RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
दोनो ने शांति से खाना खाया. और खाना खाने के बाद आदित्य ने हंसते हुवे कहा, “अब एक स्वीट डिश हो जाए.”
“स्वीट डिश नही बनाई…अभी बना कर लाती हूँ कुछ.”
“नही…नही रूको मैं मज़ाक कर रहा था. वैसे कहते हैं कि चुंबन स्वीट होता है.”
“श्रीमान वो भी उपलब्ध नही है इस समय. थोड़ा वक्त लगेगा.” ज़रीना मुश्कुरा कर वापिस किचन की ओर चल दी.
“कितना वक्त लगेगा तैयार होने में.?” आदित्य ने पूछा.
“क्या स्वीट डिश या…” ज़रीना ने मूड कर पूछा.
“दोनो के बारे में बता दो.”
“स्वीट डिश अभी 10 मिनिट में बना देती हूँ. उसमे कितना टाइम लगेगा पता नही.” ज़रीना हंसते हुवे किचन में घुस गयी.
“ओह ज़रीना कितनी प्यारी हो तुम. ऐसी ही रहना हमेशा. मुझे चुंबन की जल्दी नही है जान. बस मज़ाक कर रहा हूँ तुमसे. तुम मेरी अपनी हो ना इतना मज़ाक तो कर ही सकता हूँ. बुरा मत मान-ना.” आदित्य ने मन ही मन कहा.
“आदित्य मुझे शरम आने लगी है अब तुम्हारे साथ. थोड़ा डर भी लगने लगा है तुमसे. पर सब कुछ अच्छा भी लग रहा है. तुम यू ही रहना हमेशा मेरे लिए. चुंबन अगर बहुत ज़रूरी है तो ले लो. पर नाराज़ मत होना मुझसे. जी नही पाउन्गि तुम्हारे बिना.” ज़रीना की आँखे नम हो गयी सोचते सोचते.
ये भी प्यार का अजीब सा रूप है. बिन कहे बहुत सारी बाते होती हैं और समझी भी जाती हैं. ज़रीना और आदित्य लगभग एक सी बाते सोच रहे थे. दिस ईज़ रियली ग्रेट.
अगले दिन आदित्य और ज़रीना मुंबई के लिए रवाना हो गये. दोपहर 3 बजे पहुँच गये वो मुंबई. कोलाबा में घर था आदित्य के चाचा जी का. इश्लीए वही एक होटेल में रुक गये आदित्य और ज़रीना. कुछ देर आराम करने के बाद आदित्य ने कहा, “जान मैं मिल आता हूँ सिमरन से. तुम यही रूको.”
“हां मिल आओ और शांति से काम लेना. उसकी कोई ग़लती नही है. कुछ भला बुरा मत बोल देना उसे. बहुत सेवा की है उसने तुम्हारी. अपना पत्नी धरम निभाया है. मुझे यकीन है कि तुम सब ठीक करके लोटोगे. काश मैं भी चल पाती तुम्हारे साथ.” ज़रीना ने कहा
“पहले माहॉल देख लूँ वाहा का. फिर तुम्हे भी ले चलूँगा. चाचा चाची से तो तुम्हे मिलवाना ही है.” आदित्य ने कहा.
आदित्य ज़रीना को होटेल में छ्चोड़ कर चाचा जी के घर की तरफ चल दिया. पैदल ही चल दिया वो. बस कोई 15 मिनिट की वॉकिंग डिस्टेन्स पर था उसके चाचा जी का घर. दिल में बहुत सारे सवाल घूम रहे थे. चेहरे पर शिकन सॉफ दीखाई दे रही थी. ज़रीना से ये सब छुपा रखा था उसने, क्योंकि उसे परेशान नही करना चाहता था. मगर अब उसके दिलो-दिमाग़ को चिंता और परेशानी ने घेर लिया था. उसे खुद नही पता था कि कैसे हॅंडल करना है सब कुछ, हां बस वो इतना जानता था की उसे हर हाल में इस समस्या का समाधान करना है.
आदित्य घर पहुँचा और बेल बजाई तो उसकी चाची ने दरवाजा खोला.
“नमस्ते चाची जी” आदित्य ने पाँव छूते हुवे कहा.
“नमस्ते तो ठीक…तुम ये बताओ समझते क्या हो तुम खुद को. बिना बताए भाग गये थे यहा से…कान खींचने पड़ेंगे तुम्हारे लगता है?” चाची बहुत गुस्से में दिख रही थी.
“चाची जी मुझे माफ़ कर दीजिए…मेरी कुछ मजबूरी थी.” आदित्य गिड़गिदाया.
“आओ अंदर..देखती हूँ क्या मजबूरी थी तुम्हारी.” चाची ने कहा.
आदित्य अंदर आ गया चुपचाप. चाची ने कुण्डी लगा कर आवाज़ दी, “अजी सुनते हो आदित्य आ गया है.”
उस वक्त सिमरन कमरे में सोई हुई थी. चाची की आवाज़ सुनते ही उठ गयी, “आप आ गये…”
सिमरन के साथ निशा भी थी कमरे में. सिमरन ने निशा को कंधे पर हाथ रख कर हिलाया, “उठो तुम्हारे भैया आ गये हैं.”
“आदित्य भैया आ गये?” निशा ने आँखे मलते हुवे कहा.
“हां आ गये हैं. जाओ मिल लो जाकर?” सिमरन ने कहा.
“अरे सबसे पहले आपको मिलना चाहिए…चलिए अभी मिल्वाति हूँ आप दोनो को. बल्कि आप यही रुकिये मैं भैया को खींच कर लाती हूँ यही.” निशा ने कहा.
“नही रूको मिल लेंगे…इतनी जल्दी क्या है?”
“कैसी बाते करती हो भाभी…ज़्यादा नाटक मत किया करो.” निशा कह कर कमरे से बाहर आ गयी.
आदित्य चुपचाप चाचा चाची के साथ सोफे पर बैठा था. चाची डाँट पे डाँट पीलाए जा रही थी उसे, घर से चले जाने की बात को लेकर.
“मम्मी क्यों डाँट रही हो भैया को…आओ भैया भाभी इंतेज़ार कर रही है तुम्हारा.” निशा ने कहा.
आदित्य से कुछ भी कहे नही बना. उसके तो जैसे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी ये सुन कर.
“निशा तुम जाओ. आदित्य अभी आएगा थोड़ी देर में” रघु नाथ ने गंभीर आवाज़ में कहा.
“पापा बात क्या है…आप सब लोग गुमशुम क्यों हैं. भैया आपने मुझसे ठीक से बात भी नही की. सब ठीक तो है ना.”
“तुमसे कहा ना आदित्य आ रहा है. जाओ यहा से.” रघु नाथ ने निशा को डाँट दिया.
निशा मूह लटका कर वाहा से चली गयी.
क्रमशः...............................
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