RE: antervasna चीख उठा हिमालय
सारे चमन में एक कोलाहल सा मच गया था । वे चारों राष्ट्रपति भवन से बाहर जाए ।
मुख्यद्वार पर ही ड्राइवर सहित वतन की सफेद कार खड़ी थी । वे कार में बैठे और कार हवा की तरह चमन की साफ और चिकनी सड़क पर दोड़ पड़ी थी ।
रात का समय होने के कारण सड़के शांत और वीरान पड़ी थी ।
शीघ्र ही वह मैदान के करीब पहुंच गई ।
दूर से ही उन्होंने देखा-मैंदान में अंधेरा व्याप्त था । कुछ रोशन टॉर्चो के झाग इधर-उधर घूमते नजर आ रहे थे । मैदान की तरफ से लोगों की आवाजें भी आ रही थी । मैदान के द्वार पर ही गाडी को रोक लिया गया ।
अपोलो ने गर्दन को झटका दिया तो अंधेरे, में घण्टियां टनटना उठी ।
“महाराज आ गए-महाराज आ गए ।" मैदान के अंधेरे में से निकलकर अनेक स्वर उनके कानों से टकराए ।
एक साथ कईं टॉर्चों की रोशनी झनाक से कार पर जा पड़ी ।
कार प्रकाश से नहा उठी ।
कार की हैडलााइटें सीधी मैदान पर पड़ रही थी । और मैदान का सिर्फ वही भाग प्राकाशमग्न हो रहा था
कई सैनिक भी कार की हैडलाइट की रोशनी में आगए थे । सभी सेनिक यह जान चुके थे कि वतन आगए हैं।
अपोलो खिडकी के रास्ते से कार के बाहर कूद चुका था । एक झटके के साथ वतन कार का दरवाजा खोलकर बाहर आया और फिर, अंधेरे में वतन की आवाज गूंजी मनजीत ।"
"मैॉ आ रहा हूं महाराज ।" मैदान के अंधेरे भाग में सें मनजीत की आवाज़ गुंजी ।
वतन सहित प्रत्येक की दृष्टि उधर जम गई ।
एक व्यक्ति -हाथ में रोशन टॉर्च लिये उन्हीं की तरफ दौड़ा चला अा रहा था । धनुषटंकार को न जाने क्या सूझा कि अपनी जेब से टॉर्च निकालकर उसने रोशनी के सीधे झाग उस व्यक्ति पर डाले तो देखा मनजीत दौडा़ चला आ रहा था ।
वतन की उपस्थिति से सर्वत्र सन्नाटा-सा व्याप्त हो गया ।
मनजीत करीब पहुचा । अभी वह अभिवादन करके निबटा ही था किं---
" मिले वे लोग ?" गम्भीर स्वर में वतन ने प्रश्न किया ।
" ज---ज---जी नहीं महाराज ।" मनजीत बौखला गया ।
सबका ख्याल था कि मनजीत पर अब वह बरस पडेगा, किंतु नहीं-----उस वक्त सब दंग रह गए जव बेहद शांत स्वर, में वतन ने कहा…"तो यंहा खडे क्या कर रहे हो मेरे बहादुर साथियों, मैदान के इसी अंधेरे में वे यहीं पे होंगे । उन्हें तलाश करो ।"
मनजीत सहित सैनिक तेजी साथ चारों और तलाश करने लगे ।
" और सुनो ।" वतन का वहीँ सन्तुलित स्वर -"उनमें से किसी को मारना नहीं है, जिन्दा ही गिरफ्तार करना है ।"
इधर तो वतन सैनिकों से यह सब कुछ कह रहा था, उधर अलफांसे एक सैनिक से छीनी टॉर्च का प्रकाश प्रयोगशाला की बेहद ऊंची और किसी शीशे की तरह चिकनी दीवार पर मार रहा था । उसकी टॉर्च का गोल प्रकाश दायरा प्रयोगशाला दीवार पर नृत्य कर रहा था ।
इधर वतन का आदेश पाते ही सभी सैनिक मैदान में इधर-उधर छिटक गए ।"
हालांकि काफी टॉर्चें रोशन थी किन्तु फिर भी…मैदान में एक… अजीब-सा अंधेरा व्याप्त था ।
अलफांसे के करीब जाकर वतन ने कहा----"द्रीवार पर क्या तलाश कर रहे हो चचा ?”
'"यह कि इस दीवार पर कोई चढ़ तो नहीं रहा है ।"
जबाव में धीमे-से हंस पड़ा वतन, बोला---"' आप भी अजीब आदमी हैं चचा ! इस दीवार की जड़ों में खुदी खाई को शायद आप भूल गए ? इस दीवार की चिकनाहट भी भूल गए शायद इसमें करेंट दौड़... ।"
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