XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
05-30-2020, 02:08 PM,
#67
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
डॉली उठी और उसके पीछे जा खड़ी हुई। 'देख क्या रहे हो.... बरसात की छींटे, तूफान, बादल की गरज। क्या तुम्हारे हृदय में भी तूफान-सा उठ रहा है? शकर इन साधारण सामाजिक नियमों के कारण अपने अरमानों की हत्या न करो। मेरे पास आओ....।' डॉली ने यह कहकर अपनी दोनों बांहें शंकर के गले में डाल दीं।

शंकर ने बाहर देखा। बिजली चमकी और बादल जोर से गरजा। दूसरे ही क्षण उसने आवेश में आकर कसकर एक तमाचा डॉली के गाल पर जड़ दिया। फिर बोला, "डॉली मुझे क्षमा करना।' शंकर ने अपना हाथ छुड़ाया और बाहर निकल गया।

डॉली कुछ समय तक अवाक् खड़ा रही.... यह उसने क्या किया... यौवन के नशे में वह अपने आपको भूल गई। शंकर की उंगलियों के निशान उसे गालों पर उभर आए थे और वह मूर्छित होकर गिर पड़ी। होश आया तो वह उठी और बाहर शंकर को देखने लगी। वर्षा पहले से कुछ कम हो चुकी थी परंतु अभी तक थमी न थी। वह बरामदे में आई उसने देखा कि शंकर बरामदे की सीढ़ियों पर बैठा बारिश में भीग रहा है। वह दबे पांव उसके पास पहुंची और धीरे-से बोली, 'यह क्या कर रहे आप! उठिए, कहीं सर्दी न लग जाए।'


डॉली ने हाथ का सहारा देते हुए उसे उठाया और साथ कमरे में ले गई। रोशनी में उसने देखा,,, शंकर का चेहरा पीला पड़ गया था और उसके दाएं हाथ से खून बह रहा था। जैसे किसी पत्थर से कुचला गया हो। डॉली ने यह देखते ही कहा, 'यह आपने क्या किया! अपराधिनी तो मैं हूं, दंड मुझे मिलना चाहिए!' उसने शंकर का घायल हाथ चूमा और गालों से लगाकर रोने लगी।

'डॉली, यह हाथ आज तुम पर उठा। मैं बहुत लजित हूं।'

'मैं आपका यह तमाचा जीवन भर न भूलूंगी। इसने मेरी आंखों से पर्दा हटा दिया और मैं मनुष्यता का मूल्य समझ सकी।' डॉली उठी और स्प्रिट की बोतल तथा रुई ले आई। घायल हाथ पर स्प्रिट लगाकर उसे बांधने लगी। जब वह पट्टी बांध रही थी तो उसने शंकर की ओर देखा। वही पीला चेहरा अब कुछ लाल हो चला था,

डॉली मेरे पास आओ। वह धीरे-धीरे सिर झुकाए उसकी ओर बढ़ी। शंकर कह रहा था 'तुम्हें मुझसे कितनी सहानुभूति है और मैं तुम्हें अच्छा भी लगता हूं परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि तुम मुझे इतना गिरा हुआ समझो। मेरा तुम्हारे साथ इस प्रकार घुल-मिल जाना तो एक प्राकृतिक बात थी।' डॉली सब सुनती रही। उसकी आंखों में आंसू थे। शंकर ने उसके आंसू पोंछते हुए कहा, 'यदि तुम्हें अब भी मुझसे प्रेम है तो आओ, अपने भाई के गले लग जाओ।'

डॉली शंकर के गले से लगकर फूट-फूटकर रोने लगी। शंकर उसे बालकों की भांति प्यार करता हुआ बोला, "देखो अब तुम मेरे कितने समीप हो और मैं तुम्हें प्यार भी कर रहा हूं। परंतु कितना अंतर है दोनों में। एक मैं ईर्ष्या और पतन और दूसरे में पवित्रता और आत्मिक शांति।' कहते-कहते शंकर की आंखों से भी दो आंसू टपक पड़े।

'आपने मुझे अंधेरे गड्ढे से निकालकर प्रकाश के मार्ग पर डाल दिया। सचमुच आप मनुष्य नहीं, देवता हैं।'

'डॉली, मुझे देवता न बनाओ। नहीं तो मैं मनुष्य के दुःख-दर्द न समझ सकूँगा।'

'जहां आपने मुझे गिरते हुए बचाया है, वहां एक वचन आपसे लेना चाहती हूं।'

'क्या?'

'कि यह बात राज के कानों तक न पहुंचे।'

'एक शर्त पर। 'कैसी शर्त?'

'कि भविष्य में एक सच्ची गृहिणी की भांति अपने पति की प्रसन्नता और शांति के लिए प्राण भी दे दोगी।'

'प्रयत्न करूंगी।'

'भगवान तुम्हारे साथ है डॉली। जाओ सो जाओ। तुम्हारी थकी हुई आंखों को आराम की आवश्यकता है।'

'और आप?'

"मेरे लिए चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं।' डॉली अपने कमरे की ओर बढ़ी। दरवाजे में रुककर उसने मुड़कर शंकर से पूछा, 'क्या सवेरे की घुड़सवारी पर चलिएगा?'

'अवश्य। क्यों नहीं?' डॉली ने एक बार फिर शंकर के मुख की ओर देखा और अंदर चली गई।

सवेरा होते ही शंकर और डॉली शंकर के मकान की ओर चल पड़े। कुसुम अभी तक सो रही थी। उसे डॉली ने हरिया को सौंप दिया। थोड़ी ही देर में दोनों निचले मैदान में पहुंच गए। शंकर डॉली से बोला, 'तुम सामने अस्तबल में जाकर टॉम से कहो कि घोड़े तैयार करे और मैं कपड़े बदलकर अभी आता हूं।' शंकर मुंह से सीटी बजाता हुआ अपने मकान में प्रविष्ट हुआ और नौकर को आवाज देकर अपने कमरे में गया। उसे लगा मानों कोई व्यक्ति उसके बिस्तर पर लिहाफ ओढ़े सो रहा है। केवल उसके पांव बाहर थे जिनमें जूते थे। पास आकर उसने देखा और जल्दी से लिहाफ उठाते हुए पूछा, 'कौन?'

'उसके आश्चर्य की सीमा न रही। राज सो रहा था।' राज ने धीरे-से अपनी आंखें खोली और बोला, 'आइए शंकर बाबू, क्षमा करना।! आपके बिस्तर पर सो गया था....।'

'परंतु तम तो....।'

'रात की बारिश और तूफान के कारण हम न जा सके। नदी में बाढ़ आ गई थी इसलिए लौट आए।'

'परंतु घर वापस क्यों नहीं गए?'

'मैंने सोचा कि तुम्हारे घर की चौकीदारी भी तो किसी ने करनी है और तुम मेरी हवेली पर पहरा दे रहे थे तो मैंने यहां की चौकीदारी करना ही अपना कर्त्तव्य समझा।'

'राज किसी गलतफहमी में न पड़ो।'

'शंकर।' राज ने गरजकर कहा, 'मैंने तुम्हें संदेश पहुंचाने के लिए कहा था, वहां रात को आराम करने के लिए नहीं।'

'परंतु मेरी बात तो सुनो।'

'यहीं न कि वर्षा और तूफान के कारण डॉली ने तुम्हें वहां रहने के लिए विवश कर दिया?'

'नहीं।'

'तो फिर?'

'डॉली को हवेली में अकेला छोड़ना मैंने उचित नहीं समझा।'
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RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर - by hotaks - 05-30-2020, 02:08 PM

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