RE: XXX Hindi Kahani अलफांसे की शादी
चैम्बूर की लाश की तरफ देखते विक्रम ने पूछा—“इसे तुमने क्यों मार डाला विजय?”
“क्यों, अब क्या तुम्हें इसका अचार डालना था प्यारे?”
“न...नहीं—मेरा मतलब....!” विक्रम सकपका-सा गया।
विजय ने कहा—“तुम्हारा कोई मतलब नहीं है प्यारे, ये बात कान खोलकर सुन लो कि इस वक्त हम मुजरिम हैं और जो व्यक्ति मुजरिमों के काम का न रहे, उसे वे जिन्दा नहीं छोड़ते—ऐसे व्यक्ति को तो बिल्कुल भी नहीं, जो आगे चलकर किसी को उनका राज बता सके या अड़चन बन सके और प्यारे, उस आदमी को तो दुनिया में अपना खुद पहलवान भी नहीं छोड़ता, जिसका 'रोल' खत्म हो गया हो।”
“म....मगर अब हम इसकी लाश का क्या करेंगे?” अशरफ ने पूछा।
विजय ने एक पल भी चूके बिना कहा—“मुरब्बा बनाकर इसे एक कुल्हड़ में रखेंगे और सुबह उठते ही, चारों यार उंगली से मुरब्बे को चाटा करेंगे—कसम से, साली सेहत बन जाएगी और फिर हम सीधा चैलेंज मोहम्मद अली को देंगे।”
“तुम मौका मिलते ही बकवास शुरू मत कर दिया करो विजय!”
“अमां मियां झानझरोखे, जब तुम साली बात ही गधे की लात जैसी करते हो तो हम बकवास क्यों न करें—यह भी साला कोई सवाल हुआ—करना ही क्या है, लंदन की किसी सुनसान पड़ी सड़क को आबाद कर आएंगे।”
“अब, यानी दिन में?”
“ऐसे प्यार-मोहब्बत के काम हमेशा रात में होते हैं प्यारे!”
“इसका मतलब सारे दिन लाश यहीं रहेगी?”
“बिल्कुल रहेगी, आपको कोई एतराज?”
इस बार अशरफ तो बुरा-सा मुंह बनाकर चुप रह गया, लेकिन विक्रम बोल पड़ा—“यदि रात के वक्त किसी ने हमें इस लाश को ठिकाने लगाते देख लिया तो?”
“फिर वही साली गधे की लात जैसी बात—अमां प्यारे विक्रमादित्य, जरा सोचो—तुम्हें पैदा होते हुए तो कई व्यक्तियों ने देखा था, याद है—नर्स को देखते ही तुमने कहा था—“हैलो, हाऊ डू यू डू।” तभी क्या हुआ था जो अब होगा, यही न कि मुस्कराती हुई नर्स ने तुमसे हाथ मिला लिया था और तुमने उसकी अंगूठी साफ कर दी थी।”
“बात कुछ कहो, बकता कुछ है!” विक्रम बड़बड़ाकर रह गया।
काफी देर से चुप इस बार विकास विजय से पहले ही कह उठा—“ये लाश तो ठिकाने लग ही जाएगी गुरू, फिलहाल तो सोचने वाली बात ये है कि सूरज निकल चुका है, दिन चढ़ता जा रहा है—अब हमें समय बिल्कुल नहीं गंवाना चाहिए, क्योंकि अगर दिन ज्यादा चढ़ गया तो इस इमारत के इर्द-गिर्द चहल-पहल बढ़ जाएगी और फिर हम अपने स्पेशल मुख्य द्वार का प्रयोग करके बाहर नहीं निकल सकेंगे— सारे दिन के लिए यहीं कैद हो जाएंगे, न कुछ काम कर सकेंगे और न ही खाने-पीने को कुछ मिलेगा।”
“ये हुई एक सौ इक्यावन पाउण्ड की बात, चलो प्यारे झानझरोखे—जेब से निकालकर रकम दो दिलजले को।”
“मगर उससे पहले हमें अपनी आज दिन भर की गतिविधियां सेट करनी हैं।” विकास ने विजय की बात पर कोई ध्यान दिए बिना कहा—“काम बहुत-से हैं, किसे क्या करना है?”
