RE: antervasna चीख उठा हिमालय
उधर धनुषटंकार दूरबीन आंख से सटाये प्रयोगशाला की छत क्रो कवर किए दहकती किरणों के उस बारीक जाल को देख रहा था, उधर अलफांसे नंगी आंखों से उस जाल को देखने की असफल कोशिश का रहा था ।"
" इस तरह कोशिश करने से कोई लाभ नहीं है, चचा !" वतन ने कहा-----"इस विशेष दूरबीन की मदद के बिना, कुछ नहीं दिखेगा ।"
प्रयोगशाला की इमारत पर से नजरें हटाकर अलफांसें ने वतन पर नजरे गडा दीं, बोला…" उनकी विशेषता नहीं बताओगे ?"
" सुनिए ।" रहस्यमय ढंग से मुस्कराया वतन-----"भारतीय वैज्ञानिक डॉक्टर भावा का नाम तो सुना ही है सारी दुनिया जानती है कि उन्होंने किसी ऐसी किरणों का जिक्र किया था जिनकू मौजूदगी में अणुबम की विशेषता एक गेंद से बड़कर न हो । "
"'क्या कहना चाहते हो ?"
" मेरी प्रयोगशाला की छत को कवर किए जो किरणे आपने देखीं, वह डाँक्टर भावा का ही आविष्कार है ।"
"क्या मतलब?" अलफांसे बूरी तरह चौंका ।
"मतलब यह चचा कि जिन किरणों का आविष्कार भावा करने वाले थे, उन्हें तो दुश्मनों ने यह अविष्कार पुर्ण
करने से पूर्व ही मोत की गहरी नीद सुला दिया ।” गम्भीर स्वर में वतन कह रहा था-""मगर उनका वह अधूरा आविष्कार मैंने पूर्ण कर लिया है ।"
" कैसे ?"'
"वेवज एम' द्वारा ।"
"वेवज एम ।" अलफांसे ने दोहराया-"वेवज एम क्या है ?"'
" यह मेरे उसी यन्त्र का नाम है, जिसके बारे में विश्व के अखबारों में छपा है ।" वतन ने वताया ब्रह्माण्ड से आवाजें कैच करने वाले अपने यन्त्र का नाम मैंने 'वेबज एम' रखा है ।
इसी ’वेवज एम' द्वारा मैंने ब्रह्माड में-बिखरी डॉक्टर भावा की आबाज क्रो कैच क्रिया और उसी के आधार पर भावा के उस अधूरे कार्य को पूर्ण क्रिया । जिस आविष्कार क्रो करने से पहले डॉक्टर भावा दुश्मनों के षडृयन्त्र का शिकार हो गए, उसको मैंने उन्हीं की आवाज से पूर्ण कर लिया ।"
" क्या डॉक्टर भावा इन किरणों का फार्मूला तेयार का चुके थे ?"
-"बेशक ।" वतन ने बताया----"" ब्रह्मड में मुझे उनकी आवाजें मिली हैं तो बेशक वे फार्मूला तैयार का चुके ।"
"जरा स्पष्ट करके बताओ !"
