RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
अपनी आत्मा के चिल्लाने की आवाज वह साफ सुन रहा था— 'सर्वेश तेरा भाई था सिकन्दर—अब तेरी समझ में उसके हमशक्ल होने का रहस्य आया—वह तेरा भाई था , जिसे तूने मार डाला कुत्ते—जलील-कमीना है तू—अपने ही भाई को मार डाला तूने....देखा …ऊपर वाले की लाठी कितनी सख्त है ?
वह बड़बड़ा 'उठा—"म...मगर अब में क्या करूं ?”
'वहीं जा—उसी छोटे-से घर की चारदीवारी में तुझे सुकून मिलेगा। '
"म...मगर रश्मि तो मुझे मार डालेगी।”
'हुंह—मरने से अभी तक डरता है ?' आत्मा व्यंग्य कर उठी— 'मौत से यूं भागते हुए तुझे सुकून नहीं मिलेगा। '
जीने की ललक पहली बार बिल्कुल स्पष्ट होकर उभरी—'म....मगर मैं मरना नहीं चाहता , मरने का साहस नहीं है मुझमें। '
'चल यूं ही सही—मगर ये पुष्टि तो तुझे करनी ही होगी कि बूढ़ी मां का नाम सावित्री है या नहीं—रश्मि के पति—वीशू के पिता और अपने भाई की हत्या का पश्चाताप तो करना ही होगा—अपनी सारी दौलत तुझे वीशू के नाम करनी है—कागज उसे सौंपने तो वहां जाना ही होगा। '
यह बड़बड़ाया—'म...मुझे जाने में क्या है—रश्मि बेचारी क्या जाने कि मैं ही 'शाही कोबरा ' हूं। '
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रश्मि के कानों में एकाएक वह शब्द गूंज रहा था , जो 'मुगल महल ' से लोटने पर युवक और विशेष ने कहा था—अब हर शब्द का अर्थ उसकी समझ में आ रहा था—इस निश्चय पर पहुंचने के बाद वह खुद हैरान थी कि वही युवक 'शाही कोबरा ' है।
अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी वह छत को घूरती हुई यह समझने का प्रयास कर रही थी कि जब मरने के लिए वह खुद को पेश कर चुका था तो ऐन मौके पर भाग क्यों खड़ा हुआ ? अत्यधिक ही तेजी के साथ जेहन में एक सवाल कौंधा— "क्या वह फिर यहां आएगा ?
‘हां , आ सकता है—यह सोचकर कि मैं भला क्या जानूं कि वह नकाबपोश जाने किस भ्रम का शिकार होकर यहां जरूर आ सकता है। '
'अगर आ गया तो ?'
सोचते-सोचते रश्मि के रोंगटे खड़े हो गए—उत्तेजना के कारण लेटी-लेटी ही कांपने लगी वह। चेहरा सख्त हो गया और बड़बड़ा उठी—अगर वह इस बार यहां आ गया तो इस घर के दरवाजे से बाहर उसकी लाश ही निकलेगी। '
तभी मकान के मुख्य द्वार पर सांकल जोर से बज उठी।
रश्मि बिस्तर से लगभग उछल पड़ी—जिस्म के सभी मसामों ने एक साथ ढेर सारा पसीना उगल दिया—उत्तेजना के कारण थर-थर कांप रही थी वह—'क्या वही कमीना आया है ?'
'हां, इतनी रात गए और यहां आ भी कौन सकता है ?'
