RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
अपडेट*72
मेरे घर से चले जाने के बाद वहाँ कुछ समय तक सन्नाटा छाया रहा….मम्मी अपने रूम मे चली गयी और अंदर से डोर लॉक कर लिया
मारग्रेट अपने घर चली गयी….सोनालिका को भी श्री ने परिलोक चले जाने को कह दिया, लिहाजा वो भी परी लोक चली गयी, लेकिन चित्रा
उसका कोई पता नही कहाँ है…दिखती तो वो किसी को थी नही तो उसके बारे मे कुछ भी मालूम नही चल पाया
श्री अपने कमरे मे जाकर रोने लगी….उसे भी शायद आदि की वजह से दुख पहुचा था….काफ़ी देर तक बिस्तर मे लेट कर वो रोती रही
श्री (मन मे)—मैने तुम्हे क्या समझा था आदि…..तुमने ऐसा क्यो किया….? मैं तुम्हारे लिए तुम्हारा अड्रेस ना मालूम होने के बावजूद इंडिया से यहाँ तक चली आई, केवल तुम्हारा प्यार पाने….लेकिन तुम मेरे उस प्यार के काबिल नही निकले….मुझे तभी समझ जाना चाहिए था जब मैने
तुम्हे इंडिया के होटेल मे मारग्रेट और सोना के साथ बिना कपड़ो के सोते हुए रंगे हाथ पकड़ा था….मेरी मति मारी गयी थी जो मैने फिर भी तुझे प्यार किया…तेरी सलामती के लिए भगवान से विनती करती रही…..मेरा दिल तोड़ कर तुझे क्या मिला,आदि…..?
ऐसे ही रोते रोते श्री सोचती रही और फिर सो गयी….शाम मे नीद खुली तो उसे उर्मिला की चिंता हुई…तुरंत बिस्तर से उठ कर उर्मिला का डोर नॉक करने लगी
श्री (नॉक करते)—मौसी, दरवाजा खोलो
मगर कोई आवाज़ नही आई…श्री ने बहुत बार नॉक किया, आवाज़ लगाई किंतु अंदर से उर्मिला की कोई प्रति क्रिया नही होते देख कर वो बेहद घबरा गयी
उसने तुरंत अपने मौसा आनंद को ऑफीस कॉल लगाया साथ मे संजय को भी जो कि आनंद के ही साथ घूमने गया हुआ था…श्री का कॉल देख कर ना चाहते हुए भी आनंद ने कॉल पिक कर लिया…लेकिन श्री की आवाज़ मे घबराहट महसूस करते ही तुरंत सीरीयस हो गया
आनंद—हेलो
श्री –मौसा जी…वो मौसी दरवाजा नही खोल रही हैं
आनंद—क्यो….?
श्री—पता नही…सुबह से अंदर ही हैं…कोई आवाज़ भी नही आ रही उनकी
आनंद—ठीक है, मैं अभी पहुचता हूँ
आनंद और संजय जल्दी ही ऑफीस से निकल गये…इधर श्री लगातार डोर नॉक करती रही….आख़िर बड़ी देर बाद उर्मिला ने डोर ओपन किया
उसकी आँखे पूरी लाल और सूजी हुई दिख रही थी….लगता है शायद वो सुबह से रोती ही रही हैं…उन्हे देखते ही श्री लिपट गयी
श्री—क्या मौसी मैं कब से नॉक कर रही हूँ….? आपने आज कुछ खाया भी नही है सुबह से…..और ये आपने अपनी क्या हालत बना ली है….?
उर्मिला (उदास )—मैं ठीक हूँ
श्री—चलिए मैं खाना लगाती हूँ….पहले खाना खाओ आप बाद मे बात करना
उर्मिला—आदि ने खा लिया…..?
श्री—आदि....... ?
अचानक श्री को याद आया कि आदि तो उसके बाद घर ही नही आया....अब उसको भी चिंता हुई की कहीं सच मे तो कहीं ना चला गया घर
छोड़ कर.... ?
उर्मिला—तुमने बताया नही.... ? आदि ने खाना खा लिया....... ?