"आपक्रो याद होगा कि डाक्टर भावा के साथ उस विमान में जिसके क्रेश होने पर वे मारे गए, उनका एक सहयोगी भी था जो उन्हीं के साथ मारा गया । व्रह्मांड में से मुझे डॉक्टर भावा और उनके उस सहयोगी की आवाजें मिली हैं, आवाजें उस वक्त की हैं जब वे दोनों इन किरणों के बारे में बांते कर रहे थे । मेरे ‘वेबज़ एम' ने सबसे पहले डॉक्टर भावा की वह आवाज पकड़ी ---"किरणों का फार्मूला मेरे दिमाग में बैठ चुका है ।"
" क्या अाप मुझे बतायेंगे ?" यह आवाज उनकें सहयोगी की थी ।"
" क्यो नहीं !" ‘वेवज़ एम' द्वारा ब्रह्मांड से कैच की गईडाँक्टर भावा की आवाज…'"दुनिया मेँ मात्र तुम एक ऐसे व्यक्ति हो जिस पर हम आंखें बन्द करके विश्वास कर सकते हैं । गौर से सुनो-हम तुम्हें बता सकते हैं कि अणुबम की शक्ति को हीन करने वाली किरणे किस तरह बनाई जा सकती हैं । ध्यान से सुनना और जहाँ कहीं भी तुम्हें कोई कमी नजर अाए, फौरन रोक देना ।"
"इस तरहृ ....!" वतन ने कहा-"ब्रह्माण्ड में बिखरी डॉक्टर
भावा और उनके सहयोगी के बीच हुई समस्त बातें मैंने 'बेवज एम' द्वारा इकटृठी कर ली । उन आवाजों में डॉक्टर भावा ने अपने सहयोगी को किरणों का फार्मूला बताया था । बीच-बीच में उनका सहयोगी तरह तरह के प्रश्न करता था । बस, मुझे फार्मूला मिल गया और फिर मुझ जैसे व्यक्ति को फार्मूले के आधार पर किरणों का आविष्कार फेरने में भला क्या दिक्कत पेश आ सकती थी ? प्रयोगशाला के ऊपर उन किरणों का जाल आपने देखा ही है ।"
"क्या सचमुच ये वही किरणे हैं ?" अलफासे ने पूछा ।
"निसन्देह ।” वतन का जबाब था-"प्रयोगशाला में चलकर मैं डॉक्टर भावा और उनके सहयोगी ही आवाज आपको सुना सकता हूं । 'वेवज एम' द्वारा मैंने ब्रह्मांड से उन्हें कैच करके टेपरिकॉर्डर में भर लिया है । प्रयोगशाला के ऊपर आपने वहीं किरणे देखी हैं जिनकी छतरी के नीचे समूचे भारत क्रो अणुबम के भय से मुक्त रखना डॉक्टर भावा का ख्वाब था ।"
कई क्षण तक सोचता ही रह गया अलफांसे, फिर बोला ---" तुम महान हो वतन ! बेशक तुम आधुनिक दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक हो । जो तुमने किय् है, उसे आखों से देखने के बावजूद यकीन नहीं अाता कि तुम इतना सब कुछ कर सकते हो ।"
'मैंने क्या किया है, चचा ?" वतन ने कहा-"मैंने तो सिर्फ 'वेवज एम' का आविंष्कार क्रिया है वाकी ये किरणे तो डॉक्टर भावा का आविष्कार हैं । महान तो वे थे जिन्होंने इन अजीबोगरीब किरणों का… आविष्कार कर लिया था । मैंने क्या क्रिया----सिर्फ यहीं किया जो डॉक्टर भावा अपने सहयोगी को बताते रहे ।"
'‘दुनिया में इतने बड़े-बड़े वैज्ञानिक पडे़ हैं ।" अलफांसे ने कहा…"उन्होंने क्यों नहीं डाँक्टर भावा के इस अधूरे आविष्कार को पूर्ण कर लिया ?"
" उनके पास 'बेवज एम' कहां'था ?"' '
" 'वेवज एम’ का आविष्कार ही तो तुम्हारी महानता है ।" अलफांसे ने कहा…"आज तक कोई सोच भी नहीं सका कि ब्रह्माण्ड से आवाजें कैच करने का कोई यन्त्र भी बनाया जा सकता है । तुमने यह यन्त्र बना लिया । उस यन्त्र की मदद से ब्रह्मांड में
डाँक्टर भावा... ।"
…"ओह-चचा !” उसे बीच में ही रोक दिया वतन र्ने-"आप तो मेरी तारीफ करने लगे । बात तो सिर्फ यह थी कि मैं आपको वे प्रबन्ध बता रहा था' जो प्रयोगशाला की सुरक्षा के लिए मैंने किए है । अाप तो एक ही प्रवन्ध देखकर उसी में खो गए ।"
अोर-वास्तव में जैसे वह उन्हीं किरणों में खोकर रह गया था अलफांसे ।
उसने उपने सिर को झटका देकर, मस्तिष्क को विचार मुक्त किया और फिर ब्रोला-" हां -- खैर, और क्या प्रबन्थ किए हैं ।
"आइए मेरे साथ ।" वतन ने उनसे कहा और कक्ष से बाहर की तरफ कदम बढ़ा दिए ।
धनुधटंकार भी अपनी जाल से दूरबीन हटाकर उनके के साथ-साथ चल दिया ।
वे चारों राष्टपति भवन के बाहर निकले, द्वार पर ही वतन की चमचमाती हुई सफेद कार खड़ी थी । दूध. जैसे सफेद कपडे पहने ड्राइवर ने उसका अभिवादन-क्रिया और स्वागतार्थ कार के दरचाजे खोले ।
कुछ ही देर बाद कार अपने गन्तव्य की तरफ रवाना हो गई ।
"लेक्रिन तुमने अखबारों में इन किरणों के बारे में तो कोई स्टेटमेंट नहीं दिया था वतन ?" अलफांसे वे कहा !
