RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
ट्रेन के खुलते ही चिंटू घबरा उठा. उसने कंचन को बिरजू के साथ ट्रेन में चढ़ते देख लिया था. कंचन के ना आने से चिंटू की हिचकियाँ शुरू हो गयी. वो सीट पर खड़े खड़े रोने लगा.
तभी उसकी नज़र कंचन पर पड़ी. चलती ट्रेन में अपनी दीदी को जाते देख चिंटू का नन्हा दिल काँप उठा. उसकी दीदी उसे छोड़ कर कहाँ जा रही है? क्या वो अब कभी उससे नही मिल सकेगा. वो दीदी कहता हुआ सीट से कुदा और कंचन को छुने, उससे मिलने, उसे रोकने दौड़ पड़ा.
कंचन की नज़र भी चिंटू पर पड़ चुकी थी. चिंटू को प्लॅटफॉर्म पर यूँ भागता देख कंचन घबरा उठी. उसने पलटकर पिछे देखा. बिरजू उसके पिछे खड़ा मुस्कुरा रहा था.
कंचन ने आव देखी ना ताव.....एक ज़ोर की छलान्ग मारी और ट्रेन से नीचे कूद गयी.
बिरजू हक्का-बक्का रह गया.
उसने सपने में भी नही सोचा था कि कंचन इस तरह ट्रेन से कूद सकती है. लेकिन उसने भी ठान रखा था चाहें कुच्छ भी हो जाए आज वो कंचन को हाथ से जाने नही देगा.
ट्रेन अब स्टेशन से बाहर निकल चुकी थी और उसकी रफ़्तार भी बढ़ गयी थी.
बिरजू दरवाज़े से दो कदम पिछे हटा फिर द्रुत गति से ट्रेन के बाहर छलान्ग मारा.
किंतु किस्मत आज उसके साथ नही थी.
ट्रेन से कूदने से पहले वो ये नही देख पाया कि आगे बिजली का खंभा आने वाला है. वो जैसे ही ट्रेन से बाहर कुदा, उसका सर बिजली के खंभे से जा टकराया.
बिरजू खंभे से टकराकर नीचे गिरा. गिरते ही वो कुच्छ देर फड़फड़ा फिर शांत हो गया.
उसे गिरता देख प्लॅटफॉर्म पर मौजूद लोग तेज़ी से उसकी तरफ लपके.
कंचन भी उस दृश्य को अपनी खुली आँखों से देख चुकी थी. लेकिन उसे इस वक़्त चिंटू की चिंता थी.
ट्रेन से कूदने से उसका घुटना और हाथ बुरी तरह से छील गया था. जहाँ से रक्त की धार बह निकली थी. किंतु वो अपने दर्द की परवाह ना करते हुए फुर्ती से खड़ी हुई. फिर चिंटू की तलाश में दृष्टि घुमाई.
उसे चिंटू दौड़ता हुआ अपनी ओर आता दिखाई दिया.
कंचन ने आगे बढ़कर चिंटू को अपनी बाहों में समेट लिया. उसके गले लगते ही चिंटू फफक-कर रो पड़ा. कंचन की भी रुलाई फुट पड़ी.
कुच्छ देर में उनका रोना थमा तो कंचन चिंटू को लिए उस ओर बढ़ गयी. जिस ओर बिरजू गिरा था.
वहाँ लोगों की भीड़ जमा होती जा रही थी.
कंचन चिंटू को लिए भीड़ के नज़दीक पहुँची. वो आगे बढ़कर अंदर का नज़ारा देखने लगी. अंदर का दृश्य देखते ही उसका कलेजा मूह को आ गया.
बिरजू मरा पड़ा था. उसकी भयावह आँखें खुली अवस्था में भीड़ को घूर रही थी. सर फटने की वजह से ढेर सारा खून बहकर ज़मीन पर फैल गया था.
कंचन ज़्यादा देर उस दृश्य को नही देख सकी. वो भीड़ से बाहर निकली और चिंटू का हाथ थामे घर के रास्ते बढ़ गयी.
बिरजू की भयानक मौत ने उसके नारी मन को भावुक कर दिया था.
*****
शाम ढल चुकी थी. सुगना और दिनेश जी आँगन में बिछी चारपाई पर लेटे हुए थे.
शांता रसोई में दिनेश जी के लिए खाना परोस रही थी.
सुगना को अभी भूख नही थी. जब से कंचन हवेली गयी थी सुगना की भूख ही मिट गयी थी. यही हाल शांता का भी था. दोनो बच्चो के एक साथ चले जाने से घर सूना सूना सा हो गया था. किसी का भी दिल किसी चीज़ में नही लगता था.
