RE: Sexbaba Hindi Kahani अमरबेल एक प्रेमकहानी
गाँव की स्त्रियाँ उसे गाँव के बाहर तक छोड़ने आती. लेकिन आज ये अपने भाग्य की मारी कोमल विना किसी अर्थी और विना किसी विदा करने वाले के बोरे में बंद हो जा रही थी. कोई पीछे से नहीं बोलता था कि 'राम नाम सत्य है' और न ही कोई कोमल की आत्मा को शांति देने का कोई वाक्य बोलता था.
भाग - 13
सब लोग खेत पर पहुंच चुके थे. कोमल रखा बोरा एक तरफ डाल दिया गया था. लडके कंडा और लकड़ी ले आये. सब चीजों को सही तरीके से लगाया गया. आज गाँव का ये पहला मुर्दा रहा होगा जो इस तरह जलाया जा रहा था. न कोई तौर तरीका. न कोई रस्म?
सब जमाने के ठेकेदारों का क़ानून था. सारी व्यवस्था करने के बाद कोमल को बोरे से निकाला गया. फिर उठाकर चिता पर रख दिया गया. अब कंडा और लकड़ी नही बचे थे जिससे कोमल को उपर से ढका जा सके.लेकिन परेशानी क्या थी? ऐसे ही सब हो गया.
चिता पर लेटी हुई कोमल कुछ अलग सी लग रही थी. बाल बिखरे हुए. आँखे अब बंद सी हो गयी थी जबकि पहले गला दबाने के कारण फटी सी थी. कपड़े अस्त व्यस्त थे. चेहरा मासूम और प्यारा सा लग रहा था. लग रहा था रात के वक्त कोमल सोयी हुई है. पतले पतले कोमल से हाथ देह के इधर उधर पड़े हुए थे. वो हाथ जिन्हें राज सबसे ज्यादा प्यार करता था. जिनपर कोमल को भी गर्व था. कोमल के होंठ अभी भी सूखे थे लेकिन गुलाबी रंग अभी भी बरकरार था. दो दिन से भूखा रहने और रोने के कारण आँखों के नीचे काले घेरे हो गये थे.
कोमल को देखकर लगता था कि कोई मरी हुई लावारिस लडकी है जिसकी कुछ लोग समाज में मर्यादा रखने के कारण उसकी चिता को अनमने मन से आग दे रहे हैं. शायद इस गाँव में पहली बार किसी की चिता को लकड़ी और कंडों की कमी हो गयी थी. क्योंकि गाँव में अकेले कोमल के ही दो बड़े बड़े बिटोरे (उपले रखने का स्थान) थे. जिनसे जाने कितने ही लोगों की चिता जलाने के लिए उपले निकाले गये थे. लेकिन आज उसी की चिता पर इन चीजों की कमी थी.
तिलक ने कोमल की चिता में आग दे दी. लेकिन हवा और ओस की वजह से आग नही जल रही थी. राजू ने मोटर साईकिल से पेट्रोल निकाल कर कोमल की चिता पर छिडक दी. फिर तिलक ने आग लगाई तो आग जल गयी. कोमल की चिता धीरे धीरे जलने लगी.
लेकिन चिता को जलाने के लिए इतने लकड़ी और कंडे काफी नही थे जो कोमल की चिता में लगे हुए थे. थोड़ी देर में ही चिता बुझने की हालत में हो गयी. तिलक ने राजू से कहा, “जल्दी से और लकड़ियों का इंतजाम करो."
सब लोग खेत के आसपास खड़े पेड़ों से लकड़ियाँ वीनने लगे लेकिन तभी कुछ लोगों की आहट कानों में पड़ी. पकड़े जाने के डर से सब लोगों के दिल कांप गये. तिलक ने हडबडा कर राजू से कहा, "अब क्या करें?"
राजू फौरन बोला, “कोमल की लाश को छुपा दो.”
