antervasna चीख उठा हिमालय
03-25-2020, 01:27 PM,
#57
RE: antervasna चीख उठा हिमालय
टांगों में अंब भी हवांनची जोक बनकर चिपटा हुआ था। वतन को लगा, उसकी दोनों, टांगों की हड्डियां चरमरा-कर टूटने वाली हैं !. . उसे अब जाकर आभास हुआ कि सचमुच हवानची हर तरह से बहुत खतरनाक आदमी है ! उसके लोटे जैसे नाटे
शरीर में न सिर्फ विदुत से भी कहीं अधिक फुर्ती है, बल्कि----उसके शरीर में बला की ताकत भी है !

वतन को लगा कि उसकी टागें फौलादी सरियों के बीच फंस गई हैं ! वह समझ चुका था कि अगर शीघ्र ही किसी तरकीब से उसने अपनी टागों को हबानची की पकड़ से मुक्त न किया तो वह उसकी टागें तोड़ डालेगा ।



वतन का मस्तिष्क चेतन हुआ ।


अपनी पुरी शक्ति समेट कर उसने टांगों की एक तीव्र झटका दिया !


किन्तु झटका खाकर रह गया नाटा हवानची ! टागें उससे मुक्त होने की तो बात ही दूर, बन्धन की सख्ताई में लेशमात्र भी तो परिवर्तन नहीं आया । वतन के कंठ से अब टांग की पीड़ा के कारण चीख निकलने वाली थीं । एकाएक उसे अपने गुरु का सिखाया हुआ एक दांव याद आ गया ।

उसकी आँखों के सामने मुस्कराते हुए सिंगही का चेहरा उभरा । मानो वतन के गुरु ने उसे कोई निर्देश दिया !


अपनी टांगों को एकदम फैला लिया वतन ने । टांगो को उसी स्थिती में रखे वह बैठे गया, अव…वह आसानी के साथ अपनी टांगों से लिपटे हवानची को देख सकता था ।



उस समय टांगों की हड्डियां कड़-कड़ बोलने लगी थीं जव वतन के दायें हाथ का कैरेट हवानची की मेंढक जैसी गर्दन पर पड़ा ।


एक चीख के साथ हवानची का चेहरा थोडा सा झुका तो वतन का घुटना मुड़कर फटाक से उसकी नाक पर पड़ा । तुरन्त ही दूंसरी बार ,चीखकर हवानची दुसरी तरफ लुढ़क गया । घुटना ठीक नाक पर लगृने के कारण उसकी नाकं से खून बहने लगा था । वतन ने फूर्ती के साथ उठकर खड़ा होना चाहा, किन्तु खड़ा होते_ही लड़खड़ा गया वह ।


उसे लगा कि अगर उसने अपने जिस्म का भार टांगों पर डाला तो कोई न कोई हडडी अवश्य टूट जायेगी । अभी वह स्वयं को संभाल भी नहीं पाया था कि हवानची की दोनों टागें दो भारी मूसलों की तरह उसकी छाती पर पड़ी ।


न चाहते हुए भी वह चीखता हुआ गिरा।

अभी वह गिरा ही था कि उसने अपने, ऊपर लहराते इन्सानी जिस्म का आभास पाया । कुछ और न सूझा वतन को दो तीन करवटें ले गया वह 1 फटाक से हवानची खाली फ्लोर पर गिरा ! उछलकर खडा हुआ! इस बार जो वह गेंद की तरह वतन की तरफ उछल तो---------



लम्बी टांग घूम गई बतन की ।



प्रहार हवानची के चेहरे पर हुआ । गेंद की तरह्र ही उछल कर दूर जा गिरा ।


उठने से पहले ही उसने महसूस किया कि वह किसी के हाथों में है और उन हाथों ने उसे वापस फर्श, पर पटक दिया ।



कमाल कर दिया हवानंची ने।


बेशक उसके कंठ से चीख निकली किंन्तु फर्श से टकराते ही किसी रबर के बबुये की तृरह उछलकर खड़ा हो गया । सामने उससे तिगुना लम्बा लड़का खड़ा था वतन ।



हवानची ने अपनी पेटी वाले स्थान पर हाथ मारा और अगले ही पल उसके हाथ में सर्प की भांति एक कांटेदार पेटी लहरा रहीं थी । उसके अग्रिम भाग में पीतल का एक मोटा गोला था ।



वतन को आभास हो गया कि इस पेटी के एक भी बार का परिणाम क्या हो सकता है ।



अंपनी सम्पूर्ण' इन्द्रियों को सचेत करके वंह्र बोला…"बस खत्म हो गई मर्दानगी ?"