शांता का मन फिर भी दिनेश जी से थोड़ा बहुत बहल जाता था. पर सुगना का दिल हमेशा कंचन की चिंता से भरा रहता था. उसे ये तो पता था क़ि हवेली में कंचन को कोई कष्ट ना होगा. फिर भी उसका मन कंचन की चिंता से घिरा रहता था.
अभी सिर्फ़ दो ही दिन हुए थे कंचन को हवेली गये और इस घर में मुर्दनि सी छा गयी थी. दो दिन पहले ये घर कंचन और चिंटू की नोक-झोंक, लड़ाई-झगड़े शोर-गुल से महका करता था. अब यहाँ हर दम वीरानी से छाई रहती.
पहले बिना विषय के भी सुगना और शांता घंटो बात कर लेते थे. अब विषय होने पर भी चार शब्द बोले नही जाते थे.
उनका दुखी हृदय कोई भी बात करने को राज़ी ही ना होता था. अब उनकी बातें सिर्फ़ हां-हूँ में पूरी हो जाती थी.
इस वक़्त भी सुगना कंचन के बारे में ही सोच रहा था. मूह में बीड़ी की सीलि दबाए वो कंचन के बचपन के दीनो में खोया हुआ था.
तभी दरवाज़े पर हलचल हुई.
सुगना ने गर्दन उठाकर देखा. कंचन चिंटू के साथ आँगन में परवेश करती दिखाई दी.
"कंचन...!" उसपर नज़र पड़ते ही सुगना के मूह से बरबस निकला.
सुगना की आवाज़ से शांता भी रसोई से बाहर निकली.
"बाबा..." कंचन कहती हुई सुगना से आ लिपटी.
"बेटी तुम लोग इस वक़्त यहाँ, और ये क्या हालत बना रखी है तूने? वहाँ सब ठीक तो है?" सुगना ने कंचन के हुलिए और मुरझाए चेहरे को देखते हुए कहा.
कंचन के जवाब देने से पहले शांता भी रसोई से आँगन में आ चुकी थी.
"सब गड़-बॅड हो गया है. वहाँ कुच्छ भी ठीक नही है." कंचन रुनवासी होकर बोली.
"क्या कह रही है तू....?" सुगना चौंकते हुए बोला - "ठाकुर साहब कैसे हैं? रवि बाबू और उनकी माजी कैसी हैं?"
"पिताजी अच्छे हैं, साहेब और माजी भी ठीक हैं....लेकिन वहाँ....."
"वहाँ सब अच्छे हैं तो फिर गड़-बॅड क्या है...?"
जवाब में कंचन ने हवेली से लेकर बिरजू के मरने तक की सारी बातें बता दी.
सुनकर सुगना के साथ साथ शांता और दिनेश जी के मूह भी खुले के खुले रह गये.
एक तरफ बिरजू की मौत से जहाँ शांता ने राहत की साँस ली, वहीं दूसरी तरफ रवि के पिता की मौत का रहस्य जानकर सुगना चींतीत हो उठा. उसे चिंता कंचन की थी. उसके विवाह की थी. इस रहस्य को जान लेने के पश्चात कमला जी कंचन को अपने घर की बहू बनाना स्वीकार करेंगी या नही ये सवाल उसके दिमाग़ में उथल-पुथल मचा रहा था.
"तू चिंता मत कर बेटी.....चल खाना खा ले. सब ठीक हो जाएगा." शांता उसे गले से लगाती हुई बोली.
"कुच्छ ठीक नही होगा बुआ." कंचन नाक फुलाकर बोली. - "मा जी मुझे अपनी बहू कभी नही बनाएँगी. मैं उन्हे पसंद नही."
"दुखी ना हो बेटी, तू तो लाखों में एक है. मेरे होते तुझे चिंता करने की ज़रूरत नही है. मैं सब ठीक कर दूँगा." सुगना ने कंचन को दिलाषा देते हुए कहा.
शांता कंचन को अंदर ले गयी और उसके ज़ख़्मो पर मरहम लगाने लगी. लेकिन जो ज़ख़्म उसके दिल पर लगे थे, उसका मरहम शांता के पास ना था और ना ही सुगना के पास.
सुगना चारपाई पर बैठा गेहन चिंता में डूबा हुआ था. वो यही सोचे जा रहा था. क्या वास्तव में कमला जी अपने पति की मृत्यु को भूलकर कंचन को अपनी बहू अपना सकेंगी. या फिर ज़िंदगी भर कंचन को रवि बाबू के लिए तड़पना पड़ेगा. उसकी सोच गहरी होती जा रही थी. पर उसे अपने किसी भी सवाल का जवाब नही मिल रहा था.
सचमुच इस बार वादी ने ऐसा तीर छोड़ा था जिसकी कोई काट उसके पास ना थी. वो सिर्फ़ तड़प सकता था. तड़प उठा था.
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