RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
राज की धडकनें कोमल की लज्जा के साथ अधिक तेज हो गयी थी, जिन्हें कोमल बखूबी महसूस कर रही थी. कोमल का दिल भी उसी तरह धडक रहा था जैसे उसके महताब राज का. राज के हाथ कोमल के बदन पर लिपट गये. ऐसे जैसे चन्दन के पेड़ से सांप. कोमल भी कहाँ पीछे रहती उसके हाथ तो कब से किसी के सहारे को तरस रहे थे. मौका मिला तो जा लिपटे राज से.. दोनों आत्माएं किसी अलग दुनियां में घूम रहीं थी. दोनों अपने अपने साथी के अंदर समाने का ख्वाब मन में लिए थे. आम का पवित्र पेड़ इन दोनों के मिलन का हर बार साक्षी बन जाता था. वो आम का पेड़ जहाँ एक प्रेमी जोड़ा कुछ दिन पहले खुद को फांसी लगा मिटा चुका था. थोड़ी देर बाद दोनों ने एक दूसरे के बदन को ढीला छोड़ दिया. राज कोमल को सहारा दे बोला, “आओ थोड़ी देर बैठ लें." दोनों उस बिछायी हुयी चादर पर बैठ गये,
आज कितनी शांति थी माहौल में? आसपास पक्षियों का कलरव राज और कोमल के मन को प्रेमरस से भरे जा रहा था. दोनों का मन करता था कि दोनों सारी फिकर भूल लिपट कर सो जायें. फिर तब जागें जब नींद पूरी हो जाए. कोई जल्दी कोई हडबडाहट न हो. किसी के आने का डर न हो. कहीं जाने की जल्दी न हो.
दोनों का मन ये भी करता था कि काश वो पंक्षी होते! फिर मन में आता वहां उड़ जाते. मन में आता वैसे रहते. इंसानों की तरह पक्षियों के सामाजिक दायरे और नियम कानून नही होते. एक अच्छा सा घोसला बना उसमें रहते. अपने नन्हे नन्हे बच्चों को उस घोसले में जन्म देते. फिर न समाज कुछ कहता और न परिवार. चैन से दाना चुंगते. और चैन से ही मर जाते.
राज और कोमल बैठे एक दूसरे को देख रहे थे. कभी कोमल नजरें चुराती तो कभी राज. ये आँख मिचोली दोनों हमजोलीयों में ठिठोली पैदा कर रही थी. राज ने अचानक कोमल को अपनी तरफ खींच लिया. कोमल शरमा कर फूल सी हो गयी. माहौल में फिर से प्रेम रस की बाढ़ आ गयी. राज को कोमल को छूते हुए लगता था जैसे वो किसी रखड की गुडिया को छू रहा हो.
कोमलता इतनी कि फूल भी शरमा जाए. लज्जा इतनी कि शर्म की देवी देखे तो खुद पर शरमा जाए. लेकिन इस नाजुकता और लज्जा में जो आनंद राज को मिल रहा था वो शायद किसी और तरह से मिलना मुश्किल था. राज ने अपने होठों को कोमल के गुलाबी अंगार हुए होठों पर रख दिया. दोनों की देह में आग लग चुकी थी. जिसे बुझाने की कोशिश दोनों ही किये जा रहे थे.
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
उधर कॉलेज की छुट्टी होने के पहले से लेकर छुट्टी होने तक देवी की आँखे सिर्फ कोमल को ही दूढ़ रहीं थी. छुट्टी होते ही देवी ने अपना और कोमल का बैग उठाया और बाहर निकल सहेलियों से पूछने लगी कि क्या तुम में से किसी ने कोमल को देखा है?
सब की सब मना कर रहीं थी. देवी के दिमाग में सौ तरह के सवाल आ रहे थे लेकिन तभी नटू आकर देवी को एक चिट्ठी दे गया. देवी ने बड़े आश्चर्य से पहले चिट्ठी को देखा फिर उस भागते हुए लड़के को.
देवी ने झट से उस कागज की तहों को खोला. खोलते ही उसके होश उड़ गये, लिखाई बहुत जानी पहचानी यानि कोमल की थी. उसमे लिखा हुआ पढ़कर तो देवी को सदमा सा बैठ गया. मुंह से विना कुछ बोले जल्दी जल्दी घर की तरफ चल दी.
उसे उस चिट्ठी में लिखी बात पर यकीन न हो रहा था. लेकिन कॉलेज में किसी को पता न चले इस वजह से सीधी घर जा रही थी. सोचती थी आज पता नहीं घर की हालत क्या होगी जब लोग वे कोमल की लिखी हुई चिट्ठी पढेंगे.
देवी पैरों में पहिया लगाये भागी जा रही थी. उसे किसी भी तरह जल्दी से जल्दी घर पहुंचना था. कोमल ने जो काण्ड किया था उसकी खबर अपने माँ बाप को देनी थी. कोमल अपने खानदान की पहली लड़की थी जो घर से भाग गयी थी. गाँव में तो कईयों ने कोशिश की लेकिन कोमल की तरह कोई भाग नही पायी थी. गाँव की अगर कोई रिकॉर्ड रखने वाली किताब होती तो उसमे कोमल का नाम स्वर्ण अच्छरों में लिखा जाता.
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
|