RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 13
"अगर तुम कल की बात को लेकर दुखी हो तो मुझे माफ़ कर दो. लेकिन तुम खुद ही सोचो उस दिन हवेली में मेरे कपड़ों के साथ जो हुआ क्या वो ठीक था?"
कंचन कुच्छ ना बोली, बस भीगी पलकों से रवि को देखती रही और सोचती रही. - "साहेब मुझे ग़लत समझते हैं, उन्हे लगता है कि उनके कपड़े मैने जलाए हैं. मुझे अपराधिनी समझते हैं" कंचन के दिल में एक हुक सी उठी, इस एहसास से वो तड़प उठी, आख़िर कैसे बताए अपने साहेब को कि उस दिन हवेली में उसके कपड़े उसने नही जलाए थे. उसके कपड़ों को जलाने वाली निक्की थी, वो तो बस निक्की के दबाव में आकर उनके रूम में कपड़े रखने गयी थी. उसके होठ कुच्छ कहने के लिए हिले पर सिर्फ़ फड़फदा कर रह गये, बोल मूह से बाहर ना निकले.
"क्या तुम सच में इसी लिए दुखी हो कि कल नदी के किनारे मैने तुम्हे कुच्छ कड़वे बोल कहे थे?" रवि उसे खामोश देखकर फिर से पुछा.
"नही साहेब....उस दिन नदी में आपके मूह से निकले कड़वे बोल तो मुझे शहद से भी मीठे लगे थे, मैं तो इसलिए दुखी हूँ कि.....मैं....आप....से...!" वो इससे आगे ना बोल सकी, ये कहते कहते अचानक से उसके चेहरे का रंग तेज़ी से बदल गया था. जो चेहरा कुच्छ देर पहले दुख से पीला पड़ा हुआ था, वही चेहरा अब शर्म की लाली से लाल हो उठा था. वो फिर से ज़मीन ताकने लगी.
"मैं आप से क्या?" रवि थोड़ा हैरान परेशान सा पुछा.
कंचन ने, रवि के पुच्छे जाने पर अपनी नज़रें उठकर उसके चेहरे पर टिका दी. वो एकटक अपनी बड़ी बड़ी आँखों से रवि को देखती रही. एक बार मन किया कि वो कह दे - "साहेब मैं आपसे प्यार करती हूँ, आपसे शादी करना चाहती हूँ. क्या आप मुझे अपनी दुल्हन बनाओगे? मैं दिन रात आपकी सेवा करूँगी, कभी कोई शिकायत का मौक़ा नही दूँगी. जैसे रखोगे मैं वैसी रह लूँगी. कभी कोई चीज़ नही माँगूंगी. जो दोगे वो रख लूँगी, जो पहनओगे पहन लूँगी. बस आप मेरे हो जाओ और मुझे अपना बना लो." लेकिन वो कह ना सकी -"जाइए...मैं नही बताती, आप बड़े वो हो." कंचन मचलकर बोली और तेज़ी से अपने घर के रास्ते मूड गयी और सरपट भागती चली गयी.
रवि ठगा सा उसे जाते हुए देखता रहा. उसके समझ में अब भी कुच्छ ना आया था. वो कुच्छ देर यूँही खड़े खड़े उसकी कही बातों पर सोचता रहा. फिर अपना सर खुजाता हुआ अपनी बाइक की ओर बढ़ गया. उसके दिमाग़ में अब निक्की की जगह कंचन आ बसी थी.
