RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
कमाण्डर करण सक्सेना ने जंगल में आँख खोली ।
दिन अब खूब अच्छी तरह निकल आया था । सूर्य की प्रकाश रश्मियां, जो बर्मा के उन घने जंगलों में जमीन तक बड़ी मुश्किल से पहुँच पाती थीं, अब चारों तरफ फैली हुई थीं ।
चिड़ियों के चहचहाने का शोर हर तरफ सुनाई दे रहा था ।
“लगता है ।” कमाण्डर करण सक्सेना अंगड़ाई लेता हुआ बोला- “आज काफी देर तक सोया हूँ ।”
उसने अपनी रिस्टवॉच देखी ।
दस बज रहे थे ।
इस वक्त कमाण्डर करण सक्सेना बरगद के एक बहुत घने पेड़ पर कम्बल बांधे लेटा था । अपने ऊपर हमेशा की तरह उसने एक कैमोफ्लाज किट ढक रखी थी ।
“आज थोड़ा व्यायाम करना चाहिये, इससे शरीर में थोड़ी ताज़गी आयेगी ।”
कमाण्डर करण सक्सेना ने कैमोफ्लाज किट हटाकर फोल्ड की ।
कम्बल खोला ।
फिर उन दोनों चीजों को अपने हैवरसेक बैग में रखकर वो पेड़ से नीचे उतर आया ।
यूं तो आधी से ज्यादा रात उसकी हंगामे से भरी गुजरी थी । लेकिन बार्बी को मार डालने के बाद वह खतरा कुछ कम अनुभव करने लगा था और उसकी इच्छा होने लगी थी कि अब थोड़ा आराम किया जाये । वैसे भी वो सारा दिन और सारी रात का थका-हारा था ।
बस उसने फौरन उस पेड़ पर शरण ले ली, लेटते ही उसे नींद ने आ दबोचा ।
आज बर्मा के उन खौफनाक जंगलों में आये हुए उसे दो दिन हो चुके थे ।
दो दिन !
वह कुछ कम नहीं होते ।
परन्तु कमाण्डर करण सक्सेना को इस बात का संतोष था कि उसके दो दिन जहाँ बहुत हंगामे से भरे गुजरे थे, वहीं वो तीन योद्धाओं को मारने में भी सफल हो गया था । जोकि उसकी एक बड़ी उपलब्धि थी ।
पेड़ से नीचे आने के बाद कमाण्डर करण सक्सेना सबसे पहले नित्यकर्मों से निपटा और फिर उसने व्यायाम शुरू कर दिया ।
वह देसी व्यायाम कर रहा था ।
उस जैसे घने जंगल में वैसे भी देसी व्यायाम ही संभव था । इसके अलावा कमाण्डर यह भी जानता था कि देसी व्यायाम ही शरीर को सही मायनों में सौष्ठव बनाता है, अधिक बल प्रदान करता है । क्योंकि पश्चिमी देशों में व्यायाम करने के लिये मशीनें तो तरह-तरह की इजाद हुई हैं, बहुत-सी मल्टीपरपज मशीनें भी बाजारों में हैं, जो नौजवानों को बड़ी जल्दी अपनी तरफ आकर्षित करती हैं । उन मशीनों से व्यायाम करने पर शरीर बहुत जल्दी सौष्ठव मालूम होने लगता है, लेकिन वो सौष्ठवपन स्थायी नहीं होता । जैसे ही कोई कुछ दिन तक व्यायाम करना बंद करता है, तो शरीर पहले से भी कहीं ज्यादा लटक जाता है । इस मामले में अपने उन देसी व्यायामों का कोई जवाब नहीं है, जिन्हें प्राचीन काल में पहलवानों से लेकर ऋषि-मुनि तक करते थे । देसी व्यायाम करने से शारीरिक रचना के सौष्ठव आकार लेने में तो थोड़ा समय लगता है, लेकिन वो पूरी तरह स्थायी रूप होता है ।
स्थायी भी और ज्यादा सुंदर भी ।
कमाण्डर काफी देर तक जंगल में व्यायाम करता रहा ।
उसने तरह-तरह के आसन किये और क्रियायें कीं ।
सबसे आखिर में उसने शीर्षासन किया, अपना सिर नीचे करके टांगें ऊपर उठा दीं ।
शीर्षासन !
वह देसी व्यायामों में उसका सबसे मनपसंद आसन था ।
इससे चेहरे का तेज बढ़ता है और दिमाग तन्दरूस्त होता है ।
कमाण्डर काफी देर तक शीर्षासन की मुद्रा में ही रहा । फिर वह उछलकर सीधा खड़ा हो गया था । उसके बाद उसने विटामिनयुक्त पाउडर के दूध का सेवन किया और मक्खन लगाकर कुछ स्लाइस्ड खाये ।
अब वह खुद को काफी चुस्त अनुभव कर रहा था ।
आँखों में भी चमक थी ।
कमाण्डर करण सक्सेना कुछ देर शिकारी चीते की तरह जंगल में इधर-उधर देखता रहा ।
मगर !
उसे आसपास खतरे का कोई आभास न मिला ।
फिलहाल वो सुरक्षित था ।
कमाण्डर करण सक्सेना जानता था, अभी सपोर्ट ग्रुप के तीन योद्धा और बचे हैं ।
फिर असॉल्ट ग्रुप के छः योद्धा थे ।
जो और खतरनाक थे ।
और जानलेवा ।
बहरहाल जैसे-जैसे वक्त गुजरना था, योद्धाओं से उसका वह मुकाबला कड़ा होता जाना था । उन बारह योद्धाओं ने अपने आपको दो ग्रुपों में बांटा ही इसलिये था । पहले छः योद्धाओं का ‘सपोर्ट ग्रुप’ इसलिये बनाया हुआ था, क्योंकि फील्ड का ज्यादातर काम वही छः योद्धा देखते थे । दूसरे ‘असाल्ट ग्रुप’ के छः योद्धा तो तभी फील्ड में उतरते थे, जब उनके फील्ड में उतरने के सिवाय दूसरा कोई चारा न रहे ।
“अब जंगल में आगे बढ़ना चाहिये ।” कमाण्डर करण सक्सेना होठों-ही-होठों में बुदबुदाया ।
उसने हैवरसेक बैग अपनी पीठ पर कस लिया ।
उसके बाद उसने आगे का सफर शुरू किया ।
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