RE: antervasna चीख उठा हिमालय
अलफांसे अभी कुछ कहना चाहता था कि वतन ने कहा ---" अब मैं आपको अपने प्रयोग द्वारा अपनी दादी मां की आवाज सुनाता हूं ।" कहने के बाद उसने फल वाली दादी मां के नांम के अंक बनाये , उनमें जन्म तिथी के अंक जोड़े और उपर्युक्त कार्य विधि के अनुसार ' वेवज एम ' को सैट करके बोला --" वेवज एम ' मैने सन् १६५० के नवम्बर माह , रात के समय पर फिक्स कर दिया है ।
अपनी बात पूरी करके उसने अन्तिम बटन दबा दिया ।
और --- उस तूफानी रात में फल बाली बूढ़ी मां और आठ बर्षीय न्नहें से वतन के बीच होने वाला वार्तालाप गूंजने लगा ।
काफी कुछ सुनने के बाद एकाएक अलफांसे ने कहा----""मान गए वतन अपने दिमाग से तुमने एक कमाल ही चीज बना ली है ।। मगर मुझे लगता है कि भावुकता के भंवर में फंसे तुम हर समय सिर्फ अपनी ही आवाज: ब्रह्माड से केच करके 'वेवज़ एम' पर सुनते रहे हो । भावुकता के उस भंवर में डूबकर तुम शायद यह भी भूल गए हो कि असल में तुम्हारा ये 'वेवज एम’ कितना उपयोगी साबित हो सकता है ।"
"'आप कहना क्या चाहते हैं ?"
" व्रह्मांड में एक से बढकर एक महापुरुष की आवाज़ है । अलफांसे ने कहा-"मेरा ख्याल है कि जरुर तुम उन सब आवाजों को समेटो तो दुनिया को बहुत् कुछ दे सकते हो । महापुरुषों के वे स्पप्न जो अधूरे रह गए, पूरे कर सकते हो ।"
" डॉक्टर भावा की आवाज पर 'अणुनाशक' किरणो का आविष्कार
किया तो है मैंने ।" वतन ने बताया ।
" और ....."
""आजकल मैं भारतीय महापुरुष रवीन्द्रनाथ टैगोर की आवाज़ ब्रह्यांड से समेटने में व्यस्त हूं ।" वतन ने वताया---"टैगौर की बहुत-सी आवाजें 'वेवज एम' से पकड़कर मैं टेप भी कर चुका हूँ। रविन्द्रनाथ टैगोर की आवाज इस दुनिया को वहुत कुछ दे सकती है ।"
" अगर ऐसा हे तो बेशक तुम अपने-आविष्कार का सदुपयोग कर रहे हो ।" अलफांसे ने कहा---"तुम्हारे लिए यहीँ राय मेरी कि तुम दुनियां के सभी महापुरुषों की-आवाज टेप कर लो ।"
कुछ देर तक इसी विषय पर बातें होती रहीं ।
वतन उन्हे टेगोर, लिंकन श्रीकृष्ण, राम, रावण, भगत सिंह, जवाहरलाल इत्यादि न जाने किन-किन महापुरुर्षों की आवाज "वेवज एम' पर सुनाता रहा ।
किन्तु अलफांसे का ध्यान उन आवाजों की अोर नहीं था ।
वह तो कुछ और सोच रहा था--कदाचित् कोई खतरनाक साजिश !
बातें हो रही थी कि एकाएक अलफांसे ने कहा…"वतन् लैट्रीन जाना है मुझे । प्रयोगशाला के अन्दर कोई प्रबन्ध है क्या ?"
"'कुछ ही देर पहले आपसे कहा था कि जो लोग प्रयोगशाला के अंदर रहते हैं उनका सब कुछ यहीं है ।" वतन ने 'कहां-"अपोलो चचा को अधिकारीयें के क्वार्टर्स के करीब बनी 'लेट्रीन में ले जाओ ।"
अलफांसे के साथ अपोलो गया । "
आधे घण्टे बाद वे लौटकर आए । "
कुछ और बातचीत करने के बाद वे चारों प्रयोगशाला से बाहर आए।
प्रयोगशाला का वह एकमात्र रास्ता पुन: बंद हो गया । शाम के वक्त अलफांसे एक धण्टे के लिए राष्ट्रपति भवन से गायब हुआ ।
जिसके लौटने पर वेतन ने पूछा…"कहां चले गए थे चचा ?"
" बस यूं ही----चमन की सैर करने चला गया था ।" मुस्कराते हुए जबाव दिया ।
उस रात आठ बजे वै सोने के लिए अपने अपने बिस्तरों पर जा लेटे।
चारों के विस्तर एक ही कमरे में
लगे थे और अभी उनमेंसे किसी को नीद भी नहीं आई थी कि ........
धांय ।
रात के सन्नाटे में गूंजने बाली इस आबाज ने उन सब को लगभग उछाल दिया ।
वे सव उछलकर एकदम अपने-अपने बिस्तरों पर बैठ गए ।
कमरे में नाइट बल्ब का मद्धिम प्रकाश बिखरा हुआ था । उसी प्रकाश में मूर्ख की तरह वे एकदूसरे को देख रहे थे ।
अभी उनमें से कोई कुछ बोल भी नहीं पाया था कि…
धांय ।
इस दूसरे फायर ने तो उन सबको जैसे बिस्तरों से उछालकर नीचे खड़ा का दिया ।
अलफांसे तेजी से बला---" ये क्या हो रहा है वतन ?"