" तभी तो कहता हूँ कि मेरे स्टेटमेंट से जैसा आपने और विजय चचा ने सोचा, उतना मुर्ख नहीं हूं मैं ।वतन ने
वताया-अखबार बालों को मैंने उतना ही बताया जितना बताना चाहिए ।"
वास्तव में अलफांसे उस प्रयोगशाला की सुरक्षा, से प्रभावित हुआ ।।
परन्तु----जो उसे करना था, यह सुरक्षा उसे टाल नहीं सकती धी । वतन द्वारा प्रयोगशाला की सुरक्षा के प्ररयेक प्रबन्ध को ध्यान से देखता और दिमाग में बैठाता हुआ अलफासे उसके साथ चला ।
समुचे इन्तजाम को देखकर उसकी आंखों में जो चमक उमरी वतन, धनुषटंकार अथवा अपोलो में से कोई नहीं देख सका था । उनंके साथ चलता हुआ यह इमारत क्री तरफ बढने लगा । अभी वे इमारत से पचास गज दूर ही थे कि बीच में एक
खाई अा गई ।
वतन के साथ-साथ सभी उस खाई के क्रिनारे पर ठिठक गए ।
अलफांसे ने देखा---यह खाई इमारत की दीवार के साथ-साथ चली गई थी ।
…'"जरा इस खाई में झांकिए चचा ।।" वतन ने कहा ।
अलफांसे ने झांका तो उस आदमी कर दिल भी धक् से रह गया ।
खाई अत्यन्त ही गहरी थी । उसके अनुमान से पच्चीस गज नीचे पानी का ऊपरी तल नजर अा रहा था । उस तल से नीचे खाई और कितनी गहरी है, यह अलफांसे अनुमान न लगा सका । अभी वह झाक ही रहा था कि पानी में उसे जोरदार हलचल महसूस हुई ।
…"इमारत की दीवार के सहारे--सहारे चारों तरफ यह खाई बनाई गंई है ।" वतन ने बताया-----"तो आप इसकी "देख ही रहे हैं । यह चौडाई मैंने चेतक को ध्यान में रखकर बनाई है ।।
"चेतक कौन ?" अलफांसे ने पूछा ।
"कमाल है !" मुस्कराते हुए वतन ने कहा-"चैतक को नहीं जांनत्ते आप ।।चेतक वही-भारतीय इतिहास के महायोद्धा महाराणा प्रताप का घोडा । उसी को ध्यान में रखकर मैंने इस खाई की चौड़ाई 50 गज रखी है ।"
" घोडे़ का इस खाई से क्या मतलब ?"
