RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
( शीतल की बात सुनते ही शुभम भी चम्मच से लेकर पुलाव खाने लगा,,,,, खाते समय शीतल बड़े ध्यान से शुभम को देख रही थी। शुभम का मजबूत गठीला बदन उसकी आंखों में बस गया था वह मन ही मन शुभम के हथियार के बारे में कल्पना करने लगे और कल्पना करते हुए उसे अपनी बुर के अंदर सुरसुराहट सी महसूस होने लगी। उसे इस बात का अनुभव हो रहा था कि मजबूत शरीर होने की वजह से शुभम का लंड भी काफी तगड़ा होगा,,,,, लंच करते समय शीतल के मन में ढेर सारे ख्याल आ रहे थे वह गौर से शुभम की तरफ देखे जा रही थी शुभम भी नजरों को नीचे करके लंच का लिज्जत उठा रहा था और आंखों की कनखियों से शीतल की तरफ भी देख ले रहा था। शीतल को शुभम के द्वारा कनखियों में उसको ताकना अच्छा लग रहा था। वह समझ गई थी कि शुभम को उसका बदन देखना अच्छा लग रहा है।
इसी पल का लाभ लेकर शीतल अपने कंधे पर से साड़ी का पल्लू जानबूझकर नीचे गिरा दी,,,, पल्लू के नीचे सरकते ही ऐसा लगने लगा की जैसे दो पहाड़ियां खुले आसमान के नीचे आपस में जुड़ कर प्यार कर रहे हो,,,, शीतल की दोनों जवानिया ब्लाउज मैं कैद थी लेकिन फिर भी ऐसा लग रहा था कि ब्लाउज नुमा कटोरे में कोई जवानी का रस घोल दिया हो और वह रस कभी भी ब्लाउज नुमां कटोरे मे से छलक कर बाहर आ जाएगा। शुभम तो आंखें फाड़े दोनो चुचियों को देखे जा रहा था खास करके चुचियों के बीच की गहरी घाटी को जिस में न जाने कितने रहस्य छिपे हुए था। शुभम चम्मच से निवाला तो मुंह में डाल दिया था लेकिन उसे चलाना भूल गया था वह मंत्रमुग्ध सा शीतल की जवानी को देखने लगा,,,,
शीतल जैसे इसी मौके की तलाश में थी और वह झट से बोली,,,,
क्या हुआ शुभम ऐसे क्या देख रहे हो,,,,,( इतना कहने के साथ ही वह साड़ी का पल्लू अपने कंधे पर रखकर ठीक कर ली।
शीतल को इस बात का एहसास हो गया कि उसका चलाया हुआ तीर ठीक निशाने पर लगा था कि कल की बात सुनकर शुभम जैसे कोई चोरी करता पकड़ा गया हो इस तरह से हकलाते हुए बोला,,,,।)
कककक,,, ककक, कुछ नहीं मैम बस यूं ही,,,, ( डरते हुए पुलाव को खाते हुए बोला।)
क्या यूंही मैं जानती हूं कि तुम क्या देख रहे थे,,,,, तुम मेरे इन को( अपनी चूचियों की तरफ नजर गिरा कर) घूर कर देख रहे थे।
( शीतल की यह बात सुनकर शुभम को एकदम से डर गया उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी सफाई में क्या कहे उसके माथे पर पसीना ऊभरने लगा,,,, वह पूरी तरह से डर चुका था और डरते हुए बोला।)
नननन,,,, नहीं मेम एसी कोई भी बात नहीं है।
नहीं ऐसी ही बात है मैं लड़को को अच्छी तरह से जानती हूं कि वह लोग औरतों को घूरते रहते हैं और औरतों के कौन से अंग को घूरते रहते हैं।
मैम सच में ऐसा कुछ भी नहीं है बस गलती से मेरी नजर वहां चली गई थी।
शीतल शुभम की बात सुनकर और उसके सफाई देने का अंदाज और उसका झुठ देखकर खिलखिला कर हंसने लगी,,
शीतल को हंसता हुआ देखकर शुभम को कुछ समझ में नहीं आया की वह हंस क्यों रही है तभी शीतल हंसते हुए बोली।
अरे पागल मैं तुझे कुछ कह थोड़ी रही हूं मैं तो बस तुझसे पूछ रही हूं मैं जानती हूं कि तू जिस उम्र के दौर से गुजर रहा है यह सब उसमें आम बात है। और हां डरने की जरूरत बिल्कुल भी नहीं है। मुझे तू अपना दोस्त ही समझ,,,,,( तीतर की बात सुनकर शुभम को थोड़ी राहत हुई उसे लगने लगा कि शायद कि कल उसकी हरकत पर गुस्सा नहीं कर रही हैं तभी शीतल ने दो समोसे में से एक समोसा शुभम को थमाते हुए बोली।)
यह लो शुभम समोसे खाओ।
( शुभम भी हाथ आगे बढ़ाकर समोसा थाम लिया और उसे खाने लगा।)
अच्छा एक बात बताओ सुबह तुम काफी हैंडसम खूबसूरत और गबरु जवान लड़के हो क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड है।
( शीतल के इस सवाल को सुनते ही शुभम की हालत पतली होने लगी उसे समझ में नहीं आ रहा था की शीतल मैंम ये कौन सा सवाल पूछ ली। वह आश्चर्य से शीतल की तरफ देखने लगा।)