कुच्छ देर में वो उस जगह पर आ गया जहाँ पर उसने अपनी बाइक खड़ी की थी, अभी वो बाइक से कुच्छ दूर ही था कि उसकी नज़र जैसे ही बाइक की ओर गयी उसके बढ़ते हुए कदम थम गये. उसके चेहरे पर उलझन की लकीरे खिंच गयी. उसकी बाइक पर एक देहाती आदमी बैठा हुआ था. उसके बदन पर काले रंग का कुर्ता था और कमर पर लूँगी लिपटी हुई थी. कद कोई 6 फीट के आस-पास होगा. छाती चौड़ी और बदन कसरती था, चेहरे पर बड़ी और घनी मूँछे थी. उसकी आयु कोई 32-33 साल के आस-पास रही होगी. वो बाइक पर बैठा हुआ था और उसकी नज़रें गाओं के रास्ते पर टिकी हुई थी जैसे किसी की राह देख रहा हो या फिर किसी को जाते हुए देख रहा हो. उसने मूह में पान दबा रखा था. वो रास्ते की ओर देखते हुए बार बार ज़मीन पर पिचकारी छोड़ रहा था. ये बिरजू था. गाओं का सबसे छटा हुआ बदमाश, पैसे लेकर किसी के हाथ पावं तोड़ना, कमज़ोरो को धमकना, उसका पेशा था. वैसे वो औरतों का रसिया था. 18 साल की उमर से ही वो गाओं की कुँवारी लड़कियों का रस चूस्ता आया था. गाओं की कितनी ही लड़कियों और औरतों को वो अपनी टाँगो के नीचे लिटा चुका था. किसी को सपने दिखाकर तो किसी को बल पूर्वक, तो किसी को इतना मजबूर कर देता था कि वो खुद ही उसकी झोली में आ गिरती थी. गाओं के लोग उससे दूर ही रहते थे, उसकी दोस्ती और दुश्मनी दोनो ही दूसरे लोगों के लिए नुकसानदेह थी. इसीलिए कोई उसके खिलाफ बोलने से कतराता था. और फिर उसके सर पर गाओं के मुखिया का हाथ भी था. बिरजू उसके लिए काम करता था. वैसे तो मुखिया जी बहुत अच्छे इंसान थे, गाओं में सभी से उनके मधुर संबंध थे, पर जाने क्यों वो बिरजू के खिलाफ कुच्छ भी सुनना पसंद नही करते थे. जब कभी वो बिरजू के खिलाफ गाओं के किसी भी इंसान से कुच्छ सुनते तो उसी पर बरस पड़ते. गाओं वाले अपना सा मूह लेकर रह जाते.
बिरजू पिछ्ले 15 सालों में अनगिनत लड़कियों और औरतों का भोग लगा चुका था. लेकिन कुच्छ सालो से उसकी नज़र एक ही लड़की पर टिकी हुई थी, वो थी कंचन...! जब कभी वो उसके भरे-पूरे शरीर को झटके लेकर अपने पास से गुज़रते देखता, उसके अंदर का जानवर जाग उठता. उस वक़्त उसके मन में बस एक ही विचार आता - किसी भी तरह एक बार वो कंचन की सवारी कर ले. एक बार उसका गदराया शरीर भी भोग लगाने को मिल जाए. लेकिन कंचन के सपने देखना जितना आसान था उसे हासिल करना उतना ही मुश्किल था. कंचन बहुत ही अच्छी लड़की थी, वो जानता था कि राज़ी खुशी से वो कभी भी कंचन की जवानी का रस नही चूस सकता, और ज़बरदस्ती करने का मतलब था अपनी मौत को दावत देना. उसका बाप सुगना अपने ज़माने में बिरजू से भी बड़ा गुंडा हुआ करता था. बिरजू ने तो अभी तक लोगों के सिर्फ़ हाथ पावं तोड़े थे, पर सुगना ना जाने कितनी लाशे गिरा चुका था. लेकिन बिरजू के लिए कंचन तक पहुचने के रास्ते में यही एक काँटा नही था. अगर वो किसी तरह सुगना को रास्ते से हटा भी देता तब भी उसका कंचन तक पहुँचना लगभग नामुमकिन था. वजह थी निक्की, निक्की की दोस्ती कंचन की ढाल थी. पूरे गाओं के औरत मर्द में एक कंचन ही अकेली ऐसी थी जिसे हवेली में हर तरह का अधिकार हासिल था. वो नौकरों को आदेश दे सकती थी, जब तक चाहे हवेली में रह सकती थी, ठाकुर साहब उसे अपनी बेटी जैसी ही समझते थे. बिरजू जानता था कि कंचन के उपर हाथ धरने का सीधा सा अर्थ है ठाकुर के गिरेबान पर हाथ डालना. और ठाकुर के गिरेबान पर हाथ डालने का मतलब था उसकी मौत ! यही कारण था कि वो कंचन को बस दूर से ही देखकर अपनी प्यास बुझा लेता था. और फिर वो ये भी नही चाहता था कि ठाकुर उसकी असलियत जाने. अभी तक उसकी शिकायत ठाकुर साहब तक नही पहुँची थी. बिरजू के सताए लोग ये सोचकर की ठाकुर साहब 20 वर्षो से खुद दुखों में जी रहे हैं, उन्हे अपने दुख सुनकर उनके दुखों को और बढ़ाना ठीक नही है वे लोग खामोश होकर घर में बैठ जाते.
