RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 15
निक्की इस वक़्त अकेली हॉल में बैठी हुई थी, उसके हाथ में कोई पुस्तक थी, लेकिन वो पढ़ नही रही थी-बस एक सरसरी सी निगाह डालकर पन्नो को पलट-ती जा रही थी. उसका मॅन बेचैन था और वह उस पुस्तक से बहलाने की कोशिश कर रही थी. पर वो पुस्तक उसका मॅन बहला पाने में नाकाम हो रही थी. निक्की ने अंत में पुस्तक सेंटर टेबल पर लापरवाही से फेंकी और उठ खड़ी हुई. वह अभी खड़ी होकर कुच्छ सोच ही रही थी कि हॉल में कंचन दाखिल हुई. उसे देखते ही उसका सारा तनाव छट गया. बेचैन मॅन को एक राहत सी महसूस हुई.उसका सबसे प्यारा खिलोना जो आ गयी थी, वो चहक कर उसकी और बढ़ी. दोनो सहेलियाँ एक दूसरे की बाहों में समा गयी. फिर निक्की अलग होती हुई उसकी आँखों में झाँक कर बोली - "इतने दिन बाद क्यों आई? क्या तू भूल गयी कि मैं आई हुई हूँ."
"मेरा जी ठीक नही था. आज तो मैं स्कूल भी नही गयी." कंचन ने अपनी सफाई दी.
"क्यों तुझे क्या हुआ?" निक्की परेशान होकर बोली - "चल रूम में बैठते हैं." ये कहकर निक्की उसका हाथ पकड़कर अपने रूम में आ गयी. फिर उसे बिस्तर पर बिठाती हुई बोली - "अब बता क्या हुआ है तुझे? तेरा ये फूल सा चेहरा क्यों मुरझा गया है?"
"क्या बताऊ? मुझे खुद नही पता मुझे क्या हुआ है? बस कुच्छ दिनो से बड़ी विचित्र सी हालत हो गयी है." कंचन खोई खोई सी बोली.
निक्की उसका चेहरा ध्यान से देखती रही. फिर आगे बढ़ी और बिस्तर में उसके बराबर बैठ गयी. फिर उसके गले में अपनी बाहें डालकर उसके गालो को चूम ली.
कंचन के लिए ये कोई नयी बात नही थी. जब कभी निक्की को उसकी कोई बात अच्छी लगती थी, या उसे उसपर प्यार आता था तो वो ऐसे ही उसके गालो को चूम लिया करती थी. लेकिन सिर्फ़ गालो पर होंठो पर नही.
निक्की ने अपनी बाहों का घेरा हटाया फिर कंचन का चेहरा अपनी ओर करके बोली - "कंचन, क्या तुम्हे पता है...प्यार क्या होता है?"
कंचन उसकी बात पर शर्मा गयी. उसके मानस पटल पर बड़ी तेज़ी से रवि का चेहरा घूम गया. फिर निक्की को देखती हुई बोली - "मैं ज़्यादा नही जानती, बस इतना जानती हूँ कि जब किसी से प्यार हो जाता है तो बड़ी बुरी हालत हो जाती है, कभी तो सब चीज़ें अच्छी और नही लगने लगती है तो कभी कुच्छ भी अच्छा नही लगता. दिन और रात एक समान हो जाती है, ना रात को नींद आती है और ना दिन को चैन मिलता है. ना खाने पीने की सुध रहती है, ना पढ़ाई लिखाई में मॅन लगता है. हर घड़ी प्रेमी का चेहरा आँखों में घूमता रहता है. और मॅन हर समय उसी के ख्यालो में डूबा रहता है. और भी बहुत कुच्छ होता है. जो मैं नही जानती कि क्या होता है."
निक्की मुस्कुराते हुए कंचन की बातें सुन रही थी. जब कंचन रुकी तो उसने झट से उसके गालो को फिर से चूम लिया. फिर बोली - "तुम तो कह रही थी प्यार के बारे में थोड़ा जानती हूँ. क्या ये थोड़ा है?. अब और जानने को क्या रह गया है? इतना ग्यान तुम्हे कहाँ से मिला?" निक्की उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली - "कहीं तुम्हे भी किसी से प्यार तो नही हो गया? देख...मैं तो प्यार के बारे में एक ही सच जानती हूँ....ये प्यार दर्द और दुख के सिवा आज तक किसी को कुच्छ नही दिया. और मैं अपनी प्यारी सखी को दुखी नही देखना चाहती. इसलिए मैं तो यही कहूँगी की इस प्यार-व्यार के चक्कर में मत पड़ना."
