RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला को यकीन नहीं हो रहा था कि इस तरह के हालात में भी उसने संभोग सुख को बहुत ही बेहतरीन तरीके से भोगी है,,,, घर में पति की मौजूदगी के बावजूद भी अपने बेटे की जिद के आगे वह अपनी साड़ी को कमर तक उठा कर जिस तरह से अपने बेटे के लंड को अपनी बुर की गहराई में उतार कर उससे चुदवाने का मजा ली थी,,, वह बेहद काबिले तारीफ थी,,, बार-बार निर्मला की इच्छा हो रही थी कि अपने हाथों से अपनी पीठ थपथपाए,,, क्योंकि उसने आज अपने नजरिए से बेहद ही हिम्मत भरा कदम उठाई थी एक तो सुबह से ही उसकी बुर में खुजली मची हुई थी वह अपने बेटे से जी भर के चुदवाना चाहती थी। लेकिन वह अपने बुर की प्यास अपने बेटे के लंड से बुझाती इससे पहले ही अशोक घर पर हाजिर हो गया था,,, और ऐसे मौके पर जब बदन प्यास से एकदम तड़प रहा हो,,, तब उस शख्स के लिए किसी की भी हाजिरी कबाब में हड्डी की तरह खटकती है,,, और यही वजह थी कि अशोक उसका पति होने के बावजूद भी उसका घर पर आना निर्मला को अच्छा नहीं लग रहा था,,, उसे लगने लगा था कि आज की रात वह प्यासी ही रह जाएगी,,, लेकिन ऐन मौके पर शुभम के द्वारा दिखाई गई उसकी हिम्मत उसके लिए उसकी प्यास बुझाने का एक अद्भुत मौका कारगर सिद्ध हुआ,,,, निर्मला मन ही मन यह बात भी मानती थी कि भले ही उसके मन में किचन के अंदर अपने बेटे से चुदवाते समय उसके पति के आ जाने का डर बराबर बना हुआ था,, लेकिन इस डर में भी एक बेहद अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो रही थी और जिस तरह का अनुभव उसे किचन के अंदर घर पर पति की हाजिरी में चुदवाते समय हुआ था उस तरह का अनुभव उसे पहले कभी नहीं हुआ था।
कुल मिलाकर उसे बेहद आनंद की प्राप्ति हुई थी,,, वह बार-बार यह सोच कर हैरान हो रही थी कि आखिरकार इतनी हिम्मत सुभम में आई कैसे,,, उसे उसकी हिम्मत पर यकीन नहीं हो पा रहा था लेकिन यह कानों सुनी नहीं बल्कि आंखों देखी और खुद पर अनुभव किया हुआ मामला था इसलिए उसे उसकी हिम्मत की दाद देनी ही पड़ी,,,,। शुभम काफी खुश था वह किस बात पर और भी ज्यादा खुश था कि अच्छा ही हुआ कि वह अपने पापा के ऑफिस चला गया और वहां ना चाहते हुए भी ऑफिस का नजारा अपनी आंखों से देख लिया तभी तो उसे अपने पापा को काबू में करने का पूरा तरीका मालूम पड़ गया एक तरह से घोड़े की लगाम के हाथों में आ चुकीे थी,, जिससे कि वह उस घोड़े को पूरी तरह से अपने काबू में रख सकता था आखिरकार घोडी़े की
सवारी करना हो तो घोड़े को तो काबू में रखना ही पड़ता है।,, कुल मिलाकर शुभम के लिए बहुत ही अच्छा हो रहा था वह अपनी किस्मत पर बहुत खुश था क्योंकि ना चाहते हुए भी उस की झोली में निर्मला नाम की खूबसूरत फूल आ गिरा था जिसकी खुशबू मैं वह अपना रात दिन गुजार रहा था।
मेरे दिल की प्यास बुझा चुकी थी वह जो चाहती थी वह उसे प्राप्त हो चुका था,,, इसलिए उसे रात भर बिस्तर पर करवटें नहीं बदलना पड़ेगा उसे चैन की नींद आने वाली थी इसलिए वह अपना सारा काम निपटा कर कमरे में पहुंची तो अशोक जाग रहा था,,, औपचारिकतावश वह अशोक से बोली,,
क्या हुआ आपको आपकी तबीयत तो ठीक है शुभम ने बताया कि आप खाना नहीं खाएंगे आप आराम कर रहे हैं इसलिए मैं आपको जगाने नहीं आई,,,,
( निर्मला अशोक के माथे पर हाथ रखकर उसकी तबीयत जानने की कोशिश करते हुए औपचारिकतावश बोल रही थी और निर्मला की बात सुनकर अशोक को इस बात की तसल्ली थी कि उसके बेटे ने अभी तक उसकी मां से कुछ भी नहीं कहा था वह मन ही मन खुश होने लगा,,, और वैसे ही अपने चेहरे पर थोड़ी सी नरमी लाते हुए बोला,,,,।)
हां थोड़ा सर दर्द कर रहा था वह क्या है कि ऑफिस में काम कुछ ज्यादा बढ़ गया है इसके लिए,,,,
लाइए मैं आपका सर दबा देती हुं।
नहीं अब इसकी जरूरत नहीं है मैं दवा खा चुका हूं इसलिए मुझे अभी आराम है,,,,।
