RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
वह न जाने कितनी देर उसी तरह पेड़ पर बैठा रहा ।
एकाएक कमाण्डर बुरी तरह चौंका ।
वो एक ‘लाल घेरा’ था, जो पेड़ की पत्तियों पर इधर-उधर मंडरा रहा था ।
खतरा !
फौरन यही बात कमाण्डर के दिमाग में कौंधी ।
वह जरूर ‘लिजर्ड’ रिवॉल्वर से निकलने वाला लेज़र बीम का लाल घेरा था, जो अब उसे अपने निशाने पर लेना चाहता था । तभी वो लाल घेरा उसकी खोपड़ी पर आकर टिक गया ।
कमाण्डर ने एक सेकण्ड की भी देर न की, फौरन उसने पेड़ से नीचे छलांग लगा दी ।
धांय !
गोली पेड़ के पत्तों के बीच में-से सनसनाती हुई गुजरी ।
कमाण्डर ने पहाड़ी की तरफ देखा, गोली वहीं से चलायी गयी थी ।
उसे पहाड़ी के ऊपर हवाम खड़ा नजर आया ।
जरूर उसने पहले ही कमाण्डर को वहाँ पेड़ पर छिपे देख लिया था और उसे धोखे में रखने के लिए वो जानबूझकर पहाड़ी के पीछे चला गया था । इस वक्त हवाम के हाथ में दो ‘लिजर्ड’ रिवॉल्वर थीं और उन दोनों रिवॉल्वरों में-से लेजर बीम के लाल घेरे निकल रहे थे ।
कमाण्डर अपनी पूरी ताकत के साथ भागा ।
हवाम भी पहाड़ी से दौड़ता हुआ नीचे उतरा और उसके पीछे-पीछे झपटा ।
लेजर बीम के लाल घेरे कमाण्डर को अपने टार्गेट प्वाइंट पर लेने की कोशिश करने लगे ।
कमाण्डर भागता रहा ।
वो सर्प की तरह लहराता हुआ भाग रहा था, ताकि हवाम उसे अपने निशाने पर न ले सके ।
लेजर बीम के लाल घेरे उसका पीछा करते रहे ।
उस समय पूरे ‘मंकी हिल’ पर शान्ति थी । अफ्रीकन गुरिल्लों की कहीं से कोई आवाज सुनायी नहीं पड़ी रही थी, मानों सब अपने-अपने बरूओं में जा छिपे थे ।
तभी कमाण्डर एक लेजर बीम के घेरे में आ गया । हवाम ने फौरन गोली चला दी ।
कमाण्डर चीखता हुआ उछला ।
गोली ठीक उसकी पीठ में जाकर लगी थी और वहीं से खून का फव्वारा छूट पड़ा ।
कमाण्डर फिर भी अपनी पूरी ताकत से भागता रहा ।
हवाम निरंतर उसके पीछे था ।
लेजर बीम बार-बार उसे अपने टार्गेट पर लेने की कोशिश कर रही थी ।
तभी पिट-पिट की कई सारी आवाजें कमाण्डर के कानों में पड़ी और एक के बाद एक कई गोलियां उसकी पीठ पर आकर चिपक गयीं ।
कमाण्डर भागता-भागता स्तब्ध होकर रूक गया ।
सन्न !
