RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
2.
वो वहीं पार्क में चली गई,जहाँ उसे कई बार राज मिला था। इस आश में की शायद राज मिल जाए और हुआ भी ऐसा ही राज वहीं था। शीतल राज के पास गयी।
“राज,मैंने अपना घर छोड़ दिया है क्या तुम मेरी कोई मदद कर सकते हो?” उसने राज से कहा।
“नहीं,मैं कोई मदद नही कर सकता हूँ,”राज ने कहा।
“क्यों?”
“मैंने तुमसे पहले ही कह दिया था की मैं तुमसे प्यार नही करता फिर तुमने मेरे लिए घर क्यों छोड़ा।”
‘मैंने तुम्हारे लिए नही छोड़ा,कोई बात हो गयी थी इसलिए।”
“मेरे पास क्यों आई हो…………। और अच्छा होगा की तुम अपने घर वापस लौट जाओ,हो सकता है की कोई बड़ी बात हो पर घर से अच्छा कुछ नही होता।”
शीतल,राज के सामने रोने लगी वो रोते हुए बोली-“मैं अब घर नही जा सकती मैं तुम्हारे भरोसे हूँ प्लीज़ मेरी मदद करो। ”
शीतल ने राज को एक गहरी सोच में डुबो दिया था। वो चाहकर भी उसकी कोई मदद नही कर सकता था,उसने खुद दुनिया नही देखी थी।
“मुझे माफ़ करना मैं तुम्हारी कोई मदद नही कर सकता,मैं तुम्हे लेकर कहाँ जाऊँगा?” राज ने कहा।
“मुझे कहीं भी ले चलो,अगर कोई जगह ना हो तो मुझे ले जाकर बेच दो या फिर मेरे साथ तुम कुछ भी करो मैं कुछ नही कहूँगी,ज़िंदगी तो बर्बाद होगी ही क्यों ना तुम ही कर दो,” शीतल ने राज की ओर देखे बिना कहा।
राज कुछ नही बोला वो उसे देखता ही रह गया,एक लड़की अपने को बेचने की बात कैसे कर सकती है ? लड़किया तो इससे बेहतर मरना पसंद करती हैं और ये ऐसी बात कर रही है।
“क्या हुआ ? कुछ बोल क्यों नही रहे हो, मदद नही कर सकते हो तो कुछ ग़लत ही कर दो,कुछ तो करने की हिम्मत जुटा लो ग़लत या मदद।”
राज फिर भी कुछ नही बोला वो शीतल का चेहरा ही देखता रह गया,उसकी आँखो से आँसू बहे जा रहे थे,उसके मासूम से चेहरे को देखकर कोई भी पिघल सकता था। राज अपनी बाइक लाया और उसे बैठने का इशारा किया,शीतल बिना सोचे समझे तुरंत बैठ गयी। राज उसे अपने घर ले गया,घर पहुँच कर उसने शीतल को बाहर ही खड़े रहने को कहा और खुद अंदर चला गया। उसने अपनी माँ को सारी बात बताई और कहा कि मम्मी उसे कुछ दिन के लिए यहाँ रहने दो,एक दो दिन में वो खुद चली जाएगी।
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