विशेष गहरी नींद सो रहा था।
बाहरी दरवाजे की सांकल एक बार पुन: बजी।
'आ रही हूं कुत्ते—अपनी मौत का दरवाजा खटखटा रहा है तू।' बड़े ही भयंकर स्वर में बड़बड़ाती हुई रश्मि ने सिरहाने से रिवॉल्वर निकालकर ब्लाउज में ठूंस लिया और उसे आंचल से ढांपकर आगे बढ़ गई।
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'कैडलॉक' वह ऐसे स्थान पर छुपा आया था , जहां सहज ही किसी की नजर नहीं पड़ सकती थी और वक्त पड़ने पर उसके जरिए वह देहली पुलिस की पकड़ से बहुत दूर निकल सकता था—हां, एक सूटकेस जरूर उसके हाथ में था।
तीसरी बार सांकल खटखटाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि दरवाजा खुल गया और सामने ही खड़ी संगमरमर की प्रतिमा उसे नजर आई। कई पल तक एक-दूसरे के सामने वे खामोश खड़े रहे। सिकन्दर महसूस कर रहा था कि इस वक्त रश्मि के मुखड़े पर बहुत सख्त भाव थे , परन्तु उनका बिल्कुल सही कारण वह नहीं समझ पाया।
चौखट पार करके उसने दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया। रश्मि की तरफ पलटता हुआ धीरे से बोला— "मुझे दुख है रश्मि कि दो फायर करने के बावजूद भी तुम उसे मार नहीं सकीं।"
"क्या तुम यह जानते हो ?"
"हां।"
"कैसे ?" रश्मि ने एक झटके से पूछा— “मेरा मतलब , क्या तुम भी वहीं थे ?"
"हां।"
"नजर तो वहां आए नहीं ?"
सिकन्दर ने अजीब-से स्वर में कहा—"मैं वहीं था—तुम्हें नजर न आया तो इसमें मेरा क्या दोष ?"
मन-ही-मन रश्मि बड़बड़ाई कि मुझे तू बहुत अच्छी तरह नजर आ चुका है कुत्ते …मगर प्रत्यक्ष में उसने कहा—" तुम वहीं थे तो भागते हुए 'शाही कोबरा' को पकड़ा क्यों नहीं ?
" 'शाही कोबरा ' को न मैंने पेश किया था और न ही पकड़ सका।"
"क्या मतलब ?"
"पश्चाताप की आग में झुलसते हुए 'शाही कोबरा ' ने मरने के लिए तुम्हारे सामने खुद को खुद ही पेश किया था , परन्तु शायद ऐन वक्त पर मौत से डरकर भाग खड़ा हुआ। ”
"बहुत कायर निकला तुम्हारा 'शाही कोबरा '।"
यूं कहा सिकन्दर ने— “मौत से ज्यादा बहादुर शायद कोई नहीं है।"
“ खैर , मुझे पूरा विश्वास है कि अब वह भागकर कहीं न जा सकेगा—बहुत जल्दी ही मेरी गोली का निशाना बनना होगा उसे।"
"तुम उसे पहचान कैसे सकोगी ?"
"हुंह!" व्यंग्य , धिक्कार और जहर में बुझी मुस्कान के साथ रश्मि ने कहा— “एक बार रश्मि जिसे देख लेती है , उसे पहचानने में कभी भूल नहीं करती—मैंने उसे भागते हुए देखा है और मैं विश्वास के साथ कहती हूं कि 'चाल ' से ही मैं उसे पहचान लूंगी। ”
पसीने छूट गए सिकन्दर के। दिमाग में बिजली के समान गड़गड़ाकर यह वाक्य कौंधा कि कहीं रश्मि जान तो नहीं गई है कि मैं ही 'शाही कोबरा ' हूं ?
घबराकर सिकन्दर ने विषय बदल दिया— "वीशू कैसा है ?"
"डॉक्टर की दवा के बाद अब ठीक है।"
सिकन्दर ने महसूस किया कि वह वाक्य रश्मि ने दांत सख्ती भींचकर बोला है—एक-एक शब्द को चबाकर—और यह अन्दाज उसकी वर्तमान उत्तेजक स्थित का द्योतक है। रश्मि इतनी उत्तेजित क्यों है ?
जवाब में पुन: वही सवालरूपी शंका घुमड़ उठी।
अचानक ही रश्मि ने सवाल दागा—'अब तुम यहां क्यों आए हो ?'
