प्यारी भाभी
05-22-2014, 10:09 AM,
#1
प्यारी भाभी
मेरा नाम रामु है। मैन सोल्लेगे मेन परहता हुन। मेरि उमरा अब बीस साल है। मैन एक साल से अपने भैया और भभि के साथ रह रहा हुन। भैया एक बरि सोमपनी मेन कम करते हैन। मेरि भभि कनचन बहुत हि सुनदेर है। भैया कि शादि को दो साल हो चुके हैन। भभि कि उमरा 24 साल है। मैन भभि कि बहुत इज़्ज़त करता हुन और वोह भि मेझे बहुत चहति है। हुम दोनो मेन खूब दोसति है और हनसि मज़क चलता रहता है। भभि परहै मेन भि मेरि सहयता करति है। वोह मुझे मथस परहति है।

एक दिन कि बात है। भभि मुझे परहा रहि थि और भैया अपने कमरे मेन लेते हुए थे। रात के दस बजे थे। इतने मेन भैया कि अवज़ आइ " कनचन, और कितनि देर है जलदि आओ ना"। भभि अधे मेन से उथते हुए बोलि " रमु बकि कल करेनगे तुमहरे भैया आज कुस्सह जदा हि उतवले हो रहे हैन।" यह कह कर वोह जलदि से अपने कमरे मेन चलि गयि। मुझे भभि कि बात कुस्सह थीक से समझ नहि आइ। कफ़ि देर तक सोचता रहा, फिर अचनक हि दिमग कि तुबे लिघत जलि और मेरि समझ मेन आ गया कि भैया को किस बात कि उतवलि हो रहि थि। मेरे दिल कि धकन तेज़ हो गयि। आज तक मेरे दिल मेन भभि को ले कर बुरे विचर नहि अये थे, लेकिन भभि के मुनह से उतवले वलि बात सुन कर कुस्सह अजीब सा लग रहा था। मुझे लगा कि भभि के मुनह से अनयस हि येह निकल गया होगा। जैसे हि भभि के कमरे कि लिघत बुनद हुइ मेरे दिल कि धकन और तेज़ हो गयि। मैने जलदि से अपने कमरे कि लिघत भि बुनद कर दि और चुपके से भभि के कमरे के दरवज़े से कान लगा कर खरा हो गया। उनदेर से फुसफुसने कि अवज़ आ रहि थि पर कुस्सह कुस्सह हि साफ़ सुनै दे रहा था।

" कयोन जि आज इतने उतवले कयोन हो रहे हो?"

" मेरि जान कितने दिन से तुमने दि नहि। इतना जुलम तो ना किया करो।"

"चलिये भि,मैने कब रोका है, आप हि को फुरसत नहि मिलति। रमु का कल एक्सम है उसे परहना ज़रूरि था।"

" अब सरिमति जि कि इज़ज़त हो तो अपकि चूत का उदघतन करुन।"

" है रम! कैसि बतेन बोलते हो।शरम नहि आति"

" शरम कि कया बात है। अब तो शादि को दो साल हो चुके हैन, फिर अपनि हि बिबि को चोदने मेन शरम कैसि"

" बरे खरब हो। अह।।आअ।।अह है रम…।औइ माअ……आआह…… धीरे करो रजा अभि तो सरि रात बकि है"

मैन दरवज़े पर और ना खरा रह सका। पसीने से मेरे कपरे भीग चुके थे। मेरा लुनद उनदेरवेअर फर कर बहर आने को तयर था। मैन जलदि से अपने बिसतेर पर लैत गया पर सरि रत भभि के बरे मेन सोचता रहा। एक पल भि ना सो सका।ज़िनदगि मेन पहलि बर भभि के बरे मेन सोच कर मेरा लुनद

खरा हुअ था। सुबह भैया ओफ़्फ़िसे चले गये। मैन भभि से नज़रेन नहि मिला पा रहा था जबकि भभि मेरि कल रात कि करतूत से बेखबर थि। भभि कितचेन मेन कम कर रहि थि। मैन भि कितचेन मेन खरा हो गया। ज़िनदगि मेन पहलि बर मैने भभि के जिसम को गौर से देखा। गोरा भरा हुअ गदरया सा बदन,लुमबे घने कले बाल जो भभि के घुतने तक लतकते थे, बरि बरि अनखेन, गोल गोल आम के अकर कि चुचिअन जिनका सिज़े 38 से कम ना होगा, पतलि कमर और उसके नीचे फैलते हुए चौरे, भरि नितमब । एक बर फिर मेरे दिल कि धकन बरह गयि । इस बर मैने हिम्मत कर के भभि से पूच हि लिया।

" भभि, मेरा आज एक्सम है और आप को तो कोइ चिनता हि नहि थि। बिना परहहे हि आप कल रात सोने चल दि"

" कैसि बातेन करता है रमु, तेरि चिनता नहि करुनगि तो किसकि करुनगि?"

" झूत, मेरि चिनता थि तो गयि कयोन?"

" तेरे भैया ने जो शोर मचा रखा था।"

" भभि, भैया ने कयोन शोर मचा रखा था" मैने बरे हि भोले सवर मेन पूचा। भभि शयद मेरि चलकि समझ गयि और तिरचि नज़र से देखते हुए बोलि,

" धत बदमश, सब समझता है और फिर भि पूच रहा है। मेरे खयल से तेरि अब शादि कर देनि चहिये। बोल है कोइ लदकि पसनद?"

