RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
जमींदार यह सुनते ही एक झटके से उठ गए और क्रोध से दांत पीसकर बोले- 'तू झूठ बोलता है हरामजादे!'
'सरकार!'
'हरामजादे! तूने हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी। दो कौड़ी का न छोड़ा हमें। अभी थोड़ी देर बाद हमारी बारात सजनी थी। शहर से बीसों यार-दोस्त आने थे, दूल्हा बनना था हमें और तूने हमारे एक-एक अरमान को जलाकर राख कर । दिया। किसी को मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहे हम।'
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'म-मुझे माफ कर दीजिए हुजूर!'
'नहीं माफ करेंगे हम तुझे। हम तेरी खाल खींचकर उसमें भूसा भर देंगे। हम तुझे इस योग्य न छोड़ेंगे कि तू फिर कोई धोखा दे सके।' इतना कहकर उन्होंने निकट खड़े एक नौकर से कहा 'मंगल! इस साले को इतना मार कि इसकी हड्डियों का सुरमा बन जाए। मर भी जाए तो चिंता मत करना और लाश को फेंक आना।'
'नहीं हुजूर नहीं!' दीना गिड़गिड़ाया।
जबकि मंगल ने उसकी बांह पकड़ी और उसे बलपूर्वक खींचते हुए कमरे से बाहर हो गया।
उसके जाते ही जमींदार बैठ गए और परेशानी की दशा में अपने बालों को नोचने लगे।
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