एक पल के लिए गड़बड़ा-सा गया सिकन्दर। अगले ही पल संभलकर बोला —“मु....मुझे तुमसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं।"
"कैसी बातें ?" स्पष्ट स्वर।
थोड़ा हिचकते हुए सिकन्दर ने कहा—"वे बातें किसी कमरे में हों तो बेहतर है।"
रश्मि ने मन-ही-मन सोचा कि ठीक है , तुझे कमरे के अन्दर ही गोली मारनी उचित होगी—यहां चांदनी का मद्धिम प्रकाश है , वहां भरपूर प्रकाश होगा —मैं मरते वक्त तेरे चेहरे पर उभरने वाले भावों को स्पष्ट देख सकूंगी कमीने—तू अभी तक रश्मि को मूर्ख समझता है—हमेशा की तरह इस वक्त भी ठग रहा है मुझे—मगर अब तू उल्टा ठगा जाएगा—मैं ठगूंगी तुझे—ऐसा कि सात जन्मों तक तुझे याद रहेगा।
वे उस कमरे में पहुंच गए , जिसमें सिकन्दर रहा करता था , रश्मि ने लाइट ऑन की—एक-दूसरे को भरपूर अंदाज में देखा उन्होंने। उसे घूरती हुई रश्मि ने पूछा— "बोलो , क्या बात कहना चाहते थे ?"
"म...मैं मांजी का नाम जानना चाहता हूं।"
प्रश्न सुनकर वाकई चौंक पड़ी रश्मि—“क्यों?”
“यूं ही।”
"इस अजीब-से प्रश्न की कोई वजह तो होगी ?"
"वजह मैं आपको बाद में बता दूंगा , प्लीज—पहले आप नाम बताइए।"
“सावित्री।”
पहले से शंका होने के बावजूद भी सुनकर सिकन्दर के दिलोदिमाग को एक झटका-सा लगा। बड़ी तेजी से उसके चेहरे पर भाव परिवर्तित हुए। इस परिवर्तन को नोट करके अन्दर-ही-अन्दर रश्मि चौंक पड़ी , अधीर होकर उसने कहा— “अब तुम्हें वजह बतानी है।"
"प्रगति मैदान से मैं सेठ न्यादर अली की कोठी पर गया , यह पुष्टि करने कि जब सभी लोग मुझे सिकन्दर रहे को हैं तो कहीं मैं वास्तव में सिकन्दर ही तो नहीं हूं।"
"किस नतीजे पर पहुंचे ?"
"वहां पहुंचने के बाद जहां मुझे विश्वास हो गया कि मैं सिकन्दर ही हूं—वहीं एक और बहुत हैरतअंगेज रहस्य पता लगा।"
"कैसा रहस्य?"
"यह कि सर्वेश मेरा भाई था , जुड़वां भाई।"
"क...क्या ?' रश्मि अनायास ही उछल पड़ी और फिर अचानक ही बड़ी तेजी से उसके जेहन में विचार कौंधा कि अब यह जालसाज मुझे ठगने के लिए एक बिल्कुल ही नया प्वाइंट लाया है , चेहरा एकदम सख्त हो गया—"खुद को सर्वेश होने का विश्वास न दिला सके तो अब हमशक्ल होने का लाभ उनका जुड़वां भाई बनकर उठाना चाहते हो ?"
"न...नहीं रश्मि , प्लीज—इसे झूठ मत समझो—इस रहस्य ने खुलकर मेरे अन्दर जैसे उथल-पुथल मचा दी है—ऐसी कसक पैदा कर दी है , उसे केवल मैं ही महसूस कर सकता हूं। इसे देखो—यह मेरे पिता न्यादर अली की व्यक्तिगत डायरी है।"
सिकन्दर ने जेब से डायरी निकालकर उसकी तरफ बढ़ा दी।
रश्मि ने डायरी ली।
पन्द्रह मिनट बाद वह पूरी तरह जान गई कि सिकन्दर झूठ नहीं बोल रहा है। एकाएक ही उसके जेहन में विचार उभरा कि यह जानने के बाद इस दरिन्दे की हालत क्या हुई होगी कि इसने अपने ही भाई की हत्या कर दी है ?
बड़ी ही कठोर दृष्टि से उसे घूरती हुई रश्मि बोली— "तो तुम सिकन्दर हो , मेरे पति के भाई ?"
