RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
गलती कैसे नहीं है शुभम मैंने तुझे तेरी मम्मी होने के बावजूद भी अपना तन मन सब कुछ तुझे सौंप दि,, मेरे बदन के हर एक अंग पर तेरा ही हक है,,,, और तू भी पूरी तरह से मेरा है यही सोच कर मैं तुझे अभी भी खुश करती रहती हो लेकिन तू है की यहां वहां मुंह मारता फिर रहा है,,। क्या कमी है मुझमें,,, क्या तुझे मेरी जवानी कम पड़ने लगी है,,,। की मेरे बदन के अंगों से तेरा मन भरने लगा है,,,,। बता सुभम क्या कमी पड़ने लगी है मुझ में (इतना कहने के साथ ही वह अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी, देखते ही देखते वह बड़ी ही फुर्ती के साथ अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी,,, और एक झटके से ही ब्लाउज की ब्रा की नीचे की पट्टी को पकड़कर ऊपर को खींच दी झटके से ही उसकी दोनों चूचियां ब्रा से निकलकर बाहर की तरफ झांकने लगी,,, जिसे देख कर और उसकी मां की इस हरकत पर शुभम पूरी तरह से कामातुर होकर निर्मला पर मोहित हो गया,,,, उसे कुछ सूझ नहीं रहा था वह फटी आंखों की अपनी मां की खूबसूरत जवानी को घुरते जा रहा था। वह तो आवाक होकर आंखें फाडे बस अपनी मां को ही देखे जा रहा था।,,, और निर्मला देवी के समय एकदम गुस्से में अपनी दोनो चुचियों को अपने हाथों में पकड़ कर शुभम को दिखाते हुए बोली,,,।
देख सुभम इसे अच्छे से देख ले,,, पकड़ कर देख क्या लगता है तुझे यह मेरी चूचियां लटक गई है क्या इनका कड़कपन खत्म हो चुका है,,,,। ( निर्मला जिस तरह से गुस्से में बोल रही थी उसे देखते हुए शुभम उसकी बात मानते हुए अपने हाथों को आगे बढ़ाकर हल्के से अपनी मां की दोनो चुचियों को पकड़ लिया वह समझ गया कि उस समय उसकी मां को शांत कराना बेहद जरूरी है,,,। इसलिए वह बोला,, लेकिन अभी भी उसकी दोनों हथेलियों में उसकी मां की बड़ी बड़ी चूचियां थी और वह बोला,,,,।
नहीं मम्मी,, एेसी कोई भी बात नहीं है मैं किसी दूसरी औरत को इस तरह से नहीं देखता हूं जैसे कि तुम्हें देखता हूं तुम जाना चाहती हो तो मैं बताता हूं कि मुझे कैसे पता चला यह सब अनजाने में ही हुआ।( शुभम अपनी मा की दोनो चुचियों को दोनों हाथों से जोर जोर से दबाते हुए) तुम्हें पता हे ना हम जिस दिन आए थे उस के दूसरे दिन,,,, सुबह सुबह तुम कमरे में से चली गई मैं सो ही रहा था लेकिन मेरी आंख खुली,,, तो मुझे औरतों की आवाज और उनकी हंसी सुनाई दे रही थी,।( शुभम लगातार अपनी मां की दोनों गोलाईयों से खेल रहा था,,, जिसकी वजह से तुझे मेरे यार निर्मला के चेहरे का रंग सुर्ख लाल होने लगा और वह बड़े ध्यान से अपने बेटे की बात सुन रही थी।) मैं उठकर खिड़की से देखा तो,,, वहां पर तुम और दोनों मामिया नहां रही थी,,, तुम तीनों के बदन पर कपड़े मात्र कहने के लिए ही थे,,,, तुम तीनों का सब कुछ नजर आ रहा था,,,( निर्मला बड़े ध्यान से अपने बेटे की बात चल रही थी और उसके चेहरे के हाव भाव उसकी बात सुनकर बदलते जा रहे थे उसे याद आ रहा था साथ ही शुभम अपनी हरकतों की वजह से अपनी मां के बदन मे उत्तेजना की गर्मी को बढ़ा रहा था,,,,।) और तुम भी हो एक दूसरे की बुर को देखने के लिए जिस तरह से तड़प रहे थे। मुझे हंसी आ रही थी और तुम्हारी पेंटी को देखकर ही,,,, बड़ी वाली मामी नहीं बताई थी की गांव में अधिकतर औरतें साड़ी के नीचे कुछ नहीं पहनती हैं और छोटी मामी भी कुछ नहीं पहनी थी जब तुम दोनों जबरदस्ती उनकी पेटीकोट ऊतार रहीं थी। बस मुझे तुम तीनों की बातों से ही इस बारे में पता चला था बाकी ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा कि तुम सोच रही हो,,,( तभी सुभम अपनी मां की दोनो चुचियों को छोड़कर बिस्तर के करीब वाली खिड़की को खोलते हुए) देख लो यही वह खिड़की है,,,,। ( इतना कहकर शुभम वही बिस्तर के नीचे खड़ा हो गया और उसका मोटा लंबा लंड अपना तनाव खोकर झूल रहा था लेकिन फिर भी उसे देखकर किसी भी औरत का पानी निकल जाए,,, निर्मला अपने बेटे के झूलते लंड को देखकर अंदर ही अंदर सीहरते हुए सारा मामला समझ गई,,,, वह समझ गई कि शुभम को जिस तरह से वह बता रहा था उसी तरह से गांव की औरतों के बारे में पता चला था इसलिए उसके मन से सारी शंकाएं दूर हो गई।,,, वह बिस्तर पर बैठी मुस्कुरा रहीे थी,,,, शुभम अपनी मां के बदले इस रूप को पहचान नहीं पाया, शायद उसकी कच्ची उम्र होने के नाते औरतों के मनोमंथन के बारे में उसे जरा भी ज्ञान नहीं था।
