RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
आज रास्ता पता ही नहीं चला. कोमल के गाँव की शुरूआती सडक आ पहुंची. राज ने साईकिल के ब्रेक लगा दिए. कोमल साईकिल से उतरी. राज ने साईकिल को खड़ा किया. कोमल जाने लगी लेकिन उसने देखा कि राज की आँखों में उसके लिए कुछ निवेदन है जिसे कोमल ही समझ सकती थी. वो फिर से मुड़ी और आकर राज से ऐसे लिपट गयी. जैसे चन्दन के पेड़ से सांप. जैसे नीम के पेड़ से गिलोय. जैसे भूसे की बुर्जी से लौकी तोरई की बेल.
दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में कस लिया. ऐसे जैसे कि फिर न मिलेंगे. ये उनके मन का मिलन था जो संकेत दे रहा था कि अब दोनों बिछड़ने वाले हैं. किसी के रास्ते पर आने की आशंका से दोनों अलग हो गये. भीगी आँखों से कोमल अपने गाँव की तरफ चल दी. राज वहीं खड़ा उसे देख रहा था. उसका दिल उस जाती हुई कोमल को देख फटने को होता था लेकिन कल फिर मिलने की तमन्ना उसे फटने से रोक रही थी.
किसी अपने को जाते हुए देखना बहुत दुखद होता है और वो अगर अपना दिल से अपना हो तो दर्द थोडा ज्यादा होता है. आते हुए जितनी खुशी होती है जाते हुए उससे कहीं ज्यादा दुःख होता है. ये हमेशा से होता था. आज भी हो रहा था और आगे भी होता रहेगा लेकिन दुःख और सुख का ये संगम कभी नही थमेगा.
कोमल मुड मुड कर राज को देख रही थी. राज भीगी आँखों से उसे जाते हुए देख रहा था. फिर दोनों एक दूसरे की आँखों से ओझल हो गये. जैसे सुबह होने पर चाँद और तारे और रात होने पर सूरज, दोनों उदास मन ले अपने अपने घर चल दिए जो आज पहली बार उन्हें नीरस लगने बाला था.
कोमल की आँखे अभी तक भीगी हुई थी लेकिन गाँव की शुरुआत में इमली के पेड़ से पहले छोटू मिल गया. कोमल का मन उसे देख थोडा हल्का हुआ. उसे देख बोली, “अरे आज तो साथ साथ छुट्टी हुई हमारी तुम्हारी?” छोटू बोला, “मेरी तो उसी टाइम पर हुई लेकिन तुम आज लेट हो गयीं."
कोमल हड्वड़ा कर बोली, “क्या सच में में लेट हो गयी?"
छोटू उसे समझाता हुआ बोला, "इतना भी नही, बस कोई पन्द्रह बीस मिनट मुश्किल से.
कोमल उससे बोली, “चलो फिर तो जल्दी घर पहुंचें." छोटू ने स्वीक्रति में सर हिला दिया और कोमल की चाल से चाल मिला चल पड़ा.
गाँव में घुसते ही कोमल की माँ कंडे(उपले) थापती मिल गयी. कोमल को देख बोली, “आज लेट कैसे हो गयी री छबिलिया? तेरे पापा गुस्सा हो रहे थे."
कोमल हड्वड़ा कर बोली, "अरे मम्मी स्कूल से तो में कब की आ गयी. इस छोटू की बातों में लेट हो गयी. येन जाने कहाँ कहाँ की बातें सुनाता रहा."
छोटू कुछ कहने वाला था कि कोमल ने उसकी तरफ देख अपनी काली कजरारी आँखे मिचमिचा दी. छोटू चुप हो गया. उसे पता था कि कोमल झूट बोल रही है लेकिन बच्चों में एकदूसरे को बचाने का बड़ा शौक होता है और वही आज छोटू ने किया.
कोमल की माँ बोली, “चल ठीक है. अब घर पहुंच जल्दी." कोमल घर चल दी.
छोटू ने थोडा आगे आकर कोमल से पूछा, "तुमने झूट क्यों बोला कि मेरी वजह से लेट हुईं थी?"
कोमल छोटू को मक्खन लगाती हुई बोली, "छोटू किसी से कहना मत कि मैंने झूट बोला. तुझे इस बार ज्यादा इमली खिलाऊँगी. लेट तो में स्कूल से आते में हो गयी थी. अब मम्मी को बताती तो वो मुझपर चिल्लाती.तू ये मत पूछना कि क्यों लेट हो गयी थी? ये बात में तुझे फिर कभी बताऊंगी."
छोटू कोमल की बात पर हाँ हाँ करता रहा. फिर दोनों अपने अपने घर को चले गये, कोमल से ज्यादा किसी ने कुछ कहा नही
लेकिन कोमल को घर में रहना बहुत नीरस लग रहा था. उसका मन तो फिर उसी रास्ते पर जाने को करता था जहाँ रोज राज उसका इन्तजार करता था. उसका मन तो उस जगह जाने को कर रहा था जहाँ आज पूरा दिन बिताया था. आज के जैसी उदासी. ये नीरसता, इतनी उबासी कोमल ने आज तक नहीं देखी थी.
ये वैसा ही गम था. वैसी ही नीरसता थी. जैसे वन में किसी हिरनी का साथी कहीं चला जाय. फिर उस हिरनी को हरी से हरी घास. मीठा से मीठा पानी. मधुर से मधुर फल अच्छा नहीं लगता. वो अपनी साथी हिरन के वियोग में दिन रात भूखी प्यासी रहकर काटती सोचती है जब वो आएगा तो मिलकर खायेगें और कभी कभी तो इस वियोग में उस हिरनी के प्राण तक चले जाते हैं लेकिन वो हूक नही जाती जो उसे अपने साथी के बिछुड़ने से मिली थी. ये जो इश्क की इबादत है वो इन्सान हो या जानवर सबको बराबर तपाती है. तभी उसपर अपनी मेहरवानी दिखाती है. जो तप गया सो पार और न तप पाया सो डूब जाता है.
कोमल ने थोडा सा खाना खाया. वो भी माँ और बहन के बार बार कहने पर. कोमल की भूख तो जैसे खत्म ही हो गयी थी. रात हुई तो सभी को दूध दिया जा रहा था. जो गाँव की परम्परा है. कोमल अपने पापा को दूध देकर आयी. थोड़ी देर बाद पापा की कर्कश आवाज आई, "क्यों री छबिलिया. इस दूध में क्या डाला है? क्या चीनी की जगह नमक डाल लायी है?
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