RE: Free Sex kahani आशा...(एक ड्रीमलेडी )
जबकि रणधीर बाबू मस्ती में डूबे ज़ोरों से आहें भर रहे थे,
‘ओह्ह्ह्हsssss---- आह्ह्हssssssssss.... यssसsss आsssशाsssss ----- ओह्ह्हssss यसsssssss ----- टेssक ssइटssss ---- टेक इट ssss डीपssss ---- मोर--- मोर--- इनसाइडsss यूsssss ----- ओह्ह्ह फ़कssssss ----!!’
इधर आशा,
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssssss आह्ह्हह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्हsssssssss... गूंss गूंsss गूंsss गूंsss गूंsssss गूंssss ह्ह्ह्हह्हsss ह्ह्ह्हह गोंss गोंss गोंss गोंsss गोंsss म्म्फ्हह्हss म्म्म्मप्प्फ्हह्हssss’ अब मुँह के किनारों से लार टपकने लगा --- टपकने क्या, समझिए बहने लगा |
रणधीर बाबू चूचियों को मसलना छोड़ कर आशा के सिर के पीछे हाथ रख अपने तरफ़ धकेलते और ठीक उसी समय अपने कमर को जोर से आगे की ओर झटकते --- इस तरह बेचारी आशा बचने के लिए अपना मुँह हटाए भी तो हटाए कहाँ --- ??
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssss आह्ह्हह्म्म्मssssप्प्फ्हह्ह्हsss ... गूंsss गूंsss गूंssss गूंssss गूंssss गूंsss ह्ह्ह्हह्हsssss’
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssss आह्ह्हह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्ह.ssss.. गोंss गोंss गोंsss गोंsss गोंsssss ........ म्म्फ्हह्हssss म्म्म्मप्प्फ्हह्हssssssssss’
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्ह गूं गूं गूंssssssss गूं गूं गूं ह्ह्ह्हह्हssssss ह्ह्ह्हहsssss ...... आह्ह्हssssssह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्हssssssssssss ....... गोंsss गों ss गोंssss गोंsss गों sssss …. म्म्फ्हह्ह म्म्म्मप्प्फ्हह्हssssss’
इसी तरह घपाघप आशा के मुँह को करीब पंद्रह मिनट तक चोदते चोदते आख़िरकार ठरकी बुड्ढा अपने क्लाइमेक्स पर पहुँच ही गया ----
‘फ़फ़’ से ढेर सारा वीर्य उगला उनके औज़ार ने --- पूरा मुँह भर गया --- रत्ती भर की भी जगह न बची --- इतना वीर्य की थोड़ा सा निगल लेने के सिवा और कोई चारा न था और बहुत सा तो आशा के कुछ भी सोचने समझने के पहले ही गले से नीचे उतर गया --- नमकीन स्वाद ने आशा के मुँह का जायका पूरी तरह से बिगाड़ दिया ---- उससे अधिक उम्र के --- एक खूंसट ठरकी बुड्ढे का काला गन्दा लंड को मुँह में लेना और फ़िर उसका वीर्यपान करना --- कड़वाहट से भर दिया आशा को – बाकि बचे वीर्य को उगलते हुए खांसने लगी --- हरेक कतरे को निकाल बाहर करना चाहती थी –
इधर बुड्ढे ने दो तीन सफ़ेद कागज़ उसकी ओर बढ़ा कर साफ़ हो लेने को बोला --- साथ ही अपना वाशरूम भी दिखाया --- आशा दौड़ कर अंदर घुस गई --- रणधीर बाबू बड़े प्रेम से एक कागज़ से अपने लंड को पोछते पोछते अपनी कुर्सी पर आ बैठे --- और पहली सफ़लता पर बेहद प्रसन्न मन से मुस्कुराने लगे |
करीब दस मिनट बाद आशा निकली --- कपड़े सही कर ली थी – बाल जो कि रणधीर बाबू के उसके सिर को पकड़ने के वजह से अस्त-व्यस्त हो गए थे; उन्हें भी ठीक कर ली --- पिन लगाईं --- और कुर्सी पर बैठ गई -- |
रणधीर – ‘आशा , दैट वाज़ औसम !! .... आई लव्ड इट --- थैंक्स --- |’
आशा कुछ नहीं बोली, चुप रही ---- नज़रें नीची किए --- |
रणधीर बाबू भी उसके जवाब का इंतज़ार किए बिना बोले,
‘आशा --- एक और बात --- अच्छे सुन और समझ लो --- और दिमाग में बैठा लो --- आज के बाद , हर दिन, स्कूल बिना ब्रा पहन के आया करोगी --- ओके? और हाँ, कल ही अपने बेटे का फॉर्म और ज़रूरी डाक्यूमेंट्स लेती आना ---- कल से तुम्हारी जॉइनिंग एंड तुम्हारे बेटे का एडमिशन परसों पक्का --- ....’
