RE: antervasna चीख उठा हिमालय
वतन गम्भीर स्वर में कह रहा था----" न किसी बेटे क्रो मां-बाप से जुदा करता हूं न किसी भाई को बहन से । जो लोग प्रगोगशाला के अन्दर हैं, उनका सब कुछ अनेदर ही है । यूं कहो कि उनके परिवारों की एक छोटी बस्ती है यहां ।"
"लेकिन फिर भी बाहर निकलने के लिए इनकी इच्छा होती ही होगी ?"
…"अपने छोटे-से चमन की हिफाजत के लिए ये लोग अपनी इच्छा को खुशी से दबाते हैं । "
एक बार तो निरुत्तर-सा हो गया अलफांसे फिर बोला----"' फिर भी यह प्रयोगशाला तो इनके लिए एक कैद जैसी हो गई ।"
"यूं तो हर आदमी के लिए यह दुनिया एक बड़ीं कैद है ।" वतन ने जवाब दिया ।
न जाने क्यों अलफांसे को ऐसा लगा कि वह एक व्यर्थ के विषय पर बहस करने लगे हैं, यह विचार दिमाग में अाते ही उसने बात का रुख बदल दिया----"तो और क्या इन्तजाम किए है तुमने अपनी प्रयोगशाला की सुरक्षा हेतु ?“
"पहले मुझे जरा यह बताइए कि क्रिसी भी जगह पहुंचने के लिए कितने किस्म के रास्ते हो सकते हैं ?"
"तीन किस्म के ।"
"कौन-कौन से ?"
-"हवा, भूमि और जमीन के नीचे से ।"
--"करैक्ट !” वतन ने कहा…“हवा के रास्ते से तो कोई अा नहीं सकता क्योंकि अाप देख चुके हैं कि पूरी प्रयोगशाला के ऊपर अणुनाशक किरणों का जाल बिछा हुआ है । थल के रास्ते से आगे का एक मात्र रास्ता देख ही चुके हैं, उस रास्ते से कोई अा सकता है या नहीं, इस बात का अन्दाजा अाप खुद लगा सकते है । रही जमीन के अन्दर की ब़ात, तो वह भी मुनासिब नहीं क्योंकि मैं आपको बता चुका हूं कि प्रयोगशाला के बाहर दीवार के सहारे-सहारे चारों तरफ जो खाई है वह कुम्भकरण की` खोपडी के बराबर गहरी है और कोई भी आदमी अगर बाहर से सुरंग खोदने की कोशिश करेगा तो खाई में खुलेगी और खाई निश्चित रूप से साक्षात् मौत का मुह हेै ।"
" निस्सन्देह यह प्रयोगशाला दुनिया की पहली और अपने ढंग की प्रयोगशाला है ।" प्रकट में तो उसने यही कहा लेकिन मन-ही-मन कह रहा था…'तुम्हारे इस किले की सुरक्षाओं
को तोड़कर मैं अपना काम करने से बाज नहीं अाऊंगा ।।।
प्रयोगशाला के विभिन्न स्थानों पर से गुजरता हुआ वतन उन्हें अन्त में एक लम्बे-से हॉल में ले आया ।
वह हॉल लम्बा ज्यादा और चौड़ा कम था । पूरा हॉल प्रयोग-शीटों से भरा पड़ा था । ठीक बीच में एक घूमने वाले कुर्सी पड़ीं थी और उस कुर्सी के चारों तरफ एक गोले की आकृति में छ: स्कीनें फिट थी ।
हाल में उनके अतिरिक्त इस वक्त अन्य कोई नहीं था ।
अलफांसे प्रयोगशाला की भौंगोलिक स्थिति और वह सब कुछ अच्छी तरह दिमाग में बैठा चुका था जो वतन उन्हें बताता जा रहा था । हर पल उसका दिमाग यहीँ सोचने में व्यस्त था कि वतन द्वारा फैलाए गए सुरक्षा के इस जाल को कैसे तोड़ा जा सकता है ?
उसके मनोबलों से एकदम अनभिज्ञ वतन कह रहा था…"यह वह कक्ष है जहा मैं प्रयोग किया करता हूं ।"
अलफासे ने जैसे कुछ सुना ही नहीं ।
" चचा ।" एकाएक वतन सीधा उसी से बोला…“क्या सोचने लगे ? "
अलफांसे की बिचार-तन्द्रा भंग हुई, चौकता सा वह बोला…"सोच रहा हूं वतन कि वैसे तो तुम सिंगहीँ के शिष्य हो, लेकिन उसने तुम्हें खुद से भी दो कदम-आगे ही निकाल दिया । अपनी जिन्दगी में न जाने कितनी बार सिगहीँ ने सिंगलैण्ड बसाया है ।
अपनी तरफ से उसने सुरक्षा के बड़े-बड़े इन्तजाम किए, लेकिन सच जिस तरह की सुरक्षा तुमने इस प्रेयोगशाला के लिए नियुक्त की है, वैसी सुरक्षा सिगहीँ कभी नहीं कर सका । निसंदेह तुम उसके शागिर्द हो, लेकिन.......!"
