RE: antervasna चीख उठा हिमालय
बिकास अभी कुछ कहना ही चाहता था कि वह रुक गया । दूसरी तरफ से बिजय ने उपयुक्त अल्फाज बोलकर सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया था । एक पल तो लह सांय-सांय करते रिसीवर को घूरता रहा, फिर उसे क्रेडिल पर रखकर बिस्तर से उतारा ।
तभी हाथ में चाय लिए कमरे में प्रविष्ट हुई रैना ।
"अरे मम्मी ।" रैना को देखते ही विकास ने कहा…"आप खुद चाय लाई ! नौकर नहीं था क्या ?"
" चाय लाने के बहाने कम-से-कम तेरी सूरत तो देख ली ।" रैना ने शिकायत-भरे स्वर में कहा---"बहुत आवारा हो गया है तू । सुबह-ही-सुबह न जाने कहाँ निकल जाता है, और फिर रात को उस समय अाता है जब सब सो जाते हैं । मालूम है वो क्या कह रहे थे ?"
'"क्या " ?" विकास ने रैना के हाथ में है कप प्लेट लेते हुए पूछा ।
" यह कि उन्हें तो एक ही घर में रहने के बावजूद भी तू कई-कई दिन तक नहीं मिलता ।" रैना ने कहा'…" कुछ तो यह पुलिस की नौकरी ही ऐसी है कि वे कब घर में रहते और कब बाहर ? फिर, एक तू है कि सारा दिन घर से बाहर रहता है ।"
"'क्या बात करती हो मम्मी । हां । इसे इत्तफाक ही कहा जा श्री सकता है कि जब डैडी घर में अाते है तो मैं नहीं होता और जब मैं घर में होता हूँ तो डैडी नहीं आ पाते ।" कहने के बाद बिकास ने चाय का एक लम्बा घूंट भरा ।
"'ऐसी बात नहीं विकास ।" रैना ने कहा…"वे नौकरी करते हैं, फिर भी तुम से ज्यादा देर घर में रहते हैं । .और एक तू ' _ है कि कुछ न करते हुए भी जाने सारे दिन कहां रहता है ?
अरे बिकास, जाना है क्या ?"
विकास चौंका ---बौखलाया , कहने लगा---"क्यों-नहीं तो मम्मी ।"
" बहका रहा है मुझे ?" रैना ने कहा-----देख नहीं रही हूं कि तू चाय जिस ढंग से पी रहा है ?"
"नहीँ' मम्मी ऐसी तो कोई बात नहीं है ।" विकास खुद को सभालता हुआ बोला ।।
"अच्छा, यह बता, काला लड़का कौन है ?"
और-रैना के इस सवाल पर विकास इतनी बूरी तरह उछल पडा जैसे एकाएक किसी बिच्छू ने उसे डंक मारा हो परन्तु चौंकने का एक भी भाव उसने अपने चहरेे पर नहीं आने दिया । उसने संभलकर सवाल किया…"काला लड़का-कौन काला लडका ?"
"औंर...ये गुप्त भवन क्या है ?"
विकास के सिर पर जैसे बम गिरा । कप प्लेट जैसे उसके हाथ से छूटते छूटते बचे,बोला---"गुप्त भवन ?"
दूसरे फोन पर तुम्हारी बातें सुन ली हैं जो तेरे और विजयं भैया के बीच हो रही थीं ।"
रैना के इस वाक्य ने विकास के दिमाग में चकराते इस प्रश्न का ज़वाब 'तो दे दिया क्रि रैना 'काले लड़के' और 'गुप्त पवन-के बारे में कैसे जानती है मगर-रैना का इतना जान लेना ही कम खतरनाक नहीं था । वह बोला-----"ओह । मम्मी ! अाप उस फोन की बात कर रही हैं । वह तो विजय अकल का फोन था न । तुम्हें तो मालूम ही है----वे मजाक करते हैं । कुछ दिन से उन्हें न जाने क्या भूत सवार हुआ है कि अपनी कोठी -को गुप्त भवन कहने लगे और उनका एक दोस्त है-उसे काला लडका कहते है ।"
"'काले लड़के को तुझसे क्या काम हैं. ?" रैना ने कहा…"यानी उससे मिलने के लिए विजय भैया ने तुम्हें क्यों बुलाया है । "
"ओह, हाँ, विजय गुरू का वह दोस्त अमेरिका से अाया हुआ है । आजकल वह मुझे जूडो और कराटे सिखाया करता है ।"
" मुझसे कुछ छुपा रहे हो बिकास !” उसे घूरती हुई रैना ने कहा ।
विकास यह महसूस कर रहा था कि वह बुरी तरह फंस गया है । फिर भी, बात क्रो सभालने की कोशिश करता हुआ वह बोला…"मैँ आपसे क्या और क्यो छिपाऊगा मम्मी ?"
" तो बता कि रूस, ब्रिटेन, अमेरिका, चीन आदि से क्या के रिपोर्ट अाने वाली है ?"
एक बार पुन: विकास का दिमाग बुरी तरह झनझना उठा । बोला-"'वो मम्मी, इन सब देशों से अकल .ने कुछ और लोग बुलाए हैं न ! मुझे दांब सिखाने के लिए ।
अंकल का कहना वे दुनिया का कौई भी दांवं ऐसा नहीं छोडेंगे जो मुझे ना आता ।"
"क्या तुझे दांव सिखाने की जरूरंत है है ?" रैना ने पूछा ।
"'क्यों नहीं मम्मी, अभी मैंने सीखा ही क्या है ?"
