RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
“बोलो!” विकास गुर्राया—“अगर जान बचाना चाहते हो तो बोलो कि अलफांसे से तुम्हारे क्या सम्बन्ध हैं—इर्विन और गार्डनर से छुपकर तुम उससे क्या बातें करते हो?”
मगर चैम्बूर बेचारे को भला किसी सवाल का जवाब देने का होश कहां था?
बड़ी ही दयनीय अवस्था थी उसकी।
वह बेचारा तो चीख भी नहीं सकता था, मुंह पर सख्ती से एक टेप जो चिपका हुआ था।
कपड़े के नाम पर उसके जिस्म पर यह टेप ही एकमात्र रेशा था, वरना तो जन्मजात नग्न अवस्था में एक कुर्सी पर बंधा बैठा था— रेशम की डोरी की मदद से उसके हाथ कुर्सी के हत्थों के साथ बंधे थे और पैर कुर्सी के अगले दो पैरों के साथ।
पिछले दो घण्टे से बेचारे चैम्बूर की यही स्थिति थी।
जुबान खुलवाने का काम विकास को सौंपते हुए विजय ने चैम्बूर को उसके हवाले कर दिया था और विकास को जानने वाले सहज ही अनुमान लगा सकते हैं कि इन दो घण्टों में उसने चैम्बूर की क्या हालत कर दी होगी—मार-मारकर विकास ने उसका पूरा चेहरा सुजा दिया था।
जिस्म पर जगह-जगह नील पड़े हुए थे।
कई स्थानों पर सिगरेट से जलाए जाने के निशान भी थे।
ऐसे प्रत्येक अवसर पर चैम्बूर की अन्तरात्मा से मर्मान्तक चीखें उबल पड़तीं, परन्तु टेप के कारण हलक में ही घुटकर रह जातीं— विकास की यातनाएं सहता-सहता वह इन दो घण्टों में तीन बार बेहोश हो चुका था, विकास हर बार होश में लाकर उसे नए सिरे से टॉर्चर करना शुरू कर देता।
इतना सब कुछ होने के बावजूद भी चैम्बूर अभी तक टूटा नहीं था।
और जब विकास के इतने टॉर्चर करने के बाद कोई न टूटे, तब!
वह लड़का शैतान बन जाता है—बेरहम –क्रूर और वीभत्स। जिस कुर्सी के साथ चैम्बूर को बांधा गया था वह कमरे के ठीक बीचोबीच पड़ी थी, विकास अपना भभकता चेहरा लिए उसके सामने खड़ा था—कुर्सी से काफी हटकर तीन तरफ सोफा सेट की तीन कुर्सियां पड़ी थीं और उन पर अधलेटी-सी अवस्था में पड़े थे—विजय, अशरफ और विक्रम। वे बिल्कुल नॉर्मल अवस्था में, लापरवाह से पड़े थे, जैसे पता ही न हो कि कमरे में क्या हो रहा है—विक्रम किंग साइज की एक सिगरेट का धुंआ उड़ा रहा था, अशरफ अपनी दस उंगलियों पर एक माचिस को नचा रहा था तो विजय एक ऑलपिन से अपने दांत कुरेद रहा था।
विकास ने झपटकर चैम्बूर के बाल पकड़े, लाल-सुर्ख चेहरा लिए गुर्राया—“जब तक तुम मेरे सवालों का जवाब नहीं दोगे तब तक मैं तुम्हें न मरने दूंगा और न ही एक मिनट के लिए टॉर्चर करना बन्द करूंगा—तुम्हें बोलना ही होगा चैम्बूर—मेरे एक-एक सवाल का जवाब देना होगा तुम्हें—बताओ—जवाब दोगे या नहीं?”
घुटी-घुटी सी चीखों के साथ जब इस बार भी चैम्बूर ने नकारात्मक अंदाज में गरदन हिलाई तो विकास मानो आपे से बाहर हो गया— उसने सीधा घूंसा चैम्बूर की नाक पर मारा दर्द से बिलबिलाते हुए चैम्बूर की एक घुटी हुई चीख उभरी, उसकी नाक पिचक गई थी और वहां से परनाले का-सा रूप धारण करके खून बहने लगा था, परन्तु विकास रुकने वाला कहां था?
उसके दोनों हाथ बिजली की-सी गति से चलने लगे।
चैम्बूर के जिस्म पर वह इस तरह घूंसे बरसा रहा था, जैसे वह इंसान नहीं रुई की गठरी हो—पीछे हटा, नोकीले बूट की एक भरपूर ठोकर चैम्बूर की छाती पर जमाई।
वह कुर्सी ही उलटकर धड़ाम से फर्श पर जा गिरी, जिस पर वह बंधा था, किन्तु विकास पर तो जुनुन हो गया था, उसे भला इस बात का होश कहां?
