RE: स्पर्श ( प्रीत की रीत )
डॉली अपनी सोचों की धुंध में कुछ इस प्रकार फंसी कि उसे घर पहुंचने का पता ही न चला।
उसकी विचारधारा तो तब भंग हुई जब ऑटोरिक्शा चालक ने उससे कहा- 'मेमसाहब! डी-एक सौ बारह आ चुका है।' और इसके पश्चात ऑटोरिक्शा रुक गया।
रिक्शा रुकते ही डॉली ने नजरें उठाकर दाईं ओर देखा। घर आ चुका था किन्तु अगले ही क्षण वह सिर से पांव तक कांप गई और उसके चेहरे पर ऐसे भाव फैल गए जैसे किसी ने उसे रंगे हाथों पकड़ा हो। एक ऑटोरिक्शा पहले से गेट के । सामने खड़ा था और यह वही ऑटोरिक्शा था जो राज को ऑफिस से घर लाता था। ऑटोरिक्शा बाहर इसलिए था क्योंकि वह गेट का ताला लगाकर गई थी। डॉली समझ न पा रही थी कि राज आज तीन बजे ही क्यों लौट आया था जबकि वह पांच के पश्चात ही घर लौटता था।
तभी चालक ने उसे फिर संबोधित किया 'मेम साहब!'
'आं हां।'
'बीस रुपए।'
चालक ने कहा तो डॉली ने शीघ्रता से बीस रुपए का एक नोट उसकी हथेली पर रखा और बाहर आ गई। आगे बढ़कर उसने देखा-राज । ऑटोरिक्शा में बैठा था और उसका चालक बाहर खड़ा हुआ सिगरेट फूंक रहा था किन्तु डॉली ने ऐसा जाहिर नहीं किया कि उसने राज को देखा हो। उसने तुरंत गेट खोला और चलकर कमरे में आ गई। घबराहट एवं बेचैनी के भाव उसकी आंखों से अभी भी झांक रहे थे।
कुछ देर पश्चात राज भी व्हील चेयर के पहिए घुमाते हुए कमरे में आ गया और डॉली के समीप पहुंचकर बोला- 'हैलो डॉली!'
'ओह आप!' डॉली ने चौंकने का अभिनय किया-उठकर बोली- 'आप कब आए?'
'ठीक दो बजकर तीस मिनट पर अर्थात् ढाई बजे।'
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'ऑफिस में काम न होगा?'
'काम तो था किन्तु...।'
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'किन्तु?'
'काम में मन न लगा।'
'क्यों?' डॉली ने पूछा और दर्पण के सामने आकर अपने बाल संवारने लगी।
राज बोला- 'अपनी प्यारी-प्यारी दुल्हन की वजह से किन्तु दुर्भाग्य हमारा, घर आए तो...।'
'मैं बाजार चली गई थी।'
'शॉपिंग?'
'नहीं बस यूं ही। अकेली थी-घर में मन न लगा।'
'हमसे कह दिया होता।'
'क्या?'
'हम आज ऑफिस ही न जाते और दिन-भर तुम्हारा मन बहलाते।'
'ऊंडं! यह ठीक न था।' डॉली ने कहा। इसके पश्चात उसने ब्रुश रख दिया और मुड़कर राज से बोली- 'चाय तो लेंगे।'
'चाय नहीं।'
'और?'
'पहले करीब आओ।'
डॉली समीप आ गई। राज ने उसके गले में बांहें डाल दी और उसे अपने ऊपर झुकाते हुए वह शरारत से बोला- 'हमें चाहिए आपके इन होंठों से भरा यह सुर्ख अमृत।'
'शिवा आती होगी।'
'शिवा जिस पार्टी में गई है-वह संध्या से पहले समाप्त न होगी।'
'तो फिर दो मिनट ठहरिए।'
'क्यों?'
'चूल्हे पर चाय का पानी रख दूं।'
'यूं कहिए न कि आप बचना चाहती हैं?'
'बचने का प्रयास भी किया तो जाऊंगी कहां? जल की मीन को तो जल में ही रहना पड़ता है।'
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