RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"मेरा तो दिमाग घूमकर रह गया है।" नसीम बानो ने कहा— "समझ में नहीं आ रहा कि आखिर चक्कर क्या है, सुरेश सबकुछ स्वीकार क्यों करता जा रहा है?"
विमल बोला— "समझ में आने वाली बात ही नहीं है, जो कुछ सुरेश ने किया नहीं, उसे स्वीकार कर रहा है, इससे ज्यादा हैरत की बात और क्या हो सकती है?"
"कहीं ऐसा तो नहीं कि सुरेश हमें बेवकूफ बना रहा हो?" यह सम्भावना विनीता ने व्यक्त की थी।
विमल ने पूछा—"क्या मतलब?"
"मुमकिन है कि किसी रास्ते से उसे पता लगा गया हो कि हम क्या षड़यंत्र रच रहे हैं और उस पर वह हमें चकरा डालने के लिए हमसे भी बड़ा षड्यंत्र रच रहा हो।"
"ऐसा नहीं हो सकता।"
"क्यों?"
"यदि वह हकीकत से वाकिफ हो जाता तो सीधा हम तीनों को कानून के हवाले कर देता.....जो उसने नहीं किया, उसे स्वीकार करके आखिर उसे क्या मिलने वाला है?"
"इसी पर गौर करने के लिए तो हमारी यह आपातकालीन मीटिंग हुई है।" विनीता ने कहा—"जैसे ही नसीम ने फोन पर मुझसे कहा कि समस्त आशाओं के विपरीत सुरेश सबकुछ स्वीकार करता जा रहा है, तो मैं दौड़ी हुई यहां चली आई।"
नसीम ने राय दी—"मेरे ख्याल से हमें सारे मामले पर पुनर्विचार करना चाहिए, तब शायद ये झमेला कुछ समझ में आए।"
"क्या मतलब?"
"मेरे कोठे पर जानकीनाथ का आना-जाना था।" नसीम ने कहना शुरू किया—"एक दिन विमल मेरे पास आया और जानकीनाथ के मर्डर में शामिल होने की दावत पांच लाख के साथ दी—मैं तैयार हो गई, तुमने (विमल) खुद कील और हथौड़ी से नाव में छेद किए—खैर, वह सारी योजना कामयाब हो गई—जानकीनाथ मर गया, सबने उसे दुर्घटना ही समझा—यहां तक कि पुलिस ने भी उसे दुर्घटना मानकर फाइल बन्द कर दी।"
"मगर पांच लाख रुपये लेने के बावजूद तुम मेरे साथ चाल चल गईं।" विमल ने कहा— "तुमने नाव की तली में छेद करते मेरा फोटो ले लिया था और काल्पनिक गुण्डों का नाम लेकर फोटो के आधार पर मुझे ब्लैकमेल करती रहीं।"
नसीम ने बेहयाई के साथ कहा— "अपने चंगुल में फंसे शिकार को सारी जिन्दगी के लिए गुलाम बना लेना मेरी आदत है—खैर, जानकीनाथ की मौत के बाद मैं सुरेश से भी मिली और अपने तरीके से मैंने यह पता लगा लिया कि तुम दोनों यानी सुरेश का सेक्रेटरी और बीवी आपस में मुहब्बत करते हो—इस भेद को खोल देने की धमकी देकर एक दिन मैंने तुम दोनों को यहां इकट्ठा बुला लिया, ठीक है न?"
दोनों की गर्दन उसके साथ स्वीकृति में हिली।
"उस दिन मैंने तुमसे पूछा था कि तुमने जानकीनाथ की हत्या क्यों की—तब तुमने क्या जवाब दिया था, बोलो—मैं वही जवाब इस वक्त भी सुनना चाहती हूं।"
"मेरे ख्याल से पिछली बातों की चर्चा करने से हमें कोई लाभ होने वाला नहीं है नसीम, वर्तमान समस्या पर गौर करना जरूरी है।"
"वर्तमान समस्या दिमाग में ठीक से फिट तभी होगी, जब पिछली बातें स्पष्ट होंगी, अतः जवाब दो, तुमने जानकीनाथ की हत्या क्यों की?"