निक्की की बात से कंचन ने एक लंबी आह भरी फिर मॅन में बोली - "अब तो देर हो चुकी है निक्की, तूने बताने में बहुत देर कर दी. अब तो तेरी ये सखी प्यार में पड़ चुकी है, और दुखी भी है. पर ये दुख बड़ा मीठा है, तेरी इस सखी को तो इस दुख से भी प्यार हो गया है." कंचन के होठ मुस्कुरा उठे.
"अरे क्यूँ मुस्कुरा रही है? हुआ क्या है तुझे?" निक्की उसको मॅन ही मॅन मुस्कुराते देख बोली - "सच बता नही तो मारूँगी."
"मुझे कुच्छ नही हुआ है निक्की." कंचन असली बात छुपा गयी, वो अभी अपने दिल का हाल निक्की को नही बताना चाहती थी. उसे तो अभी ये भी नही मालूम था कि रवि के मन में क्या है, क्या पता वो उसे स्वीकार ही ना करें, ऐसी दशा में उसकी जगह हसी भी हो सकती थी. वो नही चाहती थी कि उसके साथ निक्की भी दुखी हो. वह आगे बोली - "मैं तो यूँही तेरी बात सुनकर मुस्कुरा उठी थी.
"चल अब खड़ी हो जा" निक्की, कंचन को शरारत से देखती हुई बोली - "और अपने कपड़े उतार."
"क्यों...?" कंचन कांपति आवाज़ में बोली.
निक्की मुस्कुराइ. उसे कंचन की इस हालत पर बहुत तेज़ हसी आ रही थी, पर खुद को रोके रखी, फिर बोली - "मेरी जान, ये कपड़े नही उतारेगी तो मेरे लाए कपड़े कैसे पहनेगी?"
"ना...! मैं वो कपड़े ना पहनुँगी." कंचन तपाक से बोली और बिस्तर से उठ खड़ी हुई. वह सोच रखी थी कि निक्की ज़िद करेगी तो वो तुरंत दरवाज़े से भाग जाएगी.
पर निक्की ने तो आज उसे अपने लाए कपड़े पहनाने का पूरा मॅन बना लिया था. वो पलक झपकते ही कंचन तक पहुँची और उसके कपड़े उतारने लगी.
कंचन उससे छूटने का प्रयास करती रही. लेकिन निक्की नही मानी और पहले उसने उसकी पाजामी का नाडा. खींच दिया, कंचन का हाथ अपनी पाजामी की ओर गया तो निक्की ने उसकी कुरती को उपर करती चली गयी. कंचन ने लाख कोशिशे की पर निक्की के आगे टिक ना सकी. कुच्छ ही देर में वो सिर्फ़ ब्रा और पैंटी पहने खड़ी थी. कंचन का बुरा हाल था, जीवन में पहली बार वो किसी के सामने इतनी नंगी हुई थी. निक्की लड़की ही सही पर फिर भी उसके सामने ऐसी हालत में होने से शर्म से गाड़ी जा रही थी. वो एक हाथ से अपनी छातियाँ और दूसरे हाथ से अपनी पैंटी को ढकने का असफल प्रयास कर रही थी.
निक्की ने चमकती आँखों से उसके मांसल और गदराए शरीर को उपर से नीचे तक देखा फिर अपने होठों को गोल करके एक खास अंदाज़ में सीटी बजाई. उसका अंदाज़ ठीक वैसा ही था जैसे राह चलती लड़कियों को देखकर आवारा किस्म के लोग सीटी बजाते हैं.
कंचन ने उसकी सीटी की आवाज़ से बड़ी मुश्किल से गर्दन उठाकर उसपर नज़र डाली. उसी क्षण निक्की ने अपनी एक आँख दबा दी. फिर कामुक आवाज़ में बोली - "हाई मेरी जान, क्या कातिल जवानी है तेरी, तेरे इस रूप को कोई मर्द देख ले तो खड़े खड़े ही उसकी....!" उसने आगे की बात अधूरी छोड़ दी. फिर बोली - "चल अपनी चूचियों से अपने हाथ हटा और अपने बूब्स दिखा."
