XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
05-30-2020, 02:11 PM,
#82
RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर
'परंतु यह आप?'

'मैं सब जानता हूं। इतना मूर्ख न समझो मुझे।'
'मैं क्षमा चाहती हूं।'

'कोई बात नहीं। आखिर तुम्हारा भाई है। मिलने तो जाना ही था। यह अच्छा हुआ तुम स्वयं मिल आई। तुमसे यहां मिलता तो अच्छा न होता।'

'बाबा, उसने मुझे ठीक रास्ते पर आने का विश्वास दिलाया है और वह शीघ्र ही हमारे पास आ जाएगा।'

मुझे उसकी कोई आवश्यकता नहीं है और वह अब नीचे रास्ते पर क्या आएगा? केवल तुम्हारा मन रखने के लिए उसने ऐसा कह दिया है।

'नहीं बाबा, मुझे उस पर विश्वास है।'

'तुम्हें उस डाकू पर विश्वास है और मुझ पर नहीं?' बाबा क्रोध से कड़ककर बोले।

'नहीं, नहीं... हो सकता है कि मैं गलत होऊ।' कुसुम सहम

गई और चुप हो गई। थोड़ी देर बाद बाबा ने कहा, 'और क्या-क्या बातें हुई?'

"विशेष कोई बात नहीं। मैं उसे समझाने की कोशिश करती रही, पहले तो बोला कि मेरा जीवन तुम्हारे बाबा ने नष्ट किया है। मैंने यह सुनते ही उसे बहुत खरी-खोटी सुनाई और नाराज होकर बाहर निकल आई। फिर वह मुझे मनाने आया और अपनी भूल मान गया। तुम ही कहो बाबा, वह कितना मूर्ख है! क्या कोई पिता अपने पुत्र को ऐसे भयानक रास्ते पर डाल सकता है? पिता तो पिता, कोई दुश्मन भी किसी के बच्चे का जीवन इस प्रकार नष्ट नहीं कर सकता।' कुसुम यह कहते-कहते रुक गई।

राज बाबू ने मुंह फेर लिया। वह बोले नहीं।

'क्यों, क्या बात है बाबा?'

"कुछ नहीं... कुछ नहीं... ऐसे ही...।'


'मैं भी कितनी पागल हूं। बिना सोचे-समझे जो मुंह में आ रहा है, बके जा रही हूं। चलिए अंदर चलकर आराम कर लीजिए।'

"हां, तो उसने... तुम्हें पहचाना कैसे?' राज बाबू ने बात बदलते हुए पूछा और तख्त पर से उठ खड़े हुए।

कुसुम ने उनका हाथ पकड़ते हुए कहा, 'आपको यह बताना तो भूल गई कि यह रंजन वही था जिसने ट्रेन में मेरे गले का हार उतारने का प्रयत्न किया था।'

'मैं तो उसी दिन....।' और वह चुप हो गए।

भगवान की करनी भी ऐसी हुई जो मैंने इतने साहस से काम लिया। यदि मैं चीख पड़ती और दूसरे यात्रियों को पता लग जाता तो भैया का क्या होता?

'जेल, और क्या?'

'हां बाबा।' कुसुम बहुत धीमे स्वर में बोली और दूसरे कमरे में चली गई।
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इस प्रकार दिन बीतते गए। रंजन ने अपना वायदा पूरा न किया और न आया। कुसुम ने सोचा, बाबा सच ही कहते थे कि उसने केवल मेरा मन रखने के लिए मुझे वचन दे दिया। ऐसे मनुष्य का क्या विश्वास? रात्रि का समय था। कुसुम सो रही थी। किसी की आवाज सुनकर वह चौंक पड़ी। उसने बाबा के कमरे में कुछ शोर-सा सुना। पहले वह डरी, फिर साहस करके वह धीरे-धीरे पग बढ़ाती दरवाजे तक पहुंची और कान लगाकर सुनने लगी। दूसरी आवाज रंजन की थी। बाबा कह रहे थे "किसी और वक्त आ जाते। इस समय आधी रात को आने का मतलब?'

'चोर और डाकुओं के लिए तो रात ही है जो किसी सेठ से मेल-मुलाकात कर सकें। दिन के समय तो आराम करना होता है।'

'या उल्लुओं की भांति मुंह छिपाना होता है। अपने-आपको ऐसे नीच पेशे का सरदार कहते तुम्हें लज्जा न आती होगी?'

'लज्जा तो आपने बचपन में ही उतार ली।'

'निर्लज्जता की भी कोई सीमा होती है।' ।

'आप ही की दी हुई शिक्षा पर चल रहा हूं।'

'बेहूदगी छोड़ दो और मतलब की बात करो। ऐसा क्या काम आ पड़ा जो तुम इतनी रात गए...।'

'हां, कहिए। मतलब की बात करो। मैं तो जल्दी में हूं और आप भी।'

'कहो, क्या कहना चाहते हो?'
आप यह जानते ही हैं कि मैं आपका नालायक बेटा हूं और आपको मुझसे कोई आशा नहीं जो एक बाप को अपने होनहार बेटे से होती है। आपको तो मुझसे हानि का ही भय है
-

'मैं तुम्हारी बुद्धिमानी की प्रशंसा करता हूं जो तुम यह सब कुछ समझते हो।'

'और यह भी हो सकता है कि आप मुझे नालायक बेटा ठहराकर अपनी जायदाद से अलग रखने की चिंता में हों।'

'इसमें क्या संदेह है? तुम्हारा और मेरा रास्ता अलग-अलग है। न मैंने तुम्हें कभी किसी बात से रोका है और न तुम्हें मेरे कामों में बाधा डालने का अधिकार है।'

'परंतु मैं अपने कामों में तो दखल दे सकता हूं?'

'आखिर तुम चाहते क्या हो?'

'इससे पहले कि आप मेरे अधिकार छीने, मैं अपना जीवन बदल लेना चाहता हूं।'

'वह कैसे?'

'इस तरह चोरों की तरह छिप-छिपकर रहने से तो यही अच्छा होगा कि मैं अपनी जमींदारी संभाल लूं।'

'परंतु तुम जो सपना देखना चाहते हो वह कभी पूरा न हो सकेगा।' राज ने क्रोध में कहा।

'वह पूरा होकर रहेगा।' रंजन ने पैर फर्श पर पटकते हुए कहा।

'मेरी इच्छा के बिना तुम कुछ नहीं कर सकते।'

'शायद आप भूल रहे हैं कि यह जायदाद पैतृक है। आपकी संपत्ति नहीं। मैं अपना अधिकार मांगता हूं। भीख नहीं।'

'भीख मांगी होती तो शायद दया करके दे ही देता। परंतु अब मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं।'
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RE: XXX Hindi Kahani घाट का पत्थर - by hotaks - 05-30-2020, 02:11 PM

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