उस स्थिति में भी बूट की ठोकरें चैम्बूर के जिस्म पर वह मारता ही रहा। उसे यह भी होश नहीं रहा था कि चैम्बूर एक बार फिर बेहोश हो गया है— उसके बेहोश जिस्म पर ही बेरहमी से चोट करता रहा वह तब विक्रम ने कहा— “वह बेहोश हो गया है विकास!”
विकास को जैसे होश आया, वह ठिठक गया।
वह बुरी तरह हांफ रहा था, सारा जिस्म पसीने से लथपथ हो गया था—कुछ ऐसी अवस्था थी विकास की जैसे मीलों लम्बी दौड़ लगाने के बाद अभी-अभी यहां पहुंचा हो—कुछ देर तक उसी अवस्था में फर्श पर पड़ी कुर्सी पर बंधे चैम्बूर को आग्नेय नेत्रों से घूरता रहा।
फिर अचानक ही उसने कुर्सी सीधी कर दी।
“मुझे नहीं लगता प्यारे दिलजले कि यह हमें एक लफ्ज भी बताएगा।” विजय ने कहा।
हवा के झोंके की तरह विजय की तरफ घूम गया लड़का—उसकी हालत देखकर अशरफ और विक्रम की रीढ़ की हड्डियों में मौत की सिहरन दौड़ गई, रोंगटे तो विजय जैसे व्यक्ति के भी खड़े हो गए थे— उसका पूरा चेहरा एक धधकती हुई भट्टी के समान नजर आ रहा था और आंखें मानो उस भट्टी में सुलगते हुए दो अंगारे थे—नर—पशु-सा नजर आ रहा था वह, भेड़िए की तरह गुर्राकर बोला—“चैम्बूर को बोलना होगा गुरु,एक-एक लफ्ज मैं इससे उगलवाकर ही दम लूंगा जो यह जानता है।”
“मगर कैसे?” विजय कह उठा—“पूरे सवा दो घण्टे हो गए हैं, इन सवा दो घण्टों में टॉर्चर का हर तरीका इस पर इस्तेमाल किया जा चुका है, मगर इसने एक...!”
“टॉर्चर के तरीके?” लड़का दांत भींचकर कह उठा— “इसका मतलहब ये हुआ अंकल कि टॉर्चर के तरीके अभी आपने देखे ही नहीं है, विकास सहने वालों की नहीं—देखने वालों की भी रूह कंपकंपा दिया करता है।”
“अब तुम्हारे पास आखिरी तरीका बचा है, ब्लेड वाला— ब्लेड से तुम प्याज के छिलके की तरह इसकी खाल उतार सकते हो, लेकिन उस तरीके को इस्तेमाल न करने की हिदायत तुम्हें विजय ने पहले ही दे दी है।”
“यही तो मुसीबत है।” विजय की तरफ देखते हुए विकास ने दांत भींचकर अपने दांए हाथ का घूंसा पूरी ताकत से बाईं हथेली पर मारा— “अगर विजय गुरु ने वह तरीका अवैध घोषित न किया होता तो...!”
“उस तरीके से यह मर सकता है प्यारे और अगर ये मर गया तो सारा खेल ही खत्म हो जाएगा।”
“मैं इस हरामजादे को मरने नहीं दूंगा गुरु, टॉर्चर चेयर पर बैठे लोग जुबान इसलिए खोलते हैं कि कहीं टॉर्चर करने वाला उन्हें मार ही न डाले, मगर ये इसलिए बोलेगा कि कहीं मैं इसे जिन्दा छोड़ दूं—मैं इसके अन्दर मरने की इच्छा इतनी प्रबल कर दूंगा कि जीवन का एक-एक क्षण इसे भारी हो जाएगा।”
“लेकिन यह होगा कैसे प्यारे?”
कुछ जवाब नहीं दिया विकास ने, रह-रहकर दाएं हाथ के घूंसे बाईं हथेली पर मारता रहा—अन्दाज ऐसा था जैसे बहुत जल्दी से कोई तरकीब सोच लेना चाहता हो।
वे तीनों अजीब-सी नजरों से उसे देखते रहे। अशरफ के हाथ में मौजूद माचिस पर से होती हुई डबल एक्स फाइव की दृष्टि उस ऑलपिन पर टिक गई, जिससे विजय अभी तक अपने दांत कुरेद रहा था, अचानक ही उसने चीख पड़ने की-सी अवस्था में पूछा—“ये ऑलपिन आपने कहां से लिया है गुरु?”