लेकिन तभी दद्दू बोल पड़ा, “एक काम करो खेत के पास जो कुआं है छोरी को उसी में फेंक दो.”
सब लोगों को दद्दू की बात बड़ी अजीब लगी. भला किसी अधजली लाश को ऐसे फेंका जाता है लेकिन कोई भी किसी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहता था. इसीलिए कोमल
की अधजली लाश को कुए में फेंक दिया गया. ____
गाँव में किसी की लडकी का कन्यादान करना हो या किसी की चिता जलाने के लिए अपना श्रम दान देना दुनियां का सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है. और ऐसा न करना सबसे बड़ा पाप. घराने का पाप मिटाने के चक्कर में ये लोग कितना बड़ा पाप कर गये थे.
शायद ये लोग इस बात को खुद नहीं जान पाए थे. लेकिन यहाँ कोई समाज का आदमी तो उन्हें देख ही नही रहा था. फिर पाप कैसा? पाप तो वो होता है जो देख लिया जाय. पाप तो वो था जो कोमल ने किया था. बड़े लोग कहते भी हैं कि पापी को मारना पाप नही होता. हे भगवान! अब बात थी उस निशान की जो खेत के कोने पर कोमल की चिता के जलने से बना था. और ये बात ये सब लोग जानते थे कि किसी खिलाफत वाले ने पुलिस में शिकायत की तो पुलिस छानबीन अवश्य करेगी.
इसलिए इसको मिटाने की चिंता सब को थी. तिलक ने राजू से पूंछा, "इसका क्या किया जाय?"
राजू बेफिक्री से बोला, “इसकी चिंता मत करो मेरा एक रिश्तेदार है जिसके पास ट्रेक्टर है. उस ट्रेक्टर से इसको जुतवा देंगे. उसके बाद कोई भी निशान नहीं बचेगा. ये काम में कल सुबह से पहले करा दूंगा.” उसके बाद सब लोग घर को आ गये.
सुबह होने से पहले राजू अपने रिश्तेदार के पास गया. उसे सारी कहानी बताई. रिश्तेदार राजू की पीठ ठोंक कर बोला, “क्या बात है भाई साहब. ये किया है आपने असली मर्दो वाला काम. इज्जत की खातिर तो कुछ भी हो सकता है. चलिए में आपका वो खेत अभी जोतकर आता हूँ. और ऐसा जोलूँगा कि पुलिस का खोजी कुत्ता भी चाहे तो बता न सके कि यहाँ कोई लाश जली भी थी."
रिश्तेदार ने दावे के मुताबिक खेत को इतना गहरा जोता कि लगता ही नही था कि यहाँ कुछ हुआ है. जब राजू उसे पैसे देने लगा तो वह साफ़ मना करता हुआ बोला, “भाई साहब वैसे में आपसे पैसे लेता लेकिन आपने खानदान की इज्जत बचाई है. इसलिए में आज कोई पैसा नहीं ले सकता." सारा काम हो चुका था. सारे सबूत भी मिट चुके थे. गाँव में तरह तरह की चर्चाये भी होती जा रही थी.
घराने में कई दिनों तक सन्नाटा पसरा रहा. लोग आपस में कम ही बात किया करते थे. भगत और गोदन्ती तो काफी दिनों तक घर से नही निकले थे लेकिन बच्चों को पालने और पेट भरने के लिए काम करना पड़ता है और काम करने के लिए घर से निकलना पड़ता है. भगत घर से निकलते तो नजर नीची करके. शायद या तो दुःख बहुत ज्यादा था या शर्म. या फिर दोनों ही.
राजू के जिस कमरे में कोमल को मारा गया था उस कमरे को घर वालों ने पहले गंगाजल छिडक पवित्र किया. फिर उसे गाय के गोबर से लीपा और लीपने के बाद फिर से गंगाजल छिडक उसमें सत्यनारायन जी की कथा करा दी. उसके बाद उसमें रहना शुरू किया.
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