ठीक है आप आराम करिए तब तक मैं कपड़े चेंज कर लेती हूं (इतना कहने के साथ ही निर्मला अलमारी के करीब जाकर अपनी साड़ी उतारने लगी,,, वह अपनी साड़ी उतारते हुए आजमगढ़ आईने में अपने रूप को देखकर मन ही मन प्रसन्न भी हो रही थी,,, उसकी प्रसन्नता का कारण शुभम था जो कि पूरी तरह से उसके रूप यौवन का दीवाना हो चुका था,,, निर्मला को अपनी खूबसूरती और अपने बदन की बनावट पर गर्व महसूस हो रहा था क्योंकि इस उम्र में पहुंचने के बाद भी एक जवान हो रहा लड़का उसका पूरी तरह से दीवाना था और इस उम्र में भी उसे एक जवान लंड से चुद़ने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा था,,, वरना इस उम्र में अक्सर ऐसे ही लंड. बुर में,,, डलवाने के लिए मिलते हैं जिसे खड़ा करते करते ही आधी रात गुजर जाती है,, और मुश्किल से खड़ा होने के बाद भी जब बुर की गहराई में उतरता है तो,,,, गुलाबी दीवारों से पसीज रहे गर्म लावा की गर्माहट मै कुछ ही सेकंड में मर्दानगी पिघलकर फुर्र हो जाती है। और वह औरत प्यासी ही रह जाती है ऐसी उम्र में जब औरतों को चाहिए रहता है कि उसकी जवानी को कोई एकदम से रगड़ डालें,,, उसके बदन के हर एक अंग को अपनी हथेली में भर कर मसले,,, उसकी बुर में अपन मजबूत लंड डालकर ऐसा चोदे कि उसकी बुर नमकीन रस का फव्वारा फूट पड़े,,,,, लेकिन अक्सर औरतों को ऐसी ही उम्र में ही ढीले लंड मिलते हैं जिनसे उनकी प्यास बुझने की वजाय और ज्यादा भड़क उठती है,,, लेकिन कुछ औरतें निर्मला की तरह अपवाद होती हैं,,, जिन्हें इस उम्र मे भी,, अपनी प्यास बुझाने के लिए जवान लंड मिल जाता है,,, जिन से चूद कर वह अपनी प्यास बुझाती हैं,,, यही वजह थी कि कपड़े चेंज करते समय निर्मला के चेहरे पर मुस्कान फैल जा रही थी,,, एक-एक करके वह धीरे-धीरे अपने बदन पर से अपने वस्त्र को दूर कर रही थी उसके बदन पर इस समय मात्र पेंटिं और ब्रा ही रह गई थी,,, अशोक अपनी पत्नी को देखकर मन ही मन प्रसन्न हो रहा था उसकी खूबसूरती आज उसकी आंखों को चौधिया दे रही थी,,,, अशोक की नजर अपनी बीवी के अर्ध नग्न बदन पर ऊपर से नीचे की तरफ दौड़ रही थी,,, उसका गोरा मखमली बदन आज उसे अपनी तरफ आकर्षित कर रहा था। खास करके उसकी भारी भरकम गांड जो कि शुभम के हाथों में आने से ऐसा लग रहा था कि पहले से ज्यादा भारी हो चला था,,,, ऐसा लग रहा था मानो कि फिर से किसी कारीगर ने अपने हाथों का जादू उसके नितंबों पर बिखेर दिया हो,,, उसने अपनी सारी कारीगरी निर्मला के नितंबों को तराशने में लगा दिया है। अशोक अपनी बीवी की बड़ी बड़ी गांड देखकर उत्तेजित होने लगा था उस के लंड में भी तनाव आना शुरू हो गया था। उसे लग रहा था कि वह उसे अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए अपने कपड़े उतार रही है और उसे इस बात की भी उम्मीद थी कि वह अपनी ब्रा और पैंटी उतार कर पूरी तरह से नंगी हो जाएगी,,, लेकिन ऐसा नहीं हुआ हां अलमारी में से अपना गांऊन निकाल कर पहन ली,,, लेकिन अशोक आज अपनी बीवी को भोगने का मन बना लिया था। आज निर्मला से संभोग की इच्छा बड़ी तीव्र होती जा रही थी। वैसे भी अपनी सेक्रेटरी से अब उसका मन भर चुका था,,,, निर्मला की बड़ी बड़ी गांड और ऊसकानभरावदार बदन देख कर एक बार फिर से उसके मन में उत्सुकता बढ़ने लगी,, निर्मला आते ही बिस्तर पर लेट गई और दूसरी तरफ करवट लेकर सोने लगी,, निर्मला की बड़ी बड़ी गांड जोकी गांऊन में से भी बिल्कुल साफ साफ ऊभरकर सामने नजर आ रही थी,,, अशोक अपने मन में आए लालच को रोक नहीं सका और अपना हाथ आगे बढ़ा कर निर्मला की गांड पर रख दिया,,,,, उसे लगा था कि उसके स्पर्श से निर्मला शर्म के मारे सिहर उठेगी,,, क्योंकि अब तक ऐसा ही होता आया था लेकिन आज उसके सोच के बिल्कुल विपरीत निर्मला ने उसका हाथ पीछे झटक दी,,,, यह अशोक के लिए बिल्कुल साफ इशारा था कि अब उसे उस की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है,,,,।
अशोक को बिल्कुल भी समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है इसलिए वह एक बार फिर से उसके नितंबों पर हाथ रखा लेकिन इस बार भी निर्मला उसका हाथ झटकते हुए बोली मैं थक गई हूं मुझे नींद आ रही है,,,
अशोक एकदम परेशान हो गया उसे निर्मला का यह बदला हुआ स्वभाव और व्यवहार बिल्कुल समझ में नहीं आ रहा था आखिरकार वह भी करवट लेकर सो गया,,,,
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