RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
कोमल ने लाख हाथ पैर मारे लेकिन एक औसत लडकी दो हट्टे कट्टे आदमियों के हाथ से कैसे निकल पाती. वो दो दिन से कुछ खा भी नही रही थी. घर के मुख्य दरवाजे पर पहुंचते ही कोमल ने तिलक के हाथ से जकड़े मुंह को घरवालों की तरफ घुमाया. उसके पापा भगत सर झुकाए मन मसोस कर बैठे हुए थे. माँ मुंह फेरे खड़ी हुई थी. शायद रो भी रही थी.
उसकी बड़ी बहन देवी की आँखे आंसुओ से भरी हुई थी लेकिन वो इस वक्त कोमल को देख रही थी. कोमल और उसकी आँखे मिली. कोमल ने शायद कहा कि मुझे बचा लेकिन देवी ने आँखों से बोला अब में नहीं बचा सकती मेरी बहन, मेरी सखी. अब तो तुझे भगवान ही बचा सकता है.
ये बात कोमल भी जानती थी कि अगर देवी मुझे बचाने आई तो उसकी क्या हालत होगी? वो भी शायद मेरी तरह मार दी जाय. या उसकी बुरी तरह से पिटाई की जाय? कोमल को ये भी पता था कि जब मेरे माँ बाप ही मुझको नहीं बचा पा रहे तो ये मेरी बहन देवी कैसे बचा पायेगी?
देवी के अंदर भी एक डर था. वो तो चाहती थी कि कोमल को बचा लूँ लेकिन उसके कदम आगे नहीं बढ़ते थे. ये कोई और घटना होती तो शायद देवी उन लोगों को कच्चा चवा जाती जो कोमल को हाथ भी लगा देते. यही तो होती है एक अपने लोगों के अत्याचार सहने की मजबूरी. लोग उनका विरोध इसलिए नहीं कर पाते क्योंकि वे अपने होते हैं.
तिलक और संतू अब कोमल को भगत के घर से राजू के घर ले जा चुके थे. कोमल पूरी तरह से घिर चुकी थी. उसे खुद भी महसूस हो रहा था कि अब उसे कोई नही बचा पायेगा. राजू की छत पर खडी औरतें और बच्चे इस भयावह तस्वीर को देख सहम गये थे. बच्चे तो अपनी माँओं से लिपट गये. माँओं के कलेजे भी फटे जा रहे थे लेकिन उस कोमल को बचाने की हिम्मत कौन करे?
ये खानदान और घराने की औरतें ही तो थीं जिन्होंने अपने मर्दो को कोमल के खिलाफ भड़काया था. लेकिन उनके दिल में इस समय पछतावा जरुर था कि हम बहुत बड़ी गलती कर गये. हमे इस तरह अपने घर में कोमल की चुगली नहीं करनी चाहिए थी.
सच कहा जाय तो इस महिलाओं को भी इस तरह की घटना होने का अनुमान नहीं था. वे तो अपने घराने की पुरानी आदत के मुताबिक घराने के अन्य लोगों को नीचा दिखाना चाहती थी. वे ये दिखाना चाहती थीं कि देख लो तुम्हारी लडकी ने कितना बुरा काम किया है इसलिए तुम हमसे छोटे हो, शायद इसीलिए कहा गया है कि औरत ही औरत की दुश्मन होती है.
कोमल अभी भी हाथ पैर चला रही थी. अब तिलक और संतू के साथ राजू ने भी उसे दबोच लिया. फिर उसे ले जाकर उस कमरे में फेंका जहाँ से अंदर की आवाजें बाहर आना बहुत मुश्किल था. लेकिन उनके हाथों से आज़ाद होते ही कोमल ने अपने माँ बाप को ऐसी आवाज दी कि बराबर के मकान में बैठे भगत, गोदन्ती और उनके बच्चों की हड्डियाँ काँप गयी. दिल कुम्हला गये. सबका ही मन हुआ कि जाकर कोमल को बचा लें लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी.
कोमल की माँ गोदन्ती अपनी फूल सी बच्ची की चीखें सुन रही थी. भगत ने जिसे अपने हाथो में खिलाया. जिसकी शादी के लिए पैसा इकठ्ठा करते रहे. वो आज मारी जा रही थी. बाप की आँखों में आंसू रुकते ही नहीं थे.
भगत का मन होता था कि जा कर अपनी बेटी को बचा लें. भाड में जाए खानदान. भाड़ में जाये घराना. कम से कम अपनी बेटी तो सुरक्षित रहेगी लेकिन पैर आगे नहीं बढे. सारा शरीर बही जम गया. क्योंकि उन्होंने ही तो कोमल को मारने की मंजूरी दी थी. अब किस मुंह से रोकते? क्या कहते लोगों से?