"न...न...न...चचा ।." वतन ने बीच में ही रोक दिया उसे----"मेरे लिए गुरु से बढ़कर कोई शब्द न कहना । कुछ भी सही , मेरे लिए तो देवता हैं वह । "
"न...न...न...चचा ।." वतन ने बीच में ही रोक दिया उसे----"मेरे लिए गुरु से बढ़कर कोई शब्द न कहना । कुछ भी सही , मेरे लिए तो देवता हैं वह । "
वतन कहता चला गया---"मेरी नजर हैं वह दुनिया के सबसे ज्यादा प्रतिभावान व्यक्ति हैं लेकिन बस, उनके सोंचने का तरीका थोड़ा-सा गलत हो गया है । सोचने के इस तरीके ने ही उनकी सारी प्रतिभा को दबा दिया है । अगर वे हिंसात्मक रूप से सारी दुनिया को झुकाने और उसका समाप्त करने का ख्याल दिमाग से निकाल दें तो दावा है कि अपने दिमाग और शक्ति से वे धरती को स्वर्ग वना दें ।"
कुछ देर तक उनके बीच बातों का बिषय सिगहीँ रहा ।
फिर------
-"देखिए !"
वतन ने उन स्क्रीनों के बटन अॉन करने शुरू कर दिए ।
टी०वी० स्क्रीनो चित्र पर चित्र उभरने लगे ।
प्रत्येक स्क्रीन पर अलग अलग स्थान का चित्र उभर रहा था । किसी पर राष्ट्रपति भवन के, किसी पर चमन की एक साधारण वस्ती का, क्रिसी पर चमन की एक अमीर बस्ती का, किसी पर प्रयोगशाला के बाहरी मैदान का । इसी तरह विभिन्न स्थानों के चित्र ।
" इसी कुर्सी पर बैठकर मैं अपने सारे देश पर नजर रख सकता हूं ।"वतन ने बताया---"जितने समय मैं, यहाँ रहता हूं यह सभी स्क्रीनें आंन रहती हैं ताकि मैं इस प्रेयोगशालासे बाहर की यानी चमन की स्थिति से नावाकिफ न रहूं ।"
कुछ देर स्कीनों को देखता रहा अलफासें और मन-ही-मन वतन की प्रशसां करता रहा ।
"आओ चचा । अव मैं आपको वह यन्त्र दिखाता हूं जिसकी घोषणा आपको यहाँ खींच लाई है ।" कहता हुआ वतन एक प्रयोग-डैस्क की तरफ वढ़ गया । लिखने की आवश्यकता नहीं कि धनुषटंकार, अपोलो और अलफांसे उसके साथ थे ।
डैस्क की दराज़ में से वतन ने एक रेडियों के आकार की छोटी-सी मशीनरी निकाली और उसे प्रयोग-सीट पर रखता हुआ वह वह बोला---"यह है वह यन्त्र जिसका नाम मैंने ' बेवज एम ' रखा है ।”
" ये ।" अलफांसे के मुंह से निकला----" इतनी छोटी !"
"क्या यह जरूरी है यन्त्र बहुत बड़ा ही होना चाहिए था ।" मुस्कराते हुए वतन ने कहा---असल में जितना वड़ा यह काम करता है, उतना दुर्लभ इसे बनाना नहीं है । बस-असल बात यह है इसं बारे में कभी किसी ने कुछ सोचा हीं नहीं ।" धनुषटकार अलफांसे वतन की शक्ल देख रहे थे ।
मैं आपको वैज्ञानिक भाषा में तो नहीं किंन्तु साधारण भाषा में बताता हूं कि 'वेवज एम' अन्तरिक्ष में बिखरीं आवाजों को किस तरह कैच करता है । आप देख रहे हैं कि यह बिल्कुल रेडियो की शक्ल का है । असल बात यह है कि रेडियो की मशीनऱी के सिद्धांत पर ही मैंने इसे बनाया है । आपके पास एक रेडियों है, उसका स्विच आंन कीजिए और जिस स्टेशन का प्रोग्राम आप लगाना चाहते हैं, उसे आराम से घर बैठकर सुन लीजिए । रेडियो पर किसी भी स्टेंशन से प्रसारित होने बाला कार्यक्रम ही लेना आजकल एक अाम बात हो गई है और यहीं कारण है आज ज्यादातर लोग यह सोचने की कोशिश नहीं करते कि ये आवाजें आ क्यों रही हैं ? इस प्रश्न में दिमाग खपाने का काम आज शायद ही कोई करता हो मगर, मैंने किया और 'वेवज एम' का आविष्कार करने में इसी वजह से कामयाब भी रहा ।"
तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि तुम्हारे ’वेवज एम' की माशिनरी रेडियो जैसी ही है ?"
