RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“यहाँ से थोड़ी दूरी पर एक नल है आप वहाँ हाथ-मुँह धुल लो………………। आप के पास जो रुपये हैं उनसे बाल्टी,मग और कुछ समान लेते आना,”शीतल ने कहा।
“रुपये तुम रख लो और जो समान खरीदना हो तुम खरीद लेना,मुझे आने में देर हो सकती है।”
एक घंटे बाद राज कम पर चला गया और थोड़ी देर बाद शीतल ने भी अपने कपड़ों से धूल साफ की और वो भी बाहर किसी काम की तलाश में चल दी दरवाजे पे ताला भी नही लगाया,ताला था भी तो नही जो लगाती ना ही कोई समान था जो चोरी हो जाता,सिवाय झाड़ू के।
शीतल शाम 7 बजे तक घर आ गयी लेकिन राज रात 10 बजे घर आया।
“आप बहुत देर से आए और आपने दिन में कुछ खाया था या……………,” शीतल ने पूछा।
“खाया था,ये 200 रुपये रख लो,”राज उसे रुपये पकड़ाते हुए कहा।
“पर आपको तो महीने के अन्त मे पेमेंट मिलनी थी ,फिर ये कैसे…?”
“मैंने एक जगह मज़दूरी भी की थी,और तुम बताओ?”राज ने पूछा।
“मैं कुछ बर्तन,बाल्टी ,मग और मोमबत्ती ले आई हूँ। काम भी बहुत जगह मिल रहा था पर लोग अच्छे नही मिल रहे थे,सब की नज़रें बहुत खराब थीं,”शीतल ने कहा।
“तो फिर,अच्छे लोगों का मिलना भी बहुत मुश्किल है।”
“मैंने एक कॉल सेंटर में बात की है , एक-दो दिन में वो बता देंगे,”शीतल ने कहा।
“अँग्रेज़ी अच्छी है क्या?”राज ने पूछा।
“हाँ,मैं सिटी टॉपर हूँ।”
“सच में।”
“हाँ।”
“तुमने कुछ खाया आज?” राज ने पूछा।
“हाँ,थोड़ा बहुत खाया था।”
कुछ रुककर शीतल फिर बोली-“मुझे अकेले डर लगता है। तुम थोड़ा जल्दी आया करो। ”
राज ने कुछ नही कहा और चुप-चाप फर्श पर सो गया। लेकिन शीतल नही सोई उसने कॉपी और पेन उठाया (जो उसने सुबह खरीदा था)और मोमबत्ती की रोशनी में कुछ लिखने लगी। कुछ देर तक वो इसी तरह कुछ लिखती रही फिर अपने दुपट्टे को बिछाकर सो गयी।
सुबह जब राज काम पर जाने लगा तो शीतल ने उसे कुछ रुपये देते हुए कहा-“तुम अपने लिए कपड़े खरीद लेना। ”
राज ने रुपये लिए और बिना कुछ कहे चला गया। शीतल को बहुत दुख होता था जब राज उसकी बात का जवाब नही देता था पर वो राज से कुछ नही कहती थी। वो सोचती थी की मैं इतनी सुंदर हूँ लेकिन राज को तो कोई फ़र्क ही नही पड़ता राज की जगह कोई और होता तो मेरे साथ पता नही क्या करता पर राज तो मुझे सही से देखता भी नही मुझसे दूर ही रहा करता ना तो मेरी किसी बात का जवाब देता है ना ही खुद कोई बात करता है। घर में कितनी खुश थी लेकिन अब तो शायद सिर्फ़ रोना ही है।
कुछ दिन में शीतल को भी कॉल सेंटर में जॉब मिल गयी,वो दिन भर काम करते और रात को पढ़ाई उन्होने अब कभी-कभी कॉलेज भी जाना शुरू कर दिया था। राज रात को देर से आता था और शीतल 8 बजे तक आ जाती थी। उन दोनों को एक दूसरे पर विश्वास तो था पर उनके बीच दूरियाँ बहुत बढ़ गयी थीं। शीतल का कोई ऐसा दिन नही जाता था जिस दिन वो रोती ना हो वो चाहती थी की राज उसके दुख को समझे लेकिन राज के पास शीतल के लिए वक्त नही था । शीतल रोती भी बहुत ज़्यादा थी। उन्हें घर छोड़े दो महीने हो गये थे अब हालात कुछ बेहतर थे लेकिन अब भी बहुत- सी चीज़ों की कमी थी। राज सुबह 7 से रात 10 बजे तक काम करता था और शीतल सुबह 8से रात 8बजे तक। इतना काम करने के बाद भी दोनों रात-रात भर जाग कर पढ़ाई करते थे।
“तुम कल छुट्टी ले लो,”शीतल ने कहा।
“क्यों?”
“मैं सोच रही थी की कल कहीं बाहर चलते। हर रोज़ इतनी मेहनत करते-करते मैं थक गयीं हूँ बाहर चलेंगे तो शायद थोड़ा मन हल्का हो जाए,”शीतल ने कहा।
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