एक बात और कोमल को मौत की तरफ धकेल गयी वो थी उसका गर्भवती होना. अगर कोमल गर्भवती न होती तो शायद भगत उसे बचाने की कोशिश भी करते लेकिन कोमल के नाजायज गर्भ ने उसे मौत के और ज्यादा करीब ला दिया था. वो बाबली ये नहीं जानती
थी कि यहाँ धार्मिक किताबों में विवाह से पहले गर्भवती होने की कहानिया जितने उत्साह से पढ़ी जाती है उतनी असल जिन्दगी में नही. यहाँ तो सिर्फ इसे पाप माना जाता है जिसकी सजा अधिकतर मौत ही होती है.
कोमल उस गहरे कमरे से लगातार अपने माँ बाप को बचाने की दुहाई दिए जा रही थी. लेकिन आज माँ बाप तो टस से मस नहीं हो रहे थी. कैसी बिडम्बना थी? घर के बगल वाले घर में अपनी लडकी मारी जा रही थी और माँ बाप चुपचाप खड़े सुन रहे थे. देख रहे थे. लेकिन माँ बाप अपनी किस्मतों को कोस कोस कर रोये जरुर जा रहे थे. आज का समय उनके लिए बहुत कठिन समय था.
ये आज का दिन इन माँ बाप के लिए, इस घराने के लिए, इस गाँव के लिए काला दिन था. जिसे इस गाँव के रहने तक भुलाया नही जा सकेगा. शायद लोग भूल जाएँ क्योंकि इन्सान बहुत जल्दी भूल जाता है लेकिन इस गाँव का इतिहास इस घटना को कभी नही भूल पायेगा. ये माँ बाप भी शायद कभी नहीं भूलेंगे. जिनकी एक पाली पोसी बेटी आज मारी जा रही थी.
राजू के कमरे में बंद कोमल इधर से उधर भाग रही थी. फिर कमरे के अँधेरे में कहीं छुप गयी. कमरे में झपाझप अँधेरा था. तिलक ने हडबडा कर संतू से कहा, "जरा दीया जला दे संतू कमरे में." संतू ने बाहर से दीया लाकर कमरे में जला दिया. कोमल एक चारपाई के नीचे किसी डरी हुई हिरनी की तरह बैठी थी. मुंह हाथों से छुपाकर जमीन पर लगा रखा था. इस घबरायी लडकी को अकेले इस तरह मारने पर भी तीनों लोगों में से किसी को भी दया न आई. तीनों के तीनों उसके खून के प्यासे थे.
कोमल के लिए बचने का अब कोई भी उपाय नही था. वह रो रो कर अपने ताऊ और रिश्ते के भाइयों संतू और राजू से कह रही थीं, *मैंने आपका क्या बिगाड़ा है ताऊ जो आप इस तरह घेरकर मुझे मार रहे हो? और संतू भैया तुम तो मुझे अपनी बहन कहते हो. फिर तुम क्यों मुझे मार रहे हो और तुम तो खुद एक लडकी के बाप हो? तुम से मेरी कोई दुश्मनी तो नही है. और राजू भैय्या तुम. तुम को तो रोज चाय बनाकर में ही देती थी. जाने कितनी बार तुमको सब्जी लाकर दी. तब तुम कहते थे कि तू ही मेरी असली बहन है लेकिन आज क्या हुआ? आज तो अपनी असली बहन को ही मार डालना चाहते हो, मैंने बिगाड़ा क्या है तुम लोगों का? मारने से पहले कम से कम ये तो बता दो?
मैंने कोई चोरी नहीं की. डांका नहीं डाला फिर मुझे किस बात की सजा दी जा रही है? ताऊ तुम तो मेरे बाप के सगे भाई हो. मुझमें तो आपका ही खून है, फिर आज अपने ही खून को मिटाने क्यों चले हो? एक अकेली लडकी को मारने में आपकी कौन सी शान होने वाली है?
___ वो लडकी जो आज तक आप लोगों से ऊँची आवाज में नही बोली. आपसे कोई अपशब्द नही कहा. कभी आपका बुरा नही चेता. फिर ऐसा क्या है जो मुझे मारने लगे? मेरे माँ बाप ने मुझे जन्म दिया है. वे चाहे तो मुझे मार दें लेकिन आप लोगों का तो ये हक नही बनता."
