीछे उलट गया और पीछे से अपनी तरफ बढ़ते थामस और चौधरी से टकराया। वे दोनों, मैं और कुर्सी सब आपस में उलझे-उलझे फर्श पर गिरे मैं फुर्ती से अलग हुआ और मैंने परे पड़ी एक-तिपाई की तरफ डाईव मारी जिस पर कि एक पीतल का फूलदान पड़ा था । फूलदान मेरे हाथ में आ गया तो मैंने उसे कमरे के इकलौते प्रकाश के साधन, डबल ट्यूब लाइट पर खींचकर मारा। दोनों ट्यूबें टूट गई और कमरे में एकाएक अंधेरा छा गया। मैंने तिपाई को एक टांग से पकड़ा और उसे एलैग्जैण्डर के पीछे की खिड़की पर फेंककर मारा।। शीशा टूटने की भयंकर आवाज हुई ।

"खिड़की से बाहर जा रहा है ।" - थामस चिल्लाया। लेकिन मैं उठकर दरवाजे की तरफ लपका।। मैंने टटोलकर दरवाजे का हैंडल थामा, उसे खोला और भड़ाक से वापिस बन्द कर दिया। खुद मैं दरवाजे से परे हटकर दीवार से चिपक गया।

"दरवाजे से भागा है।" - चौधरी की आवाज आई।

दो जोड़ी कदम दरवाजे की दिशा में लपके । वे दरवाजा खोलकर बाहर निकल गये तो मैंने दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया और उसकी चिटखनी चढ़ा दी । अब मैं खिड़की की तरफ बढ़ा जिसके बाहर से गुजरती फायर एस्केप की लोहे की गोल सीढ़ियां मैंने वहां कदम रखते ही देखी थी ।

बाहर से दरवाजा भड़भड़ाया जाने लगा। तभी एक टॉर्च की तीखी-रोशनी मेरे चेहरे पर पड़ी। "गोली खाने का है तो आगे बढ़ ।” - एलैग्जैण्डर अपने पहले जैसे नर्म स्वर में बोला ।

में ठिठक गया। टॉर्च ने काम बिगाड़ दिया था वरना उसके हथियारबन्द होते हुए भी मैं वहां से खिसकने में कामयाब | हो गया होता । लेकिन अब आपके खादिम का आत्महत्या का कोई इरादा नहीं था।

उन्होंने मेरे हाथ-पांव बांधकर मुझे एक बोरे में बन्द किया और फिर बोरे को थामस और चौधरी उठाकर नीचे ले आये
००००
मैंने एलेग्जैण्डर को उन्हें कहते सुना कि वे मुझे पंजाबी बाग में स्थित उसकी कोठी में ले जायें । मुझे एक एम्बैसेडर की पिछली सीट पर डाल दिया गया और फिर बोरा मेरे जिस्म से अलग कर दिया गया। थामस ड्राइविंग सीट पर बैठा और चौधरी उसकी बगल में ।

एलेग्जेण्डर पता नहीं पीछे रह गया था या अलग कार में आ रहा था।

मुझे अपना भविष्य बड़ा अंधकारमय लग रहा था।

मुश्कें कसी होने की वजह से मैं कोई आराम से पिछली सीट पर नहीं पड़ा था । गाड़ी बहुत झटके खा-खाकर चल रही थी और मैं पीछे पड़ा गेंद की तरह इधर-उधर उछल रहा था । पटेलनगर की वह सड़क तो खराब थी ही लेकिन मुझे लग रहा था कि थामस गाड़ी जानबूझ कर रफ चला रहा था। कोई दस मिनट बाद गाड़ी पंजाबी बाग की एक कोठी के कम्पाउन्ड में जाकर रुकी। वे दोनों बाहर निकले । उन्होने मुझे भी भी घसीटकर बाहर निकाला और मुझे मेरे बंधे हुए पैरो पर खड़ा किया । दोनों मेरे दायें-बायें पहुंचे, उन्होंने मेरी बगलों में हाथ डाला और मुझे घसीटते, लुढ़काते, गिरते कोठी के भीतर ले चले। वे मुझे पिछवाड़े के एक कमरे में लाये जो शायद कोठी में इस्तेमाल में नहीं आ रहा था। वहां कुछ फालतू सामान भरा हुआ था और कमरे के बीचोंबीच एक बिलियर्ड की टेबल पड़ी थी । उन्होंने मुझे टेबल पर डाल दिया और कमरे के खिड़कियां-दरवाजे बन्द करके उन पर पर्दे सरका दिये।

फिर वे आपस में डिसकस करने लगे कि टार्चर की शुरुआत कौन से फेमस तरीके से की जानी चाहिये थी। फिर चौधरी मेरे पास पहुंचा। उसने मुझे उठाकर मेज पर इस प्रकार बिठा दिया कि मेरी टांगें मेज से नीचे लटक गई।

अपना विकराल चेहरा वह मेरे चेहरे के एकदम करीब ले आया और बड़ी खतरनाक हंसी हंसता हुआ बोला - "अब बोल तेरे साथ कैसा सलूक किया जाए ?"

"ऐसा नहीं ।" - मैं बोला और मैंने सिर नीचा करके पूरी शक्ति से उसकी ठोकर उसके पहले से ही बुरे हाल चेहरे पर जमाई । उसके मुंह से एक तेज चीख निकली और वह लड़खड़ाता हुआ पीछे को हटा । तुरंत उसकी नाक से खून का फव्वारा छूट पड़ा । एकाध दांत भी और चटक गया हुआ होता तो कोई बड़ी बात नहीं थी।


थामस लपक कर मेरे पास पहुंचा । उसने मेरी तरफ अपना घूसा ताना तो चौधरी तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोला - "ठहरो इस हरामजादे की खिदमत मुझे ही करने दो।" वह फिर मेरे करीब पहुंचा । खून से रंगा उसका चेहरा बड़ा वीभत्स लग रहा था। उसने ताबड़-तोड़ तीन-चार घूसे मेरे चेहरे पर यूं जमाये जैसे वह अभी महज प्रैक्टिस कर रहा हो । हाथ-पांव बंधे होने की वजह से अपने सिर को इधर-उधर झटके देकर थोबड़ा बचाने की कोशिश करने के अलावा मैं कुछ भी तो नहीं कर सकता था। फिर उसके घूसे मेरे सारे जिस्म पर बरसने लगे। फिर धीरे-धीरे मेरी चेतना लुप्त होने लगी।
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