"हां—मैंने खुद भी इस डायरी को देखने के बाद जाना है।"
उसे कातर दृष्टि से देखती हुई रश्मि ने पूछा— "तो फिर इसमें इतना उदास होने की क्या बात है ?"
सिकन्दर ने एक-एक शब्द को चबाया—"हां , इसमें किसी उदास होने जैसी कोई बात नजर नहीं आएगी , तुम्हें भी नहीं रश्मि , म..मगर मैं ही जानता हूं कि जब से यह रहस्य खुला है , तब से मेरे दिल पर क्या गुजर रही है—मुझे हैरत है रश्मि कि अभी तक मैं पागल क्यों नहीं हो गया हूं। ”
रश्मि दांत भींचकर गुर्राई— “हो जाएगा दरिन्दे , पागल भी हो जाएगा तू।"
“क.....क्या मतलब ?" सिकन्दर रश्मि के इस परिवर्तन पर उछल पड़ा।
एक झटके से रश्मि ने रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दिया , गुर्राई-—"तुझमें अब भी यह कहने की हिम्मत नहीं है कुत्ते कि सर्वेश की हत्या तूने ही की थी।"
"र...रश्मि।" सिकन्दर की आंखें फट पड़ीं।
"मैं जानती हूं कमीने कि 'शाही कोबरा ' तू ही है।" चेहरे पर असीम घृणा लिए रश्मि गुर्राती चली गई— "तेरे जूते की एड़ियां अभी तक घिसी हुई हैं , प्रगति मैदान में भी लड़खड़ा गया था तू।"
हैरत के कारण सिकन्दर का बुरा हाल हो गया , आंखें फाड़े रश्मि को देखता ही रह गया था—जिस्म और आत्मा सूखे पत्ते की तरह कांप उठीं, चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं—अपने ठीक सामने उसे साक्षात् मौत नजर आई।
एकाएक ही रश्मि खिलखिलाकर हंस पड़ी।
सिकन्दर हक्का-बक्का रह गया।
पागलों की तरह हंसने के बाद रश्मि ने कहा—"मरने से तू अभी तक डरता है, हत्यारे—देख , जरा अपनी आंखों के आईने में अपने सफेद चेहरे को देख—कैसा निस्तेज पड़ गया है—जैसे जिस्म में खून की एक भी बूंद न हो—लाश के चेहरे से भी कहीं ज्यादा फीका।"
सिकन्दर की हालत बयान से बाहर थी।
उसी तरह खिलखिलाती हुई रश्मि ने कहा— "डरता क्यों है कुत्ते , मैं तुझे मारूंगी नहीं।"
सिकन्दर की आंखों में हैरत के भाव उभर आए।
"यह बात तो मेरी समझ में अब आई है कि मौत तेरे जुर्मों की उचित सजा नहीं है—ब.....बहुत देर से समझी कि तुझे जीवित छोड़ देना , मार देने से हजार गुना सख्त सजा है—जा , मैं तुझे नहीं मारती।" कहने के साथ रश्मि ने रिवॉल्वर एक तरफ फेंक दिया।
"र...रश्मि।"
“अगर मार हूं तो तू केवल एक क्षण के लिए तड़पेगा और अपने पति के हत्यारे को इतनी आसान सजा देकर मैँ उनकी खाई हुई कसम का अपमान नहीं करूंगी—नहीं कह सकती कि तू समझेगा या नहीं—मगर मैं समझती हूं कि तुझे जीवित छोड़कर मैंने अपनी कसम पूरी कर ली है , उनके हत्यारे से बदला ले लिया है मैंने—तुझे जीवित रहना होगा , यह सोच-सोचकर पश्चाताप की आग में सुलगते रहना होगा तुझे कि तू अपने भाई का हत्यारा है।" कहने के बाद वह मुड़ी और सिकन्दर को कुछ भी कहने का अवसर दिए बिना हवा के तीव्र झोंके की तरह कमरे से बाहर निकल गई।
सिकन्दर अवाक्-सा खड़ा रह गया।
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