“हम जरा उस इमारत की भौगोलिक स्थिति को देखना चाहेंगे, जिसके माथे पर बैंक संस्थान लिखा है, क्योंकि कोहिनूर तक के लिए एकमात्र रास्ता वहीं से जाता है।”
“तब ठीक है गुरु, आप उसे देखिए—मैं आशा आण्टी को चैक करता हूं।”
विजय ने अशरफ से कहा—“तुम्हें दिलजले के साथ रहना है प्यारे, वहां किसी दृश्य विशेष को देखकर ये ज्यादा हाथ-पैर न चला सके—वहां अपने बॉण्ड प्यारे का जाल बिछा हो सकता है।”
अशरफ ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।
“मुझे क्या करना है?” विक्रम ने पूछा।
“तुम्हें लूमड़ प्यारे को वॉच करना है, देखना है कि उसकी जो स्कीम हमें चैम्बूर ने बताई है, उस पर काम करता हुआ फिलहाल वह स्कीम के कौन-से स्पॉट पर है?”
“ओ.के.!” विक्रम का इतना कहना था कि एक साथ वे सभी चौंककर उछल पड़े।
कमरे में रखे फोन की घण्टी अचानक ही घनघना उठी।
उन सभी को जैसे एकदम सांप सूंघ गया, हक्के-बक्के-से वे एक-दूसरे के चेहरे की तरफ देखते रह गए—फिर सभी की दृष्टि तिपाई पर रखे उस 'नेवी ब्लयू' कलर के फोन पर स्थिर हो गई।
लगातार बजती हुई घण्टी पीटर हाउस के सन्नाटे को झकझोर रही थी—बहुत ही रहस्यमयी लग रही थी यह आवाज—अशरफ और विक्रम की तो टांगें कांपने लगी थीं—विजय और विकास जैसे महारथियों के चेहरों का रंग उड़ गया—सबके दिमाग में एक ही सवाल कौंध रहा था—“किसका फोन हो सकता है ये?”
पीटर हाउस तो खाली पड़ा है, लगभग सभी की नजरों में अदालत की सील लगी है इस पर—फिर आखिर कौन यहां किस मकसद से फोन करेगा—या किसी को मालूम है कि इस वक्त वे यहां हैं? घण्टी लगातार बजे जा रही थी।
“पीटर हाऊस बिल्कुल खाली पड़ा है प्यारे, रिसीवर उठेगा ही नहीं।”
“म....मगर!” विकास ने वही प्रश्न कर दिया—“आखिर कोई यहां फोन क्यों कर रहा है?”
घण्टी बन्द हो गई—उन सभी ने संतोष की सांस ली—विक्रम ने कुछ कहा, विषय 'फोन' ही था—और इससे पहले की कोई अन्य कुछ और कह सके, फोन बैल पुन: घनघना उठी—आश्चर्य के सागर में गोते लगाते हुए वे सब पून: फोन को घूरने लगे—कुछ देर बजने के बाद बैल बंद हो गई—अभी उनके बीच मुश्किल से एक या दो वाक्य ही बोले जा सके थे कि बैल पुन: बजी और फिर यह सिलसिला कुछ इस तरह शुरू हुआ कि बन्द होने का नाम ही न ले रहा था—बीच-बीच में बन्द होकर बैल बजती रही—पन्द्रह मिनट गुजर गए—ये पन्द्रह मिनट उनके लिए बड़े तनावपूर्ण थे और अभी खत्म नहीं हुए थे, उस वक्त कम-से-कम दसवीं बार बैल बज रही थी जब विकास ने कहा—“कोई बार-बार कट करने के बाद यहीं का नम्बर मिला रहा है गुरु!”
“मुझे तो लगता है कि कोई हम ही से बात करना चाहता है।” अशरफ ने राय पेश की।
विक्रम बोला—“हमसे कौन बात करना चाह सकता है—और फिर किसी को क्या मालूम कि हम पीटर हाउस में हैं?”
