RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"बैंक्यू !" मैं उसके साथ कमरे में दाखिल हुआ। उसने खुद मेरे पीछे दरवाजा बन्द किया । हम दोनों बैठ गए तो वह बोला - "क्या चाहते हो ?"
"मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं" - मैंने तोते की तरह रट दिया -"कि उस लैजर बुक के हर वर्के की एक-एक फोटो
कॉपी अभी भी मेरे पास है "
* तुम और क्या कहना चाहते हो ?"
*और कहना चाहता हूं कि वे फोटोकॉपीज लेजर बुक के अस्तित्व को जरूर साबित करेंगी क्योंकिओरिजिनल के बिना तो कॉपी बनती नहीं । फिर कोई तुम्हारा बड़ा साहब, वो नहीं तो कोई अखबार वाला, शायद मेरी इस बात पर विश्वास कर ले कि असल लेजर बुक मैंने तुम्हें सौंपी थी जो कि तुमने आगे" - मैंने स्वर जानबूझकर धीमा कर दिया - "एलेग्जेण्डर को बेच दी ।”
“मैंने" - वह भी दबे स्वर में बोला - "उससे कोई रकम हासिल नहीं की..."
मुझे मालूम है । मेहरबानी कैश या काण्ड दोनों तरीकों से होती है। उस डायरी के बदले में उसने तुम्हें एक ऐसा केस पकड़वाया है जो कि तुम्हारी प्रोमोशन करवा सकता है, तुम्हें प्रशस्ति-पत्र दिला सकता है।"
*और तुम मेरी प्रोमोशन में और मेरे प्रशस्ति-पत्र में हिस्सेदारी चाहते हो ।”
"नहीं। ऐसी कोई हिस्सेदारी मुमकिन नहीं ।”
"तो ?"
"जैसी मेहरबानी तुम्हें हासिल हुई है, वैसी ही मेहरबानी में तुमसे हासिल करना चाहता हूं।"
"क्या ?"
"मैं चाहता हूं कि कमला चावला को बेगुनाह साबित करने में तुम मेरी मदद करो।”
"मेरा काम गुनहगार का गुनाह साबित करना है न कि..."
"वो" - मैंने बीच में बात काटी - "गुनहगार नहीं है । वो बेगुनाह है।”
"जो कि तुम जादू के जोर से साबित कर सकते हो ?"
"नहीं, जादू के जोर से तो नहीं कर सकता । जादू तो मुझे आता नहीं।”
"देखो, अगर तुम यह समझते हो कि तुम मुझ पर दबाव डालकर मुझे उसे रिहा करने पर मजबूर कर सकते हो तो यह ख्याल अपने मन से निकाल दो । वह हिरासत में नहीं है बल्कि बाकायदा चार्ज के साथ गिरफ्तार है। मैं उसे रिहा करूगा तो यह होगा कि मेरी नौकरी चली जायेगी और वह फिर गिरफ्तार हो जायेगी।"
"मैं उसे रिहा करने के लिए नहीं कह रहा ।"
"तो और क्या कह रहे हो ?"
"मैं यह कह रहा हूं कि उसे बेगुनाह साबित करने में तुम मेरी मदद करो।”
"वो मैं सुन चुका हूं लेकिन कैसे मदद करू ?"
"शुरूआत मेरी कमला से एक मुलाकात करवाकर करो ।”
"यह नहीं हो सकता ।"
"क्यों नहीं हो सकता ?"
"वह गिरफ्तार है ।"
"तो क्या हुआ ? जहां वो गिरफ्तार है, वो जगह चांद पर तो नहीं ।”
,,, "लेकिन..."
"मेरी उससे एक मुलाकात करवाओ, यादव साहब ।"
"धमकी दे रहे हो ?" - वह आंखें निकालकर बोला ।
"हां ।"
वह मुंह से तो कुछ न बोला लेकिन कितनी ही देर मुझे घूरता रहा । मैंने उसके घूरने की परवाह न की ।
"लैजर बुक की दूसरी कॉपी निकालो।" - कुछ क्षण बाद वह बोला।
"मिल जायेगी ।" - मैं लापरवाही से बोला - "जल्दी क्या हैं ?"
"अगर तुम मुझसे कोई मेहरबानी चाहते हो तो-"।
"मेरी कमला से मुलाकात का इंतजाम करो, वह कॉपी मैं पूरी हिफाजत के साथ तुम्हारे घर छोड़ के जाऊंगा।"
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