RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
जय फिर बोला- 'समझने की कोशिश करो डॉली! यदि तुम यहां रहीं तो पुलिस तुम्हें भी परेशान करेगी। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें मेरे कारण कोई परेशानी हो।'
'और आपने मेरे लिए...।'
'नहीं डॉली! पापा का खून मैंने नहीं किया। गोलियां खिड़की की दिशा से चलाई गई थीं। किसी दुश्मन ने मेरे और पापा के विवाद का लाभ उठाया और पापा को गोली मार दी। मैं उसी की तलाश में बाहर गया था।'
'आप-आप!' डॉली चौंकी। जिस समय जमींदार साहब पर गोलियां चली थीं-उसका मुंह दीवार की ओर था और उसने यही समझा था कि गोलियां जय की रिवाल्वर से चली हैं।
'हां, यह सच है डॉली! तुम्हारी सौगंध-पापा का खून मैंने नहीं किया, किन्तु यह भी सच है कि यदि पापा अपनी हठ पर अड़े रहते-तो उनका खून मेरी ही रिवाल्वर से होता।' इतना कहकर जय ने दीर्घ नि:श्वास ली और फिर बोला 'मगर पुलिस इस बात पर कभी विश्वास न करेगी कि खून मैंने नहीं किया और इसका। परिणाम यह होगा कि मुझे गिरफ्तार कर लिया जाएगा। मुझ पर मुकदमा चलेगा और एक दिन फांसी हो जाएगी। चला जाऊंगा दुनिया से।'
डॉली की सिसकियां हिचकियों में बदल गईं।
जय ने इस बार डॉली को ध्यान से देखा और घायल अंदाज में बोला- 'डॉली! हो सकता है कि आज के बाद तुम्हारा-मेरा मिलन संभव न हो। हो सकता है आज के बाद तुम्हारा यह चेहरा मुझे दूर तक भी नजर न आए और मैं केवल तुम्हारी स्मृतियों को अपने हृदय में छुपाए संसार से चला जाऊं, लेकिन एक बात है डॉली! मैंने तुम्हें वास्तव में चाहा है। न जाने तुम्हारी इन । आंखों में ऐसा क्या था कि मैंने तुम्हें देखा और एक ही नजर में तुम्हारा बन गया। तुम तुम नयनों के रास्ते मेरे हृदय में उतरीं और मेरी आत्मा में समा गईं। सोचा था-जीवन की राहों पर तुम्हारा हाथ थामकर चलूंगा। कहीं एक छोटी-सी दुनिया होगी हमारी-कहीं एक छोटा-सा आंगन होगा-लेकिन...।'
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कहते-कहते रुका जय। आंखों में आंसू भर आए। उंगलियों की पोरों से उन्हें पोंछकर वह रुंधे स्वर में बोला- 'लेकिन कुछ भी न हुआ डॉली! परिस्थितियों की आंधी आई और मेरी सभी कल्पनाएं रेत के टीलों की भांति बिखर गईं। स्वयं पापा ही मेरी आशाओं के शत्रु बन गए। अपनों ने ही बर्बाद कर डाला।'
'जय-जय!'
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'किन्तु।' जय सिसक उठा और बोला- 'इसका अर्थ यह नहीं डॉली कि मैं तुम्हें भूल जाऊंगा। तुमसे खुशियों का न सही-किन्तु दर्द का जो रिश्ता जुड़ा है वह अंतिम क्षणों तक भी जुड़ा रहेगा। नहीं भूल पाऊंगा मैं तुम्हें नहीं दूर रह पाऊंगा मैं तुमसे।'
'जय!' डॉली इस बार स्वयं को न रोक सकी और जय से लिपटकर हिचकियों से रो पड़ी।
जय ने भावावेश में उसे अपनी बाहों में भरा और उसके ललाट को चूम लिया। किन्तु यह मिलन कुछ ही पलों का था।
एकाएक बरामदे की सीढ़ियों पर भारी बूटों की आवाज सुनाई पड़ी और जय ने डॉली को छोड़ दिया। चेहरा घुमाकर देखा, चार जवानों सहित एक पुलिस इंस्पेक्टर उसी की ओर बढ़ रहा था। पुलिस के साथ हरिया भी था।
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