“कोहिनूर के मामले में मुझे बड़े-बड़े शातिर दिलचस्पी लेते नजर आ रहे हैं प्यारे, मुमकिन है कि किसी ने पीटर हाउस में हमारी मौजूदगी का पता लगा लिया हो।”
“किसने?” विकास ने पूछा।
“कोई भी हो सकता है, शायद अपना लूमड़!”
“फिर क्या आदेश है?”
विजय ने एक पल जाने क्या सोचा, फिर बोला—“जो होगा देखा जाएगा प्यारे, इस बार यदि बैल बजे तो तुम रिसीवर उठा लेना!” उनकी वार्ता के बीच बैल एक बार फिर बन्द हो चुकी थी, जो विजय का वाक्य खत्म होने के साथ ही पुन: बजनी शुरू हो गई, विकास लम्बे-लम्बे दो ही कदमों में फोन के नजदीक पहुंच गया, अशरफ और विक्रम के दिल धक्-धक् कर रहे थे, जबकि लम्बे लड़के ने झट से रिसीवर उठाकर कान से लगाया, बोला—“हैलो!”
“चलो, ये साबित तो हुआ कि बहुत-सी इमारतें ऐसी भी होती हैं जिनके मुख्य द्वार पर अदालत की सील लगी रहती है, लेकिन लोग उसमें फिर भी बड़े आराम से रहते हैं न...न...रिसीवर नहीं रखना मिस्टर विकास!”
अपना नाम सुनते ही विकास दहाड़ उठा—“क....कौन तो तुम?”
“ही....ही....ही!” किसी के बहुत ही व्यंग्य से हंसने की आवाज लाइन पर गूंज गई—क्रोध की अधिकता के कारण लड़के का चेहरा दहककर लाल-सुर्ख हुआ जा रहा था, दूसरी तरफ से बोलने वाली रहस्यमय आवाज ने कहा—“मैंने यह जानने के लिए फोन नहीं किया कि पीटर हाउस खाली पड़ा है या उसमें कोई है—आप लोगों की वहां मौजूदगी की जानकारी तो मुझे पहले से ही थी, तभी तो सोलह मिनट तक भी रिसीवर न उठाए जाने के बावजूद मैं बार-बार रिंग करता रहा—ही...ही...ही...समझ सकता था कि आप लोग रिसीवर क्यों नहीं उठा रहे हैं—सोचा कि कभी तो आप यह समझेंगे कि फोन आप ही के लिए है।”
“तुम कोई काम की बात करते हो या मैं रख दूं फोन?” विकास दहाड़ा।
“ही....ही....ही...ही!” उसी व्यंग्य भरी, डरावनी-सी हंसी के बाद कहा गया—“मैं जानता हूं कि अब आप मेरी पूरी बात सुने बिना फोन नहीं रख सकेंगे मिस्टर विकास!”
“ये बार-बार किसका नाम ले रहे हो तुम?”
“ही....ही....ही...लो कर लो बात, हुजूर, ये आप ही का तो नाम है।”
“बको मत!”
“अच्छा हुजूर, नहीं बकता—आपका ऐसा ही हुक्म है तो अब फरमाए देता हूं— वो बात ऐसी थी जनाब कि मैं सोच रहा था—भूत न सही, भागते भूत का लंगोटा ही सही।”
“क्या मतलब?”
“कोहिनूर का जिक्र है जनाब, ये तो बड़ी नाइंसाफी है कि आप पूरा कोहिनूर ही डकार जाएं और मुझ गरीब को कुछ भी न मिले— मैं ऐसा नहीं होने दूंगा—आधी रोटी न सही, एक टुकड़ा तो इस कुत्ते के सामने भी डालना ही होगा हुजूर, वरना ये भूखा कुत्ता आप पर झपट पड़ेगा, आपको भी खाने नहीं देगा—ही....ही....ही!”
इसमें शक नहीं कि विकास का सारा चेहरा पसीने से तर-ब-तर हो गया था—दूसरी तरफ से बोलने वाले के अन्दाज और उसकी जानकारियों ने विकास जैसे लड़के को भी हिलाकर रख दिया था—आतंकित-सा कर दिया था उसे, फिर भी गुर्राकर बोला—“पता नहीं तुम कौन हो और क्या बक रहे हो?”
