एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
07-12-2020, 08:46 PM,
#6
RE: एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
तृतीय अध्याय : प्रथम मिलन
भाग - 2 

                         फिर रात हुई और खाना खाने के बाद सब अपनी-अपनी जगह लेट गए, चन्दर भैया और भाभी अपने घर में थे की तभी कुछ ही देर में मुझे लड़ाई-झगड़े की आवाज सुनाई दी| घर के सारे लोग उठ गए थे और मैं भी, चीखने की आवाज सिर्फ चन्दर भैया की थी और वो भाभी को गन्दी-गन्दी गालियाँ दे रहे थे| बड़की अम्मा अंदर पहुँची और चन्दर भैया को बाहर ले आईं, बड़के दादा और पिताजी ने बहुत पुछा की क्या हुआ पर भैया ने कुछ नहीं बताया| मेरे कदम अनायास ही मुझे भाभी के घर की तरफ ले जा रहे थे की तभी माँ बीच में गई और मुझे पिताजी के पास जाने को बोला|मैं चुप-चाप पिताजी के पास खड़ा हो गया तो उन्होंने मुझे गट्टू के साथ दूर जाने को कहा क्योंकि वहाँ होने वाली बात सुनने के लिए मैं परिपक्व नहीं हुआ था| धीरे-धीरे बात सुलझी और चन्दर भैया रात को बाहर सोये और सुबह होते ही मामा के घर निकल गए| इधर मैं सुबह आँख मलता हुआ उठा और माँ-पिताजी के पाँव छू कर दैनिक कार्यों से निपटा और रसोई में आया| भाभी वहाँ चाय बना रही थी, उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे चाय दी और फिर बड़की अम्मा के पास चली गईं| मैं चाय पी कर बासी खा कर गट्टू के साथ गाय चराने निकल गया|

       हमारे गाँव में सुबह नाश्ता बनाना का रिवाज नहीं है, बल्कि रात का बासी खाना ही नाश्ते के रूप में खाया जाता है| ये बासी सभी नहीं खाते, केवल छोटे बच्चे ही खाते हैं| बड़े लोग चाय पी कर, या कभी दही-चिवड़ा खा कर ही खेतों पर काम करने चले जाते हैं| छोटे बच्चे खेतों में काम नहीं करते, बल्कि वो गाय-भैंस चराने जाते थे, मैं भी सभी बच्चों के साथ गाय चराने चला जाता था| गाय बेचारी चरती रहती और हम सारे गिल्ली-डंडा या क्रिकेट खेलते रहते| दोपहर को जब मैं गाय चरा कर आया तो खाना खाने के बाद भाभी ने मुझे आवाज दे कर अपने पास बुलाया| मैं और भाभी पुराने घर के आंगन में बैठे थे, भाभी ने अब भी घूँघट कर रखा था और मैं उनके सामने सर झुका कर बैठा था|

भाभी: मानु आप मुझसे बात क्यों नहीं करते? क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं?

मैं: नहीं...ऐसा तो कुछ नहीं

भाभी: फिर?

मैं: वो....वो मुझे ....शर्म....आती है!

भाभी: अरे मुझसे कैसा शर्माना?

मैं: हम्म्म्म....

भाभी: तुमने तो अभी तक मेरा नाम तक नहीं पुछा?

मैं: मुझे पता है|

मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा|

भाभी: अच्छा? क्या नाम है मेरा?

मैं: भौजी !!!

मैंने गर्दन उठा कर भाभी की तरफ देखते हुए कहा| मेरे मुँह से भौजी सुन कर भाभी एक दम से खामोश हो गईं| दरअसल मैं उस वक़्त इतना सीधा था की मुझे माँ-पिताजी जो रिश्ता बता देते मेरे लिए वही नाम हो जाता था| अगर पिताजी ने कहा की ये तुम्हारे भैया हैं तो मैं उनसे उस व्यक्ति का नाम तक नहीं पूछता था और उस व्यक्ति को बस भैया कह कर सम्बोधित करता था| इसीलिए जब बड़की अम्मा ने मुझे कहा की ये तेरी भौजी हैं तो मेरे मन में बस वही नाम बस गया|

भाभी: ये मेरा नाम थोड़े ही है? ........ पर आज से तुम मुझे यही कह कर बुलाना|

मुझे ये सुन कर थोड़ा अजीब लगा क्योंकि मेरे आलावा बाकी सब भैया भी भाभी को भौजी ही कहते थे!

मैं: आपको तो अशोक भैया, अजय भैया और गट्टू भैया भी आपको भौजी ही कहते हैं, तो .....

मेरे आगे कुछ कहने से पहले ही भाभी बोल पड़ीं;

भौजी: तुम्हारी बात अलग है, तुम्हारे मुँह से भौजी शब्द बड़ा मीठा लगता है!