श्री (हिच किचाते हुए)—मौसी.....वो....वो...आदि तो तब से घर...ही...नही...आया...है
उर्मिला (परेशान)—क्याआ..... ? कहाँ गया होगा... ? ये लड़का भी ना....सुबह से कुछ खाया भी नही है वो
श्री—आप चिंता मत करो मौसी.....वो भूखा नही होगा...किसी होटेल मे खा चुका होगा वो और वही किसी होटेल मे रुका भी होगा अयाशी करते
उर्मिला—कैसे चिंता ना करू... ? माँ हूँ उसकी.....जब तू माँ बनेगी तब समझेगी ये बात..
श्री—आप चलो खाओ....वो खा लिया होगा
उर्मिला—मैं कैसे खा लूँ….? वो कुछ भी नही खाया है मैं जानती हूँ
श्री—पूरा दिन थोड़ी भूखा रहेगा वो मौसी
उर्मिला—वो मेरा बेटा है, मैं उसे अच्छे से जानती हूँ….कि आज वो बहुत दुखी है….मैने कभी उसे ज़ोर से डांटा तक नही और आज ……(रोने लगती है) …और…आज…मैने…उसे..इतनी ज़ोर…ज़ोर…से…मारा……वो मुझसे….नाराज़..हो गया है……वो नही…खाएगा…श्री…मैं जानती हूँ आदि को………जब तक मैं….खुद…अपने…हाथो …से…नही खिलाउंगी वो नही खाएगा……चाहे जितने दिन…भूखा रह
ले……पता….नही…..कहाँ….भटक…रहा…होगा…मेरा….बच्चाा
श्री (मन मे)—अगर आपने काम बहुत पहले किया होता तो आज ये दिन ही नही आता, मौसी
तभी आनंद की गाड़ी एंटर हुई….वो तुरंत भागते हुए अंदर आया उर्मिला के रूम मे…..उसे डोर खुला देख राहत हुई लेकिन अगले ही पल
उर्मिला को रोते देख फिर परेशान हो गया
आनंद—उर्मि…क्या हुआ….? तुम रो क्यो रही हो….?
संजय—हाँ…मौसी क्या हुआ ….?
उर्मिला (आनंद को देख और ज़ोर से रोते हुए)—मेरा…..आदि…मुझे…छोड़ के चला…गया
आनंद (शॉक्ड)—क्याअ आदिइई….? क्या हुआ आदि को….? मुझे बताओ उर्मि…क्या हुआ आदि को….? कहाँ है मेरा आदि…? ऊर्मि बताओ मुझे
उर्मिला (रोते हुए)—मैने आदि को….,,,,आज मैने अपने आदि को….बहुत मारा…और उसे घर से निकाल दिया…..
आनंद (शॉक्ड)—व्हातटत्ट...तुमने मारा..वो भी आदि को.... ? ये कैसे हो सकता है….तुम तो उसकी थोड़ी सी चोट पर ही पागल हो जाती हो….तुम कैसे आदि पर हाथ उठा सकती हो….? मुझे बताओ…पूरी बात बताओ मुझे…
उर्मिला (रोते हुए)—वो आज सुबह…….(उर्मिला ने रोते रोते सब बता दिया जो कुछ हुआ था आज)
आनंद (शॉक्ड)—व्हातत्ततत्ट….? इंपॉसिबल…है ये
श्री—मौसा जी,…आदि ने खुद ही आक्सेप्ट किया है सब कुछ
आनंद (चिल्लाते हुए)—झूठ है सब…….अलीज़ा के फादर आल्बर्ट के साथ तो मेरी मीटिंग थी आज…उन्होने मुझे बताया था कि आदि आज सुबह उनके साथ उनके घर मे ही था…उन्होने खुद आदि को मिलने बुलाया था अपने घर
उर्मिला (रोते हुए)—मेरे आदि को ढूंड के ले आओ…..वो नही आएगा…..
