RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
रहटू के वहां से जाते ही बेड के नीचे छुपा विमल बाहर निकल आया। उस वक्त वह संभलकर पलंग पर बैठ रहा था जब नसीम ने पूछा—"अब तो तुम्हें यकीन हुआ कि रहटू न काल्पनिक है और न ही वे बातें मेरे दिमाग की उपज थीं, जो कह रही थी।"
"वह तो जाहिर हो ही गया, मगर.....।"
"मगर—?"
"वह हरामजादा तो सुरेश का कत्ल करने पर पूरी तरह आमादा है—तुमने ना-नुकुर की—इधर-उधर के बहाने भी मिलाए, परन्तु वह टस-से-मस न हुआ—जो स्कीम लेकर आया था, अंततः तुम्हें उस पर काम करने के लिए तैयार कर ही लिया।"
"बहुत कांइया है वह।" नसीम बोली— "पट्ठा कल ही अपनी स्कीम को अंजाम देना चाहता है, परसों तक टलने के लिए तैयार नहीं।"
"अब तुम क्या करोगी?"
"किस बारे में?"
"उसी बारे में जो अभी-अभी रहटू से तय हुआ है, उसकी योजना के मुताबिक कल शाम तुम्हें सुरेश को लेकर बुद्धा गार्डन पहुंचना है—वहां वह भेष बदले आइसक्रीम बेच रहा होगा—तुम्हें उससे आइसक्रीम के दो कप लेने हैं, सुरेश वाले कप में जहर होगा और बस, खेल खत्म।"
"उससे पीछा छुड़ाने की कोई तरकीब हम सबको मिल-बैठकर सोचनी चाहिए।"
और।
वे रहटू नाम की आफत से छुटकारा पाने की तरकीब सोचने में मशगूल हो गए—इस कदर कि टाइम का होश ही न रहा। एक-दूसरे को उन्होंने अनेक मशवरे दिए, मगर कोई जंच न रहा था।
अभी तक किसी एक मशवरे पर सहमत नहीं हुए थे कि साजिन्दे ने आकर खबर दी—"विनीता मेम साहब आई हैं।"
"व.....विनीता?" विमल उछल पड़ा।
चकित नसीम बुदबुदाई, "ऐसा कोई प्रोग्राम तो था नहीं, फिर इस वक्त विनीता क्यों आई?"
कुछ देर तक सवालिया नजरों से दोनों एक-दूसरे को देखते रहे, फिर विमल ने आहिस्ता से साजिन्दे से कहा— "उन्हें अन्दर भेज दो।"
साजिन्दा वापस चला गया।
कुछ देर बाद, कमरे में विनीता को दाखिल होते देख वे दोनों कुछ और चौंक पड़े। विनीता के समूचे चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं—गालों की सुर्खी का तो जिक्र ही बेकार है, होंठ तक सफेद नजर आ रहे थे।
ऐसी हालत थी उसकी जैसे रास्ते में कहीं अपने किसी बहुत प्रिय की लाश देखकर सीधी दौड़ी चली आ रही हो।
सांस बुरी तरह फूली हुई थी।
होश गायब।
"क्या बात है विनीता, तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?" विमल से रहा न गया।
उसके होंठ कांपे, ऐसा लगा जैसे कुछ कहने के लिए पूरी ताकत लगा रही हो और फिर वह कामयाब हो गई। होंठों के बीच में से कमजोर आवाज निकली—मैं.....मैं एक ऐसी खबर लाई हूं जो तुम्हारे छक्के छुड़ा देगी।"
दोनों के दिल बुरी तरह धड़के।
नसीम ने पूछा—"ऐसी क्या खबर है?"
"व.....वह सुरेश नहीं है।"
"क.....क्या?" दोनों उछल पड़े—"कौन सुरेश नहीं है?"
"व.....वही, जो कोठी में रह रहा है, जिसे अब तक हम सुरेश समझ रहे थे।"
"क्या बक रही हो तुम?" विमल दहाड़ उठा।
"म.....मैं सच कह रही हूं—वह सुरेश नहीं है—वह सुरेश नहीं है।"
"फिर कौन है?"
