FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
06-13-2020, 01:05 PM,
#27
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
मिक्की उसकी पीठ पर हाथ फिराता हुआ बोला— "जज्बातों में बहकर कितनी बड़ी बेवकूफी कर बैठा, इसका अब मुझे पूरा-पूरा अहसास हो रहा है, अगर तू नाटक कर रही है तब भी और नहीं कर रही है तब भी—दरअसल तेरा खात्मा करना मेरे लिए बहुत जरूरी हो गया है, वर्ना तू हमेशा धारदार तलवार बनी मेरी गर्दन पर लटकी रहेगी—हमेशा डर बना रहेगा कि जाने तू कब, किससे मेरा राज, बक दे, ठीक कह रहा हूं न?"
"न.....नहीं—मैं इस बारे में कभी किसी से कुछ नहीं कहूंगी।"
"मैं इस वादे पर विश्वास करने की बेवकूफी नहीं कर सकता।" दांत भींचकर यह वाक्य कहने के साथ ही उसके हाथ अलका की गर्दन
पर पहुंच गए।
और।
यह वह क्षण था जब अलका को पूरा यकीन हो गया कि वह मरने वाली है, उसकी गिरफ्त से निकलने की कोशिश के साथ ही जोर से चीख पड़ने के लिए अलका ने मुंह खोला, मगर—
मुंह खुला-का-खुला रह गया।
चीख हलक में घुट गई।
चेहरे पर पैशाचिक भाव लिए, मिक्की अपने मजबूत हाथों का दबाव अलका की गोरी, सुराहीदार और कोमल गर्दन पर बढ़ाता चला गया।
अलका यूं छटपटाई जैसे शेर के पंजे में फंसी हिरनी।
दम घुटने लगा।
मुंह से 'गूं-गूं' की आवाजें निकल रही थीं।
खेल खत्म होने। में शायद एकाध पल ही बाकी बचा था कि मिक्की के दिमाग में न जाने क्या विचार कौंधा कि उसने झट अपने हाथ अलका की गर्दन से हटा लिए।
वह लहराकर धड़ाम से फर्श पर गिरी।
पसीने से लथपथ मिक्की ने जल्दी से झुककर अलका की नब्ज टटोली।
स्पन्दन का अहसास करके जैसे स्वयं मिक्की के प्राण वापस लौटे।
अलका का सिर्फ बेहोश हुई थी।
"उफ!" वह बड़बड़ा उठा—"यह मैं क्या बेवकूफी करने जा रहा था?"
वह खड़ा हुआ, जेब से रुमाल निकालकर पसीने से तरबतर चेहरे को पोंछा।
कुछ देर स्वयं को नॉर्मल करने की चेष्टा करता रहा।
जेब से ट्रिपल फाइव का पैकेट निकालकर सोने के लाइटर से एक सिगरेट सुलगाई और सारी स्थिति पर गौर करने के लिए चारपाई
पर जा बैठा।
सोचने की कोशिश करने लगा कि अब इन हालातों में क्या करना चाहिए—क्या किया जा सकता है—लगा कि सोचने में कुछ व्यवधान आ रहा है।
ठीक से कुछ सोच न पा रहा था वह।
शुरू में लगा कि अप्रत्याशित हालातों के कारण दिमाग जाम हो गया है, मगर शीघ्र ही उसे सोच न पाने की असल वजह का इल्म
हुआ।
दरअसल ट्रिपल फाइव के धुंए का स्वाद उसे कसैला-सा लग रहा था।
उंगलियों के बीच फंसी ट्रिपल फाइव को उसने यूं घूरा जैसे उस लम्बी और कीमती सिगरेट पर ताव खा रहा हो.....फिर झुंझलाकर सिगरेट एक तरफ फेंक दी।
अपने ही बिछाए हुए जाल में उलझकर रह गया था वह। अलका का जीवित रहना उसके लिए मौत था।
'हत्या' हजार बखेड़े खड़ी कर सकती थी।
'क्या करे वह.....क्या किया जा सकता है?' इसी सवाल में उलझा वह दूर, बहूत दूर तक सोचता चला गया।
¶¶
