RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
यह देखकर डॉली की बेबसी आंसुओं में परिवर्तित हो गई। गिड़गिड़ाते हुए वह बोली- 'नहीं-नहीं जमींदार साहब! मुझ पर दया कीजिए। छोड़ दीजिए मुझे। मुझे अपनी बेटी समझकर छोड़ दीजिए।'
'चुप साली!' जमींदार साहब की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे। वासना की अग्नि ने जैसे उन्हें पागल कर दिया और वह डॉली को बलपूर्वक बिस्तर की ओर खींचने लगे।
तभी हरिया ने कमरे में आकर उनसे कहा 'सरकार! यह तो गड़बड़ी हो गई। छोटे मालिक लौट आए।'
जमींदार यह सुनकर पलभर के लिए विचारमग्न हुए और फिर हरिया से बोले- 'हूं, तू जय से कह कि डॉली यहां से चली गई है। यह भी मत बताना कि हम यहां हैं। चल जल्दी कर।'
हरिया चला गया।
उसके जाते ही जमींदार ने डॉली को बिस्तर पर पटक दिया। यह देखकर डॉली पूरी शक्ति से चिल्लाई- 'बचाओ-बचाओ!'
'जुबान बंद कर साली!' जमींदार साहब ने उसे डांट दिया। किन्तु वह डॉली को निर्वस्त्र कर पाते-उससे पहले ही कमरे में धमाका हुआ। एकाएक जय कमरे में आकर चिल्लाया
'डॉली को छोड़ दीजिए पापा!'
जमींदार चौंककर उठ गए, किन्तु उनकी आंखों से अब क्रोध और घृणा की चिंगारियां छूट रही थीं। जय को देखकर वह गुर्राए- 'तू-तू यहां क्यों आया है?'
'यह देखने के लिए।' जय घृणा से बोला 'कि लोग आपके विषय में कितना सच कहते हैं और यह भी देखने के लिए कि एक साठ वर्ष का इंसान नीचता की कितनी सीमाएं लांघ सकता है?
'बंद कर यह बकवास और चला जा यहां से। तेरा हमारे व्यक्तिगत जीवन से कोई संबंध नहीं।'
डॉली अब एक कोने में खड़ी सिसक रही थी।
जय ने एक नजर डॉली पर डाली और अपने पिता से कहा- 'मेरा संबंध आपके व्यक्तिगत जीवन से भले ही न हो-किन्तु डॉली से अवश्य है।'
'क्या बकता है तू?'
'पापा! डॉली यहां मेरे कहने पर आई है। डॉली को मैंने रक्षा का वचन दिया है। मेरे रहते किसी ने डॉली को हाथ भी लगाया तो मैं उसका खून पी जाऊंगा।'
'हरामजादे!' क्रोध से कांपते हुए जमींदार गुर्राए– 'हमने तुझे पाल-पोसकर इतना बड़ा किया। तुझे पढ़ा-लिखाया-तुझ पर लाखों रुपए खर्च किए और तू हमारा खून पिएगा? देखते हैं तू हमारा क्या बिगाड़ता है।' इतना कहकर जमींदार फिर डॉली की ओर बढ़े।
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