RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
कोमल तडपकर बोली, “भला कौन मुआं जाना चाहता है? मेरा दिल तो करता है कि दिन रात तुम्हारी आँखों के सामने बैठी तुम्हे निहारती रहूँ. तुम्हारी बाहों में अपने आप को समेटे रहूँ लेकिन आज जाउंगी तभी तो फिर आउंगी. जालिम में नहीं जालिम तो समय है जो आज ऐसे भाग रहा है कि जैसे हमसे इसकी कोई दुश्मनी हो. तुम नाराज ना होओ राज. में तुम्हारी थी तुम्हारी रहूँगी. मुझे तुमसे अलग कोई नही कर सकता? न ये समय. न ये घर वाले."
राज को अपनी राधा कोमल के मुख से प्यार भरे शब्द ऐसे लगे जैसे प्यासे को पानी. बो कोमल की प्यार भरी नर्म बातों में ऐसे घुल गया जैसे नमक में पानी और दिल को हाथों से थाम बोला, "मुझे माफ़ करना कोमल. मैने तो तुम्हारे जाने की वजह से ऐसा कह दिया, तुम्हारा जाना मुझे उदास किये जा रहा है. पता नही कल तक का समय जब तुम फिर से स्कूल आओगी कैसे कटेगा? ये कमबख्त रात कैसे कटेगी? जब अभी यह हालत है तो रात कैसी होगी? ऐसा लगता कि तुम्हारे विना में मर ही न जा...."
कोमल की आँखे भर आयीं. ____ राज का मुंह अपने कोमल हाथ से बंद कर रोते हुए बोली, “मैं कहे देती हूँ राज हमारे सामने मरने मारने की बातें न करना. तुम्हें हमारी कसम. तुम हमे अपना मानते हो तो आइंदा ऐसी बात न कहना. तुम्हारी ऐसी बातों से हमारी जान निकल जाती है. कभी सोचा है तुम न रहे तो हमारा क्या होगा? हम तो जीते जी मर जायेगे."
कोमल कुछ और कहती उससे पहले राज का प्रायश्चित भरा स्वर उभरा. बोला, “बस कोमल बस आगे कुछ न कहो. आज के बाद हम ध्यान रखूगा की तुम्हारे सामने ऐसी कोई बात न कहूँ और कह भी दूतो तुम मुझे अपना अपराधी मान क्षमा कर देना."
इतना कह राज कोमल से फिर से लिपट गया. कोमल भी उससे किसी बेल की तरह लिपट गयी. दोनों फिर हिल्की भर भर कर रोये. आंसूओं की नदियाँ दोनों की आँखों से उफान ले रहीं थी. दोनों का भावुक मिलन बहती हवा को सर्द कर गया. सावन के महीने को सर्दी का एह्साह करा गया. आम का पवित्र पेड़ भी शायद भावुक हो गया था. पक्षियों के स्वरों में भी नमी आ गयी जो पेड़ों पर बैठे चहचहा रहे थे. ये मिलन का बिछोड़ा होता ही ऐसा था लेकिन कहा जाता है की मिलन के बाद बिछोड़ा और बिछोड़े के बाद मिलन होता ही होता है. ये बात वो पागल दिल कैसे समझे क्योंकि दिल के दिमाग तो नही होता न.
लेकिन समय का ध्यान कर कोमल ने राज को अपने से अलग किया और बोली, “मुझे अब जाना चाहिए नही तो घर में माँ पापा आफत खड़ी कर देंगे. चलो तुम भी घर पहुँचो तुम्हारे घर वाले भी तुम्हारी राह देख रहे होंगे. और अपना ध्यान रखा करो इतनी भी लापरवाही ठीक नही होती. तुम अकेले नही हो. किसी और को भी तुम्हारी जरूरत है."
राज कोमल की प्यार भरी फिकर की बात सुन कहीं खो सा गया. सच ही तो कहती थी कोमल. अब राज के साथ कोमल को भी तो उसकी जरूरत थी. अब वो उसकी जन्म जन्म की साथी थी. फिर राज की फिकर करना तो उसका हक था. राज के बारे में वो न सोचेगी तो कौन सोचेगा? राज का होश इस सोच में कहीं गुम था.
राज होश में आता हुआ बोला, “चलो तुम्हे साईकिल से तुम्हारे गाँव तक छोड़ आता हूँ."
कोमल बोली, “नही नही. किसी ने देख लिया तो मेरी मुश्किल और बढ़ जायेगी? तुम रहने दो में चली जाउंगी."
राज समझाते हुए बोला, “कैसी बातें करती हो? मुझे तो चैन नहीं पड़ेगा अगर तुम अकेली पैदल जाओगी तो. ऐसा करता हूँ तुम्हे ये रास्ता पार कर तुम्हारे गाँव की शुरुआत तक छोड़ आता हूँ फिर तुम वहां से अकेली चली जाना."
कोमल को ये विचार बुरा न लगा. उसका भी दिल कर रहा था कि राज उसे छोड़ने जाए. इस बहाने से थोड़ी देर और दोनों साथ साथ रह सकेंगे. बोली, “ठीक है पर जल्दी चलो कहीं देर न हो जाए."
राज कोमल की चिंता को समझ रहा था. उसने झटपट से साईकिल उस तरफ घुमा दी जिधर कोमल का गाँव था. जिधर वो रोज़ भैंस का दूध लेने जाता था. जिधर के गाँव की लडकी कोमल से उसे इश्क हो गया था.
राज ने साईकिल रास्ते पर की फिर कोमल को बिठाया और साईकिल को हवा से बातें करवा दीं. आज उसके बदन में अकूत ताकत आ गयी थी. आज उसकी महवूवा कोमल उसके साथ उसकी साईकिल पर बैठी थी. जिसके सामने अपनी साईकिल चलाने की प्रतिभा का प्रदर्शन दिखाना उसे ताकत दिए जा रहा था.
राज साईकिल चला रहा था. कोमल पीछे की सीट पर बैठी थी. कोमल ने पीछे से राज की कमर को अपने हाथ से पकड़ रखा था. राज को कोमल की ऐसी पकड़न से ऐसा महसूस होता था मानो कोमल उसकी बीबी हो और वो उसे उसके मायके छोड़ने जा रहा हो. या कहीं मेला दिखाने ले जा रहा हो. या फिर सिनेमा में लगी कोई फिल्म दिखाने!
राज को कोमल का एक एक स्पर्श हर बार एक नई अनुभूति दे रहा था. जैसे चीनी उबले पानी में पड़े तो चाय और ठंडे में पड़े तो शरवत बना देती है इसी प्रकार कोमल की हरेक छुअन राज को एक नया रूप देती थी. राज इस मिलने वाली तरुणाई का बखूबी
आनंद ले रहा था.
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