RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
कुछ देर बाद है रूचि शुभम से नजरें बचाकर बगीचे की तरफ जाने लगी लेकिन शुभम इसी ताक में था कि कब रूचि घर से बाहर निकलकर बगीचे की तरफ जाए और वह उसके पीछे पीछे लग जाए और जैसे ही रूचि बगीचे की तरफ जाने लगी शुभम झट से उसके पीछे हो चला,,, उसे अपने पीछे आता देखकर रुचि को थोड़ा घबराहट के साथ-साथ क्रोध भी आने लगा मुंह बनाते हुए वह जल्दी-जल्दी बगीचे की तरफ जाने लगी और पीछे से आ रहा शुभम उसे आवाज देता हुआ बोला,,,
ओमानी रुको तो सही इतनी जल्दी-जल्दी अकेले कहां चली जा रही हो मुझे भी तो तुम्हारे साथ ही जाना है,,।
( इतना कहने के साथ ही वह लगभग दौड़ता हुआ रुचि के करीब पहुंच गया रुचि उससे बिना कुछ बोले ही चलती रही,,,, रुचि के मन में अजीब सा असमंजस घर कर गया था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह शुभम उसके साथ बगीचे में क्यों जाना चाहता है लेकिन इतना तो उसे आभास ही हो गया था कि उसकी नजरें ठीक नहीं है।,,, वह मन में सोचने लगी कि अगर शुभम बगीचे में उसके साथ कुछ करेगा तो वह क्या करेगी क्योंकि कद काठी से वह काफी मजबूत था। उसका दिल जोरो से घबराने लगा लेकिन वह घबराहट को अपने चेहरे पर नहीं आने दे रही थी।,,,,
क्या मामी तुम ऐसे क्यों बर्ताव कर रही हो कि जैसे मुझे जानती ही नहीं अरे कुछ बोलो तो हम दोनों का समय अच्छे से कट जाएगा,,,, और देख रही हो मौसम कितना सुहावना है,,,। ( गर्मी का समय था चिलचिलाती धूप अपना कहर ढा रही थी लेकिन रह रह कर छांव भी हो जा रही थी इसलिए,,, धूप ज्यादा महसूस नहीं हो रही थी चारों तरफ का नजारा हरियाली से भरा हुआ था पगडंडियों के चारों तरफ छोटी बड़ी झाड़ियों का झुरमुट लगा हुआ था। दूर-दूर तक इंसानों का नामोनिशान नहीं था। क्योंकि इस तरह की चीलचिलाती धूप में सभी लोग घर के अंदर ही रहना पसंद करते थे।
दोनों घर से काफी दूर आ चुके थे और यहां पर दूर-दूर तक कोई घर भी नजर नहीं आ रहा था या यूं समझ लो कि पूरे रास्ते भर रूचि और शुभम के सिवा कोई भी नजर नहीं आ रहा था और यह देख कर शुभम के मन में उमंगों का घोड़ा अपनी तेज रफ्तार से दौड़ना शुरू कर दिया। जहां इस तरह के सुहावने मौसम और सुनसान रास्ते को देखकर सुभम मन ही मन प्रसन्न हुए जा रहा था। वही ऐसी स्थिति में रुचि का मन घबरा रहा था।,,,
रूचि कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं थी सुबह भी बोले जा रहा था और वह केवल सुन रही थी लेकिन कनखियों से वह अपनी नजरें शुभम पर डालती तो उसे अंदाजा हो जाता कि शुभम उसके कामरुपी बदन को घूर रहा है। यह देख कर वह बार-बार अपने साड़ी के पल्लू को ठीक से कर लेती,,,। शुभम को रुचि की इस हरकत पर बेहद आनंद प्राप्त हो रहा था,,,।
थोड़ी ही देर में वह दोनों आम के बगीचे मैं पहुंच गए चारों तरफ आम के पेड़ से पूरा बगीचा भरा हुआ था साथ ही,,, हर पेड़ पर आम लदे हुए थे जिन्हें देखने का अपना अलग ही मजा था। शुभम आम का पेड़ और आम लदे हुए पहली बार देख रहा था,,। इसलिए यह नजारा देखकर उसकी आंखों में चमक आ गई कुछ पल के लिए वह रूचि को एकदम से भूल गया और चारों तरफ घूम घूम कर आम के पेड़ और उस पर लगे हुए आम को देखने लगा। कुछ देर तो इतनी कम ऊंचाई के थे कि वह हाथ ऊपर करके ही आम को तोड़ सकता था ऐसे ही वह हाथ बढ़ाकर यह काम को पकड़ते हुए बोला,,,
मामी क्या यह आम को मैं तोड़ सकता हूं।,,,
सब अपना ही है इसमें पूछने वाली क्या बात है तोड़ लो,,( शुभम की तरफ देखते हुए वह बोली,,,।)
काश ऐसी ही इजाजत तुम दूसरे अामों के लिए भी दे देती तो कितना मज़ा आता,,,
क्या कहा तुमने,,,,,( रूचि सवालिया नजरों से शुभम की तरफ देखते हुए बोली)
वही जो आप सुन रही हैं । (इतना कहने के साथ ही वह आम तोड़ लिया)
मैं कुछ समझी नहीं तू क्या कह रहा है,,,,?
अब ज्यादा भोली मत बनो मामी समझ नहीं रही हो या समझना नहीं चाहती,,,, खेतों में तुम्हें जिस हालत में मैं देख चुका हूं उससे यह बिल्कुल भी नहीं लगता कि तुम्हें मेरी बात समझ में नहीं आई हो,,,,( इतना कहते हो शुभम तोड़े हुए आम को जो कि पक चुका था उसके ऊपर की डुंठी निकाल कर उसे गोल-गोल दबाते हुए मुंह में भरकर चूसना शुरू कर दिया,,,। शुभम की बात और वह जिस तरह से आम को चूस रहा था यह देख कर रुची अंदर ही अंदर कांप गई।,,)
देखो सुभम मुझे डराने की कोशिश बिल्कुल भी मत करना,,, मैं तुम्हारी बातों में आने वाली नहीं हूं,,,।
मैं तुम्हें डरा नहीं रहा हूं मामी मैं वही बता रहा हूं कि जो हकीकत है,,, तुम रात को ऊस आदमी के साथ चुदवा रही थी,,, जो कि मैं अपनी आंखों से देख रहा था,,,
( शुभम एकदम खुले शब्दों में अपनी मामी से रात वाली हकीकत बता दिया जिसे सुनकर और शुभम की अश्लील भाषा को सुनकर एकदम दंग रह गई,,,। )
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