RE: एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
तृतीय अध्याय : प्रथम मिलन
भाग - 4
शाम तक मामा-मामी चले गए थे और मैं फिर से भौजी के पास बैठ गया था| भौजी उस वक़्त खाना बना रही थीं, और मुझे वहाँ बैठा देख उनके चेहरे पर फिर से मुस्कराहट आ गई|
भौजी: मानु तुम अब भी दूध पीते हो?
मैं: हाँ...क्यों?
भौजी: अब तुम बड़े हो गए हो!
मैं: भौजी मन करता है दूध पीने का, अब आप भी बाकियों की तरह मुझे सुनाना शुरू मत कर देना|
मैंने नाराज होते हुए कहा, अब भौजी भला अपने प्यारे देवर को नाराज कैसे करतीं!
भौजी: अच्छा मेरा दूध पियोगे?
भौजी की बात सुनते ही मेरी आँखों में चमक आ गई| मैंने फ़ौरन हाँ में गर्दन हिलाई और ये देख भौजी के चेहरे पर मुस्कान आ गई| उन्होंने मुझे हाथ-मुँह धो के आने को कहा, मैं फ़ौरन हाथ-मुँह साबुन से रगड़-रगड़ कर धो आया| भौजी चूल्हे से थोड़ी दूरी पर बैठ गईं और मुझे उनकी गोद में बैठने को कहा| मैं उनकी गोद में बैठ गया पर पता नहीं क्यों मेरा दिल आज बड़ी जोर से धड़कने लगा था| मन में गलत विचार नहीं था बस एक ललक थी की आज मुझे भौजी का दूध पीने को मिलेगा| देखते ही देखते भौजी ने अपना ब्लाउज के दायें तरफ का एक बटन खोला और अपना दायाँ चुचुक मेरे होठों के सामने कर दिया| मेरे होंठ स्वतः ही खुले और मैंने भौजी के दायें चुचुक को मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा| मेरी दिल की धड़कन अब शांत हो गई थी, पर भौजी के दिल की धड़कन अचानक ही बढ़ गई थी| उनके मुँह से एक मादक सिसकारी निकली; "ससससस" और भौजी ने मेरे बालों में हाथ फेरना शुरू कर लिया| मैंने बड़ी कोशिश की पर इतना चूसने के बाद भी भौजी के चुचुक से दूध नहीं निकला, अब मुझे ये बिलकुल समझ नहीं आया की भला ऐसा क्यों हुआ? माँ को तो दूध आता है, फिर भौजी को क्यों नहीं आता? मेरे दिमाग में बस यही सवाल गूँज रहा था, मैंने भौजी का चुचुक अपने मुँह से निकाल दिया और तभी बड़की अम्मा और माँ आ गए| मुझे भौजी की गोद में देख कर वो समझ गए की मैं दूध पी रहा हूँ, ये देख माँ और बड़की अम्मा हँसने लगे| उनकी हँसी सुन मैं भौजी की गोद से उतरने को छटपटाने लगा, भौजी ने मुझे अपनी गोद से जाने दिया पर बड़की अम्मा ने मुझे पकड़ कर अपने पास बिठा लिया| "मुन्ना अपनी भौजी का दूध पीत रहेओ? " बड़की अम्मा बोलीं| पर मेरे कुछ कहने से पहले ही भौजी बोल पड़ीं; "हाँ अम्मा, कहे लागे की भौजी हमका दूध पिलाओ!" भौजी ने बड़ी चालाकी से सारी बात मेरे ऊपर डाल दी| अब मैं भौजी को झूठा नहीं बनाना चाहता था इसलिए मैंने सर झुका लिया और उनकी बात का मान रखा| भौजी की बात सुन माँ और बड़की अम्मा हँस पड़े और मैं सर झुकाये सोच रहा था की दूध पिया ही नहीं फिर भी मज़ाक बन गया| इधर बड़की अम्मा की हँसी सुन पिताजी और बड़के दादा भी आ गए और उनके आते ही भौजी ने तुरंत घूँघट कर लिया और खाना बनाने लगी| माँ ने उन्हें सारी बात बताई तो वो भी मेरे इस भोलेपन पर हँस पड़े| मैं चुप-चाप सर झुकाये खड़ा रहा और सबकी हँसी सुनता रहा|
रात को जब मैं और भौजी खाने बैठे तब मैंने उनसे अपने मन में गूँज रहे सवाल का जवाब माँगा;
मैं: भौजी माँ को तो दूध आता है पर आपको दूध क्यों नहीं आता?
