RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
सारे दिन बडबड करने वाली कोमल भी आज अपने मुंह से एक शब्द न बोल सकी थी. और वो राज? राज को तो जैसे सांप सूंघ गया था. हद तो ये थी कि दोनों एक दूसरे से नजरें तक न मिला पा रहे थे. बस चोरी चोरी एक दूसरे को देखते थे. कभी एक तो कभी दोनों.
कोमल चाहती थी कि पहले राज बोले और राज चाहता था कि पहले कोमल बोले. लेकिन दोनों के दिमाग में ये बात न आ रही थी कि बोले तो बोले क्या? घर से तो राज भी न जाने क्या क्या सोच के निकला था कि आज ये बोलूँगा आज वो बोलूँगा. और ये चंचल मतवाली कोमल ये तो हवा में उडती आई थी. रास्ते भर सोचती आ रही थी कि आज राज बोला तो ठीक नही तो वो खुद बोल देगी कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है.
लेकिन अब क्या हुआ? अब तो दोनों के दोनों चुप खड़े थे. दोनों की हिम्मत जबाब दिए जा रही थी. दोनों के हाथ पैर कांप रहे थे. दोनों की हथेलियाँ पसीज रही थी. दोनों ही अपने होंठ चबा रहे. कुछ कहने की जद्दोजहद का महान नमूना पेश हो रहा था.
ये हो क्या रहा था? दोनों को ऐसे ही खड़े थे. कीमती समय बर्बाद हुआ जा रहा था. इसकी दोनों को चिंता भी थी. कोमल के स्कूल का टाइम भी लेट हो रहा था लेकिन उसे जरा भी परवाह नही थी. उसे तो परवाह थी राज के बोलने की. उससे कुछ कहने की.
लेकिन बिल्ली के गले में पहले घंटी कौन बांधे? कोमल लाज के मारे जमीन में नजरें गढाए खड़ी थी और वो बातूल राज? वो तो कोमल से भी ज्यादा शरमा रहा था. किन्तु अब कोमल को ज्यादा देर चुप रहना अच्छा न लग रहा था तो वो खुद ही बोल पड़ी, “ऐ दूधिया(राज). तुम रोज हमारे पीछे क्यों लगे रहते हो? किसी दिन देवी ने पापा से तुम्हारी शिकायत कर दी तो?"
ये बात कहने में कोमल ने अपना पूरा जोर लगा दिया था. दिल की धडकनें तो किसी इंजिन की तरह चल रही थी. वो तो राज का नाम तक न ले सकी थी. इसीलिए तो उसे दूधिया कहकर सम्बोधित किया था.
लेकिन राज को कोमल के मुंह से अपने नाम की जगह दूधिया सुनना भी उतना ही अच्छा लगा जितना कि वो राज को नाम से उसे पुकारती. राज ने जब कोमल का ये सवाल सुना तो उसकी की हिम्मत बढ़ गयी. अपने दिल की धडकनों को थामते हुए लजाकर बोला, “देवी ही शिकायत करेगी तुम न करोगी?"
कोमल हडवडा गयी. बोली, “हाँ हाँ में भी करूंगी." लेकिन कोमल के मन में राज की शिकायत का तो खयाल तक नहीं था. ये बात तो राज भी जानता था और कोमल भी.
राज जानबूझकर अंजान बन कोमल से बोला, "ठीक है तो कल से में यहाँ न आया करूंगा और तुम कहोगी तो तुमसे बात भी न किया करूँगा.” राज ने ये बात कोमल का मन जाने के लिए बोली थी और हुआ भी वही.
कोमल तडप कर बोली, "नही नही. मेरा वो मतलब नही था. अगर तुम कोई गलत बात न करोगे तो तुम्हारी शिकायत न करूंगी. तुम साथ साथ जाते हो तो रास्ता बड़े आराम से गुजर जाता है." कोमल एक सांस में बोल गयी. लेकिन हाय रे दैय्या! ये क्या कह गयी? जो नही कहना था वही कह गयी. वाह री राज की दीवानी कोमल!
राज अब खुलने लगा था. उसे कोमल की बातों से थोडा सहारा मिला था. बोला, “तो तुम्हे अच्छा लगता है...ये जो में..तुम्हारे साथ आता जाता हूँ.” राज बात कहने में हिचक रहा था लेकिन दिल अपनी हमदम के इश्क में घुलता जा रहा था. जैसे रवडी में चीनी. जैसे रसगुल्ला में चासनी .जैसे दही में वडा और जैसे कड़ी में पकोड़ा.
कोमल ने शरमा कर चेहरा ऊपर उठाया. राज पहले से ही उसकी तरफ देख रहा था. दोनों की नजरें मिली. राज दूधिया की सादा आँखे कोमल की काली समंदरी कजरारी आँखों से जा लगी. राज तृप्ति पा उठा. उसे लगा कि आज उसने जीवन की सबसे खूबसूरत चीज को देख लिया हो. जैसे किसी गहरी प्यास में पानी मिल गया हो.
राज को उसकी बात का जबाब मिल चुका था. कोमल की नजरों ने राज को ये बता दिया था कि उसका रोजाना कोमल के साथ आना जाना अच्छा लगता है. बतलाना भी अच्छा लगता है. प्रेम कहानी आगे बढ़ने लगी थी. दोनों धीरे धीरे एकदूसरे को समझते जा रहे थे.
लेकिन अब क्या बात की जाय? तभी राज को सूझा कि कोमल आज स्कूल जायेगी कि नही? उसे बात करने का मुद्दा मिल गया था. बोला, “आज तुम स्कूल नही जाओगी?" राज का मन होता था कि कोमल को बोल दे कि तुम आज स्कूल न जाओ. यही मेरी नजरों के सामने बैठी रहो. में तुम्हे तुम्हे देखता रहूँ और तुम मुझे देखती रहो.
कोमल सोचती हुई बोली, “आज लेट हो गयी हूँ. मन नही करता स्कूल जाने का, अब लौट कर घर को भी नहीं जा सकती, घर के लोग पूंछेगे की पढने क्यों नही गयी आज?" कोमल स्कूल के लिए ज्यादा लेट नही हुई थी लेकिन उसका मन राज से अलग होने को नहीं करता था इसीलिए उसने ये बात बोली. सोचती थी ये राज क्या कहेगा?
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