RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
कोमल ने स्कूल न जाने की बात कह जैसे राज के मुंह की बात छीन ली थी. वह हिम्मत कर बोला, "हां तो क्यों जाती घर लौट कर? जब तक स्कूल की छुट्टी का समय नहीं होता तब तक यहीं रुक जाओ, में यहाँ तुम्हारे साथ बैठा रहूँगा."
कोमल राज के मन की बात जान चुकी थी लेकिन वो और ज्यादा राज से बात करना चाहती थी. वो अपने दिल के दिलवर को और ज्यादा पहचानना चाहती थी इसलिए बोली, “यहाँ तुम्हारे साथ मुझे किसी ने देख लिया तो न जाने लोग क्या क्या बात सोचेंगे? और मेरे घर ये बात पहुंची तो मेरी खैर नही.
राज ने जब अपनी कोमल के मुंह से उसका डर जाना सुना तो तडप उठा. वो कैसे अपनी जान को मुसीबत में देख सकता था? बोला, “अगर तुम बुरा न मानो तो मेरे पास एक जगह है जहाँ कोई आता जाता ही नही. अगर तुम चाहो तो छुट्टी होने के समय तक वहां...बैठ सकती हो?"
राज ये बात कहने में इतना सकुचा रहा था. जैसे कोई बुरी बात कह रहा हो? जैसे कोमल कहीं बुरा न मान जाए. कोमल को ये बात अच्छी तो लगी परन्तु कुछ बोली नही. उसने अपना किताबों का बस्ता (बैग) उठा आगे को बढ़ना शुरू कर दिया. राज समझ गया कि कोमल उसके साथ चलने को तैयार है.
लेकिन राज आगे न बढ़ पाया. वो तो उस चंचल कोमल को देख रहा था जिसकी चाल किसी नवयौवना हिरनी की तरह थी. कोमल की ये शोख अदाएं ही तो राज के दिल को लूट बैठी थी. कोमल ने महसूस किया कि राज उसके पीछे नही आ रहा है. उसने मुड कर देखा.
राज खड़ा खड़ा उसे एकटक देखे जा रहा था. मुंह पर हल्की मुस्कान थी जो लज्जा की चिकनाई से युक्त थी लेकिन कोमल को ये शरारत लगी. ऐसी शरारत जो मीठी मीठी चुभन देती है.जो चिढाती तो है लेकिन प्यार से.
कोमल उसी प्यार से चिढती हुई बोली, “तुम नही आओगे? न आओ तो मुझे वो जगह बता दो में अकेली ही चली जाउंगी.” कोमल ने अकेले जाने की बात राज का धैर्य परखने के लिए कही थी और हुआ भी वही.
राज का धैर्य जबाब दे गया. वो हड्वड़ा कर बोला, "हाँ हाँ चलता हूँ." और अपनी साईकिल को उठा कोमल के पीछे चल दिया.
कोमल राज की इस हड्वड़ा पर मुस्कुरा उठी. ये चंचल लडकी उस शरमाये हुए आशिक को छेड़ने का पूरा आनंद उठा रही थी. कोमल बलखाती हुई आगे आगे चल रही थी और राज साईकिल लिए कोमल के पीछे पीछे. राज अपनी नजरों को कोमल के रूप से मुक्त न कर पा रहा था. कभी कभी तो कोमल की तरफ देखने के कारण उसकी साईकिल गिरने को होती थी लेकिन वो आशिक ही क्या जो दर्द और कष्ट न सहे? जो मुश्किल न झेले. जो जमाने की फटकर न खाए. जो दो चार दिन भूखा न रहे. जो घर वालों से लात घूसों से न पिटे और जो पागलों की तरह दुःख भरे नग्मे न सुने. ये सोच थी आशिक दूधिया राज की. वाह रे राज!
फिर कोमल को ध्यान आया कि वो बिना राज के रास्ता बताये जा कहाँ रही है? उसे तो पता ही नहीं था कि राज कौन सी जगह की कह रहा था? और राज! राज को तो सुध ही नही थी कि वो कोमल के साथ कौन सी जगह जा रहा था? न ये फिकर कि वो रास्ता यही है जिसपे वो कोमल को ले जाना चाहता था? आखिर ये हो क्या रहा था?
कोमल फिर रुकी गयी. मुड़कर राज की तरफ देखा. वो पगला दूधिया राज तो पहले से ही उसको देख रहा था. कोमल के एकदम मुडकर देखने पर हड्वड़ा गया. कोमल अब राज के सामने पहले से अधिक खुल गयी थी. तीखी नजरें और होठों पर मुस्कान लिए बोली, “अब कितनी दूर और जाना है?"
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