किन्तु------उछलकर बिजली के उस बेटे ने वतन पर पेटी का वार किया ।



स्वयं कों बचाने की खूब चेष्टा की वतन ने, किंतु बचा न सका ।


हाँ, इतना अवश्य हुया कि पीतल का गोला उसके सिर पर लगने के स्थान पर कन्धे पर लगा । पेटी की कांटों ने-उसकी खाल नोंचली ।


दर्द से, तिलमिलाकर वह गिरा ।


उसका भाग्य था कि यह अपनी छड़ी पर गिरा । पलक झपकते ही उसने छड़ी उठा ली अोर एक अनजाने से खतरे का मुकाबला करने के लिए उसेने छडी यूं ही हवा में ऊंपर उठा दी ।-हवानची की पेटीका अगला वार उस छड़ी पर रूक गया ।
जब तक हवानची पेटी को घुमाकर तीसरा वार करता, तब तक वतन न सिर्फ खड़ा हो गया था बल्कि हड्डियों का मुगदर -उसने छड़ी के अन्दर से खींच लिया था । अब अपने हाथ में दबी पेटी को हवानची लहरा रहा था तो वतन मुगदर को अपने जिस्म की ढाल बनाये हुए था ।



उसके दूसरे हाथ में खाली छड़ी थी । फिर-बिजली के उन दोनों बेटों के बीच शुरू हुआं एक भयानक युद्ध । निश्चित रूप से हवानची भी लड़ने के अच्छे तरीके जानता था और साथ ही उसके जिस्म में आश्चर्यचकित कर देने बाली शक्ति भी थी ।






इधर वतन ! मुजरिमों के बादशाह सिंगही का शिष्य ।


स्वयं सिंगही का कहना है कि वतन को उसने वह सब सिखाया है, जो स्वयं भी नहीं जानता ।… . .

एक-दूसरे से लड़ते-लड़ते लहूलुहान हो गए । न जाने वतन हबानची की पेटियों के कितने वार अपने शरीर पर झेल चूका था । न जाने हवानची के जिस्म की खवर किंतनी बार वतन के मुगदर ने ली थी !

वतन का सफेद लिबास खूँन के धब्बों से सज गया था ! उसमें कुछ उसका खून था और कुछ हवानची का ।

जगह-जगह से कपड़े फट भी गए थे ।


दोनों ही हिंसक भेडि़ये जैसे लग रहे थे ।

अन्त में-तब जबकि वतन के अपने मुगदर का वार पूरी ताकत से हवानची के चेहरे पर किया ।


पहले तो रंग-बिरंगे तारे नाच उठे हबानची की आँखों के सामने, फिर अंधेरे की एक गहरी चादर फैलने लगी । उसी समय हडिडयो का-मुगदर उसकी पसलियों से टकराया उसने महसूस किया कि वह बेहोश होता जा रहा है ।



अचेतना के सागर में खोते हुए-हबानची के मस्तिष्क मैं अाखरी बार यह आया कि अगर वह बेहोश हो गया तो वतन विकास इत्यादि को इस जलपोत से निकाल ले जाएगा उसने स्वयं को बेहोश होने से राकने की काफी चेष्ठा की, किन्तु उसने महसूस किया की वह लड़खड़ाकर गिर चुका है । पेटी उसके हाथ से छूट गई है और अब किसी भी तरह वह स्वयं को बेहोश होने से नहीं रोक सकेगा, तो बेहोश होने से पूर्व ही चीख पड़ा ----- " फॉयर !"
"फायर " और हवानची से वतन को यह उम्मीद जैसे पहले ही थी ।



हवानची का आदेश होते ही चारों तरफ से गनें गूंज उठी । सैकडों दहकते शोले वतन की तरफ लपके।


बस, खतरे का मुकाबला करने के लिए वतन अगर तैयार न होता तो न जाने कितनी गोलियां उसके शरीर में धंस चुकी होतीं ।




किन्तु वतन…उफ. । वतन ने साबित कर दिया कि विकास से किसी भी तरह कमं नहीं है बह । उसने एक ऐसी भयानक कला का प्रदर्शन किया, जिसका-प्रदर्शन एक बार स्वयं-विकास ने अमेरिका में किया था । वह कला विकास को स्वयं जैकी ने सिखाई थी ।

इस कला में सिंगहीं को महारत हासिल थी और इस समय वतन द्वारा उसी कला का प्रदर्शन इस बात का प्रमाण था कि सिंगही का यह कथन बिल्कुल सत्य है कि, उसके पास एक भी कला ऐसी नहीं है जो उसने वतन को न सिखाई हो ।


वह कला थी-लाठी की मदद से गोलियों से अपनी रक्षा करना ।



इस कला में लाठियाँ इस प्रकार धुमाई जाती हैं कि लाठी घूमाने वाले के चारों तरफ एक व्यूह-सा बना लेती है । कला का प्रवर्तन करने वाले के हाथ बिजली से भी कहीं अधिक. तेजी है घूमते-है । लाठी इस तेजी से शरीर के चारों तरफ घूमती, है कि एक व्यू-सा बन जाता है । चारों तरफ़ से चाहे जितनी भी गोलियां चलाई जायें, किन्तु गोली उसके शरीर तक नहीं पहुंच पाती । सारी गोलियां लाठी पर ही लगती हैं । प्रदर्शन करने वाला फूतींला और इस कला का माहिर हो।