" भभि सच कहुन मुझे तो आप हि बहुत अछि लगति हो।

" चल नलयक भग येहन से और जा कर अपना एक्सम दे।"

मैन एक्सम तो कया देता, सरा दिन भभि के हि बरे मेन सोचता रहा। पहलि बर भभि से ऐसि बतेन कि थि और भभि बिलकुल नरज़ नहि हुइ। इस्से मेरि हिम्मत और बधने लगि। मैन भभि का दिवना होता जा रहा था। भभि रोज़ रात को देर तक परहति थि । मुझे महसुस हुअ शयद भैया भभि को महीने मेन दो तीन बर हि चोदते थे। मैन अकसर सोचता, अगर भभि जैसि खूबसूरत औरत मुझे मिल जये तो दिन मेन चर दफ़े चोदुन।

दिवलि के लिये भभि को मयके जना था। भैया ने उनहेन मयके ले जने का कम मुझे सोनपा कयोनकि भैया को छुत्ति नहि मिल सकि। बहुत भीर थि। मैन भभि के पीचे रैलवय सततिओन पर रेसेरवतिओन कि लिने मेन खरा था। धक्का मुक्कि के करन अदमि अदमि से सता जा रहा था। मेरा लुनद बर बर भभि के मोते मोते नितमबोन से रगर रहा था।मेरे दिल कि धकन तेज़ होने लगि। हलकि मुझे कोइ धक्का भि नहि दे रहा था, फिर भि मैन भभि के पीचे चिपक के खरा था। मेरा लुनद फनफना कर उनदेरवेअर से बहर निकल कर भभि के चुतरोन के बीच मेन घुसने कि कोशिश कर रहा था। भभि ने हलके से अपने चुत्रोन को पीचे कि तरफ़ धक्का दिया जिससे मेरा लुनद और जोर से उनके चुतरोन से रगरने लगा। लगता है भभि को मेरे लुनद कि गरमहत महसुस हो गयि थि और उसका हाल पता था लेकिन उनहोनेन दूर होने कि कोशिश नहि कि। भीर के करन सिरफ़ भभि को हि रेसेरवतिओन मिला। त्रैन मेन हुम दोनो एक हि सेअत पर थे। रात को भभि के कहने पर मैने अपनि तनगेन भभि के तरफ़ और उनहोने अपनि तनगेन मेरि तरफ़ कर लिन और इस परकर हुम दोनो असनि से लैत गये। रात को मेरि अनख खुलि तो त्रैन के निघत लमप कि हलकि हलकि रोशनि मेन मैने देखा, भभि गहरि नीनद मेन सो रहि थि और उसकि सरि जनघोन तक सरक गयि थि । भभि कि गोरि गोरि ननगि तनगेन और मोति मनसल जनघेन देख कर मैन अपना सोनत्रोल खोने लगा। सरि का पल्लु भि एक तरफ़ गिरा हुअ था और बरि बरि चुचिअन बलौसे मेन से बहर गिरने को हो रहि थि। मैन मन हि मन मनने लगा कि सरि थोरि और उपर उथ जये तकि भभि कि चूत के दरशन कर सकुन। मैने हिम्मत करके बहुत हि धीरे से सरि को उपर सरकना शुरु किया। सरि अब भभि कि चूत से सिरफ़ 2 इनच हि नीचे थि पर कम रोशनि होने के करन मुझे यह नहि समझ आ रहा था कि 2इनच उपर जो कलिमा नज़र आ रहि थि वोह कले रनग कि कछि थि या भभि कि झतेन। मैने सरि को थोरा और उपर उथने कि जैसे हि कोशिसक कि, भभि ने करवत बदलि और सरि को नीचे खीनच लिया। मैने गहरी सनस लि और फिर से सोने कि कोशिश करने लगा।

मयके मेन भभि ने मेरि बहुत खतिरदरि कि। दस दिन के बद हुम वपस लोत आये। वपसि मेन मुझे भभि के साथ लैतने का मोका नहि लगा। भैया भभि को देख कर बहुत खुश हुए और मैन समझ गया कि आज रात भभि कि चुदै निशचित है। उस रात को मैन पहले कि तरह भभि के दरवज़े से कन लगा कर खरा हो गया।भैया कुछ ज़यदा हि जोश मेन थे । उनदेर से अवज़ेन साफ़ सुनै दे रहि थि।

" कनचन मेरि जान, तुमने तो हमेन बहुत सतया। देखो ना हमरा लुनद तुमहरि चूत के लिये कैसे तरप रहा है। अब तो इनका मिलन करवा दो।"

" है रम, आज तो येह कुछ ज़यदा हि बरा धिख रहा है। ओह हो! थहरिये भि, सरि तो उतरने दिजिये।"

"बरा कयोन नहि उतरि मेरि जान, पूरि तरह ननगि करके हि तो चोदने मेन मज़ा आता है। तुमहरे जैसि खूबसूरत औरत को चोदना हर अदमि कि किसमत मेन नहिन होता।"

"झूत! ऐसि बात है तो आप तो महीने मेन सिरफ़ दो तीन बर हि ……।।"

" दो तीन बर हि कया?"

" ओह हो, मेरे मुनह से गनदि बात बुलवना चहते हैन"

" बोलो ना मेरि जान, दो तीन बर कया।"

" अछा बबा, बोलति हुन; महीने मेन दो तीन बर हि तो चोदते हो। बुस!!"

" कनचन, तुमहरे मुनह से चुदै कि बात सुन कर मेरा लुनद अब और इनतज़र नहिन कर सकता। थोरा अपनि तनगेन और चौरि करो। मुझे तुमहरि चूत बहुत अछि लगति है, मेरि जान।"

" मुझे भि अपका बहुत……। आआह…।।मर गयि…।ऊओह…।आह…ऊफ़।।औइ मा, बहुत अछा लग रहा है…।थोरा धीरे…हन थीक है…।थोरा ज़ोर से…आह।।अह।।अह ।"
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