RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
"मुझे शर्मिंदा ना कीजिए ठाकुर साहब, आप तो देवता स्वरूप इंसान हैं. मैने इतने दिन आपसे आपकी बेटी को दूर रखा इसके लिए हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिए." सुगना हाथ जोड़ते हुए बोला.
"सुगना, जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है. कंचन पर हमसे अधिक तुम्हारा अधिकार है. हम तुमसे बस एक विनती करना चाहते हैं, अगर तुम्हे ऐतराज़ ना हो तो कंचन को हवेली में रहने की इज़ाज़त दे दो. हम इसलिए नही कह रहे हैं कि तुम्हारे घर में उसे कोई दिक्कत है. नही.....हरगिज़ नही, हम ऐसा सोच भी नही सकते. हम तो बस इतना चाहते हैं कि वो कुच्छ दिन यहाँ रहे, ताकि....जो प्यार जो दुलार हम उसे दे ना सकें. वो फिर से उसे दे सकें. कुच्छ दिन उसके पिता होने का गौरव....हम भी हासिल कर सकें." ये कहने के बाद, ठाकुर साहब उम्मीद की नज़र से सुगना को देखने लगे.
"मुझे और शर्मिंदा मत कीजिए ठाकुर साहब. अभी चलिए और अपनी बेटी को अपने घर ले आइए." सुगना ने खुशी से अपने आँसू छलकाते हुए कहा.
"तुम धन्य हो सुगना, तुम्हारे मूह से ये शब्द सुनने के लिए हमारे कान तरस रहे थे, आओ चलें" ठाकुर साहब ये कहकर आगे बढ़ने को हुए, तभी दीवान जी से नज़र मिलते ही ठिठक गये. वे एक घृणात्मक दृष्टि दीवान जी पर डालते हुए बोले - "दीवान जी, हम आपको आपके उस अपराध के लिए क्षमा करते हैं जो कि आपने स्वार्थ में आकर मेरी बच्ची को मुझसे दूर कर दिया. पर इस अपराध के लिए आपको कभी क्षमा नही करेंगे कि आपने हमारी दूध-मूही बच्ची को जान से मरवाने की कोशिश की. हम ये कभी नही भूलेंगे दीवान जी.......हो सके तो अपनी सूरत फिर कभी हमारे सामने ना लाइयेगा."
दीवान जी की नज़रें अपरड़बोध से ज़मीन पर गढ़ सी गयी. वो कुच्छ देर ज़मीन ताकते रहे फिर काँपते पैरों के साथ हवेली से बाहर निकल गये.
ठाकुर साहब और सुगना के कदम भी बाहर की ओर उठते चले गये. फिर दोनो जीप में बैठकर बस्ती की ओर बढ़ गये.
कमला जी अभी भी पत्थेर की बुत बनी मुख्य द्वार की तरफ देख रही थी. सुगना द्वारा रहस्योदघाटन से वो अभी तक हैरान थी. अचानक वो पलटी और अपने कमरे की तरफ चल दी. जैसे ही उनके कदम सीढ़ियों की तरफ बढ़े उन्हे निक्की खड़ी दिखाई दी. रवि भी दूसरी और खड़ा आश्चर्य में डूबा हुआ था.
कमला जी सीढ़ियाँ चढ़ती हुई निक्की और रवि के पास आई. उन्होने एक व्यंग भरी दृष्टि निक्की पर डाली. कमला जी से नज़र मिलते ही निक्की की नज़रें शर्म से झुक गयी.
"रवि अपने कमरे में चलो. तुमसे कुच्छ बात करनी है." कमला जी रवि से बोली और आगे बढ़ गयी. रवि के कदम खुद ब खुद मा के पिछे हो लिए. पर जैसे ही वो दरवाज़े के अंदर होने को हुआ उसकी नज़र ना चाहते हुए भी निक्की की तरफ घूम गयी. जैसे ही उसकी नज़र निक्की पर पड़ी, वो अंदर तक काँप गया. निक्की उसे ही देख रही थी, किंतु उसके देखने में जो पीड़ा थी वो सीधे रवि के दिल तक आ रही थी. उसने निक्की को इतना उदास कभी नही देखा था. रवि को अपना दिल पिघलता हुआ सा लगा. वो ज़्यादा देर निक्की की पीड़ा भरी नज़रों का सामना ना कर सका. वो तेज़ी से कमरे के अंदर दाखिल हो गया.
उसके अंदर जाते ही निक्की भारी कदमों से सीढ़िया उतरती हुई हवेली से बाहर निकल गयी.
*****
दीवान जी इस वक़्त अपनी पत्नी रुक्मणी के साथ बात विवाद में उलझे हुए थे. रुक्मणी जी क्रोध में दीवान जी को उल्टी सीधी बात सुनाए जा रही थी.
तभी दरवाज़े से निक्की को खड़ा देख वे दोनो ही उसकी तरफ लपके.
दीवान जी उसे देखकर पीड़ा से भर उठे. किंतु रुक्मणी जी खुशी से रो पड़ी थी. आज बरसों बाद रुक्मणी जी निक्की को अपनी छाती से लगा रही थी. किंतु जो निक्की बचपन से मा के वात्सल्य के लिए तड़पति रही थी आज उसे मा का वात्सल्य अच्छा नही लग रहा था. उसके पिता की वजह से उसकी छाती पर जो घाव लगा था उसे ममता का मरहम भी नही भर पा रहा था. उसकी तड़प बढ़ती ही जा रही थी.
निक्की घायल नज़रों से दीवान जी को देखने लगी. -"आपने ऐसा क्यों किया पिताजी?"
"सिर्फ़ तुम्हारी खुशी के लिए निक्की." दीवान जी दुखी स्वर में बोले - "मैं जानता हूँ सच्चाई जान लेने के बाद तुम्हारे दिल को बहुत ठेस पहुँची है, पर ये सब उस नमक-हराम सुगना की वजह से हुआ है. मैं उसे ज़िंदा नही...."
"अपने दोष को किसी और का नाम मत दीजिए पिताजी." निक्की दीवान जी की बात काटे'ते हुए बोली. - "सुगना काका ने तो दूसरे की बेटी को जीवन दान दिया है, लेकिन आपने...... आपने तो अपनी ही बेटी को जीते जी मार डाला"
"ऐसा मत कह निक्की." दीवान जी तड़प कर बोले - "सब ठीक हो जाएगा. अभी ज़्यादा कुच्छ भी नही बिगड़ा है. हां हवेली तुमसे ज़रूर छीन गयी है, पर रवि को तुमसे कोई नही छीन सकता. खुद कमला जी ने ठाकुर साहब के सामने कसम ली है कि वो रवि का विवाह तुमसे करेंगी."
"लेकिन अब मैं रवि से शादी नही कर सकती पिता जी" निक्की एक आह भर कर बोली - "मैं उससे शादी करके ज़िंदगी भर उसके मज़ाक का पात्र नही बन सकती."
|