"म......मिक्की.....वह मिक्की है, सुरेश का बड़ा भाई।"
"म.....मिक्की?" दोनों के हलक से चीख-सी निकल गई। सारा ब्रह्माण्ड अपने सिर के चारों ओर सुदर्शन चक्र के मानिन्द घूमता नजर आया और वह नसीम थी जिसने खुद को विमल से पहले होश में लाते हुए पूछा—"य.....यह कैसे हो सकता है, मिक्की कैसे हो सकता है वह.....मिक्की ने तो अपने कमरे में आत्म.....!"
"व.....वह सुरेश की लाश थी, मिक्की ने सुरेश का कत्ल उसी दिन कर दिया था—सुरेश की लाश को अपनी लाश शो करके मिक्की ने डायरी आदि से ऐसा षड्यन्त्र रचा जैसे उसने आत्महत्या कर ली हो—वास्तव में मिक्की उसी दिन से सुरेश बना कोठी में रह रहा है।"
"ओह!" नसीम के मुंह से निकला।
फिर विनीता ने दूसरा धमाका किया—"रहटू मिक्की का दोस्त है, वह मिक्की के सुरेश बन जाने से वाकिफ ही नहीं है, बल्कि उसकी मदद भी कर रहा है—रहटू का यहां आना, सुरेश के मर्डर की बात करना आदि सब एक चाल है, एक साजिश।"
"कैसी साजिश?" नसीम ने पूछा।
"तुम्हारी हत्या की साजिश।"
"म.....मेरी हत्या?" नसीम बानो के होश उड़ गए।
"हां।" विनीता कहती चली गई—"कुछ देर पहले यहां से रहटू यह प्रोग्राम सेट करके गया होगा कि कल तुम्हें सुरेश को साथ लेकर
बुद्धा गार्डन जाना है और वहां वह जहरयुक्त आइसक्रीम खिलाकर सुरेश का मर्डर कर देगा।"
"हां—।"
"मगर नहीं, वह मर्डर सुरेश का नहीं, बल्कि तुम्हारा करने वाला है—असल में जहरयुक्त आइसक्रीम तुम्हें दी जाएगी।"
"क्यों?"
"उनकी नजर में एकमात्र तुम ही हो जो सुरेश बने मिक्की को जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में फंसवा सकती हो, अतः वे तुम्हें ठिकाने लगा देना चाहते हैं।"
"ओह!" अपनी हत्या का प्लान सुनकर नसीम के रोंगटे खड़े हो गए थे।
बहुत देर से चुप विमल ने पूछा—"ये सब विस्फोटक जानकारियां तुम्हें कहां से मिलीं?"
"हमारे बीच तय हुआ था न कि सुरेश की स्वीकारोक्ति के रहस्य को जानने के लिए उसकी हर एक्टिविटी पर नजर रखनी होगी, सो मैं ऐसा किए हुए थी और इसी के तहत मैंने नीचे वाले फोन पर, रहटू और मिक्की के बीच होने वाला सारा वार्तालाप सुना है—दोनों की आवाज मुझे बिल्कुल साफ-साफ सुनाई दे रही थी।"
"विस्तार से बताओ, फोन पर उनकी क्या बातें हुईं?"
बिना हिचके विनीता एक सांस में बताती चली गई—सुनते-सुनते नसीम और विमल के रोंगटे खड़े हो गए—उन्होंने तो कल्पना भी नहीं थी वे स्वयं इतने बड़े, गहरे और जबरदस्त षड्यंत्र के बीच फंसे हुए हैं और फोन पर हुई लगभग पूरी वार्ता सुनाने के बाद विनीता ने कहा— "फोन के बाद मेरे छक्के छूट गए, दिमाग में सिर्फ एक ही बात आई, यह कि इस वक्त तुम दोनों यहां होगे, सो सारा राज बताने गाड़ी उठाकर सीधी भागी चली आई, परन्तु......।"
"परन्तु—?"