यह सुनते ही आशा को जैसे अपने कानों पर यकीं नहीं हुआ --- आश्चर्य से रणधीर बाबू की ओर देखी --- उनके चेहरे पर एक सहमती वाली मुस्कान देख कर उसकी आँखें छलक गईं --- रुंधे स्वर में बोली,
‘थैंक्यू सो मच सर --- थैंक्यू ---’
रणधीर बाबू एक बड़ी सी कमीनी मुस्कान लिए बोला,
‘ओके ओके... एनफ ऑफ़ थैंक्स ---- यू मे गो नाउ --- पर जाने से पहले एक छोटा सा काम और करो --- |’
आशा सवालिया नज़रों से देखी उनकी ओर,
‘अभी जो ब्रा पहनी हुई हो उसे खोल कर यहाँ रख जाओ --- |’
आशा उठी और वाशरूम में जल्दी से घुस गई --- रणधीर बाबू का फ़िर कोई नया आदेश न आ जाए यह सोच कर जल्दी से ब्रा उतर कर ; कपड़ों को ठीक कर के बाहर निकली--- उसे बाहर निकलते देखते ही रणधीर बाबू ने अपना बाँया हाथ बढ़ा दिया --- आशा ने इशारा समझ कर ब्रा उनकी हथेली पर रख दी --- बिना नज़रें उठाए धीरे कदमों से कुर्सी तक पहुँची --- अपना बैग उठाई और जाने लगी --- दरवाज़े तक पहुँची ही थी कि रणधीर बाबू की आवाज़ आई ,
‘एक और बात --- आज तुम्हारा फर्स्ट टाइम था क्या--- आई मीन टेकिंग माय थिंग इनटू योर माउथ --??!’ बड़ी बेशर्मी से सवाल दागा बुड्डे ने --- |
आशा सिर घूमाए बिना बोली,
‘यस सर |’
और इतना बोल कर तेज़ी से दरवाज़ा खोल कर चली गई --- |
इधर रणधीर बाबू हैरान --- साफ़ सुनकर भी यकीं नहीं हो रहा --- मानो यकीं करने को ही उनका दिमाग नहीं चाह रहा ---
आखिर एक शादीशुदा, उच्च घर की, संस्कारी, सुशिक्षित महिला का वर्जिन मुँह चोदा है उन्होंने --- न जानते हुए ही सही --- पर चोदा तो ---- और एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने आज एक ऐसी ही महिला को अपना लंड चूसा कर उसके शर्म – ओ – ह्या, हिचक, झिझक, बेबसी और ऐसे ही बहुत सी बाधाओं का बाँध तोड़ा है ---- जो आगे जा कर बहुत काम आने वाला है ----
‘आह्ह्ह:’
एक और आह निकली रणधीर बाबू के मुँह से और हाथ में पकड़े आशा की मुलायम क्रीम कलर के ब्रा को पागलों की तरह नाक और मुँह से लगा कर उसका गंध सूँघने लगे --------- |
क्रमशः
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