भगत और गोदन्ती कोमल की मद्दम सुनाई दे रही बातों को मरे हुए मन से सुन रहे थे. उन दोनों को पता था कि कोमल में कोई भी ऐब नही था सिवाय इसके कि वो राज से मोहब्बत कर बैठी. आज तक माँ या बाप को लौट कर जबाब तक नहीं दिया था.
कभी कोई ऐसी गलती भी नही की जिससे कि भगत या गोदन्ती को उसे डांटना पड़े सिवाय इस राज से प्यार करने के. लेकिन आज वो वेकसूर लडकी को अपनी आँखों से मरते देख रहे थे. कानों से उसकी मरने से पहले की बातें सुन रहे थे. क्या यही फर्ज होता है एक माँ या बाप का? जो आज भगत या गोदन्ती अदा कर रहे थे.
कोमल के लिए ये वैसा ही था जैसे कोई मासूम हिरनी किसी शेर के शासन क्षेत्र में गलती से घुस गयी हो, और जब उस हिरनी को पता चला कि वो गलती से अपनी मौत के करीब आ गयी तो वो सामने खड़े शेर को दुहाईयाँ दे दे कर अपनी जान बख्शने की भीख मांगती रही हो. जैसे कोमल अपने ताऊ और रिश्ते के भाइयों मांग रही थी. ____ इधर देर होती देख दरवाजे के बाहर रखवारी कर रहा दद्दू राजू के उस कमरे में जा पहुंचा. उसने जब कोमल की बातें सुनी तो बौखला गया और तिलक से बोला, “इस दो पैसे की लडकी के प्रवचन सुन रहे हो? मार दो डायन को तुरंत. एक तो जमाने भर में बदनामी करा दी ऊपर से प्रवचन दे रही है. मारो इस कुतिया को अभी, देख क्या रहे हो राजू और संतू? पकड़ के गला दवा दो इसका."
इतना सुन राजू और संतू कोमल पर झपट पड़े, कोमल अब भूखे भेडियों के हाथ से बचने की पूरी कोशिश करने लगी. उसकी हालत अब भूखे भेड़ियों से घिरी बकरी जैसी हो गयी थी. तिलक के साथ राजू और संतू ने कोमल को जमीन पर गिरा दबोच लिया. तिलक ने पैर पकड़े. राजू ने बीच का हिस्सा और संतू कोमल की गर्दन को अपने हाथ में ले चुका था.
कोमल अपने हाथों से संतू के पैरों को पकड़ गिडगिडा रही थी, "ओ संतू भैया तुझे भगवान की कसम. मुझे छोड़ दे. तुझे अपने बच्चो की कसम. ताऊ मुझे बचा लो में तुम्हारा एहसान जिन्दगी भर नही भूलूंगी. राजू भैय्या कम से कम तू तो दया कर मेरे ऊपर. में तो तेरी असली बहन हूँ."
लेकिन कोई नही सुनता था. किसी को क्यों दया आये? कौन सी उनकी लडकी थी? उनकी होती तो क़ानून दूसरा होता. या शायद उसे भी मार देते. भूखे भेडियों से भला कोई बच पाया है.
संतू की पकड़ कोमल के गले को दबाना शुरू कर चुकी थी. कोमल का दम घुटना शुरू हुआ. दो दिन से सिर्फ पानी पी कर जी रही लडकी भला कितनी ताकत लगा सकती थी लेकिन फिर भी तीन आदमियों का दम फुला रखा था. कोमल अंतिम बार चिल्लाकर बोली, “माँ..आआअ..पापा.पा गूऊऊओ....राज..बचाओ..गूऊऊऊओ."
लेकिन अब कोई उसे बचाने के लिए आने वाला नही था. भगत और गोदन्ती ने दिल कड़ा कर लिया. कोमल की हल्के स्वर में पहुंच रही आवाज उनके कानों में भाले सा प्रहार कर रही थी. दोनों ने कानों पर हाथ रख लिए. आँखों से आंसू किसी झरने की तरह बह रहे थे जबकि सीने का दर्द रुकने का नाम नहीं ले रहा था. ___कोमल का शरीर निश्चेत होता जा रहा था. संतू के पसीने छूट रहे थे. वो कोमल के गले को पूरी ताकत से दवाये हुए था. कोमल की आँखे बाहर आने को थी. शायद अभी एकाध सांस बाकी बची थी इसी कारण संतू पसीना पसीना होने के बावजूद कोमल के पतले नाजुक गले को दवाये हुए था. उसे जब लगा कि वो पूरी तरह मर चुकी है तो उसके गले से हाथ हटाते हुए बोला, “गयी काम से. अब नही बचा कुछ भी. छोड़ दो उसके हाथ पैर."
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