Desi Porn Kahani काँच की हवेली
05-02-2020, 01:00 PM,
#7
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
5



"नही करेगी?" निक्की ने नथुने फुलाए.

"नही....!" कंचन उसी बिस्वास के साथ पुनः बोली.

"ठीक है तो फिर मैं पंखे से लटककर अभी अपनी जान दे देती हूँ. मैं तुम्हारे लिए सारी दुनियाँ से लड़ सकती हूँ और तुम मेरे लिए एक छोटा सा काम नही कर सकती." निक्की मगर्मछि आँसू बहाती हुई बोली - "तुम बदल गयी हो कंचन, अब तुम मेरी वो सहेली नही रही जो मेरी खुशी के लिए दिन रात मेरे साथ रहती थी. मेरे एक इशारे पर कुच्छ भी कर जाती थी. तूने मेरा दिल दुखाया है कंचन....अब मैं तुमसे और इस ज़ालिम दुनिया से हमेशा के लिए दूर जा रही हूँ. ज़रा अपना दुपट्टा देना."

"दुपट्टा...? दुपट्टा क्या करोगी?" कंचन ने धीरे से पुछा.

"गले में बाँध कर पंखे से लटकने के लिए. मेरे पास कोई रस्सी नही है ना."

"क....क्या?" कंचन घबराई. उसके पसीने छूट पड़े. वो जानती थी निक्की बहुत ज़िद्दी है. उसके इनकार करने पर निक्की अपनी जान तो नही देगी पर उसका दिल ज़रूर टूट जाएगा. उसके प्रति निक्की का मन मैला ज़रूर हो जाएगा. वह निक्की को खोना नही चाहती थी. उसकी समझ में नही आ रहा था कि वो करे तो क्या करे. उसे अपने बचाव का कोई रास्ता नज़र नही आ रहा था. अंत में वो हथियार डालते हुए बोली - "ठीक है निक्की, तू जो बोलेगी मैं करूँगी. लेकिन फिर कभी अपनी जान देने की बात मत करना."

"ओह्ह थॅंक यू कंचन" निक्की लपक कर कंचन के पास पहुँची. फिर उसे बाहों में जकड़कर उसके गालो को चूमने लगी - "तुम बहुत अच्छी हो, मुझे तुम्हारी दोस्ती पर नाज़ है. अब इस कपड़े को उठाओ और जाकर उस अकड़ू के कमरे में रख दो."

कंचन अनमने ढंग से आगे बढ़ी, फिर उन कपड़ों को हाथ में उठाकर कमरे से बाहर निकल गयी. उसका दिल जोरों से धड़क रहा था. माथे पर पसीना छलक आया था.

*****

रवि अपने कमरे में पूरी तरह भाननाया हुआ बैठा था. नौकर को गये लगभग एक घंटा होने को आया था. पर वह अभी तक उसके कपड़े लेकर नही लौटा था. उसने सोचा क्यों ना अब नहा ही लूँ. सुबह से नही नहाने के कारण उसके सर में दर्द होने लगा था. शरीर थकान से चूर थी. वह उठा और दरवाज़े की कुण्डी अंदर से खोल दिया. फिर टवल लेकर बाथरूम में घुस गया. उसने अपने कपड़े उतारे और शवर कर नीचे खड़ा हो गया. कुच्छ देर लगे उसे नहाने में फिर टवल से अपने गीले बदन को पोछ्ने लगा. स्नान करने के बाद वह बहुत हल्का महसूस कर रहा था. अचानक उसे दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनाई दी. उसे लगा नौकर होगा. इतनी देर से आने की वजह से वह उससे खफा था. उसे डाँट पिलाना ज़रूरी था. वह टवल लपेटकर बाहर निकला. जैसे ही वो बाथरूम से बाहर आया उसने कंचन को देखा. कंचन की पीठ उसकी ओर थी और वह कपड़े रखकर बाहर की ओर जा रही थी.

"सुनो लड़की...!" रवि की कर्कश आवाज़ उसके कानो से टकराई. उसके बढ़ते कदम रुके. उसकी दिल की धड़कने बढ़ चली. वह खड़ी रही लेकिन पलटी नही. वो रवि को अपना चेहरा नही दिखना चाहती थी.

"इतनी देर क्यों लगाई तुमने." रवि ने उसे नौकरानी समझकर डांटा.

"जी...वो....मैं....क्या...वो !" वा हक्लाई. उसके समझ में नही आया कि वह क्या उत्तर दे.

"मेरी तरफ मूह करके सॉफ सॉफ बोलो." रवि चीखा.

कंचन की सिट्टी पिटी गुम हो गयी. बचने का कोई रास्ता नही बचा था. निक्की की शरारत में वो बलि का बकरा बन गयी थी. उसके पैर काँप उठे. वो पलटी. उसकी नज़र जैसे ही रवि से टकराई वह चौंक पड़ी.

"तुम....!" जैसे ही रवि की नज़र कंचन के चेहरे से टकराई उसके मूह से बेसाखता निकला.

"जी....मैं..!" कंचन भी आश्चर्य से उसे देखती रह गयी. उसने भी नही सोचा था कि उसके साथ ऐसा संयोग हो सकता है.

"तुम वही लड़की हो ना? जिसने मुझे सड़क पर काठ का उल्लू कहा था?" रवि कंचन को घूरता हुआ बोला. कंचन को हवेली में देखकर वो बुरी तरह से चौंका था. उसे ये भी ध्यान नही रहा कि वो इस वक़्त किसी लड़की की सामने सिर्फ़ टवल पहने खड़ा है.