धांय !
पुन: विस्फोट ।
" कह नहीं सकता चचा, मैं खुद चकित ......."
धायं ।
चौथे फायर ने तो जैसे उन सबके रोंगटे खडे़ कर दिये ।
अलफांसे ने तेजी से कहा---“मुझे लगता है वतन कि किसी देश के जासूस ......"
अभी उसका यह वाक्य भी पूरा ना हुआ था कि कक्ष में पिंक. पिक की ध्वनि गूंजने लगी ।।।
किसी चिते की तरह वतन एक दीवार की तरफ झपटा। उसने कोई गुप्त बटन दबाया। एक छोटे से भाग ने हटकर दीवार में खिड़की पैदा कर दी ।
खिड़की में एक शक्तिशाली ट्रासमीटर रखा था । पिक....पिक् की आवाज उसी में से निकल रही थी ।
बेहद फुर्ती का प्रदर्शन करते -हुए हेडफोन ओन करता हुआ बोला-..हेलो..हेलो.....वतन हियर है ।"
"महाराज़ ।" दूसरी तरफ से घबराया-सा स्वर-----"मैं बोल रहा हू…मनजीत ।"
" हां मनजीत , क्या बात है ।'' वतन ने तेजी से पूछा-----"ये…… धमाके कैसे थे ?"
“म...म...महाराज !” दूसरी तरफ से बोलने वाले मनजीत का लहजा कांप रहा था---"प्रयोगशाला के शीर्षों पर लगी सर्चलाइटें टूट गई हैं । चार फायर हुए और एक एक करके चारों
ही फूट गई ।"
"क्या ?'' इस तरह उछल पड़ा वतन जैसे अचानक किसी बिच्छू ने उसे डंक मार दिया हो!
--"ज...जी हां ।"
"कैसे ?" वतन के मुंह से दहाड़ निकल पड़ी ।
"'कुछ पता नहीं चल रहा है महाराज ।" मनजीत नामक व्यक्ति ने दूसरी तरफ से रिपोर्ट दी…..."‘सारे मैदान में अन्धेरा छा गया है हम पता लगाने के चक्कर में हैं कि ये सचंलाइटैं किसने फोडी हैं सर ! चारों ही कायर किसी शक्तिशाली गन से हुऐ हैं । वैसी ही जैसी हमारे पास हैं । महाराज, जितने अन्तराल चारों फायर हुए हैं उससे जाहिर होता है कि यह किसी एक आदमीं का काम नहीं । कम-से-कम दो आदमी एक साथ इतनी जल्दी चार सर्चलाईटों को फोड़ सकते है ।"
" लेकिन मैं पुछता हूं कि वे आदमी उस मेदान में पहुंचे कैसे ?” वतन ने उतेजनात्मक स्वर में पूछा ।
" वो...वो...महाराज...!" मनजीत बौखला गया ।
" मैं वहीं पहुंच रहा हूं ।" एकाएक वतन का लहजा सन्तुलित हो गया-----“जब तक हम वहाँ पहुंचें तब तक होना यह चाहिए कि जितने आदमियों ने यह गढ़बढ़ की है, वे सब पकड्र लिए जाये । "
" महा..."
दूसरी तरफ से कदाचित् मनजीत कुछ कहना ही चाहता था कि वतन ने सम्बन्ध्र-बिच्छेद कर दिया । वह तेजी से अलफांसे की तरफ पलटा ।
अलफांसे दंग रह गया । उसने तो यह कल्पना की थी कि इस वत्त वतन बुरी तरह क्रोधित एवं उत्तेजित होगा, मगर उसकी उसकी आशा के ठीक विपरीत वतन के चेहरे पर तेज था-गुलाबी अधरों पर मुस्कान ।
बेहद सन्तुलित स्वर में उसने वताया---किसी ने प्रयोगशाला की चारों सर्च लाईटें फोड़ दी हैं चचा ।"
मन-ही-मन वतन का संयम और धैर्य देखकर अलफासे चकित् था, बोला…"'इसका मतलब किसी महाशक्ति का जासूस यहां पहुंच गया है ?"
"'ऐसा ही लगता है ।" वतन का वहीँ शांत स्वर…“मगर मुझे यह यह उम्मीद नहीं थी यहां पहुंचते ही इतना बड़ा काम कर देंगें ।"
" अब तुम्हारा क्या इरादा हैं ?"
"मैं वहां जा रहा हूं जरा ।"
" मैं से क्या मतलब ?" चौंककर अलफांसे ने पूछा----"क्या वहां अकेले जाओगे ?"
"हां" वतन बोता----"' आप लोंगों का वहा जाना कोई जरूरी नहीँ है आखिर क्या दिवकत है ?"
परन्तु, इधर अपोलो वतन के साथ चलने के लिये दर पर तैयार खड़ा था और उधर धनुषटंकार अपनी दोनों बगलों में लटके होलस्टरों में रखे रिवॉल्वरों को चैक कर रहा था । एक नजर उन दोनों की तरफ देखता हुआ अलफांसे बोला…"अकेला जाने कौन देगा तुम्हे ? हम यहां क्यों अाए हैं ? इसलिये-कि हमें पहले ही सम्भावना 'थी कि दुश्मन के जासूस जरूर यहां कुछ गड़बड़ करेॉगे ।"
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