डरो मत शुभम में कुछ नहीं कहूंगी यह तो बस औपचारिकता बस तुमसे पूछ रही हूं क्योंकि मैं जानती हूं अधिकतर छोकरे लड़कियों के पीछे दीवाने होते हैं और इस उमर में गर्लफ्रेंड भी रख लेते हैं और तुम तो वैसे ही हैंडसम हो।,,,,
नहीं मैंम ऐसा कुछ भी नहीं है।( शुभम सफाई देते हुए बोला)
चलो कोई बात नहीं अच्छा है कि तुम इस तरह के लफड़े में नहीं पड़े हो,,,
( इतना कहने के साथ शीतल भी समोसा खाने लगी और मन में ढेर सारी बातें सोच रही थी,,,, जहां तक मैं शुभम को जानती थी तो वह सच ही कह रहा था कि उसकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है। इसलिए वह उसे पूरी तरह से कुंवारा समझ रही थी और मनमोहन यह भी खयाली पुलाव पकाने लगी थी कि एक तुम कुंवारे लड़के के साथ उसके लंड से चुदने में कुछ ज्यादा ही मजा आएगा,,,, शुभम से चुदने के ख्याल मात्र से ही उसकी बुर पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। पेंटी का गीलापन उसे साफ-साफ महसूस हो रहा था। शीतल पुरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी । तभी हम समोसा खाते हुए शुभम से मुस्कुराते हुए बोली।)
अच्छा सुबह में एक बात तो तय है कि तुम मेरी इन्हीं को ( चूचियों की तरफ नजरों से इशारा करते हुए )देख रहे थे ना।
देखो अब गलती से देखे या अपने मन से यह बात कोई मायने नहीं रखती है लेकिन तुम देख रहे थे ना।
( अब से तुम क्या बोलता है क्या छुपा था सब कुछ तो सामने ही था इसलिए वह नजर झुका कर शरमाते हुए बोला।)
जी हां,,,,
अरे तो शरमा क्यों रहे हो मैं तुम्हें डांट थोड़ी रही हूं,,,, अब यही क्लास में देख लो सारे लड़के मेरे इन्हीं को देखते रहते हैं तो मैं क्या करूं उन्हें यह कह दूं कि तुम मेरी ईनको मत देखा करो,,,,,
( शुभम शीतल की बातें सुनकर उत्तेजित होने लगा था उसके पैंट में खड़ा लंड गदर मचा रहा था। वह बार बार अपने खड़े लंड को एडजस्ट करने के लिए अपना हाथ पेंट की तरफ ले जा रहा था,, शुभम की यह कसमसाहट शीतल भाप गई,,,, वह समझ गई कि उसके बदन का जलवा उसके दिमाग और तन बदन में आग लगा रहा है उसका सीधा असर उसके पैंट के अंदर छुपे उसके हथियार पर पड़ रहा है। शुभम की इस कसमसाहट की वजह को देखने के लिए उसका जी मचलने लगा था वह अपनी आंखों को सेंकना चाहती थी,,, इसलिए वह जानबूझ कर चम्मच को टेबल से नीचे गिरा दी और उसे उठाने के लिए नीचे झुक गई शुभम को तो यह सब औपचारिक ही लग रहा था,,,, उसे क्या पता था कि शीतल ने चम्मच को जानबूझकर नीचे गिरा कर उसके हथियार का जायजा लेने के लिए नीचे झुकी है। चम्मच को उठाते समय जैसे ही शीतल की नजर कुर्सी पर बैठे शुभम की जांघों के बीच उठे हुए पेंट के भाग पर गई तो उसके बदन में गुदगुदी सी मचने लगी। उसकी अनुभवी आंखों में जांघों के बीच ऊठे हुए भाग को देखकर इस बात को महसूस कर ली की शुभम का लंड उसकी बुर के लिए एकदम परफेक्ट है। शीतल के बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ में लगी थी उसकी दूर उत्तेजना के मारे फूलने पीचकने लगी थी ऐसा लग रहा था कि सारे बदन का लहू उसकी कमर के इर्द-गिर्द इकट्ठा होने लगा है। चेहरा सुर्ख लाल होने लगा था शुभम को कहीं किसी बात पर शक ना हो जाए इसलिए वह तुरंत चम्मच उठाकर कुर्सी पर बैठने लगी लेकिन इस बार अनजाने में ही उसके साड़ी का पल्लू कंधे से नीचे सरक गया,,,, और एक बार फिर से शीतल की ब्लाउज में कैद दोनों दूध भऱी छातियां मुंह उठाए शुभम की तरफ देखने लगी,,,, शुभम बिचारा क्या करता,,,इस तरह का कामुकता से भरा नजारा किसी जवान लड़के के सामने तो क्या किसी बूढ़े के भी सामने नजर आएगा तो वह लंड पकडे उस नजारे का पूरा मजा लेगा,,,, और यही मजा शुभम भी लूट रहा था।लेकीन शीतल ईस बार ऊसे कुछ भी नही कही बल्की मुस्कुराते हुए अपने साड़ी के पल्लु को ऊठाकर अपने कंधे पर रख ली जैसे ही वह साड़ी के पल्लू को कंधे पर रखी वैसे ही तुरंत शुभम अपनी नजरों को नीचे कर लिया। शीतल की चूचियां शुभम के तन बदन में आग लगा चुकी थी। शीतल के रुप यौवन का जादू शुभम के ऊपर पूरी तरह से चल चुका था। वह अपनी साड़ी के पल्लू को संभालते हुए बोली।
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