कंचन की स्थिति भी बहुत बुरी थी. अपनी ऐसी दुर्गति होते देख उसे रोना आ रहा था. वो कुच्छ कहने की बजाए वहाँ से भाग जाने में ही अपनी भलाई समझी. वो पलटी और तेज़ कदमो से भागती हुई कमरे से बाहर चली गयी. रवि खड़ा हक्का बक्का उसे देखता रह गया.

"ये लड़की यहाँ क्या कर रही है?. इसे तो मैने कुच्छ लड़कियों के साथ कॉलेज से पढ़ाई करके आते हुए देखा था. तो क्या ये लड़की हवेली में नौकरानी का काम करती है? लेकिन जो लड़की कॉलेज में पढ़ती हो वो भला किसी के घर नौकरानी का काम क्यों करेगी?" वो मूर्खों की तरह अपना सर पीटने लगा. कुच्छ देर बाद उसे अपनी स्थिति का ध्यान हुआ. वो अपने कपड़ों की ओर बढ़ा. उसने पहनने के लिए एक कपड़ा उठाया. पर जैसे ही उसने उसे खोला उसकी खोपड़ी भन्ना गयी. आँखों में खून खौल उठा. उस कपड़े में इस्त्री के साइज़ जितना सुराख हुआ पड़ा था. उसने दूसरा कपड़ा उठाया. उसकी हालत उससे भी बदतर थी. फिर तीसरा कपड़ा उठाया, फिर चौथा, पाँचवाँ, छटा उसके सभी भी कपड़े बीच में से जले हुए थे. अपने कपड़ों की ऐसी दुर्गति देखकर उसका दिमाग़ चकरा गया. गुस्से से उसके नथुने फूल गये. उत्तेजना से उसका चेहरा बिगड़ने पिचकने लगा. आँखें सुलग उठी. वह मुठिया भींच उठा. उसे उस लड़की (कंचन) पर इतना गुस्सा आया कि अगर वो इस वक्त उसके सामने होती तो वो उसका गला दबा देता. लेकिन अफ़सोस वो इस वक़्त यहाँ नही थी. रवि खून का घुट पीकर रह गया. अब उसके सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गयी थी, वो इस वक़्त पहने तो क्या पहने. उसके पास मात्र एक टवल के कुच्छ भी पहनने लायक नही रहा था. उसका वो कपड़ा भी जिसे वो पहनकर आया था. बाथरूम में गीले पानी और साबुन के छींटे पड़ गये थे. वह अपना सर पकड़ कर बैठ गया.

*****

शाम के 5 बजे थे. हॉल में ठाकुर साहब, निक्की और दीवान जी बैठे बाते कर रहे थे. कंचन निक्की को कल आने का वादा करके अपने घर जा चुकी थी. वे सभी रवि के नीचे आने का इंतेज़ार कर रहे थे. काफ़ी देर तक प्रतीक्षा करने के बाद ठाकुर साहब दीवान जी से बोले - "दीवान जी अब तक तो उन्हे नीचे आ जाना चाहिए. आख़िर हमे कब तक इंतेज़ार करना होगा?"

"मैं स्वयं जाकर देखता हूँ मालिक." दीवान जी बोले और उठ खड़े हुए. वो सीढ़िया चढ़ते हुए रवि के कमरे की ओर बढ़ गये. थोड़ी देर बाद दीवान जी ने उपर से किसी नौकर को आवाज़ लगाया. नौकर दौड़ता हुआ उपर पहुँचा. फिर दूसरे ही मिनिट वो भागता हुआ नीचे आया और हवेली से बाहर जाने लगा. ठाकुर साहब ने उसे हवेली के बाहर जाते देखा तो उन्होने टोका - "अरे मंटू कहाँ भागे जा रहे हो?"

"मालिक, दीवान के घर जा रहा हूँ. उन्होने अपने घर से कुच्छ कपड़े मँगवाए हैं." वो बोला और ठाकुर साहब की इज़ाज़त की प्रतीक्षा करने लगा.

"ठीक है तुम जाओ." ठाकुर साहब ने नौकर को जाने को बोले. और सोचों में गुम हो गये. उनके समझ में कुच्छ भी नही आ रहा था. दीवान जी भी उपर जाकर वही अटक गये थे.

कुच्छ देर बाद मंटू कुच्छ कपड़े लेकर हवेली में वापस आया और रवि के कमरे की ओर बढ़ गया. उसके उपर जाने के कुच्छ देर बाद ही दीवान जी भी नीचे आ गये. उनके नीचे आते ही ठाकुर साहब बोले - "सब कुशल तो है दीवान जी? आपने मंटू को अपने घर कपड़े लाने क्यों भेजा?"

"डॉक्टर बाबू के सामने एक समस्या आ खड़ी हुई है मालिक" दीवान जी अपना माथा सहलाते हुए बोले - "उनके पास पहनने के लिए कपड़े नही हैं."

"क्या....? ठाकुर साहब हैरान होते हुए बोले - "पहनने के लिए कपड़े नही हैं. तो क्या महाशय घर से नंगे पुँगे ही आए हैं?

"जी...नही." ये आवाज़ सीढ़ियों की ओर से आई थी. ठाकुर साहब के साथ सबकी नज़रें उस ओर घूमी. रवि सीढ़ियाँ उतरता हुआ दिखाई दिया. उसके बदन पर दीवान जी के कपड़े थे. उनके कपड़ों में रवि किसी कार्टून की तरह लग रहा था. उसे देखकर एक बार निक्की के मूह से भी हँसी छूट पड़ी. वहीं ठाकुर साहब अपनी बातों पर झेंप से गये. उन्हे बिल्कुल भी अंदाज़ा नही था कि उनकी बातें रवि के कानो तक जा सकती है.
कॉन्टिन्यू............................................
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