RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
सिमरन अपने विचारो से बाहर आई और तुरंत गॅस ऑफ किया, “ओह सॉरी चाची जी, ध्यान भटक गया था.”
“कोई बात नही बेटा होता है कभी-कभी. वैसे क्या सोच रही थी तुम. ज़रूर आदित्य के बारे में ही सोच रही होगी.”
सिमरन का चेहरा शरम से लाल हो गया ये सुन कर. उसने बात को टालते हुवे कहा, “आप चलिए मैं चाय लाती हूँ.”
“इतनी सुंदर और सुशील बहू हमें ढूँढे नही मिलती. अच्छा हुवा जो कि तुम बचपन में ही हमारे आदित्य की बीवी बन गयी.” चाची ने कहा.
“चलिए ना चाची जी मैं चाय ला रही हूँ.” सिमरन शरमाते हुवे बोली.
“हां ले आओ बेटा…” चाची ने कहा और चली गयी
चाची के साथ ही निशा खड़ी थी. वो आदित्य के चाचा, चाची की, इक-लौति संतान थी. चाची के जाने के बाद वो सिमरन के पास आई और बोली, “भाभी बड़ी खुश लग रही हो. खुशी-खुशी में चाय खराब तो नही कर दी.”
“चल भाग यहा से…तुझे कौन सा चाय पीनी होती है. खराब भी हुई तो तुझे क्या फरक पड़ेगा.” सिमरन ने कहा.
“वैसे भैया को ना आप देख पाई उठने के बाद और ना मैं. आप देल्ही चली गयी और मुझे अपने कॉलेज की ट्रिप पे जाना पड़ा.” निशा ने कहा.
“अच्छी बात ये है कि वो ठीक हैं, इन बातों से कोई फरक नही पड़ता है.” सिमरन ने कहा.
“हां ये तो है…भाभी तुमने कितनी सेवा की है भैया की. कोई और इतना नही कर सकता था.”
“बस-बस…चल ये बिस्कट ले कर जा मैं चाय की ट्रे लाती हूँ.” सिमरन ने कहा.
सिमरन चाय लेकर आई ड्रॉयिंग रूम में तो रघु नाथ ने कहा, “बेटा मैं सोच रहा हूँ कि पहले तुम आदित्य से मिल लो. दोनो मिल कर डिसाइड कर लो कि गोना कब करना है. फिर अपने पापा को बुला लेना.”
“नही चाचा जी कैसी बात कर रहे हैं आप. मैं कुछ डिसाइड नही कर सकती. सब कुछ मम्मी,पापा ही डिसाइड करेंगे.” सिमरन ने कहा.
“वो तो ठीक है बेटा. पर वक्त बदल गया है अब. तुम दोनो एक दूसरे से मिल कर सब कुछ तैय करोगे तो अच्छा रहेगा.”
सिमरन कुछ परेशान सी हो गयी ये सुन कर और चाय रख कर चली गयी वाहा से.
“आप भी ना. वो कैसे करेगी बात आदित्य से, वो भी अपने गोने के बारे में. क्या देखा नही आपने कि वो कितना शरमाती है. ज़्यादा बाते करनी आती भी नही उसे. ये बातें तो आपको ही करनी होंगी सिमरन के घर वालो से. ये बच्चे क्या डिसाइड करेंगे.” चाची ने कहा
“तुम्हे नही पता भाग्यवान. आजकल के बच्चे बहुत बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. हम जो डिसाइड करेंगे शायद वो इन्हे अच्छा ना लगे.” रघु नाथ ने धीरे से कहा.
“ऐसा क्यों बोल रहे हैं आप.” चाची ने पूछा.
रघु नाथ ने पूरी बात बता दी अपनी बीवी को.
“हे भगवान! ऐसा सोच भी कैसे सकता है आदित्य. ऐसा हुवा तो अनर्थ हो जाएगा. मैं बात करूँगी उस से. दिमाग़ खराब हो गया है उसका जो कि ऐसी बाते कर रहा है.”
“बहुत समझाया मैने उसे मगर उसने मेरी एक नही सुनी” रघु नाथ ने कहा.
“अच्छा तभी आप दोनो को मिलने को बोल रहे थे.”
“हां मैं चाहता हूँ कि जो भी बात करनी है आदित्य खुद करे सिमरन से. मैं अपने मूह से उसे ये सब नही बता सकता.”
“आदित्य को समझावँगी मैं. वो मेरी बात ज़रूर मानेगा. और सिमरन को देखा नही है उसने अब तक. एक बार मिल लेगा तो पता चलेगा उसे कि वो किसे ठुकराने की सोच रहा है.”
“भगवान से यही दुवा है की सिमरन के साथ कोई अनर्थ ना हो. आदित्य का कुछ नही बिगड़ेगा… वो लड़का है, सब कुछ सिमरन का ही बिगड़ेगा.”
“ऐसा कुछ नही होगा आप शांत रहें. आपको सिमरन की बहुत चिंता हो रही है…बिल्कुल अपनी निशा की तरह मानते हैं आप उसे.”
“हां मेरी बेटी ही है सिमरन. देख नही पाउन्गा उसके साथ ये अनर्थ होते हुवे.” रघु नाथ ने कहा.
क्रमशः...............................
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