श्री—वो कल तक आ जाएगा मौसी
उर्मिला (रोते हुए)—वो नही आएगा, श्री….मैने उसे अपनी कसम दी है…..तू नही जानती आदि मुझे बहुत चाहता है……वो मर जाएगा लेकिन मेरी कसम टूटने नही देगा…..वो मुझसे आँख मिला के कभी झूठ नही बोलता, श्री
श्री—वो तो मैने आज देख लिया मौसी…..लेकिन आदि को घर छोड़ के नही जाना था
आनंद (मन मे)—ये सब इन दोनो मनहूस के आने से हुआ है….इसलिए ही मैने आज तक आदि को अजीत और मेघा के परिवार से दूर रखा था, लेकिन ये मनहूस यहाँ भी आ गये…मेरे आदि को मुझसे छीनने….मैं जानता हूँ..आदि ऐसा कभी नही कर सकता……मैं भी असली बात का पता लगा कर रहूँगा अब
उर्मिला (रोते हुए)—आनंद प्ल्स…जाओ…मेरे आदि को लेकर आओ…जाओ…मेरा बच्चा आज तकलीफ़ मे है
श्री भी अब परेशान हो गयी थी आदि को लेकर…..बाहर से मजबूत दिखने की कोशिश तो कर रही थी लेकिन उर्मिला और आनंद की बाते
सुन कर उसे भी अब किसी अनहोनी के होने का डर मन ही मान सताने लगा था
उसने पूजा वाले रूम मे जाकर संध्या वंदन के लिए दीपक जलाने लगी लेकिन वो बुझ गया…उसने कयि बार जलाया किंतु हर बार वो जलते
ही बुझ गया…अब श्री के दिल मे किसी अनहोनी का डर और भी गहरा हो गया
श्री (मन मे)—ये दीपक क्यो नही जल रहा है…? खिड़की, दरवाजे तो सब बंद हैं,हवा भी नही आ रही..फिर भी बुझ जा रहा है……हे भगवान आदि की रक्षा करना…..कही वो कुछ कर ना बैठे…?
वही दूसरी तरफ मुनीश ने गुरुदेव अष्टवक्र को याद किया …तो वो उसके सामने आ गये…मुनीश ने उन्हे प्रणाम किया
अष्टवक्र—कल्याण हो वत्स
मुनीश—गुरुदेव….आदि फिर से अपने मार्ग से भटक गया है, वो मेरी बतो को नकारात्मक नज़रिए से देखता और सोचता है, फिर करता भी वैसा ही है
अष्टवक्र—नही वत्स,…पहली बार वो अपनी पहचान तलाशने निकला है
मुनीश—मगर जिस मार्ग मे वो जा रहा है…वहाँ से उसको अपनी पहचान कैसे मिलेगी गुरुदेव…? उसने योग की बजाय भोग का रास्ता अपना लिया है
अष्टवक्र—वत्स उसको जाकर मेरा ये संदेश दे दो
कह दो उससे जो आया है वो जाएगा
फिर फिर जीवन पाएगा,
तेरे तन के ढाँचे पर
अमरत्व प्राप्त बैठी एक चिड़िया डाल हिलाते उड़ जाएगी
छोड़ सुनहरे आमो की बगिया,
फिर जो लौट के आएगी
विलग रूप ढंग पाएगी
अपनो को ना पहचानेगी
होश गवाँ के आएगी,
नर मे नर्क, नर्क मे नर हैं
तर मे तर्क, तर्क मे तर हैं
सुख मे स्वर्ग, स्वर्ग मे सुख हैं
ज्ञान हीन प्राणी मे दुख हैं,
सुख दुख के दो पहलू से
जिसने खुशियो को छीन लिया
सागर की गहराई मे जाकर
उसने मोती बीन लिया,
कर ले कर्म नेक इस जग में
भर ले तिजोरी एश्वर के घर में
मोह माया बस रख इतना
चाहे कोई संत जितना,
ना लेकर आया था कुछ
ना ही कुछ लेकर जाएगा
कल को तेरा अपना ही
तुझ को मिट्टी में दफ़नाएगा,
खड़ी हवेली रुपये पैसे
सौ अकड़ ज़मीन रह जाएगी
बस तेरी लंबाई बराबर
ज़मीन तेरे हिस्से आएगी,
फिर जो लौट के आएगा
विलग रूप ढंग पाएगा
अपनो को ना पहचानेगा
होश गवाँ के आएगा
मुनीश—किंतु इसका मतलब क्या है गुरुदेव….?