"रास्ते में मेरे साथ एक और रहस्यमय बात हुई, निश्चय नहीं कर पा रही हूं कि उस बारे में तुम्हें कुछ बताने की जरूरत है या नहीं।"
"ऐसी क्या बात है?" विमल का लहजा कांप रहा था।
"स.....सोच रही हूं कि सुनाने के बाद कहीं तुम मेरा मजाक न उड़ाओ।"
नसीम ने कहा—"तुम बोलो, यह वक्त सस्पैंस बनाने का नहीं है।"
"जब गाड़ी ड्राइव करती हुई आ रही थी तो रास्ते में एक स्थान पर मुझे ऐसा लगा जैसे गर्दन पर किसी चींटी ने बहुत जोर से काटा हो—यह कहकर मजाक न उड़ाना कि भला चींटी के काटने की बात भी जिक्र लायक है, क्योंकि.....।"
"क्योंकि?" उसे ध्यान से देखती हुई नसीम ने सवाल किया।
"उस वक्त से मैं अपना सिर चकराता महसूस कर रही हूं, नींद-सी आ रही है मुझे—आंखें बन्द हुई जा रही हैं, जाने कैसी चींटी थी वह कि आंखें खुली रखने के लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी रही है।"
नसीम और विमल के दिल की धड़कनें मानो रुक गईं।
दोनो की नजरें मिलीं।
आंखो में एक अजीब खौफ था।
विनीता ने पूछा—"तुम एक-दूसरे को इस तरह क्यों देख रहे हो?"
नसीम और विमल की नजरें पुनः मिलीं, विनीता के सवाल का जवाब उनमें से किसी ने नहीं दिया, बल्कि विमल ने उल्टा सवाल किया—"चींटी ने कहां काटा था?"
"यहां।" उसने अपनी गर्दन पर उंगली रखी।
नसीम ने झुककर उस स्थान को देखा, विमल तब विनीता की आंखों में झांक रहा था—उन आंखों में, जिनमें उसे हमेशा सात समन्दर नजर आया करते थे, इस वक्त वीरानी नजर आई।
दूर-दूर तक.....सिर्फ वीरान ही वीरानी।
उधर।
नसीम के हलक से एक डरावनी चीख निकल गई।
"क.....क्या हुआ?" विनीता ने बौखलाकर पूछा।
विमल स्वयं भौंचक्का नसीम को देख रहा था और नसीम की हालत आजाद शेर के सामने बंधी बकरी से भी बद्तर थी—जाने क्या सूझा उसे कि झपटकर उठी।
छलांग लगाकर कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।
विमल ने लगभग चीखकर पूछा—"बात क्या है नसीम?"
"विनीता मरने वाली है।" उसके मुंह से वहशियाना अंदाज में निकला।
"क.....क्या?"
"इसे किसी ने जहर बुझी सुई चुभोई है, गर्दन पर एक बहुत छोटा-सा धब्बा है, ठीक नीले थोथे की तरह नीला।"
"न.....नहीं।" विमल के हलक से चीख निकल गई।
और विनीता।
उसे तो मानो लकवा मार गया।
किसी महापुरुष के श्राप से जैसे वह तत्काल पत्थर की शिला में बदल गई थी।
अवाक्.....हतप्रभ.....भौंचक्की।
मारे आतंक के नसीम और विमल के चेहरे निस्तेज नजर आ रहे थे।
कई मिनट तक सन्नाटा छाया रहा।
फिर।
"विनीता.....विनीता।" उसके दोनों कंधे पकड़कर विमल ने झंझोड़ा।
"आं।" जैसे समाधि टूटी हो।
"याद करके बताओ, जिस वक्त सुईं चुभी थी, उस वक्त तुमने अपने आस-पास किसी आदमी को देखा था क्या.....यदि 'हां' तो वह कौन था विनीता, कौन था वह?"
"व.....विमल।" विनीता की आवाज मुंह से नहीं, किसी अंधकूप से निकलती महसूस हुई—"मुझे बचा लो, मैं मरने वाली हूं विमल.....मुझे बचा लो।"
वातावरण में सनसनी दौड़ गई।
जहर का तो जो असर विनीता पर था, वह था ही—उससे ज्यादा असर था इस अहसास का कि उसके जिस्म में जहर पहुंच चुका है और वह मरने वाली है।
इस आतंक ने उसे समय से पहले ही मौत के करीब ला दिया था।
विमल उससे अपने सवाल के जवाब की अपेक्षा कर रहा था, जबकि उसने दोनों हाथों को बढ़ाकर विमल का गिरेबान पकड़ लिया। दांत भींचकर उसे झंझोड़ती हुई हिस्टीरियाई अंदाज में चिल्लाई—"मैं मरने वाली हूं विमल, तुम कुछ करते क्यों नहीं—मैं कहती हूं कुछ करो, मुझे बचा लो, बचा लो मुझे।"
"म...मैं।" विमल बौखला गया—"क्या करुं मैं?"