" कुछ सीखा ही नहीं है तूने ।"रैना ने कहा-----" लोग जल्लाद के नाम तुझे जानने लगे हैं । देश-विदेश के जासूस तेरे कटटर दुश्मन बन गए हैं । यहाँ तक सुना है कि तू पूरी पूरी फौजों के के वश में 'नहीं अाता और कहता ये है कि तूने अभी सीखा ही क्या ?"
"ओह मम्मी?" प्यार से कहता हुआ वह रैना से लिपट गया…"बड़ी पगली हो तुम भी । इतने बड़े दुश्मनों से निबटने के लिए अंकल मुझे दुनिया का हर दांव सिखा रहे हैं-क्या गलत रहें हैं वह ?"
" लेकिन वेटे, तुझे इतने -खतरनाक जासूस और मुजरिमों से दुश्मनी लेने की जरूरत ही क्या है है"' रैना ने कहा---" तुझे क्या जरूरत पड़ी है कि इतने खतरनाक लोगों से उलझे ?विदेशों के मामलों को हमारे देश की सरकार जाने, देश की फौजें और जासूस जाने ।"
"‘मम्मी !" रैना से लिपटा विकास बोला-----" ये तो तुम जानती हो कि जेम्स बाण्ड, माइक,फुचिंग और ग्रीफित से तो मेरी दुश्मनी है तुम्हारे देश गुलशनगढ़ में ही गई थी । उस 'अभियान में तुम भी थी -- तुम्हें सब कुछ मालुम ही है ।"
(गुलशनगढ़ के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए पढे, क्रांति सीरीज. की दो पुस्तकें-"पहली दूसरी क्रांति‘ तथा 'क्रांति का देवता । )
""वह दुश्मनी वहीं की वहीं खत्म हो जानी चाहिए थी ।" रैना ने कहा…" और फूंचिंग और ग्रीफित को तो तूने मार ही डाला ।"
" मैं तो खत्म ही समझता हूं मम्मी, लेकिन जब वे अपने को खत्म नहीं समझते तो मैं क्या करू ?" विकास ने कहा---"फूचिंग क्रो मैंने मार डाला इसलिए पूरा चीन मेरा दुश्मन है । ग्रीफित को मार डाला इसलिए जेम्स बाण्ड और पूरा ब्रिटेन मेरा दुश्मन है । माइक मुझे अपना दुश्मन इसलिए समझता है । क्योंकि गुलशनमढ में वह मुझसे हार चुका है । अब तुम ही बताझो मम्मी, जब वे मुझे अपना दुश्मन समझते हैं तो कभी मुझ पर हमला कर सकते हैं । क्या ये ठीक नहीं होगा कि उनसे सुरक्षा के मैं सारे दांव सीख लूं ?"
" न जाने क्यों रैना की आंखें छलछला उठी । क्रिसी भावना के वशीभूत रैना ने उसे बांहों में कस लिया । रोती हुई वह बोली…"विकास कैसा पागल है रे तू । मुझे तो डर लगता है, केसे-केसे खतरनाक लोगों को तूने अपना दूश्मन वना लिया है ।"
बडी मिन्नतें करने के बाद भगवान ने मेरी गोद भरी है । मेरी गोद में सिर्फ एक तू हेमेरे लाल । तुझे कुछ हो गया तो...तो.... और फूट फूटकर रो पड़ी रैना ।
कौन समझाए ? कौन समझाए ममता में पागल हुई इस मां क्रो कि जिसे उसने गले से लगा रखा है, उसके नाम मात्र से दुश्मनों के कलेजे थर्रा उठते हैं । रूह कांप जाती है । अमेरिका और चीन में मौत के नाम से मशहूर है उसका यह लाल !
विकास----वह जल्लाद-देखों तो सही, मौत को थर्रा देने वाला दरिंदा कैसे मासूम और अबोध बच्चे की तरह अपनी मां के कलेजे के से लिपट गया ! कह रहा है--‘"अरे...रोती क्यों हो मम्मी ! तुम डरती क्यों हो ? विजय गुरु और अलफांसे अंकल जो मेरे साथ है ।"
-"'न जाने क्यों ये कुत्ते… मेरे मासूम लाल को अपना दुश्मन समझने लगे हैं ।" भावावेश के भंवर फसीं रैेना कहती ही चली गई-"कहों वे हत्यारे जासूस और कहां मेरा अबोघं लाल ।"
कौन समझाए उस मां को कि उसका अबोध लाल दरिंदा है, दुर्दान्त,बेरहम और वक्त पढ़ने पर राक्षस है । कौन समझाए उसे जिन्हें वह खतरनाक समझ रही है, वे विकास की परछाईं से भी कांपते हे । कौन समझाए.......
बड़ी कठिनाई से विकास रैना को संभाल सका । . . अपनी मां को भावनाओं के भंवर से निकाल सका । बड़ी कठिनाई से वह रैना से इजाजत ले सका कि वह विजय की कोठी पर चला जाए ।
तैयार होने के बाद जब यह कार लेकर सडक पर अाया तो वह पूरे आधे घण्टे लेट था ।
उधर-विकास कोठी से बाहर निकला या, इधर रैना ने रिसीवर उठाकर विजय की कोठी के नम्बर रिग किए । कुछ देर तक दूसरी तरफ से बजने वाली घण्टी की आवाज जाती रही । काफी देर के बाद दूसरी तरफ़ से फोन उठाया गया ।
आवाज अाई-----"' कौन साहब बोल रहे हैं ?"
"' कौन पूर्णसिंह ?'-' विजय के नौकर की आवाज पहचानकर रैना ने कहा --यह मैं बोल रही हूं रैना ।"
" ओह, बीबीजी !" पुर्णसिंह ने कहा------" हां मैं पूर्णसिंह ही हूं ।"
"विजय भैया को फोन दो ।"
" वे तो यहां हैं नहीं, बीबीजी !"
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