पहले दोनों किवाड़ों के बीच पतली-सी दरार उत्पन्न हुई, फिर वह चौड़ी होती चली गई और मिक्की ने झांककर गली का निरीक्षण किया।
सन्नाटा।
एकमात्र सरकारी बल्ब की रोशनी वहां छिटकी पड़ी थी।
मिक्की ने पुनः किवाड़ बन्द किए।
सबसे पहले उसने फर्श पर पड़े सिगरेट और बीड़ी के टोटे उठाकर जेब के हवाले किए—राख को सिमेटकर नाली में बहाया।
एक आले में रखा ताला उठाया, चाबी उसी में लगी थी।
इस तरफ से आश्वस्त होने के बाद कि अब यहां उसके आगमन का कोई चिन्ह बाकी नहीं बचा है, अलका के जिस्म को उठाकर कंधे पर लादा।
दरवाजे पर पहुंचा।
एक बार पुनः गली में अनुकूल वातावरण देखकर बाहर निकल आया और इसके बाद बिजली के पुतले की तरह अलका के कमरे की सांकल बाहर से लगाकर ताला लटका दिया।
लगभग दौड़ने के-से अंदाज में वह गली पार करने लगा।
इस वक्त मिक्की का दिल बुरी तरह धड़क रहा था। पसीने के कारण अपने समूचे जिस्म को चिपचिपा-सा महसूस कर रहा था वह.....भागते हुए ही चाबी उसने कंधे पर बेहोश पड़ी अलका के वक्षों के बीच फंसा दी।
यह सोच-सोचकर उसके होश उड़े जा रहे थे कि इस वक्त उसे कोई मिल जाए, देख ले तो क्या हो?
उसके सारे किए-धरे पर पानी फिर सकता था।
मगर।
ऐसा कुछ नहीं हुआ।
गली पार करके वह सड़क पर पहुंचा।
सड़क के दोनों तरफ पैदल चलने वालों के लिए बरांडेनुमा फुटपाथ था—इस वक्त जगह-जगह अनेक लोग सोए हुए थे।
दाईं तरफ से एक वाहन इस सड़क पर मुड़ा और उसकी हैडलाइटस की सीमा में आने से पहले ही मिक्की ने फुर्ती से अलका के बेहोश जिस्म को बरांडे के गन्दे फर्श पर लिटा दिया।
अभी वह लम्बी-लम्बी सांसें ले रहा था कि फर्राटे भरती कार उसके सामने से गुजर गई—राहत की सांस लेने के बाद वह तेज कदमों के साथ एक तरफ को बढ़ गया।
बीस मिनट बाद।
उसने लालकिले के पार्किंग में खड़ी सुर्ख रंग की मर्सडीज स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी और वह तैरती हुई-सी फुटपाथ के उस हिस्से के नजदीक रुकी जहां मिक्की अलका के बेहोश जिस्म को छोड़ गया था।
सड़क पर सन्नाटा तो था, किन्तु ऐसा नहीं कि मिक्की अपना काम पूरी आजादी और निश्चिन्तता के साथ कर सके।
रह-रहकर कोई-न-कोई वाहन वहां छाई नीरवता को भंग करता हुआ निकल जाता—ड्राइविंग डोर खोलकर मिक्की बाहर निकला, दरवाजा आहिस्ता से बन्द किया।
फिर।
गाड़ी का पिछला, फुटपाथ की तरफ वाला दरवाजा खोला।
धड़कते दिल से सड़क के दोनों तरफ का निरीक्षण किया—दूर-दूर तक किसी व्यक्ति या वाहन को न देखकर तेजी से अलका की ओर लपका।
बेहोश जिस्म को उठाकर गाड़ी की पिछली सीट पर डालने में उसे पांच मिनट लगे, परन्तु इसे उसका सौभाग्य ही कहा जाएगा कि यह हरकत करते उसे किसी ने देखा नहीं—दरवाजा बन्द करके वह ड्राइविंग सीट पर बैठा।
और।
सड़क पर तैरती-सी मर्सड़ीज आगे बढ़ गई।
¶¶
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RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन - by desiaks - 06-13-2020, 01:05 PM

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