अष्टवक्र—मेरा ये संदेश आदि को दे दो…वो सब समझ जाएगा कि उसको क्या करना है…
मुनीश—ठीक है गुरुदेव
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इधर लीज़ा ने मुझे जैसे ही आवाज़ देकर बुलाया तो मैने देखा कि वो टॉप लेस खड़ी है मेरी तरफ पीठ किए हुए..नीचे सिर्फ़ एक पैंटी टाइप
हाफ पॅंट पहने
लीज़ा—गान्ड फॅट रहा है, जल्दी से गांद (गाँठ) मारो, हम को लेट होता हाई
गणपत राई—नही...नही मेम साब....अगर मैने ऐसा किया तो साहब हम को कच्चा खा जाएँगे
लीज़ा—गांद फॅट रहाय, अगर तुमने जल्दी से हमारी गांद नही मारा तो हम तुमको कच्चा खा जाएगा
गणपत राई—ठीक है मेम सब, जो हुकुम...आइए मैं आपकी गांद मार देता हूँ
लीज़ा-गांद फॅट रहाय, जल्दी मारो हमारी गांद, फिर अभी तुमको हम को कॉलेज मे भी ले जाकर चोदना पड़ेगा
लीज़ा की बात सुनते ही मेरा दिमाग़ खराब हो गया…मैने एक झटके मे उसकी पैंटी नीचे खिसका के बेड पर धक्का देकर गिरा दिया….और
आव देखा ना ताव एक ही झटके मे अपना मूसल ठूंस दिया लीज़ा की गान्ड मे
लीज़ा (चिल्लाते हुए)—गंद फॅट ऱहय……गंद फॅट ऱहय….गंद फॅट ऱहय
गणपत राई—मेम साब…गंद मराएगा तो गंद फटेगा ही
लीज़ा (चिल्लाते रोते हुए)—गंद फॅट ऱहय…तुम हम को चोदो….डेडडीईयैआइ प्ल्स सेव मी
गणपत राई—चोद तो रहा हूँ, मेम साब….डॅडी को क्यो बुला रही हो
लीज़ा (चिल्लाते हुए)—गंद फॅट ऱहय….हम को चोद दो…..ओह्ह्ह्ह…डेडड्ड
गणपत राई—चोद रहा हूँ मेम साब….बस आज भर गंद फटेगा…कल से साइज़ का हो जाएगा
तभी वहाँ उसका डॅड स्मिथ आ गया….और गणपत को अपनी बेटी के साथ सेक्स करते देख चिल्लाने लगा ज़ोर ज़ोर से
स्मिथ (ज़ोर से)—ये गंद फॅट ऱहय…लीज़ा को चोद दो
गणपत राई—आप चिंता मत करो साब….मैं लीज़ा मेम साब. को तरीके से चोद दूँगा
स्मिथ—आइ विल किल यू…
स्मिथ गुस्से मे अपनी आर्मी गन ले आया और एक फाइयर कर दिया लेकिन गणपत बच गया….लीज़ा अब तक बेहोश हो चुकी थी…..उसकी गान्ड से खून बह रहा था…..स्मिथ के हाथ मे गन देख गणपत ने उसके पेट मे एक लात मार कर बाहर भागा…स्मिथ भी बंदूक लिए उसका पीछा करने लगा
गणपत राई (मन मे)—कैसा आदमी है….पहले तो खुद चोदने को बोलता है और फिर गोली मारता है
लेकिन गणपत वहाँ से तेज़ी से भाग कर बाहर निकल गया….और भागता ही रहा….कि तभी वहाँ मुनीश आ गया…उसको देखते ही मेरा गुस्सा और बढ़ गया
मुनीश—कहाँ भाग रहे हो दोस्त
आदि—आ जा आज तेरी भी मार देता हूँ
मुनीश—चल भाग ले बेटा…ये तो भोग मे पागल हो गया है…..आदि ये ले इसमे तेरे लिए गुरुदेव का संदेश लिखा है, पढ़ लेना
आदि जैसे ही मुनीश को पकड़ने दौड़ा वो तुरंत गायब होके भाग गया…..उसके भागते ही एक पेड़ के नीचे बैठ गया और गुरुदेव का पत्र मे लिखा संदेश पढ़ने लगा ….कुछ देर सोचने के बाद ख़तरा को बुलाया
आदि—ख़तरा..अब कैसी तबीयत है उस लड़की की….?