बिरजू वो मगरमच्छ बन गया था जो धीरे धीरे पूरे गाँव को चाट करता जा रहा था. लेकिन जो बात कंचन में थी वो किसी में ना थी. वो हर रोज़ उसे हासिल करने का कोई ना कोई मंसूबा बनाता पर ठाकुर का विचार आते ही उसके सारे मंसूबे धरे के धरे रह जाते. आज जब उसने कंचन को अकेले इस तरह भटकते देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. कंचन कभी भी अकेले इस तरह नही घूमती थी. लेकिन जब उसकी नज़र रवि की बाइक पर पड़ी तो उसकी जिग्यासा और बढ़ गयी कि कंचन किसी से तो मिलने आई थी. वो वहीं बाइक पर बैठकर उस आदमी का इंतेज़ार करने लगा था. वो अभी भी उसी रास्ते की और देख रहा था जिस और से कंचन गयी थी.
जैसे ही उसकी गर्दन सीधी हुई उसकी दृष्टि रवि पर पड़ी. रवि को देखते ही वो अपने काले दाँत दिखा कर हंसा.
रवि लापरवाही से अपनी बाइक के पास पहुँचा. उसने एक सरसरी निगाह से बिरजू को उपर से नीचे तक देखा फिर बोला - "मैने आपको पहचाना नही. आपका परिचय?"
बिरजू अब भी उसकी बाइक पर बैठा रहा, उसने उतना ज़रूरी नही समझा. उसने रवि को देखा और पान की पिचकारी ज़मीन पर मारी, उसका अंदाज़ ऐसा था जैसे उसने रवि पर थुका हो. फिर बोला - "बाबू जी बिरजू नाम है मेरा." उसने मूच्छों को ताव दिया - "रायपुर का बच्चा बच्चा मुझे जानता है. तीन गाओं में मेरे जैसा कोई पहलवान नही."
"बहुत खुशी हुई आपसे मिलकर" रवि ने उत्तर दिया - "अब कृपया करके मेरी बाइक से उठेंगे?"
"जी बिल्कुल....ये लीजिए उठ गये." वह मुस्कुराकर बोला - "मैं तो आपकी बाइक की रखवाली कर रहा था."
"रखवाली?" रवि ने आश्चर्य से उसे देखा.
"इस गाओं में कुच्छ लुच्चे घूमते रहते हैं, मौक़ा मिलते ही दूसरो की चीज़ पर हाथ साफ कर देते हैं. आपको इस लिए बता रहा हूँ क्योंकि आप हवेली के मेहमान हो."
"आपको कैसे मालूम कि मैं हवेली का मेहमान हूँ?" रवि अपनी बाइक पर बैठते हुए बोला.
"क्या कहते हो बाबूजी, अरे इस गाओं में कौन है जो आपको नही जानता." उसकी बातों में हँसी थी. -"हवेली में कोई आदमी आए और लोगों को मालूम ना हो ऐसा कभी नही हुआ. इस गाओं का हर इंसान जानता है कि आप डॉक्टर हो और ठकुराइन का इलाज़ करने आए हो."
"ओह्ह्ह....!" रवि के मूह से निकला.
"पर एक बात समझ में नही आई बाबूजी." बिरजू ने रवि को चुभती नज़रों से घूरते हुए बोला - "आप हवेली में ठकुराइन का इलाज़ करने आए हो, पर यहाँ अकेले में हमारी गाओं की लड़की के साथ क्या कर रहे थे?"