मेरा सवाल सुन कर भौजी एक दम से खामोश हो गईं, कुछ देर पहले जो उनके चेहरे पर मुस्कराहट थी वो अब गायब हो गई और वो बिना कुछ बोले खाना खाने लगी| खाना खा कर वो सीधा अपने घर में सोने चली गईं, मुझे लगने लगा की मैंने शायद उनके दिल को चोट पहुँचाई है इसलिए मैं उनके पीछे-पीछे पहुँच गया| भौजी अपने घर के आंगन में चारपाई पर बैठी थीं, मैं उनके सामने खड़ा हो गया| मैं जब भी कोई गलती करता था तो पिताजी मुझसे अक्सर कान पकड़ कर उठक-बैठक करवाते| यही सोच कर मैंने अपने कान पकडे और उनके सामने उठक-बैठक करने लगा| अभी बस तीन ही उठक-बैठक हुई होगी की भौजी ये देख मुस्कुरा दीं और अपनी बाहें खोल कर मुझे उनके गले लगने को कहा| मैं तुरंत जा कर भौजी के गले लग गया; "Sorry भौजी!" मैंने कहा पर तभी याद आया की भौजी को कहाँ अंग्रेजी आती होगी, इसलिए मैंने हिंदी में उनसे माफ़ी माँगी; "भौजी मुझे माफ़ कर दो!" ये सुन कर भौजी हँस पड़ी और उन्होंने मुझे माफ़ कर दिया पर मुझे अपनी नाराजगी का कोई कारन नहीं बताया| मेरे लिए उनकी माफ़ी ही काफी थी तो मैंने उनसे इस बारे में कुछ नहीं कहा| रात को मुझे उनके पास सोने का मौका नहीं मिला क्योंकि आज पिताजी ने मुझे अपने पास सोने को कहा था| पर आधी रात को फिर से लड़ाई-झगड़ा हुआ और इस बार भी मुझे भौजी के पास जाने नहीं दिया गया| जितने दिन हम गाँव में रहे ये लड़ाई-झगड़ा होता रहता, कभी दिन में तो कभी रात को| मुझे इससे दूर रखा जाता, मैंने एक आध बार माँ से पूछना भी चाहा तो माँ ने मुझे ये कह कर चुप करा दिया की ये बड़ों की बात है और मैं अभी बहुत छोटा हूँ| मुझ में हिम्मत नहीं होती थी की मैं भौजी से कुछ पूछ सकूँ, मैं तो बस अपने भोलेपन और प्यार से उन्हें हँसा दिया करता था| कभी-कभी जब भौजी खाना बना रही होती तो मैं चप्पल पहन कर उनसे जान बूझ कर उन्हें चिढ़ाता; "भौजी मैं आपको छू लूँ?" और ये सुन कर भौजी एकदम पीछे हट जातीं क्योंकि अगर मजाक-मजाक में मैं उन्हें छू लेटा तो मुझे बहुत डाँट पड़ती|
दिन इसी तरह प्यार-मोहब्बत से बीतने लगे थे और फिर हमारे दिल्ली वापस जाने का समय आया| जब भौजी को ये पता चला तो वो उदास हो गईं, मैं उनके पास आया और बड़े भोलेपन से कहा; "भौजी आप मेरे साथ दिल्ली चलो!" ये सुन कर उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और फिर मैंने उन्हें दिल्ली के बारे में, हमारे घर के बारे में, टी.वी के बारे में (गाँव में तो टी.वी. होता नहीं था!) सब बताना शुरू कर दिया| तभी वहाँ बड़की अम्मा आ गईं, भौजी ने बड़की अम्मा को उलहाना देते हुए कहा; "मैं चल तो लूँ तुम्हारे साथ पर बड़की अम्मा जाने नहीं देंगी!" बड़की अम्मा ये सुन कर मुस्कुरा दीं, पर मैं हार मानने वालों में से नहीं था इसलिए मैंने उनसे मिन्नतकी; "अम्मा जाने दो ना भौजी को मेरे साथ!"
"मुन्ना ..तू अगर आपन भौजी को ले जाबू तो हियाँ घर के संभाली?!" ये ऐसा सवाल था जिसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था, मैं उन्हें ये नहीं कह सकता था की आप संभाल लेना! वो हँसते हुए चली गईं पर मेरे दिमाग में आज खुराफात शुरू हो गई; "भौजी मैं आपको भगा कर ले जाऊँगा! जब हम निकलेंगे न तो आप ये वाली दिवार फांद कर मुझे सड़क पर मिलना और फिर आप, मैं, माँ-पिताजी सब शहर चले जायेंगे|" मेरी बात सुन भौजी हँस पड़ी, तभी माँ आ गईं और उन्होंने जब उनकी हँसी का कारन पुछा तो भौजी ने उन्हें सब बता दिया| ये सुन कर वो भी हँस पड़ीं और मेरी भोली बातों में आ गईं और मेरी ही तरफदारी करने लगी| उस समय मेरे छोटे से दिमाग ने भागने का मतलब दिल्ली दौड़ कर जाना निकाला था, भौजी को मेरे इसी अबोधपने से प्यार था!
खेर वो दिन आ ही गया जब हमें दिल्ली वापस जाना था, सारा समान रिक्शे पर रखा जा चूका था| मैं सबसे मिल लिया था बस एक भौजी ही रह गईं थीं, जैसे ही मैं उनके पास आया उन्होंने मुझे कस कर अपने गले लगा लिया| पर उनके दिल को इस आलिंगन से करार नहीं मिला था, उन्होंने मेरे पूरे चेहरे पर अपने चुम्मियों की झड़ी लगा दी| बड़ा संभाला पर आखिर मेरे आँसू निकल ही गए और मुझे रोता हुआ देख भौजी भी रो पड़ीं!
हमें रोता हुआ देख माँ आगे आईं; "बस बेटा, अगले साल फिर आना है!" माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा| ये सुन कर मेरा दिल तो मान गया पर भौजी का दिल अब भी नहीं मान रहा था| उन्होंने एक आखरी बार मुझे गले लगाया और फिर हम सब से विदा ले कर दिल्ली आ गए| दिल्ली आ कर मेरे सर पर गर्मियों की छुट्टियों का गृहकार्य का पहाड़ था इसलिए मैं उसे पूरा करने में लग गया| कुछ दिन लगे और मैं पढ़ाई में व्यस्त हो गया, पर मैं वो हसीन दीं नहीं भुला था| भौजी का वो हँसता हुआ चेहरा मेरे दिलों-दिमाग में बस गया था, रात को सोते समय उन्हें एक बार याद जर्रूर करता और उम्मीद करता ये समय जल्दी से बीते ताकि मैं उनसे फिर मिल पाऊँ|
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