प्रेरक पाठको, यहाँ मैं लिख देना आवश्यक समझता हूँ कि लाठी चलाने का यह तरीका मेरी कल्पना की देन नहीं है, बल्कि इस किस्म की लाठी चलाने वाले को मैं जानता हूँ और हाँ कोई चाहे तो मैं किसी को भी ' उससे मिलवा सकता ' हूं । लाठी का काम वतन छड़ी से ले रहा था।
एक व्यूह टानाए छड़ी उसके चारों ओर धूम रहीं थी । स्वयं वतन का जिस्म भी किसी फिरकनी की भाति धूम रहा था । छडी नजर नही आ रही थी, किन्तु धांय धायं के बीच गोलियों की छड़ से टकराने की आवाज भी गूंज रही थी ।



इस कला को देखकर चीनी हतप्रभ रह गए ।।



किसी की भी वतन की छडी़ नजर नहीं आ रही थी, किन्तु एक अजीब-सा-व्यूह वतन के चारों ओर देख रहेथे ।



साथ ही उनकी गोलियां वतन के-जिस्म तक पहुंचने से पहले ही उस व्यूह से टकराती और छिटककर दूर जा गिरती ।

नाजाने किस धातु की छड़ थी वह टूटी नहीं।


इस चमत्कृत कर देने वाला कला का प्रदर्शन तो कर है रहा था वतन क्रिन्तु स्वयं उसका मस्तिष्क परेशान था ।



गोलियां उस पर चारों तरफ से बरस रहीं थीं! जब तक वह अपने चारों और व्यूह बनाए हुए था तब तक बचा हुआ था परन्तु, व्यू बनाए हुए वतन के मस्तिष्क में प्रश्न था , आखिर कब तक इस छड़ को घुमाता रहेगा ।


कब तक इस व्यूह को बनाए रखेगा ।



एक घंटे--दो घंटे--तीन....चार.... कभी तो उसे रुकना ही पड़ेगा !


कभी तो वह थककर शिथिल होगा ही ? तब.....तब क्या होगा ? इनकी गोलियां उसके शरीर को छेद डालेंगी ?




तो तो इस खतरे से स्वयं को मुक्त करने क लिए वह क्या करे ?क्या ?



जिस तरह छडी को घुमाता हुआ वह स्वयं चकरा रहा था, उसी तरह उसके मस्तिष्क में यह प्रश्न चकरा रहा था।



' गोली चलाने वाले सैनिक उसकी यह कला देखकर गोली में चलाना भी भूल गए ।



हैरत से फिरकनी की भांति धूमते वतन और उसके चारों और चकराते उस अवेध व्यूह को देखने लगे थे जिसे गनों की गोलियाँ भी तोड़ न पा रही थीं ।

अपने मस्तिष्क में बस प्रश्न को लिए वहाँ कोई एक घंटे तक छड़ी घुमाता रहा । आखिर, अचानक उसके कानों में एक आवाज पड़ी--शाबाश-------शाबाश मेरे मिट्टी के शेर । कमाल कर दिया तुने ----" वाह !"
इस आवाज को वह पहचान गया ।

परन्तु सुन कर ठिठका नहीं । ब्यूह उसी प्रकार बना हुआ वह बोला----"मुझे बचाओ। बिजय चचा । अब मुझमें ज्यादा देर तक यह ब्युह बनाए रखने की ताकत नहीं है ।"

"अभी लौ बटन प्यारे ! तुम्हारी इस कला को देखकर रोंगटे खड़े हो गए हमारे, अब कमाल देखो हमारे ।"


विजय की इस आवाज के बाद फायरों की गति तेज हो गई !


फिर, कुछ ही देर बाद विजय की गुर्राहट स्वयं वतन ने भी सुनी । वह कह रहा था---""अपने-अपने हथियार फेक दो चीनी चमगादडों वरना तुम्हारा ये हवानची हमारे सामने फर्श पर बेहोश पड़ा है-हमारे रिवॉल्वर से एक ऐसी टाफी निकलेगी कि इसका सर तरबूज बन जाएगा । अमी तो इसके होश में आने की उम्मीद है ,किन्तु अगर ऐसा हो गया तो कभी होर्श में नहीं आ सकेगा हैं । वतन को नही पता कि चिनियों पर विजय के शब्दों की क्या प्रतिक्रिया हुई !


वह तो पागलों की तरह बस, अपने चारों-तरफ छड़ी घुमाए चला जा रहा था । उसका दिमाग बुरी तरह घूम रहा था । हर पल जैसे ऐसा लग रहा था कि वह अब गिरा---अब गिरा, मगर उस समय तक वह स्वयंको संभाले रखना चाहता था जब तक कि विजय की तरफ से उसे रुक जाने, का आदेश न मिले ।


पुन: विजय द्वारा चीनियों को दी गई चेतावनी उसके कानों में गूँजी-- ।
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