ख़तरा—कल उसका ऑपरेशन हो जाएगा
आदि—ठीक है….उसके बाद तुम आज़ाद हो ख़तरा…अपने जिन्न लोक चले जाना…अपनी जिंदगी गुज़ारना
ख़तरा—नही मालिक…मैं आपको नही छोड़ूँगा
आदि—तुम मेरे गुलाम नही हो ख़तरा.....मैं किसी को अपना गुलाम नही बनाता.....बीच बीच मे अगर हो सके तो मेरी माँ का ध्यान देते
रहना…..वो मुझे बहुत चाहती है….मैं जानता हूँ उन्होने खाना भी नही खाया होगा आज तुम उन्हे किसी भी तरह से खिला देना
ख़तरा—आप ऐसी बाते क्यो करते हैं मालिक
आदि—पता नही....तुम्हे जो कहा है उतना कर लेना....ये मेरी तुमसे विनती है
ख़तरा—ऐसा ना कहे मालिक
आदि—ठीक है अब तुम जाओ...यहाँ से..उस लड़की का ध्यान रखना
ख़तरा—जी मालिक
आदि (मन मे)—अब मैं कहाँ जाउ... ? घर तो जा नही सकता...मम्मी ने अपनी कसम दी है...यहाँ रहने से सब कभी ना कभी ढूँढ ही लेंगे
मुझे....फिर से वही फालतू की कीच पिच चालू हो जाएगी....ये काम करता हूँ... इंडिया चला जाता हूँ...यही सही रहेगा
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वही दूसरी जगह पर कुछ लोग बैठ कर बाते कर रहे हैं आपस मे......ऐसा लगता है किसी गंभीर विषय पर चर्चा चल रही है
‘’मालिक वो आ रहा है.....आप कहो तो मैं उसे ख़तम करवा दूं’’ उनमे से एक शख्स ने कहा
‘’हाहहहहाहा….आने दो..उसे….उसका ही तो मैं कब से इंतज़ार कर रहा हूँ…..मेरे सीने मे जो आग सदियो से जल रही है, अब जाके
उसकी मौत से ही ठंडी होगी….अब मेरा इंतकाम पूरा होगा…हाहहाहा…’’
मैं अदृश्य होकर इंडिया आ गया…हालाँकि यहाँ अभी दिन का समय था….मैने हिमालय मे जाकर तपस्या करने की सोची और हिमालय के जंगल मे पहुच गया
बारिश के कारण गंगा नदी पूरे उफान पर चल रही थी….मैने वही गंगोत्री के किनारे ध्यान लगाने की सोचने लगा….लेकिन लगातार हो रही बारिश से ध्यान तो नही लगा मगर ठंडी ज़रूर लगने लगी थी
उपर से भूख अलग लगी थी….मैने भीगते हुए वहाँ पर कुछ फल वाले पेड़ ढूँढने लगा…लेकिन वो भी ऐसे मौसम मे मुश्किल ही था
यहाँ गंगा नदी की बहुत गहरी खाई है….मगर बाढ़ के कारण पता नही चल रहा था….मैं अभी एक पेड़ मे लगे कुछ फल देख ही रहा था कि तभी किसी ने मेरे सिर मे ज़ोर से किसी धारदार हथियार से वार किया
मैने दोनो हाथो से अपने सर को पकड़ कर पीछे पलटा ही था कि इस बार किसी ने पेट मे तलवार घुसा दी….मैं अपना बॅलेन्स नही बना पाया और पीछे की तरफ झुक कर फुल उफान पर चल रही गंगा मे जा गिरा
‘’आदिइईईईईईईईईई......नहियीईईई’’ चिल्लाते हुए कुछ लोगो की नीद टूट गयी
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