" कभी कभी तो अाप ऐसी बात करते हैं चचा, जैसे कुछ जानते ही न हों !" वतन बोला-"हालांकि इस जमाने में 'चेतक' जैसा कोई घोडा है नहीं और होगा भी तो चेतक भी इतनी चौडी़ खाई को एक ही जम्प में कभी पार नहीं कर सकेगा ।"
-"ओह !" अलफांसे इस तरह बोला, जेसे अब वह वतन के कहने का मतलब समझा हो, बोला…"लेकिन क्रिसी घोड़े को जम्प लगाकर क्या इसमें मरना है ? मान तो कि कोई घोड़ा इस खाई को एक ही जम्प में पार कर भी जाता है तो जाएगा कहां ? इमारत की दीवार से टकरा जाएगा । नतीजा यह होगा कि वह खाई में जा गिरेगा ।"
-"अब मैं आपको यह भी बता दूंकि यह खाई कितनी गहरी है ।" वतन ने कहा…"क्योंकि अाप इसकी गहराई को सिर्फ वहीं तक देख सकते हैं जहाँ तक पानी भरा हुआ है पानी कितने भाग में भरा है-यह अाप नहीं जान सकते ।"
" तो बता दो !" अलफांसे ने कहा ।
खाई की गहराई का आइडिया मैंने कुम्भकरण की खोपड़ी से लिया था ।" वतन ने बताया ।
‘"कुम्भकरण की खोपडी़ ।।" अलफांसे चौंका ।
-"नर्डी समझे ना ? वतन पुन: मुस्काराता हुआ बोला-समझाता हूं आपको । यह उस समय की बात जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था । उसमें पाण्डवों की विजय और कौरवों की पराजय हो गई थी । अपनी इस विजय पर पाण्डवों को गर्व हो गया था । उन्होंने महाभारत जीता था इसलिए वे यह समझने लगे कि दुनिया में न उनसे बढकर कोई योद्धा हुआ है और न है ।
--उसी गर्व में चूर एक बार हंसते हुए भीम ने श्रीकृष्ण से कहा…'भगवान हम बहुत ही परेशान हैं ।' किसी नदी तालाब, नहर में इतना पानी ही नहीं है जिसमें हम आराम से नहा सकें । हर जगह नहाने की कोशिश की, किंतु घुटनों से ऊपर पानी ही नहीं जाता । मतलब यह कि बाकी शरीर पर पानी लोटो से डालना पड़ता है ।। आराम से नहाने की कोई जगह ही नहीं है ।"
" हंसी में कहे गए इन शब्दों में छुपे गरूर को श्रीकृष्ण ने नोट कर लिया । अब नीति-निपुण कन्हेैया क्रो उनका गरूर तोड़ना आवश्यक भी लगा । अपने सांवरे होंठो पर आकर्षक मुस्कान बिखेरते हुए बोले…चलोो,'आज हम तुम्हें नहलाते हैं ।।
इस तरह, वे पांचों पाण्डवों को लेकर चल दिये ।।
"एक बड़े-से तालाब के किनारे जाकर श्रीकृष्ण ने उन्हें खड़ा कर दिया और भीम से बोले…‘इसर्में तुम जितना चाहो, नहा सकते हो ।'
न सिर्फ भीम बल्कि पांचों ही पाण्डव मुस्करा उठे थे ।
----- सोचकर कि श्रीकृष्ण एक छोटे-से तालाब में उनसे नहाने के लिए कह रहे हैं ।
"भीम ने कहा-'क्यों मजाक करते हो भगवान ?"
"मजाक नहीं करते ।’ चतुर कृष्ण ने कहा…"अगर आराम से नहाना चाहते हो तो इस तालाब नहाओ ।"
"पांर्चों पाण्डवों में एकमात्र युधिष्ठिर ही ऐसे थे जो श्रीकृष्ण की बात की गहराई को पकड़ संके है । उन्होंने भीम क्रो उस तालाब में नहाने की आज्ञा दी । भाई की आज्ञा पाकर भीम उस तालाब में ही चले गए ।"
"बहुत नीचे जाने पर भी जब उन्हें तालाब का तल न मिला तो घबराए और हाथ-पांव चलाकर तैरने लगे । तालाब के ऊपर अाए तो नहाना भूलकर बाहर अाए । किनारे पर खडे सांवरे के होंठों पर मन्द मुस्कान थी ।
"आश्चर्य के साथ तालाब की अोर देखते हुए भीम ने पूछा…यह कैसा तालाब है भगवान ?
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