विजय ने कोने में रखे एक मेज की तरफ इशारा करके कहा—
“उसकी ऊपर वाली दराज से।”
“क्या वहां और ऑलपिन भी हैं?”
“पूरी डिब्बी भरी रखी है।”
“वैरी गुड!” कहने के साथ ही विकास ने झपटकर अशरफ के हाथ से माचिस छीन ली, वे विकास को हैरतअंगेज नजरों से देखते ही रह गए थे, जबकि वह लपकता-सा मेज के समीप पहुंचा। ड्राअर खोली। उसमें से ऑलपिन की डिब्बी निकालकर मेज पर रखी। माचिस खोलकर उसने सारी तीलियां मेज पर बिखेर दीं, वह बॉक्स, जिसमें तीलियां होती हैं, खाली करके पुनः माचिस के खोल में डाला— अब उसके हाथ में रिक्त मैच बॉक्स था।
विकास ने डिब्बी से एक ऑलपिन लेकर माचिस के फ्रंट में घुसेड़ दिया, ऑलपिन का नुकीला अग्रिम बाग माचिस के अन्दर से होता हुआ तीलियों वाली डिबिया को ‘क्रॉस’ करके पृष्ठ—भाग से बाहर निकल आया, ऑलपिन की पीठ माचिस के फ्रंट से उठ गई थी।
मानो किसी एक इंच मोटे लकड़ी के तख्ते पर दो इंच लम्बी कील पूरी तरह ठोक दी गई हो।
अब विकास जल्दी-जल्दी माचिस में इसी प्रकार ऑलपिन लगाने लगा—एक प्रकार से ऑलपिनों को माचिस में ठोकता जा रहा था वह—माचिस के पृष्ठ भाग में उभरी हुई ऑलपिनों की नोकों की संख्या बढ़ती ही गई।
उन्हें और बढ़ाने में व्यस्त विकास ने कहा—“चैम्बूर को होश में लाओ अशरफ अंकल!”
अशरफ अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ।
विकास अपना ये नए किस्म का हथियार बनाने में व्यस्त था, अशरफ ने पानी से भरा एक जग उठाया और झटके से सारा पानी चैम्बूर के चेहरे पर फेंक दिया। पांच मिनट बाद जब चैम्बूर के जिस्म में हरकत हुई तो विकास पलट पड़ा— उस वक्त विकास की मुट्ठी में दबी माचिस को इन तीनों ने देखा और इसमें शक नहीं कि विजय जैसे व्यक्ति के जिस्म में भी झुरझुरी-सी दौड़ गई।
माचिस के पृष्ठ भाग से बीसों ऑलपिनों की नोकें झांक रही थीं। उनमें से किसी की भी तरफ देखे बिना विकास चैम्बूर के सामने पहुंच गया, चैम्बूर ने आंखें खोलीं और विकास ने आगे बढ़कर माचिस का पृष्ठ भाग हत्थे के साथ बंधी चैम्बूर की बाईं कलाई पर रख दिया, बीसों ऑलपिन चैम्बूर की कलाई में धंस गए।
चैम्बूर ने माचिस की तरफ देखा।
मुट्ठी से माचिस को पकड़े विकास उसे बेहरमी से हाथ की तरफ खींचता ही चला गया।
चैम्बूर के मुंह पर यदि टेप न लगा होता तो उसकी चीख से ‘स्मिथ स्ट्रीट’ का ये सारा इलाका दहल उठता—चीख घुटकर रह गई, वह रेत पर पड़ी मछली के समान बिलबिला उठा।
ऑलपिन की नोकें खाल, गोश्त और खून में लिसड़ गईं—चैम्बूर की कलाई पर उतनी ही समानान्तर खूनी रेखाएं बन गईं जितने वे ऑलपिन थे।
इसके बाद विकास ने उसके पूरे शरीर पर अपने इस अजीब शस्त्र का इस्तेमाल शुरू कर दिया।
इस टॉर्चर से वह मरने वाला नहीं था, और इस असहनीय पीड़ा को सहता कब तक?
ऑलपिनों के साथ ही माचिस भी खून से लिसड़ चुकी थी—जब विकास ने अपना ये शस्त्र उसके गाल पर रखा तो चैम्बूर ने रुक जाने का इशारा किया—इशारे से यह भी कहा कि वह सब कुछ बताने के लिए तैयार है। विकास ने न चीखने की चेतावनी देकर उसके मुंह से टेप हटा लिया।
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