मैंने भाभी की बात निर्विरोध मान ली, ये सोच कर की शायद मैं दिल्ली से आया हूँ और मेरे मुँह से भौजी सुनने में उन्हें अच्छा लगता है| खेर भाभी ....मतलब भौजी ने मुझे अपना असली नाम नहीं बताया और ही मैंने उनसे उनका नाम पुछा| मैंने उस दिन से उन्हें भौजी बुलाना शुरू कर दिया|

 

मैं: भौजी..... ये....घूँघट.....जर्रूरी है?

भौजी: ये लाज के लिए है, अपने से बड़ों का मान रखने के लिए|

मैं: पर मैं तो आपसे छोटा हूँ? मेरे से भी आपको लाज़ आती है?

मैंने उत्सुकतावश सवाल पुछा पर भौजी को लगा की मैं उनका चेहरा देखना चाहता हूँ|

भौजी: मेरे छोटे देवर को मेरा चेहरा देखना है?

मैं: वो....मैं....

ये सुन कर मेरे मुँह से शब्द नहीं फुट रहे थे और भाभी को इसमें बड़ा मजा रहा था इसलिए वो हँसने लगीं| भाभी को हँसता हुआ देख मेरा सर फिर शर्म से झुक गया| भाभी ने मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाई और मेरी नजरें उनके घूँघट पर टिक गईं, भाभी ने अपना घूँघट उठाया और तब मुझे उनके हुस्न का दीदार हुआ| माँग में लाल सिन्दूर, आँखों में काजल, नाक में नथनी, गुलाबी होंठ ये देख कर दिल में अचानक ही हलचल पैदा हो गई| मुँह सूखने लगा और जुबान जैसे पत्थर की बन गई, आँखों को मिलने वाला ये सुख इतना अद्भुत था की उसे बताने के लिए शब्द नहीं! उस समय मैं नहीं जानता था की प्रेम क्या होता है? अगर जानता होता तो कह देता की भौजी मुझे आपसे पहली नजर में प्रेम हो गया है

                               जब मैं बिना कुछ बोले भाभी को इस कदर देखने लगा तो भाभी से ये ख़ामोशी बर्दाश्त नहीं हुई और वो बोल पड़ीं;

भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो?

मेरे पास उनकी बात का कोई जवाब नहीं था, इसलिए मैंने शर्म से फिर अपना सर झुका लिया| पर भाभी को मेरे मुँह से जवाब सुन्ना था;

भौजी: बोलो ना? क्या देख रहे थे?

मैं: वो....आप.....

मैं सर झुकाये हुए ही बोला, पर भाभी को जवाब चाहिए था सो उन्होंने मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर की और बोलीं;

भौजी: मेरी आँखों में देखो और कहो?

मैं: आप....बहुत सुन्दर हो!

इतना कह कर मेरे गाल और कान शर्म से सुर्ख लाल हो गए और मैने गर्दन फिर से झुका ली|

भौजी: सच?

मैंने सर झुकाये हुए ही हाँ कहा|

भौजी: तो मुझे मुँह दिखाई में क्या दोगे?

भौजी ने अचानक से कहा और मैं सोच में पड़ गया की मैं उन्हें क्या दूँ? मेरे पास तो कुछ था नहीं? बड़ी हिम्मत कर के मैंने उनकी तरफ देखा और कहा;

मैं: भौजी....मेरे पास तो कुछ नहीं! मैं माँ से ले आऊँ?

इतना कह कर मैं उठने लगा तो भाभी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे जाने से रोक दिया|भौजी: पहले सुन तो लो की मुझे चाहिए क्या?

भौजी ने हँसते हुए कहा|

“मुझे तुम्हारी एक पप्पी चाहिए|” ये सुन कर मेरे कान एक बार फिर लाल हो गए पर दिल ने कहा की एक पप्पी ही तो है, इसलिए मैंने हाँ में सर हिला दिया| भौजी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे धीरे से अपने पास खींचा, फिर अपने बाएँ हाथ को मेरे सर के पीछे रखा और दाएँ हाथ से मेरी ठुड्डी पकड़ कर मुझे अपने होठों के नजदीक लाईं| भौजी ने अपना मुँह थोड़ा खोला और मेरे दाएँ गाल को अपने मुँह में भर कर थोड़ा चूसा और फिर धीरे से काट लिया| जैसे ही भाभी ने मेरे गालों को छुआ मेरी आँखें बंद हो गईं, मेरे पूरे जिस्म में जैसे आतिशबाजी शुरू हो गई और पेट में तितलियाँ उड़ने लगी| कुछ सेकण्ड्स बाद उन्होंने मेरे गाल को अपने होटों की गिरफ्त से छोड़ दिया, पर इस एहसास ने मेरे शरीर में क्रान्ति छेड़ दी! जिंदगी में पहले बार किसी ने मुझे इस तरह से चूमा था|