शुभम निर्मला का बेटा होने के बावजूद जिस तरह के संबंध में दोनों के बीच स्थापित हो चुके थे उसे देखते हुए निर्मला यही चाहती थी कि शुभम पूरा का पूरा उसका ही होकर रहे,,, वह हरगिज नहीं चाहती थी कि उसका बेटा किसी और औरत के पीछे घूमे,,, क्योंकि उसे इस बात का डर था कि कहीं अगर ऐसा हो गया तो उसका प्यार बँटकर रह जाएगा,,, और जिस तरह से वह अभी अपनी बेटे के साथ शारीरिक संबंध बनाकर उसका मजा पूरी तरह से लूट रही थी फिर इस तरह का मजा वह कभी भी नहीं ले पाएगी। इसलिए तो वह नहीं चाहती थी कि शुभम का ध्यान इधर उधर भटके,,, इसलिए उससे इस तरह की शख्ति अपनाते हुए बोल रही थी,,, लेकिन अब सब कुछ साफ हो चुका था निर्मला को अपनी बेटी के साथ किए गए इस तरह का व्यवहार की वजह से अंदर ही अंदर दुख महसूस हो रहा था इसलिए वह शुभम का मूड बदलने के उद्देश्य से अपनी दोनो चुचियों को अपने हाथों में भरकर उसकी तरफ आगे बढ़ाते हुए अपने मादक अधरों को अपने चमकीले मोतियों से दातों से दबाकर उसे अपनी तरफ लुभाने लगी,,, कुछ बोलने लायक निर्मला के पास कुछ भी नहीं बचा था इसलिए वह बिना बोले ही इतनी खूबसूरत बदन का सहारा लेकर वह अपने बेटे से किए गए बदसलूकी की वजह से माफी मांगे बिना ही अपनी गलती का इजहार कर रही थी और शुभम तो वैसे भी अपनी मां की खूबसूरत बदन का दीवाना था और अपनी मां को इस तरह से अपनी मदमस्त जवानी को अपने हाथों में लेकर उसके सामने परोसता हुआ देखकर शुभम से रहा नहीं गया और वह बिना कुछ बोले आगे बढ़कर अपनी मां की दोनों चुचीयों को दोनों हाथों से थाम लिया,,, निर्मला अपने बेटे के इस कदम से खुश हो गई और मुस्कुराने लगी क्योंकि शुभम का इस समय उसकी चूचियों का पकड़ना यही दर्शाता था कि वह अपनी मां से नाराज नहीं है और इस बात से निर्मला बेहद खुश थी,,,, शुभम अपनी मां की खरबूजे जैसी बड़ी-बड़ी चुचीयो को हाथों में भरकर दबाते हुए बोला,,,।
मम्मी तुम मुझ पर इतना चिल्ला क्यों रही थी,।
क्या करूं बेटा मैं नहीं चाहती कि तू किसी दूसरी औरतों के चक्कर में पड़े मैं चाहती हूं कि तू सिर्फ मेरा ही बन कर रहे,,,।
तुम तो ऐसा बोल रही हो मम्मी कि जैसे कि मैं तुम्हारा प्रेमी हूं और तुम मेरी प्रेमिका,,,
बस ऐसा ही समझ और जो मैं आज तुझसे कही हूं वह जिंदगी में हमेशा याद रखना,,,।
( अपनी मां की बातों से वह सिर्फ इतना ही समझ पाया कि दूसरी औरतों के साथ के संबंध के बारे में अगर उनकी मम्मी को पता चला तो उसके लिए अनर्थ हो जाएगा,।,,, शुभम बातों के दरमियान लगातार अपनी मां की चुचियों को दबा दबा कर एकदम से टमाटर की तरह लाल कर दिया था। शुभम की हरकतों की वजह से निर्मला की सिसकारी छुटने लगी थी।,,, निर्मला से अपनी जवानी का बंधन,,, इस समय फूटी आंख नहीं भा रहा था इसलिए वह तुरंत अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ ले जाकर अपना ब्लाउज उतार कर बिस्तर पर फेंक दिया और साथ ही अपनी ब्रा के हुक को खोलकर तुरंत अपने बदन से ब्रा को अलग कर दी।,,,
शुभम तो अपनी मां का ऊतावलापन देखकर एकदम से
चुदवासा हो गया और जांघों के बीच झूल रहा उसका लंड एकदम से तान में आ गया।,,, वह अत्यधिक दबाव देते हुए अपनी मां की दोनों खरबूजों से खेलने लगा वह तो निर्मला थी वरना कोई और औरत होती तो उसके मुंह चीख निकल गई होती।,,, निर्मला भी पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी अपने बेटे के खड़े लंड को देखात कर उसकी बुर से पानी की बूंदे अमृत की बूंद बनकर टपक रही थी,,,।जो की बेकार मै हीं जाया होकर बिस्तर को भिगो रही थी,,,।,,, अपनी टपकती हुई बुर की तड़प देखकर निर्मला जल्द से जल्द अपनी बुर को अपने बेटे से चटवाना चाहती थी।,,,, लेकिन जिस तरह से शुभम उसकी चूचियों से खेल रहा था उस खेल में निर्मला को भी मजा आ रहा था बेहद कामुकता से भरा हुआ वातावरण होता जा रहा था शुभम बिस्तर के नीचे खड़ा होकर अपनी मम्मी की चुचियों को दबा रहा था और निर्मला थी कि घुटनों के बल बिस्तर पर बैठ कर अपने बेटे से स्तन मर्दन का भरपूर मजा ले रही थी।
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