"छ्ची....!" कंचन हल्के गुस्से में बोली - "तू बहुत बिगड़ गयी है निक्की, कितनी गंदी बाते करने लगी है. अगर तू ऐसी ही बाते करेगी तो मैं कसम से फिर हवेली नही आउन्गि."
निक्की इस बार गंभीर हुई. - "सॉरी कंचन, अब से नही करूँगी. पर अब मेरे लाए कपड़े पहन ले. और खबरदार जो फिर कभी हवेली ना आने की बात की तो......मारूँगी तुझे."
निक्की की बात से कंचन का गुस्सा भी गायब हो गया. और वो बारी बारी से उसके लाए कपड़े पहनती रही, कपड़े इतने फॅशनबल थे कि कंचन को बंद कमरे में भी पहनकर शर्म महसूस हो रही थी. पर निक्की प्यार से उसके लिए लाई थी इसलिए वो इनकार भी ना कर सकी.कंचन जो भी ड्रेस पहनती....पहनने के बाद उसे रवि का ख्याल आ जाता, और वो सोचती - अगर रवि उसे इन कपड़ों में देखेगा तो सच में उसपर लट्टु हो जाएगा.
कुच्छ देर यूँही कपड़े पहनने और पहनने का सिलसिला चलता रहा. निक्की, कंचन को इन कपड़ों में देखकर फूले नही समा रही थी, पर कंचन का ध्यान उसकी खुशी में कहाँ था? वो तो रवि के ख्यालो में थी, वो बार बार किसी ना किसी बहाने से रूम से बाहर आती और बिना कारण ही नौकरों को उँची आवाज़ में कुच्छ ना कुच्छ लाने को कहती....! उसे ना तो भूख थी और ना ही प्यास...पर फिर भी नौकरों से कभी पानी मांगती तो कभी चाय तो कभी कुच्छ खाने की चीज़ें. उसके ऐसा करने का मक़सद रवि के कानो तक अपनी आवाज़ पहुँचानी थी. एक घंटे में वो काई बार अंदर बाहर हो चुकी थी. पर रवि के कानो तक उसकी आवाज़ नही पहुँची और ना वो बाहर आया. अब कंचन के अंदर निराशा ने डेरा ज़माना शुरू कर दिया था. वो उदास होती चली गयी. वो यहाँ किस काम से आई थी और क्या करने लग गयी. उसे रवि से ऐसी बेरूख़ी की उम्मीद नही थी. बस एक झलक देखने के लिए उसकी नज़रें उसके दरवाज़े की ओर बार बार जा रही थी. पर उसे निराशा के सिवा कुच्छ भी नही मिल रहा था. उसका दिल भारी हो गया. आँख से आँसू छलकने को आए पर निक्की का ध्यान करके रोके रखी.
अचानक ही उसके दिल ने कहा - हो सकता है साहेब हवेली लौटे ही ना हो, हो सकता है साहेब अभी भी उधर ही घूम रहे हो....और ये भी हो सकता है कि शायद वो मेरी राह देख रहे हों. "आहह" शायद ऐसा ही हुआ होगा. मुझे यहाँ आना ही नही चाहिए था. तो फिर मैं निक्की को बोलकर वापस जाती हूँ. शायद साहेब मुझे मिल जाए.
'डूबते को तिनके का सहारा' यहाँ ये कहावत कंचन पर लागू होती है. उसका मॅन हर तरफ से टूट चुका था पर फिर भी हारा नही था, उसे अब भी ये बिस्वास था कि वो रवि से ज़रूर मिल सकेगी. और उसे अपने दिल का हाल बताएगी. यही सोचते हुए वो वापस निक्की के कमरे में लौटी और उससे घर जाने की बात कह कर हवेली से बाहर निकल आई. और दिल में अपने साहेब से मिलन की आस लिए उबड़ खाबड़ पथरीले रास्तों को छलांगती तेज़ी से घाटियों की ओर भागती चली गयी.
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