“तुम्हें दर्द तो नहीं हुआ?” भौजी ने चिंता जताते हुए पुछा, तो मैंने मुस्कुराते हुए ना में गर्दन हिला दी| भाभी ने अपने दाएँ हाथ से मेरे गाल पर लगे उनके रस को साफ़ कर दिया और मुस्कुराने लगी| पर मेरे मन में अब लालच जाग गया था, मुझे मेरे दूसरे गाल पर भी भाभी के होठों की छाप चाहिए थी पर कहूँ कैसे? जब कुछ नहीं सूझा तो मैं एक दम से भाभी की गोद में सर रख कर लेट गया| पर भाभी मेरी हरकत नहीं समझी, या फिर वो मुझे और तड़पाना चाहती थीं| उन्होंने मेरे बालों में ऊँगली फेरना शुरू कर दिया, पहले तो मन किया की उन्हें बोल दूँ पर फिर हिम्मत नहीं हुई की कुछ कह सकूँ| इसलिए मैं आँख बंद किये हुए लेटा रहा और कुछ ही देर में मेरी आँख लग गई| शाम को 4 बजे गट्टू मुझे बुलाने आया तो भौजी ने उसे इशारे से मना कर दिया और वो अकेला ही गाय चराने निकल गया| 5 बजे चाय बानी और तब मैं आँख मलता हुआ बाहर आया, जब मैंने देखा की गाय नहीं बंधी है तो मैं समझ गया की गट्टू गाय चराने जा चूका है| अब मैं कहाँ जाता इसलिए मैं कुएँ के पास बैठ गया और ढलते हुए सूरज को देखने लगा| कुछ देर बाद भौजी मेरी चाय ले कर आईं; "मानु....चाय पी लो!" भौजी ने मुझे चाय दी और फिर मेरे ही पास बैठ गईं| भाभी को देखते ही मुझे दोपहर का समय याद गया और मन में फुलझड़ी छूटने लगी, तभी एक सवाल टूट-फूट के बाहर आया;

मैं: भौजी.....वो ...दोपहर में......वो क्या था?   

भौजी: वो ना....एक रस्म होती है! गाल काटने की!

भाभी ने हँसते हुए कहा|

मैं: तो आपने गट्टू को भी.....

मेरी बात पूरी होने से पहले ही भाभी बोल पड़ीं;

भौजी: नहीं...वो सिर्फ....सबसे छोटे देवर के लिए होती है!

भौजी की बात सुन कर मुझे मेरे सबसे छोटे होने पर गर्व होने लगा" मतलब ये ख़ास सुख सिर्फ और सिर्फ मुझे मिलेगा! कुछ देर बाद बड़के दादा और पिताजी खेतों की तरफ से आते हुए दिखाई दिए तो भौजी उठ कर चली गईं| मुझे कुएँ के पास बैठा देख पिताजी ने मुझे डाँट दिया; "तुझे बैठने को कोई और जगह नहीं मिली?" मैं सर झुका कर उठा और रसोई के पास छप्पर के नीचे बैठ गया| कुछ देर बाद गट्टू भैया गाय ले कर गए और गाय को पानी पिलाने के बाद मेरे पास बैठ गए| "मुझे साथ क्यों नहीं ले गए?" मैंने थोड़ा गुस्से से पुछा तो वो हैरान होते हुए बोले; "तू सोवत रहेओ!" और भाभी की तरफ इशारा किया| मैं समझ गया की भौजी ने जानबूझ कर मुझे नहीं उठाया था| मैं उस समय चुप रहा और रात को जब भौजी मसाला पीस रही थी तब मैंने भौजी से पुछा;

मैं: भौजी ... गट्टू भैया जब मुझे उठाने आये थे तो आपने मुझे उठाया क्यों नहीं?

भौजी: क्यों? शहर से तुम यहाँ गाय चराने आये हो? या फिर दिल्ली जा कर गाय खरीदनी है? मैं अभी नई-नई आई हूँ, मेरे से कोई बात करने वाला भी नहीं, खाली बैठे-बैठे ऊब जाती हूँ| मैंने सोचा की तुम मेरे पास बैठोगे कुछ बात करोगे, पर तुम्हें तो गाय चरानी है, ठीक है जाओ कल से नहीं रोकूँगी!
भौजी ने ये बात बड़े हक़ से बोली थी, ऐसा नहीं था की घर में कोई उनसे बात करने वाला नहीं था बल्कि वो खुद हमेशा मा या बड़की अम्मा के पास बैठी रहती थीं, ये बात उन्होंने सिर्फ और सिर्फ मुझे सुनाने के लिए कही थी! मैं इन सब बातों से अनजान था और भाभी की बात मुझे सच्ची लगी| इसलिए जब वो नीचे बैठ कर मसाला पीस रही थीं तो मैं पीछे से जाकर उन पर अपना बोझ डाले झुक गया और अपने हाथों को उनकी गर्दन के आगे कस लिया; "माफ़ कर दो भौजी! अब से मैं सिर्फ और सिर्फ आपके साथ रहूँगा, आपके साथ खाऊँगा, आपके साथ पीयूँगा और आप ही के साथ सोऊँगा|" मैंने एक बच्चे की भाँती ये सब बोला और भाभी मेरा बचपना देख हँस पड़ी|
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RE: एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ - by kw8890 - 07-12-2020, 08:46 PM

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