" रेडियो जैसी नहीं बल्कि उससे मिलती-जुलती कहो ।" वतन ने कहा ---" अगर इसकी मशीनरी रेडियो जैसी होती तो मेरी क्या जरूरत थी ? रेडियो के आविष्कारक ने ही ’वेवज एम' भी वना दिया होता ।"
" तो फिर समझाओ कि रेडियों और इसकी मशीनरी में क्या फर्क है ?"
‘"वह फर्क तो मैं आपको बाद में समझाऊंगा, पहले जरा अाप इसका कमाल देखिये ।" कहने के साथ ही वतन ने 'वेवज एम’ की बाहरी बॉडी में लगे उनके स्विचों में से एक बटन दवा दिया ।
परिणामस्वरूप सेट पर अजीब सी सांय-साय की आवाज़ गूंजने लगी ।
एक नन्हा सा बल्ब यन्त्र के अंदर जल रहा था ।।
एक बटन-को वतन धीरे-धीरे दाहिनी तरफ घुमाने लगा ।
सेट पर सांय-सांय के बीच हल्की-हल्सी अस्पष्ट-सी आवाजें आने लगी । बटन को घुमाते वक्त वतन ने अपना कान ' बेवज एम' से उस आदमी की तरह सटा रखा था जैसे कोई व्यक्ति अपने थर्डक्लास ट्रांजिस्टर से कोई बहुत ही दूर का स्टेशन पकड़ना चाहता हो ।। ज्यों ज्यों वह बटन को घुमा रहा था, त्यों त्यों आवाजे तेज होती जा रही थीं ।
परन्तु अभी आवाजें अस्पष्ट थी ।
यह तो साफ था कि सेट पर आवाजें गूंज रही है ।
कौन-सी आवाज किसकी है और क्या कह रही है, यह बिल्कुल भी समझ में नहीं अा रहा था । मगर-वतन उन आवाजों को इस तरह ध्यान से सुन रहा था जैसे वह किसी आवाज को पकड़ने की चेष्टा कर रहा हो ।
इसी चेष्टा में वह बटन को घुमाता चला गया ।
अस्पष्ट आवाजे तेज होती चली गई ।
आवाजें इस कदर तेज हुई कि सारे कक्ष में जबरदस्त छोर मचने लगा ।
इस कदर शोर जैसे वहुत से पागल एक साथ चिल्ला रहे हों । आवाजें तो थी लेकिन स्पष्ट कोई नहीं ।
उधर, वे सब 'बेवज़ एम' पर उभरने बाले शोर में खोए थे । इधर धनुषर्टकार ने अपनी डायरी पर कुछ लिखा, लिखकर वतन को पकड़ा दिया । ' बेवज एम' पर से ध्यान हटाकर वतन ने वह कागज लिया और पढा, लिखा था---" भैया, आपका ‘वेवज एम' कहीं भारतीय लोकसभा से तो नहीं जा मिला है ? वहां उस वक्त ऐसी ही आवाजों का राज होता है जब पक्ष और प्रतिपक्ष के नेता आपस में एकदूसरे को गालियां देते हैं । बस, ऐसा लगता है, जैसे कुछ पागल चीख रहे हो, कौन किसको क्या कहता है, कुछ समझ में नहीं अाता ।" वतन ने पढ़ा, पढ़कर हल्ले-से मुस्करा दिया ।
धनुषटंकार का लिखा यह कागज पढ़, मुस्कराये विना नहीं रह सका था, बोला----" ये मत समझो मोण्टो, कि मैं भारतीय प्रतिनिधि ही पागलों की तरह चीखते हैं वल्कि प्रत्येक लोकतांत्रिक देश के नेता इसी तरह पागल हुआ करते हैं ।”
इसी बीच वतन ’वेवज एम' वाँल्यूम बटन को विपरीत दिशा में घुमा चुका था ।
आवाजों का शोर कछ कम हो गया था ।
"हो सकता है र्कि किसी भी देश की लोकसभा र्में ऐसा होता हो ।" वतन ने कहा…"लेकिन न तो यह किसी लोकसभा से ही सम्बन्धित हुआ है और न ही विधानसभा से । 'वेवज एम' पर अभी-अभी आपने जो अस्पष्ट आवाजों का छोर सुना, यह प्रत्येक पल ब्रझांड में होता रहता हैं ।"
" सुनिये ।" वतन ने कहा ---" जिसकी आवाज आप सुनना चाहते हैं उसका नाम और जन्म तिथी आपको जरूर मालुम होनी चाहिए । उसके नाम के अक्षरों के जोड़ में जन्म तिथी के अक्षरों को जोड़ दो , जो भी संख्या आये वह बटन दबा दो ।"
कहने के बाद वतन ने ' वेवज एम ' की बॉडी पर लगे दस बटन दिखाये उन बटनों पर जीरो से लेकर नौ तक गिनतियां लिखी थी ।
" ये क्या बात हुई ?" अलफांसे ने कहा --- " संभव है कि कई आदमियों के नाम जन्म तिथी का जोड़ एक की बैठे । तब तो उन सभी की आवाज सुनाई देगी ?"
हल्के से मुस्कराया , वतन ने कहा " हां हो सकता है, लेकिन होता नहीं ।"
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