"क्योंकि उसने हमें एक रात अभिसार की अवस्था में देख लिया था।"
"यह सुनकर मैंने पूछा था कि अब आगे आपका क्या प्लान है, तब जवाब में तुम दोनों चुप रह गए थे—मेरे बार-बार पूछने पर तुमने कहा कि भविष्य की कोई योजना तुमने नहीं बना रखी है—तब मैंने तुम्हें मूर्ख ठहराया था और कहा था कि तुम्हारे बीच का सबसे बड़ा कांटा सुरेश है—अगर तुमने जरा-सी भी होशियारी से काम लिया होता तो जानकीनाथ की मौत के साथ ही सुरेश से भी छुट्टी पा जाते—तुमने पूछा, कैसे—जवाब में मैं समझ गई कि तुम दोनों के दिल में सुरेश से छुटकारा पाने की इच्छा है और होती भी क्यों नहीं—उसके हट जाने के बाद तुम्हारे प्यार का खेल न सिर्फ खुलेआम चलने वाला था, बल्कि करोड़ों की सम्पत्ति के मालिक भी तुम्हीं बनने वाले थे, क्या मैं गलत कह रही हूं?"
विनीता बोली— "समझ में नहीं आता कि इस सबको तुम दोहरा क्यो रही हो?"
"तुम्हारी इच्छा भांपते ही मैंने प्रस्ताव रखा कि जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में सुरेश अब भी फंस सकता है—तुमने पूछा—कैसे, जवाब में मैंने तुम्हें पूरी एक स्कीम बताई, बताई थी न?"
"हां।"
"क्या स्कीम थी वह?"
"सबसे पहले हमने एक अज्ञात आदमी के नाम से पुलिस अधीक्षक से लेकर कमिश्नर तक उस पत्र की प्रतियां डाक से भेजीं, जिनमें पत्र-लेखक को जानकीनाथ का शुभचिन्तक बताकर यह सन्देह व्यक्त किया था कि जानकीनाथ की हत्या की गई है—नए सिरे से जांच की मांग करते हुए पत्र में हमने यह भी लिखा था कि हम अपना नाम लिखकर अज्ञात हत्यारों से दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहते—अन्त में पत्र में हमने यह भी लिखा था कि किसी को यह पता नहीं लगना चाहिए कि जांच ऊपर से शुरू हुई है, क्योंकि इससे हत्यारे सतर्क होकर जांच पर राजनैतिक दबाव डलवा सकते हैं—इस पत्र के चंद दिन बाद ही सम्बन्धित थाने पर इंस्पेक्टर गोविन्द म्हात्रे की नियुक्ति हुई और उसने ऐसा दर्शाते हुए केस की फाइल पुनः खोल ली जैसे इससे सम्बन्धित उसे ऊपर से कोई आदेश न मिला हो, बल्कि पर्सनल रूप से उसने जांच शुरू की हो—हमारे ख्याल से वास्तविकता ये है कि म्हात्रे की हर एक्टीविटी हमारे पत्र पर प्रशासन की प्रक्रिया है।"
"इसके बाद क्या हुआ?"
"हमने अनुमान लगा लिया था कि गोविन्द म्हात्रे सबसे पहले नाव को चैक करने और नाव के मालिक महुआ का बयान लेने पहुंचेगा, अतः योजना के अनुसार म्हात्रे से पहले तुम (नसीम) महुआ से मिलीं—उससे कहा कि यदि कोई पुलिस वाला तेरह नवम्बर की घटना के बारे में पूछे तो उसे कुछ बताना नहीं है, यदि उसने सारी घटना से अनिभिज्ञता प्रकट की तो जानकीनाथ का लड़का सुरेश उसे माला-माल कर देगा और उसके ठीक विपरीत अगर कोई गड़बड़ बयान देगा तो सुरेश उसे ही नहीं, बल्कि उसके बीवी-बच्चों को भी मौत की नींद सुला देगा।"
"ऐसा मैंने उससे यह सोचकर कहा था कि वह घबराकर इस घटना को म्हात्रे को बता देगा, म्हात्रे का ध्यान यहीं से सुरेश पर केन्द्रित हो जाएगा—इसके बाद वह बयान हेतु मेरे पास आएगा, मैं थोड़ी ना-नुकुर के बाद कहूंगी कि यदि वह मुझे वादामाफ गवाह बना ले तो मैं उसे हकीकत बताने के लिए तैयार हूं, और अपनी मांग मान लेने पर मैं उसे यह बयान देने वाली थी कि जानकीनाथ का कातिल सुरेश ही है और मुझे उसने पांच लाख का लालच देकर अपनी मदद करने के लिए तैयार किया था, इसी सांस में मुझे यह भी कहना था कि महुआ के पास भी मुझे सुरेश ने ही भेजा था।"
"मगर यह स्कीम कामयाब नहीं हुई।"
"क्यों?"
"क्योंकि हमारी मदद के मुताबिक महुआ ने घबराकर म्हात्रे को हकीकत नहीं बताई, बल्कि सारी घटना से अनभिज्ञता प्रकट करता रहा—म्हात्रे वहां से नाव की तली में मौजूद छेदों का निरीक्षण करके लौट गया।"
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