अचानक नसीम ने आगे बढ़कर पूछा—"ये बताओ विनीता....उस वक्त अपने आस-पास तुमने किसे देखा था—शायद अंदाजा हो कि तुम्हारे खून में मिलाया गया जहर किस किस्म का है—तब, वैसा ही इलाज किया जाए।"
विनीता ने जवाब देने के लिए मुंह खोला और यह प्रथम अवसर था जब विमल और नसीम ने उसके मुंह में नीले झाग देखे। वह कहती चली गई—"मैंने किसी को नहीं देखा, वहां कोई नहीं था—सिर्फ चींटी के काटने का अहसास हुआ था, मगर तुम लोग कुछ करते क्यों नहीं, मेरा सिर चकरा रहा हैं—आंखें बन्द हुई जा रही हैं—मुझ पर खड़ा नहीं हुआ जा रहा विमल.....कुछ करो।"
विमल किंकर्त्तव्यविमूढ़।
"यह हादसा तुम्हारे साथ कहां हुआ था?" नसीम ने पूछा।
"ग.....गाड़ी में, जब मैं ड्राइव कर रही थी।"
नसीम ने पुनः पूछा—"क्या उस वक्त गाड़ी में तुमने अपने अलावा किसी को.....?"
"यही बात बार-बार पूछकर तू समय बर्बाद क्यों कर रही है?" विनीता पागलों की तरह आंखें बाहर निकालकर गुर्राईं—"एक बार कह चुकी हूं कि मैंने किसी को नहीं देखा, कान खोलकर सुन ले वहां कोई नहीं था—अब कुछ कर, अगर मैं मर गई तो सुरेश की दौलत का जर्रा भी तुम दोनों में से किसी को नहीं मिलेगा, मुझे बचा लो—तुम कुछ करो विमल।"
"क.....क्या करूं?"
झाग उसके होठों से बाहर आने लगे थे, आंखें पुतलियों की चारदीवारी पार करने लगीं और मरने से पहले ही निस्तेज पड़े चेहरे वाली विनीता ने पुनः कहा— "किसी डॉक्टर को बुलाओ, वह मुझे बचा सकता है—मेरे मरने के बाद तुम दोनों कंगाल हो जाओगे—किसी को एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी।"
विमल ने नसीम की तरफ देखा
उसका आशय समझकर नसीम बोला— "अगर यहां कोई डॉक्टर आया, खासतौर से विनीता के लिए—तो सारे भेद खुल जाएंगे, लोग जान जाएंगे कि हमारे क्या सम्बन्ध हैं।"
"हरामजादी!" विनीता विमल का गिरेबान छोड़कर उसकी तरफ झपटती-सी गुर्राई—"यहां मैं मरने वाली हूं और तुझे भेद खुलने का डर सता रहा है!"
मगर।
विमल और नसीम के बीच का फासला वह तय न कर सकी और रास्ते में ही बुरी तरह लड़खड़ाने के बाद 'धड़ाम' से फर्श पर गिरी।
आंखें उलट चुकी थीं।
मुंह से झागों का अम्बार निकल रहा था।
हाथ-पांव ढीले पड़ते चले गए, कोशिश करने के बावजूद वह फर्श से उठने में कामयाब न हो सकी—चेहरा नीला पड़ता चला गया और फिर वह बार-बार यही कहती हुई कि 'मैं मरने वाली हूं' रोने लगी।
फूट-फूट कर।
नसीम और विमल ठगे से खड़े थे।
ये सच्चाई है कि विनीता को अपनी आंखों के सामने मरती देख उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, जिस्म मानो दिमागरहित थे।
उधर.....।
रोती हुई विनीता अचानक हंसने लगी।
खिलखिलाकर।
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