“झूठ मत बोलिए बन्दापरवर, मैं जो फरमा रहा हूं उसे तो आप खूब जानते हैं—हां, इस नाचीज को नहीं जानते—आपके पैरों की धूल हूं हुजूर।”
“क्या चाहते हो?”
“वह भी फरमा चुका हूं—अब तो सिर्फ आपकी जर्रानवाजी की जरूरत है, वैसे खाकसार को जल्दी कुछ नहीं है—चाहें तो अपने साथियों से सलाह-मश्वरा कर लें—मैं हुजूर को फिर फोन कर लूंगा, वैसे चैम्बूर नाम के उस गधे का रेंकना तो आपने बन्द कर ही दिया होगा—ही...ही...ही!” रिसीवर रख दिया गया।
“हैलो....हैलो!” विकास चीखता ही रह गया।
वस्तुस्थिति को समझकर आगे बढ़ते हुए विजय ने पूछा—“कौन था प्यारे?”
“पता नहीं!” रिसीवर क्रेडिल पर पटकते हुए विकास ने कहा।
“क्या कह रहा था?”
“कोहिनूर में से हिस्सा चाहता है।”
“क...क्या?” विजय के अलावा विक्रम और अशरफ भी इस तरह उछल पड़े मानो अचानक ही किसी बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया हो, विकास ने कहा, “मेरे बार-बार पूछने पर भी उसने अपना परिचय नहीं दिया, जबकि वह हमारे बारे में सब कुछ जानता है, यह भी कि हम विकास विजय, अशरफ और विक्रम हैं।”
विजय सहित तीनों के होश उड़ गए।
चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं—अशरफ, विक्रम की टांगों में तो ऐसा कम्पन हुआ था कि वे खड़े न रहे सके और लगभग लड़खड़ाकर धम्म् से सोफे पर गिर गए—विकास ने जेब से रूमाल निकालकर चेहरे से पसीना साफ किया, विजय जैसे व्यक्ति का दिमाग भी इस वक्त बुरी तरह झनझना रहा था, विकास ने फोन पर हुई सभी बातें उन्हें विस्तार से बता दीं।
“कौन हो सकता है ये?” विजय बड़बड़ाया।
मगर इस सवाल का जवाब कम-से-कम उनमें से किसी के पास नहीं था—फिर भी करीब तीस मिनट तक वे उसी के बारे में बात करते रहे, अंत में विजय ने कहा—“दिन काफी चढ़ गया है प्यारे—हमें यहां से निकल जाना चाहिए।”
“म....मगर इस फोन वाले का क्या होगा?”
“वह कोहिनूर में से हिस्सा मांग रहा है, इसका मतलब ये कि जब तक उसे यह विश्वास नहीं हो जाएगा कि हम उसे कुछ देने वाले नहीं हैं, तब तक हमें किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाएगा—उसने फिर फोन करने के लिए कहा है, इस बार उससे हम बात करेंगे प्यारे।”
“ल...लेकिन यदि हमारे बाद सारे दिन में उसने फिर फोन किया तो?”
“जो यह बात जानता है प्यारे कि हमने चैम्बूर का क्रियाकर्म कर दिया है, वह ये भी जरूर खबर रखेगा कि हम कब कहां हैं, पीटर हाउस में वह तभी फोन करेगा जब हम यहां होंगे।”
विजय के आदेश पर चैम्बूर की लाश वहां से उठाकर एक अन्य कमरे में बन्द कर दी गई और फिर वहां से निकलने के लिए वे दूसरी मंजिल पर स्थित उस कमरे में पहुंच गए जिसमें वह खिड़की थी—जो दरअसल उनके लिए मुख्य द्वार का काम कर रही थी—सबसे पहले उन्होंने खिड़की से बाहर झांककर यह देखा कि आसपास कोई है तो नहीं—विजय ने काफी बारीकी से गली और आसपास का निरीक्षण किया।
फिलहाल कहीं कोई नहीं था, हर तरफ खामोशी—सन्नाटा!
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