‘लिजर्ड’ रिवॉल्वर की विशेषताओं से वो परिचित था । कमाण्डर समझ गया, उसकी पीठ से फिलहाल कुछ बम आकर चिपक चुके हैं । अब हवाम के सिर्फ रिवॉल्वर के स्पेशल पैनल में लगा बटन दबाने की देर थी, फौरन उसके शरीर के चीथड़े बिखर जाते ।
कमाण्डर एकदम हवाम की तरफ पलटा ।
उसने देखा, हवाम स्पेशल पैनल में लगा वो बटन बस दबाने ही जा रहा है ।
फौरन बेपनाह फुर्ती के साथ कोल्ट रिवॉल्वर कमाण्डर की उंगली के गिर्द फिरकनी की तरह घूमी और गोली चली ।
इससे पहले कि हवाम उस बटन को दबा पाता, उसकी खोपड़ी के चीथड़े बिखर गये ।
☐☐☐
‘मंकी हिल’ पर थोड़ी हलचल मची ।
कुछ अफ्रीकन गुरिल्ले अपने-अपने बरुओं से निकलकर चक-चक की आवाज करते हुए इधर-उधर भागे । परन्तु जैसे ही गोली की तेज आवाज हुई, वह फिर झाड़ियों में जा छिपे ।
गुरिल्लों के लिए वह बिल्कुल नया अनुभव था, वह नहीं समझ पा रहे थे कि उनके ‘मंकी हिल’ पर वो सब क्या हो रहा है ।
तब तक माइक और रोनी भी ‘मंकी हिल’ पर पहुँच गये । माइक के हाथ में उस समय बजूका (एंटी टैंक गन) थी, जबकि रोनी के हाथ में 9 एम0एम0 की वह स्पेशल पिस्टल थी, जिसमें साइनाइट बुलेट चलती है ।
गोलियां चलने की आवाज सुनकर उन दोनों के कान भी खड़े हुए ।
“लगता है ।” रोनी बोला- “हमारे साथियों ने कमाण्डर करण सक्सेना को ढूंढ निकाला है और अब उसी से मुठभेड़ हो रही है ।”
“ऐसा ही मालूम होता है ।”
फिर वहाँ पहले जैसी ही खामोशी छा गयी । इतनी जल्दी व्याप्त हुई उस खामोशी ने न जाने क्यों उन दोनों योद्धाओ के दिल में डर पैदा किया ।
“हमें ट्रांसमीटर पर अपने साथियों से मालूम करना चाहिये, आखिर क्या चक्कर है ।”
“ठीक है ।”
रोनी ने फौरन अपनी ट्रांसमीटर रिस्टवॉच की एरिअल नॉब पकड़कर बाहर खींची और फिर एक-एक करके हवाम, अबू निदाल और मास्टर से सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश में जुट गया ।
मगर काफी देर की कोशिशों के बाद भी वो उन तीनों से सम्पर्क करने में कामयाब न हो सका ।
इससे उसके चेहरे पर निराशा घिर आयी ।
“क्या हुआ ?”
“मालूम नहीं, बात कैसे नहीं हो पा रही ।” रोनी की आवाज में कोतूहलता के भाव थे- “ट्रांसमीटर का सिग्नल लगातार दूसरी तरफ रिले हो रहा है, लेकिन तीनों में से कोई भी उसे सुन नहीं रहा ।”
“मुझे तो कुछ गड़बड़ी लगती है रोनी भाई ।” माइक शुष्क स्वर में बोला ।
“कैसी गड़बड़ ?”
“यह तो उनके पास जाने के बाद ही मालूम होगा । वरना पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने ट्रांसमीटर के सिग्नल की तरफ ध्यान न दिया हो ।”
दोनों योद्धा बहुत ज्यादा सस्पैंस में डूबे हुए ‘मंकी हिल’ पर आगे की तरफ बढ़े ।
“वह देखो ।” एकाएक माइक चौंका- “सामने झाड़ियों में मास्टर का हंसिया पड़ा है ।”
“हंसिया ।”
तब तक माइक दौड़ता हुआ झाड़ियों में भी जा पहुँचा और वहाँ पड़ा हंसिया उसने उठा लिया । हंसिया खून से सना हुआ था ।
“मास्टर का हंसिया यहाँ कैसे पड़ा है ?”
“मालूम नहीं ।” माइक ‘हंसिया’ हाथ में लिए-लिए संजीदा स्वर में बोला-“रहस्य हर पल गहराता जा रहा है । पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ कि मास्टर ने हंसिया अपने से अलग किया हो ।”
रोनी ने दोबारा मास्टर से सम्पर्क स्थापित करने की कौशिश की ।
लेकिन फिर कोई नतीजा न निकला । सिग्नल लगातार दूसरी तरफ रिले हो रहा था, मगर उस सिग्नल को सुनने वाला कोई न था ।
“मुझे तो एक ही बात लगती है ।” रोनी सकुचाये स्वर में बोला ।
“क्या ?”
“जरूर कमाण्डर ने हमारे तीनों साथियों को जान से मार डाला है ।”
“न... नहीं ।” माइक की आवाज कंपकंपायी- “ऐसी अशुभ बात भी अपनी जुब़ान से मत निकालो ।”
“बात अशुभ ज़रूर है, लेकिन सच्चाई से भरी है ।” रोनी बोला- “ख़ासतौर पर अब हंसिया मिलने के बाद शक की कोई गुंजाइश ही नहीं बची है ।”
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