RE: Chodan Kahani कल्पना की उड़ान
मैं भी दबे पांव बाथरूम के पास पहुंचकर अन्दर देखने लगा, जहाँ सायरा अपनी पैन्टी को सूंघने में मस्त थी, मैं उसको वहीं छोड़कर तौलिये पहने डायनिंग हाल में पहुंचा और आवाज लगायी- बहू, अभी पेट की भूख नहीं बुझी, नाश्ता लगा दो तो कर लिया जाये।
“हाँ पापा, आयी।” कहकर वो तुरन्त ही बाथरूम से बाहर निकली, मुझे देखते हुए बोली- सॉरी पापा, बस अभी लगा रही हूँ।
“जल्दी से लगा दो. और हां तुम भी अपना नाश्ता लगा देना दोनों लोग साथ ही खायेंगे।”
वो मुस्कुराते हुए रसोई में चली गयी और थोड़ी देर बाद वो नाश्ता लेकर आयी, हम दोनों ने साथ-साथ नाश्ता किया। सायरा नाश्ता करती जा रही थी और मुस्कुराती जा रही थी।
नाश्ता करने के बाद एक अच्छी बहू की तरह उसने सायरा सामान समेटा और रसोई में चली गयी।
मैंने भी न्यूज पेपर लिया और पढ़ने लगा। रसोई और डायनिग हॉल आमने-सामने ही था। सायरा ने अपनी साड़ी के पल्लू को कमर में खोंसा और साड़ी को थोड़ा उठाकर भी कमर में खोंस लिया. इससे उसकी चिकनी गोरी टांगें मेरी नजरों में बस गयी इसलिये बीच-बीच में मेरी नजर सायरा पर टिक जाती थी, सायरा नजर भी मेरी नजर से टकरा जा रही थी।
जैसे ही उसकी नजर मेरे से टकराती … वो हल्की सी मुस्कुराहट छोड़ देती थी।
इस समय भी मेरे जिस्म में केवल तौलिया ही थी और वो भी मेरे अग्र भाग को पूरी तरह से ढक पाने में नाकाम थी। शायद सायरा की नजर वहां ठहर जा रही थी और जिसके वजह से वो मुस्कुराहट छोड़ जा रही थी।
मैं भी कहां कम था, मैंने अपनी टांगों को और फैला दिया और कनखियो से सायरा को देख रहा था। अब उसका मन रसोई में कम लग रहा था और मेरी तौलिये के बीच फंसे मेरे लंड पर ज्यादा था। इसलिये मेरे टांगों के खोलने के जवाब में सायरा ने अपनी साड़ी थोड़ा और ऊपर चढ़ा ली. मेरी नजर उसकी मोटी-सुडोल जाँघों पर टिक गयी।
अगर सायरा ने अपनी साड़ी को थोड़ा और ऊपर चढ़ा लिया होता तो शायद उसकी नंगी जांघें भी मेरी नजरों के सामने होती. पर शायद सायरा ने मुझे चिढ़ाने के लिये या मेरा ध्यान अपने ऊपर लाने के लिये ऐसा कर रही होगी।
अब मेरा अखबार पढ़ने में कम और उसकी जाँघों को देखने में ज्यादा लग रहा था। शायद मेरी जिंदगी का सबसे बेहतरीन पल होगा कि जब कोई औरत मुझे इस तरह आमत्रण दे रही हो। मैं अपने आपको काबू कर रहा था।
तभी सायरा अपना काम जल्दी-जल्दी खत्म करके मेरे पास आयी और बोली- पापाजी क्या पढ़ रहे हैं?
उसकी तरफ देखते हुए कहा- न्यूज।
“अच्छा, मैं भी पढ़ूंगी.” कहते हुए बिना मेरे प्रत्युत्तर के मेरी जाँघों पर बैठ गयी।
मैंने भी कुछ नहीं कहा क्योंकि मैं जानता था कि मेरे बेटे की गलती की वजह से वो एक-एक दिन किस तरह से तड़पी होगी और आज जब उसे मेरी तरफ से इशारा मिल गया है तो अपनी हजार ख्वाहिशों को पूरा करना चाहती है।
इधर मैंने भी सोनू की परवरिश के चक्कर में कभी अपना ध्यान नहीं दिया। पिछले काफी समय से मेरे अन्दर जो मर्दानगी इकट्ठी हो रही थी, उसे निकालना चाह रहा था।
सायरा मेरे से काफी चिपक कर बैठी थी, उसकी पीठ की तपिश मेरा सीना महसूस कर रहा था। सायरा अपनी पीठ को बार-बार मेरे सीने से रगड़ रही थी जिसका सीधा असर मेरे लंड पर और मेरी जांघ पर पड़ रहा था। सायरा के हिलने-डुलने से मेरे जांघ की हड्डियाँ इधर-उधर होने लगी।
मैंने सायरा को अपने ऊपर से उठाते हुए कहा- बहू, बेटा मैं हर जगह से मजबूत नहीं हूं जरा सा उठो और अगर मेरी जांघ पर बैठना ही है तो मेरे दोनों जाँघों पर अपना वजन बराबर से रखो।
सायरा मेरे दर्द को समझ गयी। उसने मुझसे अखबार लिया और डायनिंग टेबल पर रख दिया। फिर उसने मेरी टांगों को आपस में मिलाकर मेरे ऊपर बैठ गयी। लेकिन सायरा की चूत की महक पाकर लंड महराज उसकी चूत पर टकराते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे, इसकी वजह से एक बार फिर सायरा हिलने डुलने लगी।
मैंने सायरा के गालों को सहलाते हुए कहा- बहू, यह बहुत गलत बात है बेटा।
“अब क्या हुआ पापाजी?”
“अब तुम्ही समझो क्या हुआ!”
उसने अपने चारों तरफ देखते हुए समझने की कोशिश की लेकिन समझ नहीं पा रही थी।
जब समझ में नहीं आया तो बोली- पापा अब आप ही बता दो ना?
“अरे पगली, मैंने उसके गाल को हल्के से चपत लगाते हुए कहा- तुम्हारा पापा केवल तौलिया में है और तुम पूरे कपड़े में हो। ये नाइंसाफी हुई या नहीं।
अपने गाल पर उंगली रखते हुए सोच की मुद्रा में आयी और बोली- हाँ पापा जी, है तो यह गलत।
फिर झटके से खड़ी होते हुये बोली, पापा-बस दो मिनट दो, मैं अभी आपकी शिकायत दूर कर देती हूं।
फिर बहू दूसरे कमरे में गयी और दो मिनट बाद तौलिये लपेटे हुए बाहर आयी। मैं समझ तो गया था कि सायरा को खेल में मजा आ रहा था। अब मैं भी मजे लेने के मूड में आ चुका था।
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