रवि सकपकाया. उसकी समझ में नही आया कि वो क्या कहे, अचानक पुछे गये इस सवाल से उसके हाथ पावं फूल गये. -"देखिए मेरा कंचन से कोई वास्ता नही, मैं घूमने के लिए इधर आया हुआ था, सयोगवश मेरी उससे मुलाक़ात हो गयी."
"आपको कैसे मालूम कि उसका नाम कंचन है." बिरजू की आवाज़ में पैनापन था.
रवि हड़बड़ा गया. दार की एक चिंगारी उसके शरीर में फैल गयी. उसका डर इसलिए नही था कि वो बिरजू से डर गया था. वो इस बात से डर रहा था कि कहीं उसकी वजह से कंचन गाओं में बदनाम ना हो जाए. - "वह खुद बताई थी." रवि हकलाते हुए बोला.
"अरे साहेब आप ज़्यादा टेन्षन मत लो, मैं तो मज़ाक कर रहा था." बिरजू ने फिर से अपने गंदे दाँत दिखा दिए.
रवि भी उत्तर में मुस्कुराकर रह गया. फिर अपनी बाइक स्टार्ट करके हवेली के रास्ते मूड गया.
बिरजू उसे जाते हुए देखता रहा. उसे रवि पर संदेह सा हो रहा था. उसे इस बात की चिंता हो रही थी कि, जिस लड़की को हासिल करने के लिए वो सालो से तड़प रहा है, उसे एक परदेशी ना हासिल कर ले. इस एहसास ने उसके मन का सुकून छीन लिया था कि कुच्छ देर पहले कंचन इस सुनसान जगह में उस शहरी के साथ अकेली थी. उसका मन तरह तरह की कल्पनाएं करके उसे डराए जा रहा था. उस डॉक्टर ने कचन के साथ क्या क्या किया होगा, कहीं ऐसा तो नही की कंचन उसके झाँसे में आ गयी हो और अपना जिस्म उसे भोगने के लिए दे दिया हो. इन गाओं की भोली लड़कियों का भरोसा नही, शहर के चिकने लोगो को बहुत जल्दी अपना दिल दे देती है. अगर ऐसा हुआ होगा तो मैं उन दोनो को जान से मार डालूँगा, मेरे होते कंचन की जवानी का रस कोई दूसरा नही पी सकता. मुझे तत्काल कुच्छ करना होगा.
वह सोचता रहा. रवि के बारे में अभी वो कुच्छ नही कर सकता था. हो सकता है कि रवि ठीक कह रहा हो, बिना सबूत के वो रवि पर हाथ नही धर सकता था. वो कुच्छ देर सोचता रहा फिर तेज़ी से मुखिया के घर की तरफ बढ़ गया. उसने सोच लिया था कि उसे क्या करना है. अब चाहें कुच्छ भी हो जाए. वो कंचन को हासिल करके रहेगा.
कुच्छ ही देर में बिरजू मुखिया के घर में था. इस वक़्त घर में सिर्फ़ मुखिया धनपत राई की पत्नी सुंदरी थी. उसकी अमर 35 साल के आस-पास होगी. सुंदरी बेहद आकर्षक और खूबसूरत महिला थी. 35 की उमर में भी वो 30 से अधिक की नही लगती थी. बस शरीर थोड़ा भारी था. बिरजू को देखते ही उसकी आँखों की चमक बढ़ गयी. - "आओ राजा....आज पूरे चार दिन बाद आए हो, कहाँ कहाँ मूह मारते फिर रहे हो आजकल?"
बिरजू ने सुंदरी के करीब जाकर उसे अपने गोद में उठा लिया और सीधा बेडरूम में घुस गया. बिस्तर पर पटकते ही उसके बड़े बड़े बूब्स को मसलना शुरू कर दिया. -"क्या कर रहे हो ज़ालिम? क्या आज जान लेने के इरादे से आए हो?" सुंदरी कराह कर बोली.
पर बिरजू के मन में गुस्सा सवार था. उसे ऐसा लग रहा था कि उसके सामने सुंदरी ना होकर कंचन लेटी हुई है, और वो उसे इस बात की सज़ा दे रहा है कि उसने किसी शहरी को अपना यार क्यों बनाया.
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